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लॉकडाउन में आमदनी में गिरावट के साथ कर्ज के बोझ तले दबती जा रही त्रिपुरा की जनता

यहाँ पर लोग चाहे किसी भी आय वर्ग से आते हों, सभी अवसाद ग्रस्त दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन निश्चित तौर पर यह निम्न आय वर्ग से जुड़े लोग हैं जिन्हें वित्तीय संकट, बेरोजगारी, कर्ज के बढ़ते बोझ, आय के स्रोतों से विहीन, आवश्यक जरूरतों के दामों में वृद्धि के चलते उच्च खपत व्यय का बोझ वहन करना पड़ रहा है।
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पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में किए गए एक शोधपरक सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा हुआ है कि कोरोनावायरस के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए जिस प्रकार अचानक से राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन थोप दिया गया था, उसके चलते यहाँ पर आधे परिवार कर्जदार हो चुके हैं। इतना ही नहीं बल्कि नमूने में शामिल घरों की प्रति व्यक्ति आय भी इन पिछले चार महीनों के लॉकडाउन के दौरान घटकर आधी हो चुकी है।

त्रिपुरा भारत के पूर्वोत्तर भाग में स्थित एक छोटा सा राज्य है, जिसका कुल क्षेत्रफल 10492 वर्ग किमी है, और 2020 में इसकी अनुमानित जनसंख्या 41 लाख के आस-पास है। मार्च के अंत से लेकर जुलाई के अंत तक त्रिपुरा में कोरोनावायरस के चलते लागू लॉकडाउन का क्या असर पड़ा है, इसे समझने के लिए हमने राज्य भर में 80 परिवारों के कुल 334 लोगों से संपर्क साधा था। निश्चित तौर पर इस नमूना सर्वेक्षण को प्रतिनिधि सैंपल नहीं कह सकते, लेकिन इसके जरिये कुछ जमीनी हकीकत से निश्चित तौर पर दो-चार हुआ जा सकता है। सर्वेक्षण में शामिल 70% से अधिक परिवारों को इस दौरान मुफ्त राशन प्राप्त हुआ है, लेकिन 90% से अधिक सर्वेक्षण घरों को न तो कोई मुफ्त गैस सिलेंडर मिला और न ही त्रिपुरा में किसी भी सर्वेक्षण में शामिल लोगों के जन-धन खातों में कोई पैसा आया है।

50% से भी अधिक उत्तरदाताओं के अनुसार लॉकडाउन के महीनों में उनका अपने घरों पर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना उनके लिए कई वजहों से तकलीफ़देह रहा। हमारे नमूने में शामिल इन 80 परिवारों में से 19 परिवार ऐसे थे, जिनके घर के सदस्यों को कोविड-19 की जगह कुछ अन्य बीमारियों ने जकड़ रखा था, और उनमें से 84% ने सूचित किया है कि लॉकडाउन की वजह से उन्हें अपने इलाज को लेकर काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।

यहाँ पर लोग चाहे किसी भी आय वर्ग से आते हों, वे सभी अवसाद ग्रस्त दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन निश्चित तौर पर यह निम्न आय वर्ग से जुड़े लोग हैं जिन्हें वित्तीय संकट, बेरोजगारी, कर्ज के बढ़ते बोझ, आय के स्रोतों से विहीन, आवश्यक जरूरतों के दामों में वृद्धि के चलते उच्च खपत व्यय का बोझ वहन करना पड़ रहा है। प्रारंभ में निम्न आय वर्ग से सम्बद्ध लोगों में बीच यह धारणा बनी हुई थी कि कोविड-19 संक्रमण सिर्फ उच्च-आय वर्ग के लोगों के बीच में ही है, क्योंकि उन्हीं लोगों में विदेश यात्रा का इतिहास था। उनके अनुसार त्रिपुरा में गरीबों के लिए इस लॉकडाउन का कोई अर्थ नहीं था, क्योंकि यह एक कृषि प्रधान राज्य है जिसकी आधी से भी अधिक आबादी खेतीबाड़ी, मछली पकड़ने और अन्य प्राथमिक कार्यों पर निर्भर है। इस बीच आवश्यक वस्तुओं के दामों में बढ़ोत्तरी ने उनकी वास्तविक आय में और भी कमी लाकर हालात को बद से बदतर बनाने में भूमिका निभाई है।

हमारे इस नमूना सर्वेक्षण में 11 महिलाएं और 69 पुरुष उत्तरदाता शामिल थे, जिनकी उम्र 18 से 71 वर्ष के बीच थी। इनमें से 49 उत्तरदाता बांग्ला भाषी, 22 कोकबोरोक बोलने वाले, छह लोग हलाम, एक नेपाली, एक मिजो और एक व्यक्ति अंग्रेजी भाषा का जानकार था। धार्मिक दृष्टि से इनमें से 51 हिंदू, 17 ईसाई, 12 मुस्लिम परिवार के लोग थे। पैंतीस उत्तरदाता सामान्य वर्ग से थे, जबकि अनुसूचित जनजाति से 30, अन्य पिछड़ी जातियों से नौ और छह परिवार अनुसूचित जाति की पृष्ठभूमि से थे। विभिन्न व्यावसायिक पृष्ठभूमि के लिहाज से इन उत्तरदाताओं में आशा कार्यकर्ता, किसान, ऑटोरिक्शा चालक, मैकेनिक का काम करने वाले, व्यवसायी, बढ़ई, सफाईकर्मी, दिहाड़ी मजदूर, ड्राईवर, इलेक्ट्रीशियन, किसान, सरकारी कर्मचारी, किराना दुकानदार, ब्यूटीशियन और हेयरड्रेसर, पेंटर, फार्मासिस्ट, निजी ट्यूटर, निजी क्षेत्र में कार्यरत कर्मचारी, रिक्शा चालक, सुरक्षा गार्ड, शिक्षक, व्यापारी, सब्जी विक्रेता इत्यादि शामिल थे। ढलाई जिले के अलावा त्रिपुरा के तकरीबन सभी जिलों के परिवार इस सर्वेक्षण के दायरे में शामिल थे।

इन 80 परिवारों की लॉकडाउन से पहले की मासिक आय 1,000 रुपये से लेकर 1,30,000 रुपये प्रति माह तक के बीच में पाई गई थी। इनके परिवार का आकार 1 से लेकर 11 लोगों तक का था और लॉकडाउन पूर्व, प्रति व्यक्ति मासिक आय में 300 रूपये से लेकर 33,333 रूपये प्रति माह तक का अंतर था। लॉकडाउन की वजह से इन 80 परिवारों की प्रति व्यक्ति आय अब औसतन लगभग आधा (54%) हो चुकी है। हालाँकि जहाँ तक मासिक खर्चों का प्रश्न है तो इसमें लॉकडाउन पूर्व की तुलना में मात्र 20% तक की ही कमी देखने को मिली है। वहीँ पंद्रह प्रतिशत परिवार ऐसे भी हैं, जिन्होंने सूचित किया है कि लॉकडाउन के दौरान उनकी आय पूरी तरह से शून्य थी। इस लॉकडाउन के चलते आधे से भी अधिक परिवार कर्ज के बोझ तले दब चुके हैं, जबकि बाकी लोग किसी तरह अपनी पहले की कमाई को खर्च कर किसी तरह अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं।

यदि हम इन परिवारों को उनके लॉकडाउन पूर्व के प्रति व्यक्ति आय के आधार पर चार समान आय समूहों में विभाजित करके देखते हैं तो हम पाते हैं कि एक-चौथाई परिवार ‘2,500 रुपये प्रतिमाह से कम’ वाले समूह से सम्बद्ध हैं, तो दूसरे एक-चौथाई परिवार ‘2,500 रुपये से 5,000 रुपये के बीच’ तो वहीँ अन्य एक-चौथाई परिवार ‘5,000 रुपये से 9500 रूपये के बीच’ और बाकी के एक-चौथाई परिवार की प्रति व्यक्ति मासिक आय ‘9500 रुपये से लेकर 33,333 रुपये तक’ के बीच है। सर्वेक्षण में शामिल परिवारों में जो परिवार पहली दो श्रेणियों में आते हैं, उनकी आय लॉकडाउन पूर्व के समय से लगभग 60% गिर चुकी है। वहीँ तीसरी श्रेणी की आय में 55% तक की गिरावट हो चुकी है, जबकि सबसे अमीर श्रेणी के लिए हमारे सर्वेक्षण के अनुसार आय में 76% तक की कमी देखने को मिल रही है।

यदि वर्तमान में देखें तो मनरेगा के अंतर्गत कोई काम नहीं हो रहा है, जिसने रोजगार के मामले में परिवारों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रखा है। वहीँ स्कूलों के बंद होने के कारण मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम भी अस्थायी तौर पर बंद पड़े हैं। बच्चों में पोषण स्तर में सुधार लाने की दिशा में इस योजना में बेहद सकारात्मक योगदान देखने को मिला था। गरीब परिवारों के बीच सेहतमंद भोजन के उपभोग की मात्रा पहले से ही काफी कम थी, और इस दौरान लोगों की आय में गिरावट के साथ खपत व्यय में वृद्धि और मध्याह्न भोजन के बंद हो जाने से गरीब परिवारों में पोषक तत्वों की खपत बुरी तरह से प्रभावित होने की संभावना है। सभी लोग अपने भविष्य की आय को लेकर बेहद डरे हुए हैं। वहीँ इनमें से तकरीबन 45% उत्तरदाता इस आशंका से ग्रस्त हैं कि आगामी छह महीनों में उनकी आय में भारी गिरावट हो सकती है।

देश के लोगों के लिए मुफ्त राशन की व्यवस्था, मुफ्त गैस सिलिंडर के साथ जन धन खातों में 500 रुपये जमा करने की घोषणा की गई थी, लेकिन जहाँ तक प्रश्न लाभार्थियों की संख्या को लेकर है, तो अलग-अलग स्थानों पर इसका प्रभाव अलग ही देखने को मिलता है। लॉकडाउन के इन महीनों के दौरान हमारे नमूना सर्वेक्षण में शामिल करीब 30% घरों को कोई भी मुफ्त राशन नहीं मिला था। हमारे इस सर्वेक्षण में शामिल 80 परिवारों में से ऐसे सिर्फ दो परिवार नजर आये, जिन्हें मुफ्त गैस सिलेंडर प्राप्त हो सके थे और मात्र चार परिवारों के ही जन धन खातों में 500 रुपये आये थे।

पिछले चार महीनों से हर परिवार के लिए सिर्फ चावल के ही मुफ्त वितरण का प्रावधान और साथ में केवल 1 किलो दाल की आपूर्ति, किसी भी सूरत में पर्याप्त नहीं थी। उनके पास सिलिंडर, खाना पकाने वाले तेल, चीनी, नमक आदि जैसी अन्य बुनियादी ज़रूरतों के खरीद की चुनौती बनी हुई थी। त्रिपुरा में आज भी कई लोगों के पास अपना खुद का राशन कार्ड नहीं है। मुफ्त राशन के वितरण का प्रावधान भी सभी जिलों में समान रूप से नहीं किया गया था। विशेष तौर पर यदि नार्थ डिस्ट्रिक्ट की बात करें तो यहाँ पर मुफ्त राशन के वितरण के काम में अनियमिताएं देखने को मिली हैं। लॉकडाउन में रहते हुए हर व्यक्ति को करीब 4 किमी की दूरी तय करनी पड़ रही थी क्योंकि राशन जहाँ से मुहैय्या कराया जा रहा था, वह आबादी से दूरी पर स्थित था।

यहाँ लोगों की माँग प्रत्यक्ष लाभ हस्तान्तरण, काम के अवसर, वित्तीय सहायता के तौर पर ब्याज मुक्त ऋण को लेकर है। निजी शिक्षण संस्थानों में शुल्क माफ़ी की माँग भी काफी अहम है। इसके साथ ही लोग सस्ते दर पर बेहतर स्वास्थ्य सेवा के ढांचे की भी मांग कर रहे हैं। लोगों की माँग लॉकडाउन अवधि के दौरान घरों के किराए को कम करने को लेकर भी है। यहाँ आशा कार्यकर्ताओं को प्रति माह मात्र 2,150 रुपये वेतन ही दिया जा रहा है, जबकि जमीन पर सबसे अधिक मेहनत यही लोग कर रहे हैं। आशाकर्मियों के वेतन को बढ़ाकर कम से कम 8,000 रुपये प्रति माह तक किये जाने की मांग है।

जो लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं या गरीबी रेखा से ठीक ऊपर हैं, उन लोगों के बीच किये गए सर्वेक्षण में प्रारंभिक लॉकडाउन चरणों को लेकर गहरी नाराजगी देखने को मिल रही है। इसकी मुख्य वजह यह है कि इसके चलते उनके पास आय का कोई स्रोत नहीं रह गया था और नतीजतन उनके कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता चला गया है। उन्हें न्यूनतम वित्तीय मदद और रोजगार की दरकार है।

कोरोनावायरस मामलों और लॉकडाउन की जरूरत को देखते हुए सरकार को चाहिये कि वह उन लोगों के लिए कुछ राहत उपायों के बारे में विचार करे जो पूरी तरह से दिहाड़ी मजदूरी पर निर्भर हैं। चूंकि कई सरकारी योजनाएं अस्थायी तौर पर (पूरी तरह से या आंशिक तौर पर) बंद पड़ी हैं, तो ऐसे में इन योजनाओं के तहत आवंटित बजट बिना इस्तेमाल किये ही जाया चला जाने वाला है। यदि इन योजनाओं के तहत अनुमोदित धनराशि से गरीबों को कुछ रकम कोविड-19 के तहत मुआवजा प्रदान करने के लिए उपलब्ध कराया जा सके, तो यह उनके जीवित बने रहने में बेहद मददगार साबित हो सकता है।

परमा चक्रवर्ती अम्बेडकर विश्वविद्यालय, दिल्ली में अर्थशास्त्र पढ़ाती हैं जबकि सुरजीत दास जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में अर्थशास्त्र के प्राध्यापक हैं।

 

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