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सरकारी कंपनियों के निजीकरण के ख़िलाफ़ 28 नवंबर को यूनियनों की हड़ताल

आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी ने 20 नवंबर को बीपीसीएल, शिपिंग कॉर्पोरेशन और कंटेनर कॉर्पोरेशन के निजीकरण को मंज़ूरी दे दी है जबकि दो बिजली कंपनियों को एनटीपीसी को बेचा जा रहा है।
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Image Courtesy: PSU Watch

एक तरफ़ जहां मोदी सरकार ने सरकारी संपत्ति को बेचने की रफ़्तार को तेज़ कर दिया है, वहीं दूसरी तरफ़ सेंट्रल ट्रेड यूनियनों ने लाभ कमाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के तीन केंद्रीय उपक्रमों के निजीकरण के ख़िलाफ़ संयुक्त रूप से विरोध किया है। इन तीन कंपनियों में भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (बीपीसीएल), शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (एससीआई) और कंटेनर कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (कॉनकोर) शामिल हैं।

इन संघों ने बीपीसीेएल और अन्य तेल रिफ़ाइनरी कंपनियों के श्रमिकों द्वारा 28 नवंबर को बुलाई गई एक दिवसीय सांकेतिक हड़ताल के लिए पूरा समर्थन दिया है।

मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के अधीन 20 नवंबर को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने बीपीसीएल के कर्मचारियों के विरोध के बावजूद इसमें केंद्र सरकार की पूरी हिस्सेदारी को बेचने की मंज़ूरी दे दी। साथ ही सरकार ने एससीआई और कॉनकोर की भी हिस्सेदारी बेचने का फ़ैसला किया है। सरकार इन तीन कंपनियों के प्रबंधन नियंत्रण (मैनेजमेंट कंट्रोल) को संभावित निजी ख़रीदारों को भी हस्तांतरित कर रही है।

बीपीसीएल में सरकार की 53.29% हिस्सेदारी है जबकि शिपिंग कॉर्पोरेशन में 63.75% है।

हालांकि, बीपीसीएल की बिक्री में असम स्थित नुमालीगढ़ रिफ़ाइनरी लिमिटेड (एनआरएल) की हिस्सेदारी शामिल नहीं होगी। एक सरकारी बयान में कहा गया है कि  एनआरएल में बीपीसीएल का 61.65% हिस्सेदारी है जिसे बाद में सार्वजनिक क्षेत्र की एक तेल एवं गैस कंपनी को बेचा जाएगा।

कॉनकोर में, मोदी सरकार 30.8% हिस्सेदारी बेच रही है लेकिन 24% हिस्सेदारी अपने पास रखते हुए वह प्रबंधन नियंत्रण छोड़ रही है।

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20 नवंबर तक इन तीन कंपनियों में सरकार की जो हिस्सेदारी बेची जा रही है वह लगभग 76,000 करोड़ रुपये थी।

ठीक इसी दिन सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य दो बिजली कंपनियों से विनिवेश करने का फ़ैसला किया है। इन कंपनियों में नॉर्थ ईस्टर्न इलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनईईपीसीओ) और हाइड्रो-पावर कंपनी टीएचडीसी लिमिटेड शामिल हैं। इसे सार्वजनिक क्षेत्र की अन्य कंपनी एनटीपीसी के हाथों बेचा जाएगा जो बिजली पैदा करने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी है।

यह बताया गया है कि एनटीपीसी इन दो ग़ैर-सूचीबद्ध कंपनियों में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी के लिए 10,000 करोड़ रुपये तक का भुगतान कर सकती है जो सरकार को 2019-20 के लिए 1.05 ट्रिलियन के विनिवेश लक्ष्य के क़रीब लाने में मदद करेगी।

जबकि मोदी सरकार ने वित्त वर्ष 2018 में अपने विनिवेश लक्ष्य 80,000 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2019 यानी मौजूदा वित्त वर्ष के सितंबर तक 1 लाख करोड़ रुपये को पार कर लिया है। सरकार ने संपत्ति की बिक्री के ज़रिये 12,359 करोड़ रुपये जुटाए थे।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, 20 नवंबर को मंत्रिमंडल ने अन्य कई सार्वजनिक उपक्रमों में सरकार की हिस्सेदारी को 51% से कम करने के लिए अनुमोदन को मंज़ूरी दी हालांकि नामों की अंतिम सूची अभी तक सामने नहीं आई है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंत्रिमंडल की बैठक के बाद मीडिया से कहा, "इस तरह की कटौती के बाद सरकार का नियंत्रण बरक़रार रहेगा और प्रबंधन नियंत्रण को बनाए रखते हुए प्रत्येक मामले के आधार पर निर्णय लिया जाएगा।"

इस बीच, सार्वजनिक क्षेत्र की तीन तेल रिफ़ाइनरी कंपनियों जैसे बीपीसीएल, एचपीसीएल और एमआरपीएल से जुड़े श्रमिकों की 21 यूनियनों ने 28 नवंबर को हड़ताल करने का आह्वान किया है। 20 नवंबर को तेल क्षेत्र के श्रमिकों के राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान घोषित की गई इस सांकेतिक हड़ताल को सफल बनाने के लिए सभी यूनियनें कड़ी मेहनत कर रही हैं।

उपरोक्त सार्वजनिक उपक्रमों की बिक्री के लिए कैबिनेट की मंज़ूरी के बाद 21 नवंबर को 10 केंद्रीय ट्रेड यूनियनों जैसे आईएनटीयूसी, एआईटीयूसी, एचएमएस, सीआईटीयू, एआईयूटीयूसी, टीयूसीसी, एसईडब्ल्यूए, एआईसीसीटीयू, यूटीयूसी और एलपीए ने भारी विरोध व्यक्त करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया।

उन्होंने केंद्र सरकार की "बेहतर लाभ कमाने वाली" कंपनियों के निजीकरण को लेकर मोदी सरकार के "घातक फ़ैसलों पर पूरी तरह से नाराज़गी" ज़ाहिर की।

यूनियनों ने संयुक्त बयान में कहा, "उपरोक्त सीपीएसयू के अलावा निजीकरण के शिकार कथित तौर पर अन्य कंपनियां जैसे इंडियन ऑयल (सरकार की वर्तमान हिस्सेदारी 51.5 प्रतिशत), एनटीपीसी (54.50 प्रतिशत), भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (58.83 प्रतिशत), बीईएमएल (54.03 प्रतिशत), इंजीनियर्स इंडिया (52 प्रतिशत), गेल (52.66 प्रतिशत) और नेशनल एल्युमीनियम कंपनी (52 प्रतिशत) है।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने कहा, "हाल ही में आर्थिक 'बेलआउट पैकेज' जो मुख्य रूप से सरकार द्वारा बड़े व्यापारिक घरानों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रस्तुत किए गए हैं इससे देश के सरकारी खज़ाने को 1.45 करोड़ लाख रुपये का नुकसान होगा। और इस तरह के पैकेज को लेकर मोदी सरकार द्वारा विचार किया जा रहा है, अब राजस्व घाटे को कम करने के लिए सरकार ने सीपीएसयू के विशाल ढ़ांचागत और वित्तीय परिसंपत्तियों को बेचने का फ़ैसला किया है।"

मोदी सरकार द्वारा इन कंपनियों के निजीकरण के फ़ैसले को वापस लेने की मांग करते हुए यूनियनों ने कहा कि श्रमिक 28 नवंबर की हड़ताल को "सफल" बनाने के लिए अभियान, प्रचार और विरोध की गतिविधियों में लगे थे।

केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने एक साथ आने और मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार के निजीकरण के फ़ैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों का आयोजन करने के लिए सभी सीपीएसयू श्रमिकों से अपील की है।

उन्होंने कहा, "भारत के आर्थिक नक़्शे से सार्वजनिक क्षेत्र को ख़त्म करने के लिए सरकार की हताशा को देखते हुए यह महसूस किया जाता है कि राष्ट्रव्यापी संघर्ष का ख़ाका तैयार करने के लिए सीपीएसयू के श्रमिकों के संयुक्त मंच को तत्काल सक्रिय करने की आवश्यकता है।"

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Unions Protest Privatisation of PSUs, To Strike On November 28

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