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तेलंगाना चुनाव : भाजपा की ‘विघटनकारी चालों’ के लिए कोई जगह नहीं

जेएनयू के राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर अजय गुडवर्थी कहते हैं, "टीआरएस और बीजेपी के बीच एक अघोषित समझौता है।"
TELANGANA
PHOTO : PTI

तेलंगाना में 7 दिसंबर को होने विधानसभा चुनावों में, भारतीय जनता पार्टी कम से कम उन निर्वाचन क्षेत्रों को कब्ज़ाने के लिए संघर्ष कर रही है जहां वह पहले जीती थी। भगवा पार्टी ने खुद को मुख्य चुनावी प्रतिद्वंदी - तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रजकुट्टामी की आलोचना करने तक अपने आपको सीमित कर दिया है, और यहां अपनी जाति और धर्म के नाम पर चुनावी ध्रुवीकरण और विभाजनकारी राजनीति’ को त्याग दिया है दरअसल तेलंगाना का गठन एक व्यापक समावेशी, धर्मनिरपेक्ष राज्य रुप से हुआ। यही विचार पृथक राज्य आंदोलन के दौरान अपनाया गया था।

हालांकि, राज्य में भगवा पार्टी की मजबूरी ने इसे टीआरएस के साथ "अघोषित समझौता" करने के लिए तैयार किया है जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीतिक अध्ययन केंद्र के एसोसिएट प्रोफेसर अजय गुडवर्थी का कहना है कि "टीआरएस और बीजेपी के बीच एक अघोषित समझौता है। दोनों सूरतों, कांग्रेस के मुख्य प्रतिद्वंदी दल होने नाते और क्षेत्रीय मजबूरी की वजह से और जाति समीकरणों ने टीआरएस और बीजेपी को एक साथ आने लिए मज़बूर किया है, चूंकि तेलंगाना में मुस्लिम वोट भी महत्वपूर्ण हैं, इसलिए टीआरएस ने भाजपा के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन से परहेज किया है। जबकि टीआरएस ने कई कल्याणकारी नीतियों की एक घोषणा की है, लेकिन यह कई निर्वाचन क्षेत्रों में अलग-थलग पड़ गई है, और यही वह है इसे प्रजकुट्टामी अपने पक्ष मोड़ रहा है। अजय ने न्यूज़क्लिक को बताया, कि यह चुनावी संघर्ष काफी दिलचस्प होगा क्योंकि   टीआरएस अभी भी कुछ हद तक बढ़त में है।

भाजपा ने सभी 119 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं

पिछले 2014 के चुनावों में, बीजेपी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के साथ गठबंधन में थी और पार्टी ने एक लोकसभा (सिकंदराबाद) निर्वाचन क्षेत्र और पांच विधानसभा सीटों को जीता था। जबकि टीआरएस ने 63 सीटों पर जीत दर्ज की थी, और 34.3 प्रतिशत मिल थे बीजेपी को 7.1 प्रतिशत वोट शेयर मिला था, हालांकि, इन वोटों में एक बड़ा हिस्सा टीडीपी के समर्थकों का शामिल था।

इस प्रकार, आने वाले चुनाव दक्षिण भारतीय राज्य में भगवा पार्टी की वास्तविक ताकत को प्रकट करेंगे, क्योंकि यहां पार्टी अकेले लड़ाई में जा रही है।

27 नवंबर को निजामाबाद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राज्य में प्रचार करने जा रहे हैं, क्योंकि पार्टी निजामाबाद विधानसभा और लोकसभा सीट पर नजर रखे हुए है। 2009 में, भाजपा उम्मीदवार अंतला लक्ष्मीनारायण ने निजामाबाद (शहरी) सीट जीती थी। 2014 में, उन्होंने निजामाबाद लोकसभा सीट के लिए चुनाव लड़ा था और तीसरे स्थान पर रहे उन्हे लगभग 21 प्रतिशत मत मिले थे। दिसंबर में आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए, भाजपा के लक्ष्मीनारायण फिर से विधानसभा सीट की दौड़ में  शामिल हैं, जो टीआरएस उम्मीदवार और मौजूदा विधायक गणेश बिगला, कांग्रेस के ताहिर बिन हमदान, बीएलएफ (बहुजन वाम मोर्चा) के उम्मीदवार एचएम इस्माइल मोहम्मद और एआईएमआईएम ( अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन) मीर मजाज अली शेख के सामने लड़ेंगे।

हिंदुत्व अभियान

अक्टूबर में राज्य भाजपा ने विवादास्पद स्वामी परिपूर्णानंद को पार्टी में शामिल किया था। तब से, वह राज्य में हिंदुत्व अभियान का चेहरा बन ग हैं। अपने हालिया भाषण में से एक में, परिपूर्णानंद ने दावा किया कि बीजेपी लोगों के कल्याण के लिए काम करती है। उन्होंने कहा, "कांग्रेस पार्टी राज्य में यीशु के शासन को लाने का वादा कर रही है, जबकि टीआरएस पार्टी निजाम के शासन की प्रशंसा कर रही है।" हालांकि, टिप्पणीकारों का तर्क है कि बीजेपी के राज्य नेता आपसी आंतरिक तकरार में उलझे हैं और राज्य की सामाजिक-सांस्कृतिक स्थिति उन्हें देश के उत्तरी राज्यों में आयोजित सांप्रदायिक आंदोलन को हवा देने में रोक रही है।

गोशामहल निर्वाचन क्षेत्र के बीजेपी विधायक टी राजा सिंह सांप्रदायिक घृणा फैलाने के कई विवादास्पद बयानों की वजह से ख़बरों में हैं। राजा सिंह को गोशामहल निर्वाचन क्षेत्र से दोबारा दौड़ में रखा गया है, और बीएलएफ की ट्रांसजेंडर उम्मीदवार चंद्रमुखी, टीआरएस उम्मीदवार प्रेम सिंह राठोड़ और कांग्रेस के मुकेश गौड़ के खिलाफ खड़ा किया गया है।

सितंबर 17 का विवाद

17 सितंबर वह दिन है जब 1948 में तेलंगाना (हैदराबाद रियासत) को भारतीय संघ में शामिल किया गया था। बीजेपी पिछले चार सालों से प्रदर्शन कर रही है, और मांग कर रही है कि उस दिन को "तेलंगाना मुक्ति दिवस" के रूप में मनाया जाना चाहिए, क्योंकि उस दिन निजाम का शासन समाप्त हुआ था। बीजेपी समर्थक और अन्य संबद्ध समूह जैसे विश्व हिंदू परिषद पिछले चार वर्षों से 17 सितंबर को राज्य के विभिन्न स्थानों पर इस मुद्दे पर हालात खराब करने के लिए आयोजन करती हैं। व्यापक रूप से यह तर्क दिया जाता है कि इस कदम के पीछे राजनीतिक मकसद केवल निजाम और मुसलमानों के खिलाफ घृणा फैलाने का है।

सांप्रदायिक टकराव

तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद ने पिछले चार वर्षों में हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच सांप्रदायिक तनाव की कई घटनाएं देखी हैं, ये ज्यादातर धार्मिक त्योहारों के दौरान हुई हैं। हालांकि, बीजेपी से जुड़े समूह इस क्षेत्र में पिछले दशक में हुई सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाओं में शामिल थे, इस क्षेत्र में हुई आखिरी बड़ी सांप्रदायिक हिंसा 2008 में आदिलाबाद जिले के भैंस मंडल के वाटोली गांव में हुई थी। हिंदू वाहिनी के सदस्यों ने कथित तौर पर तीन बच्चों सहित छह सदस्यों के संपूर्ण मुस्लिम परिवार को जला दिया था। इस घटना के बाद राज्य में सांप्रदायिक तनाव कई दिनों तक बना रहा। इससे पहले इस साल अप्रैल में, आदिलबाद सत्र न्यायालय ने मामले को खारिज कर दिया था और राज्य की जांच एजेंसी द्वारा पेश साक्ष्यों में उचित तकनीकी और वैज्ञानिक साक्ष्य की कमी के कारण सभी गिरफ्तार आरोपियों को रिहा कर दिया था।

पांच राज्यों में से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना, जहां इस समय चुनाव होने हो रहे हैं, बीजेपी चार राज्यों में महत्वपूर्ण दावेदार है, लेकिन तेलंगाना में लगता है  यह अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रही है।

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