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तीन-भाषा फार्मूले का चौतरफ़ा विरोध, सरकार ने मसौदे में संशोधन किया

तीन भाषा फार्मूले के तहत कक्षा आठ तक 3 भाषाएं पढ़ाने की बात हो रही है,जिसमें क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा बच्चों को हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है।
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फोटो साभार: NDTV

दक्षिणी राज्यों और कई अन्य गैर हिंदी भाषी राज्यों से विरोध के बाद मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एचआरडी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) मसौदे में सुधार किया है।

मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रहे प्रकाश जावड़ेकर ने नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा तैयार करने के लिए के. कस्तूरीरंगन समिति गठित की थी। समिति की रिपोर्ट शुक्रवार को जारी हुई। इसमें त्री-भाषा के फार्मूले को लागू करने का सुझाव दिया गया है। इस त्री यानी तीन भाषा फार्मूले के तहत कक्षा आठ तक 3 भाषाएं पढ़ाने की बात हो रही है,जिसमें क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा बच्चों को हिंदी को अनिवार्य रूप से पढ़ाए जाने की सिफारिश की गई है। हालांकि समिति ने सुझाव दिया है कि हिंदीभाषी राज्यों में हिंदी और अंग्रेजी के साथ देश के अन्य हिस्सों की 'आधुनिक भारतीय भाषाओंमें से किसी एक को पढ़ाया जाए। लेकिन, समिति ने यह साफ नहीं किया कि आधुनिक भारतीय भाषा से उसका क्या अभिप्राय है। तमिल को केंद्र सरकार ने क्लासिकल भाषा का दर्जा दिया हुआ है।

एनईपी आलोचकों का कहना है कि त्रिभाषा फार्मूले के जरिये गैर हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपी जा रही है। ये देश की विविधता को खत्म करने की साज़िश है।

अब इस विवादित पैराग्राफ का शीर्षक 'त्रिभाषा फार्मूला में लचीलापनदिया गया है। इसमें कहा गया है कि छात्र जो तीन भाषाओं में से एक या दो में बदलाव करना चाहते हैंवे ऐसा कक्षा 6 या 7 में कर सकते हैं।

यह संशोधन नीति के मसौदे में किया गया है और 30 जून तक जनता के सुझावों के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर रखा गया है। मसौदा नीति में यह भी कहा गया है कि तीन भाषा फार्मूला देश भर में लागू करने की जरूरत है। ऐसा बहुभाषी देश में बहुभाषा संचार क्षमताओं के लिए जरूरी है।

इसमें कहा गया, "इसे कुछ राज्यों,विशेष रूप से हिंदी-भाषी राज्यों में बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए। इसका उद्देश्य राष्ट्रीय एकीकरण के लिए हैहिंदी-भाषी क्षेत्रों के स्कूलों को देश के अन्य हिस्सों की भाषाओं को सिखाना चाहिए।"

सरकार द्वार किये गए इस संशोधन के बाद भी विरोध कम नहीं हुआ है,नई शिक्षा नीति के तीन भाषा फॉर्मूले को लेकर कई राज्य जो हिंदी भाषी नहीं हैं वो इसका विरोध कर रहे हैं। खासकर तमिलनाडु सहित दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध शुरू हो गया है। इसको लेकर माहौल काफी गर्म है,इसी कारण केंद्र सरकार को बैकफुट पर आना पड़ा और उसने अपने निर्णय में सुधार किया है लेकिन अभी विरोध कर रहे लोगों का कहना है की नई शिक्षा नीति के मसौदे से लोग नाराज हैं। इसको लेकर लोग  सोशल मीडिया पर भी लोग अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। 

ट्विटर पर #StopHindiImposition काफी लंबे समय तक ट्रेंड कर रहा था। 

इस विरोध को देखते हुए तमिलनाडु सरकार ने शनिवार को ही कहा कि वो 2 भाषाओं की नीति का पालन करेंगे और राज्य में सिर्फ़ तमिल और अंग्रेजी ही लागू होगी। डीएमके नेता कनीमोई ने कहा कि हम किसी भाषा के ख़िलाफ़ नहीं हैंलेकिन हिंदी थोपने का विरोध करेंगे। डीएमके ने कहा कि तमिलनाडु में 1968 से सिर्फ दो भाषा का फॉर्मूला हैजिसमें छात्रों को विद्यालय में अंग्रेजी और तमिल पढ़ाया जाता है।

वहीं अभिनेता और नेता कमल हासन ने कहा कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जा सकता है। टीटीवी दिनाकरन ने कहा है कि केंद्र को ये नीति नहीं लानी चाहिएइससे विविधता ख़त्म होगी। उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से हम दूसरे दर्जे के नागरिक बन जाएंगे।

दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध पहले भी हुआ है इसमें सबसे आक्रमक और उग्रता से तमिलनाडु में विरोध का एक लंबा इतिहास रहा है। राज्य में पहली बार ये विरोध 1937 में हुआ था। इसके बाद 1946 से 1950 के बीच कई प्रदर्शन हुए जिनके केंद्र में हिंदी ही थी। तब से लेकर अब तक राज्य में न जाने कितने ही हिंदी विरोधी प्रदर्शन हुए हैं। वहीं, नई शिक्षा नीति में हिंदी की वकालत किए जाने के ख़िलाफ़ तमिलनाडु के लोग सोशल मीडिया पर विरोध शुरू कर चुके हैं।

सरकार बचाव की मुद्रा में

इस पूरे विवाद को लेकर सरकार बचाव की मुद्रा में है। इस नीति का बचाव करने के लिए कई केंद्रीय मंत्रियों सहित कई अन्य भाजपा नेताओं को आगे लाया गया, लेकिन उसके कई नेता ऐसे बयान दे रहे हैं जिससे सरकार की मुशिकले और बढ़ रही हैं। ऐसा ही एक बयान कर्नाटक से इस बार चुनकर आये भाजपा के सांसद तेजस्वी सूर्य ने दिया। उन्होंने हिंदी भाषा का विरोध करने वालों को देश का विरोधी बता दिया। लेकिन पार्टी ने इसे उनका निजी बयान बताकर डेमेज कंट्रोल की कोशिश की।

शिक्षा नीति के मसौदे पर आक्रोश को लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रविवार को कहा कि इस मुद्दे पर अंतिम फैसला लिए जाने से पहले राज्य सरकारों से परामर्श लिया जाएगा। जयशंकर की प्रतिक्रिया इस मुद्दे पर टि्वटर यूजर के एक सवाल के जवाब में आयी है।

जयशंकर ने ट्वीट किया "एचआरडी मंत्री को सौंपी गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति महज एक मसौदा रिपोर्ट है। आम जनता से प्रतिक्रिया ली जाएगी। राज्य सरकारों से परामर्श किया जाएगा। इसके बाद ही इस मसौदा रिपोर्ट को अंतिम रूप दिया जाएगा। भारत सरकार सभी भाषाओं का सम्मान करती है। कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी।”

उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने रविवार को सभी घटकों से आग्रह किया है कि वे जल्दबाजी में प्रतिक्रिया व्यक्त करने के बदले पूरी रिपोर्ट को पढ़ें।

नए सिरे से मसौदा पेश करने की मांग 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में हिंदी पढ़ाने की सिफारिश को लेकर उठ रहे विवादों के बीच मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने कहा कि इस तरह जोर-जबरदस्ती से हिंदी को थोपने से "भाषायी वर्चस्व " की भावना को बढ़ावा मिलेगा। यह देश की एकता के लिए नुकसानदायक होगा।

माकपा ने बयान में कहा, "माकपा का पोलित ब्यूरो स्कूली शिक्षा में प्राथमिक स्तर पर तीन भाषा फार्मूले को लागू करने का विरोध करता है।"

पार्टी ने कहा कि यह "विरोध किसी विशेष भाषा के लिए नहीं है बल्कि सभी भारतीय भाषाओं के विकास और उनके पनपने देने का अवसर सुनिश्चित करने के लिए है।"

माकपा ने कहा,"मामले की गंभीरता को देखते हुए सरकार को वर्तमान मसौदे को वापस लेना चाहिए और विवाद को शांत करने के लिए नए सिरे से मसौदा पेश करना चाहिए।"

पार्टी ने बयान में कहा कि उसका मानना है कि इस तरह चीजें थोपने से सिर्फ भाषायी वर्चस्व बढ़ेगा। यह देश  की एकता के लिए हानिकारक होगा।

बांग्ला शिक्षकलेखकों ने भी विरोध जताया

पश्चिम बंगाल के शिक्षा जगत से जुड़े लोगों और लेखकों ने रविवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे का विरोध किया। इन लोगों ने कहा कि किसी भी भाषा को थोपने के प्रयास का चौतरफा विरोध किया जाएगा।

रविंद्र भारती विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व विख्यात भाषाविद् पवित्र सरकार ने कहा कि के.कस्तूरीरंगन समिति का हिंदी को अनिवार्य बनाने का सुझाव प्राथमिक स्कूल के बच्चों पर और अधिक दबाव डालेगा।

आंदोलन की चेतावनी

एसएफआई ने स्कूली शिक्षा के प्राथमिक स्तर से तीन भाषा के फार्मूले को लागू करने के विचार का विरोध किया। एसएफआई ने कहा कि वो किसी भी भाषा के समर्थक या विरोधी के रूप में खड़े नहीं हैं क्योंकि हमने भारत के बहु-भाषाई स्वरूप का हमेशा बना कर रखा है और इस पर हमें गर्व भी है। हम चाहते हैं कि सरकार भारत की भाषाई विविधता का सम्मान करे इसके लिए प्रत्येक क्षेत्रीय भाषा के संरक्षण और देखभाल के लिए आगे बढ़े। क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी को थोपे जाने से हमारे राष्ट्र और यहां तक कि हिंदी की भाषा पर कोई आंच नहीं आएगी।

एसएफआई ने कहा है कि ये फर्मूला एकता में अनेकता के सिद्धांत के खिलाफ है और सरकार इस निर्णय को वापस ले। किसी के साथ किसी भी तरह के असमान व्यवहार के बिना बहु-भाषा संस्कृति को बनाए रखे। किसी एक भाषा को थोपने की अगर कोशिश की गई तो इसके खिलाफ पूरे देश में आंदोलन होगा।

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