सऊदी अरब में 1,20,000 वर्ष पुराने इंसानी पदचिन्हों का पाया जाना प्रारंभिक मानव की उपस्थिति की ओर इशारा करते हैं
अफ्रीका से बाहर निकलने के पश्चात आधुनिक इंसान ने उस कौन से मार्ग को अपनाया होगा जो उसे यूरेशिया और मध्य पूर्व तक ले गया होगा? वर्षों से अरब प्रायद्वीप के बारे में यह स्पष्ट धारणा बनी हुई है कि इसके जरिये ही हमारे अफ्रीकी पूर्वजों ने यूरेशिया एवं मध्य पूर्व तक पहुंचने के मार्ग को अपनाया होगा।
अरब प्रायद्वीप में पाए गए पत्थरों से बने विभिन्न औजारों से भी यह पता चलता है कि प्रारंभिक मनुष्यों ने इतिहास में कई बार इस क्षेत्र को खंगालने का काम किया था। अतीत को लेकर एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि उस जमाने में अरबी इलाका आज की तरह का रेगिस्तानी इलाका नहीं हुआ करता था।
वास्तव में वहां पर तब स्थायी ताजे पीने वाले पानी की झील के साथ-साथ हरे-भरे घास के मैदान हुआ करते थे। लेकिन अभी तक जो भी इस बारे में ठोस सबूत के तौर पर सामने आया है, वह असल में एकमात्र इंसानी उंगली की हड्डी ही प्राप्त हो सकी थी, जो कि आज से करीब 88,000 साल पहले की है।
लेकिन हाल ही में साइंस एडवांसेज में प्रकाशित एक अध्ययन ने अरब के इलाके में प्रारंभिक मनुष्यों की उपस्थिति पर और अधिक रौशनी डालने का काम किया है। इस बाबत खोजकर्ताओं ने सूचित किया है कि उन्हें झील की सतह पर इंसानी पद-चिन्हों का पता चला है। इन पैरों के निशानों के बारे में अनुमान है कि ये लगभग 120,000 वर्ष पुराने हैं। इंसानी पद-चिन्हों के निशानों के अलावा उन्हें अन्य जानवरों जैसे कि गधे, ऊंट, विशालकाय भैंसों एवं हाथी के पैरों के निशान भी मिले हैं।
अरब प्रायद्वीप में एक दशक के लंबे अनुसन्धान में सेटेलाइट इमेजरी और रिमोट सेंसिंग तकनीकों का इस्तेमाल करते हुए शोधकर्ताओं की टीम द्वारा हजारों ताजे पानी की झीलों की सतह का पता चल सका है। ये किसी जमाने में ये प्रचुर मात्रा में ‘हरे-भरे’ रहे अरबी जल निकायों के गवाह के तौर पर हैं। जिस झील के किनारे उन्हें प्राचीन मनुष्यों के पदचिन्ह मिले, उन्हें 'अलथर' कहा जाता है, जिसका अर्थ अरबी भाषा में 'चिन्ह' होता है।
यहां पर एक झील की सतह पर उन्हें सैकड़ों पैरों के निशान देखने को मिले हैं, जो बुरी तरह से रौंदे जा चुके थे। झील की सतह शायद हाल ही में उसके उपर जमा तलछट के कटाव के चलते उजागर हो सकी थी। कई साल पहले जानवरों द्वारा छोड़े गए पैरों के निशानों में से शोधकर्ताओं द्वारा लगभग 400 पदचिन्हों को ट्रैक किया जा सका है, जिनमें से सिर्फ सात को इंसानी पैरों के निशानों के तौर पर पहचाना जा सका और इसकी पुष्टि की जा सकती है।
इस बारे में शोधकर्ताओं का कहना है कि पैरों के ये निशान मनुष्यों के थे और पैरों के छाप की साइज़ और आकार की तुलना करने के बाद यह तय पाया गया कि ये निशान निएंडरथल के नहीं हो सकते थे। उनके अनुसार उस पथ पर जो पैरों के निशान देखने को मिले हैं वे आकार में लंबे और ऊँचे प्राणियों के हो सकते थे जिनका वजन कम था, जोकि कुल मिलाकर मनुष्यों की निशानी बयां करते हैं। जबकि निएंडरथल के पैरों के निशान एवं बाकी आकार अलग होते हैं।
इन प्रारंभिक इंसानों ने हजारों किलोमीटर के अपने प्रवासन के दौरान कुछ समय के लिए इस क्षेत्र में ताजे पानी की झील में अपनी प्यास बुझाने के लिए रुकने का इरादा किया होगा, और इस यात्रा में उनके साथ उनके जानवर भी रहे होंगे। जैसे ही वे लोग यहाँ से आगे गुजरे होंगे, ये पदचिन्ह जल्द ही सूख गए होंगे और अंततः जीवाश्म में तब्दील हो गए होंगे।
शोधकर्ताओं ने समय का अंदाजा लगाने के लिए जिस प्रकार से पदचिन्हों को तैयार किया उस तकनीक को ऑप्टिकल तौर पर उत्तेजित ल्यूमिनेंस कहा जाता है। इस तकनीक के जरिये इलेक्ट्रॉनों को मापने के जरिये अंदाजा लगाया जाता है, जब अंतिम बार तलछट की परतें प्रकाश के संपर्क में आई होंगी। इसके जरिये टीम ने अंदाजा लगाया है कि इन पदचिन्हों के ऊपर और नीचे की तलछट अब से तकरीबन 121,000 से लेकर 112,000 वर्षों पहले की होनी चाहिए।
इस अध्ययन के सह-लेखक और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर केमिकल इकोलॉजी के मैथ्यू स्टीवर्ट के अनुसार इस दौर में निएंडरथल मध्य पूर्व में नहीं पाए जाते थे और इसने शोधकर्ताओं को यह सटीक अनुमान लगाने के योग्य बनाया कि इन पदचिन्हों का सम्बंध मनुष्यों के साथ ही था।
इसी तरह इस अध्ययन के सह-प्रमुख लेखक और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर द साइंस ऑफ़ ह्यूमन हिस्ट्री के माइकल पेट्रागलिया का इस बारे में कहना था कि "खुले घास के मैदानों एवं विशाल जल संसाधनों के साथ-साथ हाथियों और हिप्पो जैसे बड़े जानवरों की उपस्थिति ने उत्तरी अरब क्षेत्र को अफ्रीका और यूरेशिया के बीच विचरण करने वाले मनुष्यों के लिए विशेष तौर पर आकर्षक स्थान बना दिया रहा होगा”।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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