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स्वच्छ भारत: 9.8 करोड़ सेप्टिक टैंक या गड्ढों की सफाई कौन करेगा?

नियम के अनुसार इसके लिए मशीनें होनी चाहिए लेकिन इस तरह की कोई योजना नहीं है। इसका मतलब है कि सरकार लोगों से दस्ती तरीक़े से मैला ढोने का काम जारी रखना चाहती है।
swachchta abhiyan

हाल ही में जारी किए गए एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार मानव मल इकट्ठा होने के लिए ग्रामीण भारत में 96% से अधिक शौचालयों के लिए सेप्टिक टैंक या अन्य प्रकार के गड्ढे बने हुए हैं। [नीचे दिया गया चार्ट देखें] ये रिपोर्ट (# 584) राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) द्वारा किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है जो सांख्यिकी मंत्रालय के अधीन है। एनएसओ को पहले एनएसएसओ कहा जाता था। चूंकि स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) आधिकारिक रूप से दावा करता है कि 10 करोड़ से अधिक घरेलू शौचालय बनाए गए हैं और वहां लगभग 9.8 करोड़ ऐसे सेप्टिक टैंक और गड्ढे बने हैं।

हालांकि इस बारे में कोई चर्चा नहीं है कि इन टैंकों / गड्ढों को ख़ाली किया जा रहा है या नहीं। वास्तव में इस आवश्यक कार्य के लिए अलग से कोई फंड नहीं रखा गया है। यह मालिक की ज़िम्मेदारी है।

सेप्टिक टैंक को भरने और सफाई की आवश्यकता के लिए कुछ साल लग जाते हैं। खुले गड्ढे तेजी से भरेंगे। भले ही तरल पदार्थ को बाहर निकालने की व्यवस्था है पर बचे मल को निकालने की आवश्यकता होगी। यह केवल दोहरे लीच पिट में होता है कि ये मल रोगजनकों और गंध से मुक्त हो जाएगी लेकिन ये निर्मित शौचालयों का लगभग 10.6% ही बनते हैं। फिर भीऐसी प्रणालियों में सूखे मल को हटाने की आवश्यकता होगी।

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यह कौन करने जा रहा हैआदर्श रूप में ट्रकों पर मशीनें लगी होती हैं जो मल (यदि तरल रूप में हैको निकाल सकती है और इसे कुछ दूरी पर ले जाकर गिरा सकती हैं। लेकिन ऐसा कोई उपाय अनिवार्य नहीं है और न ही ऐसी मशीनों के लिए कोई धनराशि रखी गई है जिनकी लागत प्रत्येक की 12 लाख रुपये से अधिक हो।

इसका मतलब यह है कि जिन परिवारों को इन शौचालयों पर गर्व है वे या तो टैंक गड्ढे को साफ करने के लिए एक सफाई करने वाले लोग को बुलाएंगे या फिर एक ठेकेदार को बुलाएंगे जिनके पास इस काम को करने के लिए मशीन हैअगर वे बुलाने में सक्षम हैं।

चूंकि यहां पर हम ग्रामीण भारत के बारे में चर्चा कर रहे हैं इसलिए संभावना है कि नज़दीक के इलाक़ों में किराए पर लेने के लिए ऐसी सुविधाजनक मशीन उपलब्ध होगी जो कम से कम अभी तो मुमकीन नहीं है। दूसरी तरफमैनुअल स्कैवेंजिंग सदियों पुरानी प्रथा है और इसके लिए लोगों का एक निर्दिष्ट वर्ग है जिनसे इस ’गंदे’ कार्य को करवाया जाता हैइससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि ये अमानवीय प्रथा आधिकारिक रूप से अवैध है।

इस तरह मालूम होता है कि मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा विकल्प का मार्ग होगा अर्थातटैंक/गड्ढे में उतर कर एकत्रित मानव मल को बाल्टी से खाली करने के लिए उन्हें बुलाया जाएगा और इसके लिए उन्हें पैसा दिया जाएगा। वे फिर इसे निकालकर कहीं दूसरी जगह ले जाएंगे वह नाला या खाली मैदान या बंजर ज़मीन हो सकता है और इसे वहां फेंक देंगे। कई गहन सर्वेक्षणों ने जारी प्रथा की पुष्टि की है।

दूसरी तरफ, अगर कोई परिवार ऐसा नहीं करता है तो दूसरा एकमात्र विकल्प शौचालय का इस्तेमाल बंद करना होगा। अन्यथा उनके सेप्टिक टैंक या गड्ढे भर कर बहने लगेंगे।

क्या स्वच्छ भारत मिशन द्वारा लाई गई क्रांति के बारे में गर्व से बात करने वाली सरकार ने यह सब माना हैहांकेवल काग़ज़ पर वे कहते हैं कि समय-समय पर सफाई ज़रूरी है। वास्तव मेंआवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के अधीन एक प्रमुख संस्थान केंद्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण इंजीनियरिंग संगठन (सीपीएचईईओद्वारा सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिए उन्होंने हाल ही में एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपीजारी की है। यह इस बात पर विस्तृत मार्गदर्शन करता है कि यह काम करने वाले के लिए कितने प्रकार के सुरक्षा उपकरण आवश्यक हैं और यह सफाई के लिए सटीक प्रोटोकॉल भी बताता है। लेकिन दूर दराज के गांवों में वास्तव में क्या ऐसा होगा?

अगर गंभीरता से इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो ज़्यादा संभावना है कि सफाई कर्मी इसी तरह काम करते रहेंगे और इसी तरह मरते रहेंगे। सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन (एकेएके अनुमान के अनुसार मीडिया रिपोर्टों के आधार पर लगभग 2000 मैला ढोने वाले सफाई कर्मी हर साल मरते हैं। इसमें सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय मौतों की संख्या की पूरी रिकॉर्ड नहीं है। अबकई नए सेप्टिक टैंक के चलते इन मौतों की संख्या बढ़ सकती हैं और मानव मल को दस्ती तरीक़े से हटाने की अवैध प्रथा नई चीजों को जन्म देगी।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Swachh Bharat: Who Will Clean & Empty Out 9.8 Crore Septic Tanks/Pits?

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