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सीटू और एटक ने सरकार के ESI के योगदान में कटौती करने के निर्णय पर आलोचना की

ट्रेड यूनियन के अनुसार, यह निर्णय ESI के त्रिपक्षीय गवर्निंग बॉडी के निर्णय से मेल नहीं खाती है।
ESIC
प्रतीकात्मक तस्वीर | फोटो साभार: esic.nic

शुक्रवार को जारी एक प्रेस रिलीज़ में सीटू (सेंटर फॉर ट्रेड उनियनस) और AITUC (आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस) ने सरकार द्वारा ईएसआई के योगदान को कम करने के फैसले की कड़ी निंदा की है। ट्रेड यूनियनों ने इस कदम को “एकतरफा और मनमाना” बताया है।

गुरूवार को सरकार ने कर्मचारियों और नियोक्ताओं द्वारा कर्मचारी राज्य बिमा योजना के लिए योगदान की कुल दर को 6.5 प्रतिशत से घटाकर 4 प्रतिशत करने की घोषणा की थी।

नामांकित श्रमिको के वेतन का ईएसआई में योगदान 4.75 प्रतिशत से घटकर 3.25 प्रतिशत हो गया है। वहीं श्रमिकों का योगदान 1.75 प्रतिशत से घटकर 1 प्रतिशत हो गया है।   

जबकि सीटू का कहना है कि यह कदम ईएसआई की त्रिपक्षीय गवर्निंग बॉडी मीटिंग के सर्वसम्मत निर्णय से मेल नहीं खाती है। इस निर्णय के पक्ष में दिए गए सारे कारणों को AITUC ने झूठा बताया है।

पिछले साल 18 सितम्बर को हुई ESI की 175 वीं त्रिपक्षीय गवर्निंग बॉडी मीटिंग में यह निर्णय लिया गया था कि ईएसआई में नियोक्ता के योगदान को घटाकर 4 प्रतिशत की जाये और वहीं कर्मचारियों का योगदान 1% प्रतिशत तक घटाया जाये। इस निर्णय से ईएसआई का कुल सालाना योगदान 5 प्रतिशत हो गया।

प्रेस बयान में यह भी बताया गया कि केंद्रीय श्रम मंत्री के मौजूदगी और अध्यक्षता में 2019-20 वित्तीय वर्ष की ESI बजट को फरवरी 2019 में आयोजित 177वीं गवर्निंग बॉडी मीटिंग में 5 प्रतिशत की योगदान के आधार पर अंतिम रूप दिया गया था।

नियोक्ता द्वारा ईएसआई को दिए गए योगदान के निर्णय में अचानक बदलाव के कारण सरकार के प्रति नियोक्ता लॉबी को लाभ पहुँचाने के ‘गलत इरादे’ की ओर कई प्रश्न खड़े करता है।

ऐसे निर्णय का कोई वकालत नहीं

सीटू के महासचिव तपन सेन ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, ईएसआई योजना के वास्तविक उद्देश्य को न समझने के लिए सरकार की आलोचना की है। उन्होंने कहा, “ईएसआई में नियोक्ता के योगदान को एक [परोपकारी] योगदान के रूप में गलत नहीं समझा जाना चाहिए। यह मजदूरी का एक हिस्सा है जो श्रमिकों को सुविधाओं के रूप में मिलता है। सरकार ने मजदूरों के सामाजिक सुरक्षा के अधिकार को कम कर दिया है।”

स्व-वित्तपोषण होने के बावजूद भी कर्मचारी राज्य बिमा निगम में    योगदान में कमी के परिणामस्वरूप योजना को चलने के लिए अपने प्रशासनिक खर्चों को पूरा करना मुश्किल हो सकता है।

सेन ने ESIC के प्रति इसी तरह के डर को दोहराते हुए हुआ कहा , “कर्मचारी राज्य बिमा निगम सरकार का पैतृक संस्थान नहीं है।”

सरकार कैसे बेहतर सेवाएं प्रदान करने के लिए अपने जिम्मेदारियों से भाग रही है, इस पर AITUC के महासचिव अमरजीत कौर ने न्यूज़क्लिक से बात की। उसने कहा कि मांग कभी भी ईएसआई में योगदान में कटौती करने की नहीं थी, बल्कि यह सेवाओं की बेहतरी के लिए थी।

उन्होंने कहा कि, “अधिशेष संग्रह का तर्क, जिसके आधार पर सरकार द्वारा कटौती को उचित ठहराया गया था, सब झूठा है। कौर ने यह भी कहा, “जब रिक्तियां अभी तक नहीं भरी  जा सकी हैं, तब कोई अधिशेष संग्रह नहीं हो सकता है, जब अस्पतालों में आवश्यक उपकरण नहीं है और जब ईएसआई योजना के तहत आने वाले प्रत्येक कर्मचारी तक पहुंचने के लिए सेवाओ का विस्तार नहीं किया जाता है।”   

2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद, ESIC के वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2018 तक केवल 3 ESIC और 82 ESI औषधालय बनाये गए हैं। इसी अवधी में, 1.47 करोड़ लोगों ने ईएसआई योजना के तहत बिमा कराया, जिसके कारण जनवरी 2017 में 15000 रूपये से 21000 रूपये तक पात्रता स्तर के  संशोधन के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

न्यूज़क्लिक ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय सचिव विरेश उपाध्याय से भी बात की। उन्होंने अंतर्राष्टीय श्रम सम्मलेन में भाग लेने के लिए श्रम और रोजगार मंत्री संतोष कुमार गंगवार के प्रतिनिधिमंडल के साथ स्विट्ज़रलैंड में होने के कारण कोई भी टिप्पणी देने से इंकार कर दिया।

संसद द्वारा कर्मचारियों के राज्य बिमा अधिनियम, 1948 (ईएसआई अधिनियम) की घोषणा, स्वतंत्र भारत में श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा पर पहला बड़ा कानून था। यह बीमारी, प्रसूति, विकलांगता आदि की घटनाओं के प्रभाव के खिलाफ कर्मचारियों की सुरक्षा के कार्य को पूरा करने के लिए बनाया गया है।

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