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नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ सड़कों पर उतरा छात्रों का हुज़ूम, कहीं प्रदर्शन तो कहीं निकाला मशाल जुलूस

नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 के विरोध में देशभर के कई विश्वविद्यालयों में विरोध प्रदर्शन और मशाल जुलूस का आयोजन किया गया। दिल्ली के जंतर-मंतर से लेकर बनारस के बीएचयू तक इसका असर देखने को मिला।
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लोकसभा में पास हुए नागरिकता संशोधन बिल-2019 का विरोध देशभर में देखने को मिल रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों के विश्वविद्यालयों के आलावा देश के कई अन्य विश्वविद्यालयों में भी इसका असर देखने को मिला है।

9 दिसंबर, सोमवार को नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएब) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर विभिन्न समूहों के बैनर तले आयोजित प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्र एकजुट हुए। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी समेत विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया।

‘यूनाइटेड अगेन्स्ट हेट’ नामक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा आयोजित इस प्रदर्शन में ‘रिजेक्ट सीएबी! बॉयकॉट एनआरसी!’ और ‘इंडिया नीड जॉब्स, एजुकेशन एंड हेल्थकेयर, नॉट नेशन वाइड एनआरसी’ के पोस्टर थामे प्रदर्शनकारियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी भी की।

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प्रदर्शन में शामिल दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा ऋचा सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया, ‘ सरकार धार्मिक आधार पर एक बार फिर से देश को बांटने की गलती दोहराने जा रही है। ये बिल देशविरोधी होने के साथ-साथ गांधी विरोधी भी है। 1906 में भारतीयों को देश से बाहर निकालने के लिए दक्षिण अफ्रीका में भी ऐसा ही 'नागरिकता' कानून लाया गया था। जिसका गांधी जी और सेठ हाजी हबीब ने विरोध किया था और सत्याग्रह की शुरुआत हुई। आज गांधी के अपने देश में सरकार उनके मूल्यों को नज़रअंदाज़ कर रही है।'

इस संबंध में जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष एन. साई बालाजी ने कहा, ‘आज, लोगों ने एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध का आह्वान किया क्योंकि यह संविधान के खिलाफ, गरीब-विरोधी, अल्पसंख्यक-विरोधी है। इस सरकार ने एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक के नाम से नफरत फैलाने का एक तरीका चुना है।’

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सोमवार देर रात अलिगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के छात्रों ने भी विश्वविद्यालय कैंटीन पर सभा कर बिल की सांकेतिक प्रतियों को फूंक दिया। छात्र नेताओं ने इसे बंटवारा करने वाला और असंवैधानिक बिल बताते हुए इसकी निंदा की।

इस बिल पर एएमयू के पूर्व छात्र तारिक अनवर ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘जिन लोगों ने अखंड भारत का, संवैधानिक समानता का सपना देखा था, बाबा साहेब ने जिस भारत की बुनियाद रखी थी, यह उसके खिलाफ है। राज्यसभा में जो भी विपक्षी पार्टियां हैं, उनसे अपील है कि इसे राज्यसभा में पास नहीं होने दिया जाए। इस बिल के मध्यम से मुसलमानों को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है।'

एएमयू के छात्र नेता फैजुल हसन ने मीडिया से कहा कि जो नागरिकता संशोधन बिल अमित शाह ने संसद में प्रस्तुत किया है, वह वैसा ही है जैसे सन 1947 में देश का बंटवारा हुआ था। भाजपा चाहती है कि फिर से हिंदू और मुसलमानों का बंटवारा हो जाए। यह देश का दुर्भाग्य है कि गृहमंत्री अमित शाह मुसलमानों का नाम नहीं लेकर सीधे सीधे अन्य सभी का नाम ले रहे हैं। इससे साफ है कि गृहमंत्री मुसलमानों के खिलाफ हैं। इसलिए इस बिल को अस्वीकार करते हैं।

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इसी कड़ी में 10 दिसंबर, मंगलवार शाम काशी हिंदू विशेवविद्यालय यानी बीएचयू में भी नागरिकता संसोधन बिल-2019 का विरोध प्रदर्शन देखने को मिला। बीएचयू की ज्वाइंट एक्शन कमेटी ने लंका गेट के सामने इस बिल के विरोध में एक विरोध सभा का आयोजन किया साथ ही बिल को भेदभाव पूर्ण बताते हुए मशाल जुलूस भी निकाला गया। इस दौरान एनआरसी, डॉक्टर फ़िरोज़ और डॉक्टर सालवी पर हमले का मामला भी उठाया गया।

बीएचयू के छात्र प्रियेश पांडे ने इस संबंध में से न्यूज़क्लिक कहा, ‘मेरी नज़र में ये विधेयक न सिर्फ गैर संवैधानिक और देश की अल्पसंख्यक आबादी के खिलाफ है बल्कि इस विधेयक के सहारे सरकार का स्पष्ट रूप से ये एलान है कि उनके भारत की परिकल्पना में मुसलमान के लिए कोई जगह नहीं है।'

इस संबंध में शोध छात्र अनुपम ने बताया, 'यह बिल देश विरोधी है क्योंकि इस बिल के आ जाने के बाद देश में संप्रदाय-धर्म के आधार पर भेद-भाव को वैधता मिल जाएगी। जिसके कारण देश की एकता और भाईचारा को नुकसान होगा। सरकार यह बिल लाकर सिर्फ अपना वोट बैंक मजबूत करना चाहती है। इस से न हिन्दुओं का भला हो न किसी अन्य दुसरे मजहब के लोगों को। इसलिए जो भी नागरिक अपने देश और देशवासियों के प्रेम करता है उसको इस बिल का पुरजोर तरीके से विरोध करना चाहिए और इस बिल को रोकने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। मैं एक छात्र होने के नाते इस बिल का विरोध करता रहूँगा।'

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प्रदर्शन में शामिल छात्रों ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद-14 कहता है कि भारत अपने सीमाओं में किसी से धर्म जाति, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा लेकिन नागरिकता संशोधन बिल-2019 भेदभाव-पूर्ण है। ये बिल पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगनिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यक बौद्ध, जैन,हिंदू, पारसी, ईसाई व सिख धर्मावलंबी ग़ैरक़ानूनी प्रवासियों को तो भारतीय नागरिकता देने की बात करता है लेकिन मुसलमानों को नागरिकता प्रदान नहीं कर रहा है। इस प्रकार नागरिकता संशोधन विधेयक-2019 मानवता व संविधान विरोधी है।

गौरतलब है कि कि नागरिकता संशोधन विधेयक के विरोध में उत्तर पूर्व के विभिन्न राज्यों में भी लगातार विरोध प्रदर्शन चल रहा है। असम के डिब्रूगढ़ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ तथा कॉटन स्टेट यूनिवर्सिटी के छात्रसंघ ने मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल सहित सत्तारूढ़ भाजपा, आरएसएस के सदस्यों तथा विधेयक का समर्थन करने वालों को इन दोनों विश्वविद्यालयों के परिसर में प्रवेश पर अनिश्चितकालीन प्रतिबंध लगा रखा है। असम में ऑल स्टूडेंट्स यूनियन, नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन, वामपंथी संगठनों-एसएफआई, डीवाईएफआई, एडवा, एआईएसएफ और आइसा ने 11 घंटे का बंद भी बुलाया था।

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