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उड़ता गुजरात – पार्ट 4 : मोदी के “आदर्श” गुजरात में सरकार ने चालाकी से छिपाए बाल लिंगानुपात के चौंकाने वाले आँकड़े

स्त्री-भ्रूण हत्या को रोकने वाले कानून को गुजरात में कभी भी सख्ती से लागू नहीं किया गया, जिसकी वजह से बालिका-भ्रूणों की बड़े पैमाने पर बेरोक-टोक अवैध हत्याएँ हुईं.
udata gujrat

2011 की जनगणना के मुताबिक, गुजरात में 0-6 आयु वर्ग में हर 1000 लड़कों पर केवल 883 लड़कियाँ हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह अनुपात 927 का है. यह खुलासा गुजरात को देश के अन्य राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के मुकाबले बाल-लिंग अनुपात में सबसे बदत्तर राज्यों की सूचि में छठे स्थान पर खड़ा करता है. दशकों से यह स्थिति ऐसी ही बनी हुई है. इससे स्पष्ट होता है कि हालत काफी ख़राब हैं.

सवाल उठता है कि जब मोदी गुजरात में 13 साल तक मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने क्या किया? याद रखें: इन वर्षों में शासन और विकास के तथाकथित 'गुजरात मॉडल' को देश के बाकी हिस्सों में प्रचारित किया जा रहा था और उसे पूरे देश में एक 'उदाहरण' के रूप में पेश किया जा रहा था.

गुजरात सरकार ने पी.सी.पी.एन.डी.टी. अधिनियम का मज़ाक बना कर रख दिया और उसके इस अक्षम्य अपराध का पता 2014 में आयी भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट से साबित होता है, इसमें 2009-2014 के दौरान के आँकड़ें हैं. यह (पी.सी.पी.एन.डी.टी. अधिनियम ) एक मुख्य कानून है जो लिंग-चयन पर रोक लगाता है और अल्ट्रासाउंड जैसी नैदानिक तकनीकों को विनियमित भी करता है. आमतौर पर इसका दुरूपयोग भ्रूण की जाँच कर लिंग को पता लगाने के लिए किया जाता है ताकि मादा भ्रूण को नष्ट किया जा सके. यह कानून अल्ट्रासाउंड निर्माताओं, खरीदार, क्लीनिक और डॉक्टरों पर नज़र रखता है, जो इन मशीनों का इस्तेमाल करते हैं, गर्भपात की सुविधा का इस्तेमाल करते हैं और उन पर भी नज़र रखता है जो यौन-निर्धारण करते हैं.

राज्य सरकार द्वारा शुरू किए गए एक उपायों में जिसे गुजरात के उच्च न्यायालय का भी समर्थन प्राप्त था कि राज्य में सभी गर्भवती महिलाओं को पंजीकृत किया जाये और यह भी प्रावधान था कि उन पर प्रसव तक नज़र रखी जाये. वर्ष 2009-10 और 2013-14 के बीच लगभग 71 लाख गर्भवती महिलाएँ पंजीकृत हुईं. लेकिन सरकार के पास केवल 58 लाख डिलीवरी के ही रिकॉर्ड उपलब्ध हैं, और कानूनी गर्भपात की संख्या मात्र 1 लाख से कुछ ही अधिक दर्ज है. तो सवाल यह उठता है कि बाकी 12 लाख गर्भवती महिलाओं का क्या हुआ? जब सी.ए.जी. ने इस विसंगति के बारे में पूछा, तो राज्य सरकार के अधिकारियों ने सहमति व्यक्त की कि लापता 12 लाख मामलों में गैर-कानूनी गर्भपात (ग़ैर-पंजीकृत) हुआ हो सकता है. सभी संभावनाओं से यही लगता है कि सरकार महिला भेदभाव के मामलों में कोई रिकॉर्ड नहीं रखती. यह एक संकेत है जिससे अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि आखिर यहाँ हो क्या रहा है,  बावजूद इसके राज्य मशीनरी ने कुछ नहीं किया, इसकी झलक हम नीचे देखेंगे.

कानून के तहत, अल्ट्रासाउंड मशीन के सभी निर्माताओं का सरकारी पंजीकरण होना ज़रूरी है, और वे मशीनों को केवल पंजीकृत चिकित्सालयों\क्लिनिक्स में ही बेच सकते हैं और उन्हें सरकार को खरीदारों की एक सूची हर तीन महीने देनी होती है. नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पाया कि 33 पंजीकृत निर्माताओं में केवल 2 ने ही ऐसी सूचियों को जमा किया. राज्य सरकार ने इन सूचियों को पाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया -इस प्रकार लिंग-निर्धारण परीक्षणों को खुली छूट मिल गयी.

प्रत्येक जिले में, कानून के सख्त कार्यान्वयन की देखरेख के लिए एक 'उचित प्राधिकरण' (ए.ए.) को नामांकित किया गया है. इन ए.ए. को उन पंजीकृत केंद्रों या क्लीनिकों का निरीक्षण करना होता है जिनके पास अल्ट्रासाउंड मशीन है. सी.ए.जी, ने पाया कि ज्यादातर क्लीनिकों का निरीक्षण नहीं किया जा रहा है, और आंकड़ों पर नज़र डालें तो पायेंगे कि इसमें 2009-10 में 90% के मुकाबले  2013-14 में 73% की कमी आयी. सभी क्लीनिकों को सरकार को अपने सारे रिकॉर्ड ऑनलाइन जमा करने की आवश्यकता होती है. लेकिन  नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने पाया कि 27% क्लीनिक/चिकित्सालयों ने कभी रिकॉर्ड ही जमा नहीं किये और न ही सरकार ने इसके बारे में कुछ कार्यवाही की.

बड़ी संख्या में स्त्री-भ्रूण गर्भपात के बावजूद, पाँच साल में, अवैध सेक्स-निर्धारण किए जाने वाले क्लिनिक्स के खिलाफ सिर्फ 181 मामले दर्ज किए गए और मार्च 2014 तक उनमें से मात्र छह मामले को ही दोषी ठहराया गया. इस मामले में सज़ा की दर मात्र 12% है. सुप्रीम कोर्ट के इस निर्देश के बावजूद जिसमें कि गुजरात सरकार को सितंबर 2014 तक छह महीने के भीतर-भीतर मामलों को अंतिम रूप दिया जाना था, सच्चाई यह है कि 2014 में 132 मामले 12 साल से लंबित पड़े हैं.

कानून उचित प्राधिकरण के अफसरों को (ए.ए.) को यह पुष्टि करने के लिए स्टिंग ऑपरेशन करने का अधिकार देता है कि क्या क्लिनिक सेक्स निर्धारण परीक्षण तो नहीं कर रहा है. यद्यपि सभी 26 जिलों में ऐसे स्टिंग ऑपरेशन को कम से कम एक बार हर महीने पूरा करना था, किन्तु सी.ए.जी. ने बताया कि सात परीक्षणों वाले जिलों में केवल 14 ही ऐसे स्टिंग आपरेशन किए गए.

प्रधानमंत्री बनने के बाद, नरेंद्र मोदी ने स्त्री-भ्रूण ह्त्या को रोकने के लिए और लड़कियों के लिए शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रशंसनीय उद्देश्यों के साथ, 2015 में बेटी बचाओ, बेटी पढाओ अभियान की बड़े ही धूमधाम के साथ घोषणा की. सवाल उठता है कि आखिर नौटंकी में इतनी विशिष्ट रुचि क्यों, खैर इस अभियान के लिए नियुक्त सारे के सारे 'राजदूतों', ने बेटियों के साथ तस्वीरें लेने की वकालत (#बेटीकेसाथसेल्फी) के अलावा कुछ नहीं किया. लेकिन गुजरात सरकार मॉडल की निष्क्रियता से पता चला कि गुजरात की लड़कियों का भाग्य सरकार के नापाक इरादों की वजह से कहीं अँधेरे में खो गया है.

 

 

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