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क्या दिल्ली में अनधिकृत कालोनियां फिर चुनावी मुद्दा बनने जा रही हैं?

केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने गुरुवार को लोकसभा में ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र दिल्ली (अप्राधिकृत कॉलोनी निवासी संपत्ति अधिकार मान्यता) विधेयक, 2019’ चर्चा और पारित करने के लिए रखा।
unauthorized colonies

दिल्ली में जल्द ही विधानसभा चुनाव होने की उम्मीद है। इससे पहले एक बार फिर इस चुनाव में भी अनधिकृत कालोनियों का मुद्दा सबसे अहम है। बीजेपी, कांग्रेस और आप समेत सभी राजनीतिक दल इन कालोनियों में रहने वाले लोगों की हितैषी बनने में लगे हुए हैं।

लोकसभा में इन कालोनियों को नियमित करने का विधेयक प्रस्तावित कर दिया गया है। इस पर अभी चर्चा जारी है। लेकिन इस विधेयक के पेश होने के दूसरे दिन बुधवार को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी प्रेस वार्ता कर जनता को बताने की कोशिश की उन्होंने इनके लिए कितना काम किया हैं। उन्होंने केंद्र की प्रक्रिया पर संदेह जाहिर करते हुए सभी लोगों को जल्दी से जल्दी रजिस्ट्री देने की मांग की।  

कांग्रेस ने गुरुवार को संसद में केंद्र सरकार से राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र में अनधिकृत कॉलोनियों को नियमित करने का काम दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले पूरा करने की मांग की, वहीं भाजपा ने अनधिकृत कॉलोनियों की मौजूदा स्थिति के लिए दिल्ली में पूर्ववर्ती कांग्रेस नीत सरकारों और मौजूदा आप सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने गुरुवार को लोकसभा में ‘राष्ट्रीय राजधानी राज्यक्षेत्र दिल्ली (अप्राधिकृत कॉलोनी निवासी संपत्ति अधिकार मान्यता) विधेयक, 2019’ चर्चा और पारित करने के लिए रखा।  विधेयक पर चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के एआर रेड्डी ने कहा कि अगले कुछ महीने में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में सरकार का यह फैसला केवल राजनीतिक कदम बनकर नहीं रह जाना चाहिए।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले अनधिकृत कॉलोनियों के लोगों को अधिकार दे देना चाहिए तथा चुनाव के बाद के लिए नहीं टालना चाहिए।

रेड्डी ने आरोप लगाया कि आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव से पहले इन राज्यों के लिए कई वादे किये गये थे और इसी तरह बिहार चुनाव से पहले राज्य को विशेष पैकेज देने की घोषणा की गयी थी लेकिन चुनाव होने के बाद ‘ये वादे पूरे होते नहीं दिखे।’

उन्होंने कहा कि राजधानी में रहने वाले गरीब लोगों के लिए लाये गये इस विधेयक का हाल भी इस तरह नहीं होना चाहिए।

रेड्डी ने मांग की कि इन कॉलोनियों में रहने वाले लोगों के मकानों की रजिस्ट्री निशुल्क होनी चाहिए क्योंकि इनमें देशभर से आये गरीब लोग रहते हैं।उन्होंने अनधिकृत कॉलोनियों के विकास के लिए विशेष निधि के प्रावधान की भी मांग की।

भाजपा के रमेश विधूड़ी ने कहा कि कांग्रेस ने पिछले कई साल में कभी दिल्ली में अनधिकृत कॉलोनियों में छोटे-छोटे मकानों में रहने वाले लोगों की चिंता नहीं की और मौजूदा आम आदमी पार्टी सरकार ने भी इस दिशा में कुछ नहीं किया।

चर्चा में भाग लेते हुए द्रमुक के दयानिधि मारन ने आरोप लगाया कि दिल्ली में चुनाव से कुछ महीने पहले यह विधेयक लाया गया है जो राजनीति से प्रेरित लगता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कई कदम उठाए हैं, लेकिन यहां भी मुख्यमंत्री को उसी स्थिति का सामना करना पड़ रहा है जिस स्थिति का सामना पुडुचेरी के मुख्यमंत्री को करना पड़ रहा है।

तृणमूल कांग्रेस की प्रतिमा मंडल ने कहा कि सरकार को पूरा ध्यान रखना चाहिए कि मैपिंग में गलती होने या किसी और वजह से कोई एक भी घर रजिस्ट्री से नहीं छूटे।उन्होंने सवाल किया कि यह विधेयक दिल्ली में विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले क्यों लाया गया?

वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के रघु राम कृष्ण राजू ने विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि यह सुनिश्चित होना चाहिए कि गरीब बस्तियों में सभी सुविधाएं जल्द पहुंचाई जाएं।  जदयू के डीसी गोस्वामी ने कहा कि दिल्ली की अनाधिकृत कालोनियों को नियमित करने को लेकर वर्षों तक राजनीति होती रही, लेकिन मोदी सरकार यह काम पूरा करने जा रही है।

बसपा के कुंवर दानिश अली ने कहा कि दिल्ली सरकार ने 2015 में इसको लेकर अनुशंसा कर दी थी तो यह विधेयक लाने में चार साल की देरी नहीं होनी चाहिए थी। कांग्रेस के डीके सुरेश ने कहा कि देश के दूसरे शहरों में भी अनाधिकृत कालोनियों में रहने वालों के लिए भी इस तरह का कदम उठाया जाना चाहिए।

उत्तर पूर्व दिल्ली से भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के लोगों का दिल एक बार फिर जीत लिया और आने वाली पीढ़ियां उन्हें याद रखने वाली हैं।

उन्होंने दावा किया कि दिल्ली सरकार केंद्र की ओर से दो बार कहने के बाद भी चार वर्षों में मैपिंग का काम नहीं करा पाई और इस साल पत्र लिखकर कह दिया कि इसमें अभी दो साल लग जाएंगे।

आपको बता दें कि ये कॉलोनियां देश की राजधानी में होकर भी मूलभूत सुविधाओं से  कोसों दूर हैं। आज भी इन इलाकों में पीने के पानी, गंदे पानी की निकासी, प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा और सार्वजनिक परिवहन का घोर अभाव है।
 
इसके अलावा यहां रहने वाले लोगों की सबसे बड़ी समस्या है कि उनके पास ज़मीन का मालिकाना हक नही है। जिस कारण उन्हें हमेशा ही इस बात का डर लगा रहता है कि उनका आशियाना उजाड़ जायेगा।

समय-समय पर राजनीतिक दलों ने कॉलोनियों को नियमित करने का चुनावी वादा कई बार किया। दिल्ली के इतिहास में जितने भी चुनाव हुए,सभी चुनावों में यह मुद्दा जोर शोर से उठता रहा है।  लेकिन कितनी सरकारें आईं और गईं आज तक ये मुद्दा जस का तस रह गया।

लोग केंद्र सरकार के इस बात पर भी विश्वास नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनके साथ इतनी बार विश्वासघात हो चुका है कि अब किसी पर भी विश्वास करना मुश्किल है। दिल्ली के स्थानीय लोगों का कहना है जब तक उन्हें उनकी ज़मीन का मालिकाना हक नहीं मिल जाता उनके लिए राजनीतिक दलों के दावों पर विश्वास करना कठिन है।

एक अनुमान के मुताबिक इन कॉलोनियों में 40 लाख से अधिक लोग रहते हैं, जो किसी भी चुनाव में निर्णायक होंगे। यह भी एक कारण है कि चुनाव से ठीक पहले अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा फिर से चर्चा का मुद्दा बना हुआ हैं। फिलहाल हमें यह देखना होगा की क्या यह एक बार फिर राजनीतिक मुद्दा बनकर रह जाता है या इसका कोई समाधान होता है।  

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ)

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