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भूख से होने वाली मौतें झारखंड विधानसभा चुनाव को कितना प्रभावित कर रही हैं?

चर्चित सोशल एक्टिविस्ट रितिका खेड़ा की अगुआई वाली एक फैक्ट फाइडिंग टीम का दावा है कि पिछले पांच साल में झारखंड में भूख से करीब 22 लोगों की मौत हुई है, हालांकि राज्य सरकार इस दावे को ख़ारिज करती है, उल्टा उन लोगों की मंशा पर सवाल उठाती है जो इस पर काम करते हैं।
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पिछले साल यानी 2018 में जुलाई महीने में झारखंड के रामगढ़ जिले में 40 वर्षीय आदिवासी व्यक्ति की मौत के बाद उनकी पत्नी ने दावा किया कि भूख के चलते उनकी मौत हुई। आदिम बिरहोर आदिवासी से ताल्लुक रखने वाले राजेंद्र बिरहोर की मौत के बाद बहुत हंगामा हुआ।

बिरहोर की पत्नी शांति देवी ने बताया, 'उसके पति को पीलिया था और उसके परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि वे उसके लिये डॉक्टर द्वारा बताया गया खाद्य पदार्थ और दवाई खरीद सकें। साथ ही उस वक्त उनके परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था जिससे वे राज्य सरकार की सार्वजनिक वितरण योजना के तहत सब्सिडी वाले अनाज प्राप्त कर पाते। सात बच्चों के पिता बिरहोर परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे।'
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आपको बता दें कि राजेंद्र बिरहोर को आदिम जनजातियों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा पेंशन की 600 रुपये प्रति माह की राशि भी नहीं मिलती थी। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट आदेश दिया है कि ‘आदिम जनजाति’ समुदाय- जिसका हिस्सा बिरहोर समुदाय है- को अन्त्योदय अन्न योजना अंतर्गत प्रति माह 35 किलो राशन का हक़ है। साथ ही, झारखंड के आदिम जनजाति समुदाय के परिवारों को उनके घर पर नि:शुल्क राशन मिलना है।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए शांति आगे कहती हैं, 'अभी फिलहाल उन्हें 35 किलो चावल मिल रहा है लेकिन सरकारी अधिकारियों के तमाम वादों के बावजूद उन्हें नौकरी नहीं मिली है। ऐसे में सात बच्चों का पालन पोषण करना मुश्किल हो रहा है। अभी वह मजदूरी और शादियों में पत्तल फेंकने या सफाई का छोटा मोटा काम करती हैं।'

हालांकि, जिला प्रशासन के अधिकारियों ने भूख से होने वाली मौत होने की बात से इनकार किया और कहा कि बिरहोर की मौत बीमारी के चलते हुई। भले ही सरकार भूख से हुई मौतों को मानने से इनकार करे लेकिन मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता रितिका खेड़ा के नेतृत्व में बनी एक फैक्ट फाईंडिंग टीम ने दावा किया कि पिछले पांच साल के दौरान झारखंड में कम से कम 22 लोगों की मौत भूख से हुई है। खेड़ा ने भूख से हुई मौतों की सूची भी जारी की है। इस रिपोर्ट के अनुसार भूख से मौत की सूची में शामिल अधिकतर लोग वंचित समुदायों के थे।

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आपको याद दिला दें कि झारखंड के सिमडेगा जिले के जलडेगा प्रखंड के कारीमाटी गांव में रहने वाली महज 11 साल की संतोषी की मौत 28 सितंबर, 2017 को हुई थी। उसके घर में राशन नहीं था। वह भूख से तड़प रही थी और बुखार भी था। उनकी मां कोयली देवी के अनुसार संतोषी की मौत भात भात की रट लगाते हुए हो गई थी। यह झारखंड में कथित तौर पर भूख से होने वाली पहली चर्चित मौत थी।

इसे लेकर राष्ट्रीय मीडिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया में खूब चर्चा हुई। रघुबर सरकार को तमाम आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ा लेकिन तब भी सरकार का यही तर्क था कि संतोषी की मौत भूख से नहीं बल्कि बीमारी से हुई है।

हालांकि कथित भूख से हुई मौतों को ध्यान से देखें तो इन सभी के परिवारों के लिए पर्याप्त भोजन व पोषण का अभाव सामान्य बात थी। मरने के दिन घर में अनाज और पैसे नहीं थे। साथ ही परिवार के सदस्यों के पास आजीविका और रोजगार के पर्याप्त साधन नहीं थे। हालांकि राजनीतिक दल इस पर बात करने से बचते रहते हैं।

इसे लेकर भोजन का अधिकार संगठन से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता बलराम कहते हैं, 'भूख से मौत इस चुनाव में बड़ा मुद्दा नहीं है। दरअसल भूख से होने वाली 20—25 मौतें लोगों को झकझोरती नहीं हैं। उनको लगता है कि इससे ज्यादा मौतें तो सड़क दुर्घटना में हो जाती हैं। मेरे ख्याल से भूख के सवाल को भुखमरी से जोड़ना चाहिए। झारखंड में भुखमरी के भीतर करीब आधी आबादी आ जाती है। जिनके पास बेहतर पोषण का अभाव है। इसे लेकर तमाम आंकड़े भी हैं। अगर भुखमरी का मसला उठे तो शायद ज्यादा लोग उससे अपने आप को जोड़ पाएं। अभी की स्थिति में जब यह चुनावी मुद्दा नहीं है तो राजनीतिक दल भी इसे लेकर वैसा रुख नहीं अपनाते जितना की इस संवेदनशील मुद्दे को लेकर होना चाहिए।'

कुछ ऐसा ही मानना सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता का भी है। वे कहते हैं, 'चुनाव में भूख से मौत की चर्चा विपक्ष के बड़े नेता अपने चुनावी भाषण में तो कर रहे हैं। लेकिन भूख से मौत, भुखमरी और कुपोषण की अंतिम अवस्था है। ऐसे परिवार अपने सामाजिक, आर्थिक और कल्याणकारी योजनाओं से वंचित होते हैं तब जाकर भूख से मौत होती है। यह एक इंडीकेटर है ज्यादा गहरे मुद्दों के। जितने भी परिवार में भूख से मौत हुई है वे परिवार ज्यादातर राशन कॉर्ड, मनरेगा आदि से वंचित रहे हैं। पेंशन योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है।'

सिराज दत्ता कहते हैं, 'विपक्षी पार्टियां भी इसे बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं बना रहा है। किसी भी विपक्षी दल ने राशन कार्ड को लेकर कोई बड़ा वादा नहीं किया है। पेंशन को लेकर भी यही हाल है। सिर्फ जेएमएम ने 2500 रुपये पेंशन देने की बात कही है। आधार को लेकर इतनी समस्या हुई है लेकिन उसे भी लेकर किसी ने यह वादा नहीं किया है कि वो कल्याणकारी योजनाओं से आधार को हटा देंगे। कांग्रेस ने सिर्फ यह बोला कि आधार की वजह से कोई वंचित नहीं होगा। जेएमएम ने भी आधार को डिलिंक करने की बात नहीं की है। कुपोषण को लेकर भी किसी भी दल ने कुछ खास वादे नहीं किए हैं। कुल मिलाकर चुनाव में खाद सुरक्षा और पोषण को लेकर जो फोकस होना चाहिए वह राजनीतिक दलों के घोषणा पत्र से गायब है।'
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फिलहाल अगर हम राजनीतिक दलों के घोषणा पत्रों को देखें तो पिछले पांच वर्षों में कम-से-कम 23 भूख से मौतें हो गयीं लेकिन विपक्षी दलों ने भुखमरी, कुपोषण और कल्याणकारी योजनाओं के लाभ से वंचित होने के मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। केवल कांग्रेस ने जन वितरण प्रणाली अंतर्गत राशन की मात्रा को बढ़ाकर 35 किलों प्रति माह एवं दाल जोड़ने की बात की है।

किसी भी दल ने जन वितरण प्रणाली और सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजनाओं के कवरेज को बढ़ाने की बात नहीं की है। हालांकि कुपोषण में झारखंड देश के अव्वल राज्यों में से एक है, किसी भी दल ने मध्याह्न भोजन और आंगनवाड़ी में मिलने वाले अण्डों की संख्या बढ़ाने की घोषणा नहीं की है। कल्याणकारी योजनाओं को आधार से जोड़ने के कारण व्यापक स्तर पर लोग अपने अधिकारों से वंचित होते हैं लेकिन किसी भी दल ने आधार को योजनाओं से हटाने की बात नहीं की है।

हालांकि भूख से मौत के सवाल पर मुख्य विपक्षी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं, 'भूख से मौत के मामले को सबसे ज्यादा हमारी पार्टी ने उठाया है। हालांकि अब तक 16 से ज्यादा मौतें हो चुकी है लेकिन सरकार हर मामले में क्लीन चिट दे देती है। वह जिस पोस्टमार्टम रिपोर्ट का हवाला देती है उसमें आप 99 मामलों में देखें कि ह्दयाघात या ब्रेन डेड होने का जिक्र होता है। तो यह सरकार का तर्क है। हमारी सरकार ने गरीबों को मुफ्त अनाज और पांच रुपये में मुख्यमंत्री दाल भात योजना की शुरुआत की थी। इस सरकार ने इसे बंद कर दिया है। अगर हम सरकार में आते हैं तो इसे फिर से शुरू करेंगे। साथ ही आनलाइन पीडीएस सिस्टम की मॉनीटरिंग होनी चाहिए लेकिन जहां पर डिजिटल कनेक्शन खराब है वहां पर किसी का अनाज रोक देना गलत बात है।'

वहीं, सत्ताधारी दल बीजेपी का कहना है कि सरकार ने हर मामले की जांच कराई है लेकिन भूख से मौत का कोई भी मामला नहीं मिला है। साथ ही झारखंड देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने भूख से हुई मौत की परिभाषा तय करने के लिए एक कमेटी बनाई है।

बीजेपी के प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल का कहना है,'भूख से मौत का मुद्दा बोगस मुद्दा है। ये सिर्फ विपक्षी दलों का सुनियोजित तरीके से झारखंड को बदनाम करने की साजिश है। किसी भी बीमारी या दूसरे कारणों से हुई मौत को विपक्ष द्वारा भूख से मौत साबित करने का प्रयास किया गया लेकिन जनता ने लोकसभा चुनाव में इसका करारा जवाब दे दिया है।'

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