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नए-नए कानून बनाने वालों को भी नववर्ष की शुभकामनाएं!

जबसे वर्तमान सरकार आई है हम व्यंग्य लेखकों की बन आई है। पहले विषय ढूंढे नहीं मिलते थे, अब विषयों की कमी ही नहीं है।
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फोटो साभार : livemint

वर्ष का पहला रविवार है। साप्ताहिक कॉलम लिखने वालों के लिए नववर्ष की शुभकामनाएं देने का अवसर। मेरी ओर से सारे मित्रों कोपाठकों को नववर्ष की शुभकामनाएं। कानून बनाने वालों को भी नववर्ष की शुभकामनाएं। अभी आये नूतन वर्ष में भी वे नित नये कानून बनायें और जनता को तंग करें।

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जबसे वर्तमान सरकार आई है हम व्यंग्य लेखकों की बन आई है। पहले विषय ढूंढे नहीं मिलते थेअब विषयों की कमी ही नहीं है। पहले की सरकारें कुछ करती ही नहीं थीं। व्यंग्यकार ऋतुओं परनदी-नालों पर और पता नहीं जाने किन किन विषयों पर व्यंग्य लिखा करते थे। पर अब धीरे धीरे सरकार ऐसे काम करने लगी है कि हम व्यंग्य लिखने वालों के लिए विषयों का कोई टोटा ही नहीं है। उम्मीद हैविषयों के मामले मेंनया साल पिछले साल की तरह से ही नहींअपितु उससे भी अधिक उर्वरक रहेगा।

व्यंग्य लिखने के लिए जैसा माहौल चाहिएवर्तमान समय उसके पूरी तरह अनूकूल है। आप व्यंग्य लिखें और आपको गालियां मिलेंउससे अधिक मेहनताना हो ही नहीं सकता है। आजकल ऐसा ही माहौल है। लेखकों को गाली ही नहीं जेल भी मिल सकती है। गाली बंद कराना तो सरकार चाहेगी भी नहींआखिर उसे अपने समर्थकों का भी ध्यान रखना है। इस नये वर्ष में सरकार बस लेखकों कोकलाकारों को और सामाजिक कार्यकर्ताओं को जेल भेजने से बचाने की नीयत दिखा देयही बहुत है।

केवल हम व्यंग्यकारों के लिए ही नहींपिछले वर्ष का उत्तरार्ध धरना प्रदर्शनों के लिए भी बहुत ही विशेष रहा। विशेष रूप से छात्रों के धरना प्रदर्शन के लिए। पहले तो छात्रों ने बढ़ती फीस के विरोध में आंदोलन किया और फिर सरकार ने सीएए और एनआरसी का विषय आंदोलनकारियों को दे दिया। पिछले वर्ष में सरकार के पास सिर्फ छह सात महीने थेआंदोलनकारियों को विषय देने के लिए। मेरी सरकार से सविनय प्रार्थना है कि इस बार पूरा साल है सरकार के पासवह इस तरह के विधेयक और कानून लाती रहे जिनसे आंदोलनकारियों को पूरे वर्ष आंदोलन चलाने का सुअवसर मिले। सरकार की अतीव कृपा होगी।

पिछले साल प्याज की कीमतें बेइंतेहा बढ़ीं। कुछ शहरों में तो कीमतें दो सौ रुपये प्रति किलो के रिकॉर्ड स्तर तक पहुंचीं। प्याज की कीमतें तोअपनी पार्टी के खर्चे पूरे करने के लिएसारी सरकारें बढ़ाती हैं। पर बीते साल सभी सब्जियों की कीमतें भी बढ़ीं। भाजपा सरकार से गुजारिश है कि वह अपनी पार्टी के खर्चे नये वर्ष में कुछ कुछ कम कर दे जिससे हमें नये साल में भी सारी सब्जियों की बढ़ी कीमत न देनी पड़े। अगर ऐसा हो पाये तो नववर्ष में हमारी कठिनाई सिर्फ प्याज़ की बढ़ी कीमत देने तक ही सीमित रहेगीबाकी सब्जियों की कीमत जेब पर भारी नहीं पड़ेगी। 

पिछला वर्ष प्रधानमंत्री जी द्वारा अक्षय कुमार को दिये गए साक्षात्कार के लिए भी याद किया जायेगा। और वह साक्षात्कार याद रखा जायेगा अक्षय कुमार द्वारा पत्रकार की भूमिका को बडी़ अच्छी तरह अंजाम देने के लिए। जो स्क्रिप्ट उन्हें दी गई थीउन्होंने उसे बखूबी निभाया। इसके अलावा उनके द्वारा प्रधानमंत्री जी से पूछा गया प्रश्न कि आप आम कैसे खाते हैं भी याद किया जायेगा।

यह प्रश्न बाबा रामदेव से पूछा जाता तो अधिक अच्छा रहता। प्रधानमंत्री जी तो आम भीबाकी सभी खाद्य पदार्थों की तरह से हीमुख से ही खाते हैं। हो सकता है बाबा रामदेव मुख के अतिरिक्त नाक से या कहीं और से भी खा सकते हों। कुल मिलाकर यह साक्षात्कार मनोरंजक रहा। आशा है नव वर्ष में भी हम प्रधानमंत्री जी के मनोरंजक साक्षात्कार देख सकेंगे।

वैसे तो गतवर्ष हुई बहुत सारी बातें ऐसी हैंजो व्यंग्य का विषय बनी। पर उनमें प्रधानमंत्री जी द्वारा बार बार झूठ बोलना खास रहा। विशेष बात यह है कि प्रधानमंत्री जी को शायद स्वयं भी यह पता नहीं होता है कि वे झूठ बोल रहे हैं। वे बस लय में आकर झूठ पर झूठ बोलते जाते हैं। वैसे तो झूठ पकडऩे वाली मशीनें पहले से ही मौजूद हैं पर उनके उपयोग के लिए अदालत से आदेश लेना पड़ता है। अब यदि नये वर्ष में कोई वैज्ञानिक झूठ पकडऩे की ऐसी मशीन का आविष्कार कर सके जो माइक पर लगा दी जाये और झूठ बोलते ही बीप करने लगे तो मोदी जी को झूठ बोलने की लत से छुटकारा मिल सकेगा और देश का बहुत ही भला होगा। 

बातें तो बहुत सी हैं। बातों का पिटारा तो कभी समाप्त हो ही नहीं सकता है। इस विश्वास के साथ कि वर्तमान सरकार व्यंग्य लिखने के लिए विषयों की कमी कभी भी होने नहीं देगी और आप हर रविवार 'तिरछी नजरकॉलम पढ़ते रहेंगेआप सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं। सरकार इसी तरह से नये वर्ष में भी नित नए कानून बना सबको परेशान करती रहे और हम सब परेशान हो कर भी खुश रहेंयही कामना है। भले ही चाहे कुछ भी होता रहेनववर्ष आप सबके जीवन में ढेरों खुशियां लेकर आये।

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

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