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तिरछी नज़र : नोटबंदी के बाद जनता की मांग पर जुर्माने में बढ़ोतरी!

सरकार ने ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन करने पर होने वाले जुर्माने को एक साथ, एक ही झटके में दस दस गुना बढ़ा दिया है। यह बहुत ही अच्छा किया है! जनता तो चाहती ही यही थी! यह सरकार वही करती है जिसे जनता पसंद करती है।
tirchhi nazar

इस बार जब मैं लिखने बैठा तो कुछ मित्रों का टोकना याद आ गया। उनका कहना था कि कुछ आम जनता की मुसीबतों के बारे में भी लिखा करो, क्यों मोदी जी के पीछे पड़े रहते हो! उनको समझ नहीं आ रहा था कि मैं मोदी जी की नहीं बल्कि भारत के, अपने देश के प्रधानमंत्री की आलोचना करता हूँ। और इसका मुझे पूरा अधिकार भी है। यदि मैं प्रश्न करता हूँ कि प्रधानमंत्री जी के शासन काल में बेरोज़गारी बढ़ी है तो वह जनता के ही दु:ख दर्द की बात है। फिर भी मैंने सोचा कि मैं इस बार मोदी जी का नाम भी नहीं लूंगा।
 
सरकार ने ट्रैफ़िक नियमों के उल्लंघन करने पर होने वाले जुर्माने को एक साथ, एक ही झटके में दस दस गुना बढ़ा दिया है। यह बहुत ही अच्छा किया है। जनता तो चाहती ही यही थी। यह सरकार वही करती है जिसे जनता पसंद करती है। नोटबंदी जनता की डिमांड पर ही की गई थी।

जीएसटी के लिए भी जनता ने ही सलाह दी थी। तीन तलाक़ के विरोध में क़ानून बनाने के पक्ष में सारे हिन्दू पुरुष थे। इसी तरह से धारा 370 समाप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात जैसे कई राज्यों के हिन्दू बहुत ही इच्छुक थे। तो अवश्य ही ये ट्रैफ़िक नियम के उल्लंघन करने पर जुर्माना बढ़ाने का निर्णय भी जनता की मांग पर ही किया गया है।

सरकार के इस क़दम का समर्थन करने वाले चमचों; अब मैं चमचों को चमचा ही कहूंगा, भक्त नहीं। भक्त कह कर हमने ही चमचों का महिमामंडन कर डाला और वे जिसके चमचे हैं, उसे भगवान बना डाला है। हाँ तो उन चमचों का तर्क है कि जुर्माना बढ़ाने से लोग ट्रैफ़िक नियमों का पालन करेंगे। दुर्घटनायें कम होंगी, जान और माल की हानि भी कम होगी। चालान होने के डर से लोग अपनी गाड़ी कम से कम निकालेंगे, जिससे वायु और ध्वनि प्रदूषण भी कम होगा।

वैसे इस जुर्माने से बचने के लिए बहुत सारे सुझाव आ रहे हैं। पहला तो यह कि आप साइकिल से आया-जाया करें। सुझाव अच्छा है। चालान से तो बचेंगे ही साथ ही वर्जिश भी हो जाएगी। स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा। वायु प्रदूषण से भी राहत मिलेगी। पर साइकिल के साथ सबसे बड़ी ख़राबी यह है कि साइकिल चलाने से सोशल स्टेटस नहीं बढ़ता। बल्कि और कम हो जाता है। हमारे समाज में साइकिल चलाने वाले को हेय दृष्टि से देखा जाता है।

चालान से बचने का दूसरा सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि आप अपनी स्कूटी या बाइक को धकेलते धकेलते ले जायें। वर्जिश इसमें और भी अधिक होगी और वायु प्रदूषण भी नहीं होगा। ईंधन बचेगा सो अलग। जब आप स्कूटी या बाइक को धक्का लगायेंगे तो लोगों को पता रहेगा कि आपके पास स्कूटी या बाइक है और आपके सोशल स्टेटस को भी धक्का नहीं लगेगा। पर इसके साथ एक दिक़्क़त तो यह है कि यह अधिक दूरी के लिए कारगर नहीं है और दूसरी बात यह है कि यह कार के साथ नहीं किया जा सकता।

चालान के जुर्माने से बचने का एक तरीक़ा यह भी है कि कहीं आना जाना हो तो ओला या उबर टैक्सी से जाएँ जिससे चालान हो तो टैक्सी ड्राइवर का हो, अपना नहीं। वित्त मंत्री जी ने बता ही दिया है कि यह जो आटो सेक्टर में मंदी आई है, इसीलिए आई है क्योंकि युवा वर्ग कार ख़रीदने की बजाय उबर, ओला में सफ़र करना अधिक पसंद कर रहा है। अब वे यह भी बता सकती हैं कि आटो सेक्टर में आ रही मंदी का एक कारण ट्रैफ़िक नियमों के पालन न करने पर बढ़ने वाला जुर्माना भी है। क्योंकि लोगों ने जुर्माना लगने के डर से स्कूटर, बाइक, कार ख़रीदना बंद ही कर दिया है। यानी जनता ही ज़िम्मेदार है।
 
अगर आप अमीर हैं, तो आपके पास एक और तरीक़ा है, जुर्माने से बचने का। आप वाहन चालक यानी ड्राइवर रख लें। पर ड्राइवर रखने से पहले यह शर्त अवश्य लगा दें कि ट्रैफ़िक नियमों को तोड़ने पर जुर्माना उसे ही भरना पड़ेगा। पर यहां भी एक दिक़्क़त है। जब से जुर्माना दस गुना बढ़ाया गया है, ड्राइवरों की बहुत कमी हो गई है। और अगर मिल भी रहे हैं तो दस गुनी तनख़्वाह पर।
 
जुर्माने से बचने के लिए वकील लोग सलाह देते हैं कि आप कोर्ट में यह कह दें कि आपने किसी भी नियम/क़ानून का उल्लंघन किया ही नहीं है, और बाक़ी उन पर छोड़ दें। वे आपको बिना या नाम मात्र के जुर्माना पर छुड़वा लेंगे। हां, उनकी फ़ी जो लगेगी वो अलग है। झूठ बोलने की प्रोफ़ेशनल सलाह जितनी वकील लोग देते हैं, उतनी और कोई नहीं देता। वैसे कोई भी नया क़ानून आने पर अपने धंधे में बढ़ोतरी होने की संभावना वकील लोग वैसे ही देखते हैं जैसे किसी बीमारी के फैलने पर डॉक्टर लोग।
 
इस जुर्माने से बचने का सबसे आसान तरीक़ा है कि मामले को वहीं सुलटा लिया जाए। आख़िर ट्रैफ़िक पुलिस के लोग, भयंकर गर्मी और लू, मूसलाधार बारिश और हड्डियों तक को कंपकपाती ठंड में सड़कों के किनारे अपनी ड्यूटी निभाते रहते हैं। वहां न लू से बचने का बंदोबस्त होता है और न पानी का। वे तो सरकार के लिए रिवेन्यू इकट्ठा करते हैं पर सरकार बदले में क्या देती है, सिर्फ़ सूखी तनख़्वाह! हम नागरिकों का कर्तव्य बनता है कि ट्रैफ़िक पुलिस के ऐसे जांबाज़ सिपाहियों का मनोबल ऊंचा रखने के लिए, जब भी वे हमारा चालान काटने लगें, हम उनकी भरपूर सेवा करें।

हमारा चालान भी नहीं कटेगा और पुलिस के एक विभाग की सेवा कर हम अप्रत्यक्ष रूप से देश सेवा भी कर सकेंगे। बहुत सारे लोग इस विधि को अपना कर वर्षों से ट्रैफ़िक चालान से बचे रहे हैं और आगे भी बचते रहेंगे।
 
लिखते-लिखते: केंद्र सरकार ने जन भावनाओं का पालन करते हुए ट्रैफ़िक नियमों का पालन करने पर जुर्माने को दस गुना अधिक कर दिया। वहीं भाजपा और अन्य दलों की राज्य सरकारों ने जनता की इच्छा का पालन करते हुए जुर्माने की रक़म को इतना अधिक बढ़ाने से इनकार कर दिया। अब पता नहीं कौन जनता की इच्छाओं का पालन कर रहा है और कौन जन भावनाओं से खेल रहा है।

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