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उत्तर प्रदेश: बिजली कर्मचारी करचना पावर प्लांट के निजीकरण के भाजपा के कदम के कड़े विरोध में

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड द्वारा 1,320 मेगावाट थर्मल पावर प्रोजेक्ट का निर्माण और संचालन किया जाना था।
Power Employees

उत्तर प्रदेश में बिजली क्षेत्र के कर्मचारी राज्य की भाजपा सरकार द्वारा बिजली संयंत्र को निजी क्षेत्र में सौंपने के फैसले का विरोध कर रहे हैं।

1,320 मेगावाट की क्षमता वाला करचना थर्मल पावर प्रोजेक्ट इलाहाबाद जिले में स्थित है और इसे राज्य के स्वामित्व वाली उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन लिमिटेड (यूपीआरवीयूएनएल) द्वारा निर्मित और संचालित किया जाना था।

हालांकि, 1 मई को, राज्य कैबिनेट ने फैसला लिया कि बिजली संयंत्र का निर्माण प्रतिस्पर्धी बोली-प्रक्रिया के माध्यम से चुनी गई निजी कंपनी द्वारा किया जाएगा, और फिर कंपनी बिजली को वापस राज्य को बेच देगी।

इसका विरोध करते हुए, उत्तर प्रदेश पावर कर्मचारियों की संयुक्त कार्य समिति (पीईजेएसी) – जिसने राज्य सरकार के निजीकरण के कदमों के खिलाफ लड़ने के लिए बिजली क्षेत्र के कर्मचारियों को संगठित किया था - ने मांग की है कि योगी आदित्यनाथ की अगुआई वाली बीजेपी सरकार इस फैसले को रद्द करे।

समिति ने कहा कि यदि निजीकरण का कदम वापस नहीं किया गया तो बिजली कर्मचारियों को एक विरोध आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होना होगा।

पीईजेएसी के संयोजक शैलेंद्र दुबे ने कहा कि एक निजी कंपनी अनिवार्य रूप से उच्च कीमतों पर राज्य को बिजली बेचेगी, जो उपभोक्ता को दी जाएगी, और यह कदम भ्रष्टाचार को भी बढ़ावा देगा।

इसके अलावा, राज्य कैबिनेट का निर्णय पीईजेएसी और राज्य के प्रधान सचिव (ऊर्जा), आलोक कुमार के बीच 5 अप्रैल को हुए हस्ताक्षरित समझौते का भी उल्लंघन करता है, जो उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) के अध्यक्ष भी हैं।

समझौते में, राज्य सरकार ने न केवल सात जिलों में बिजली वितरण गतिविधियों को निजी कंपनियों को आमंत्रित करने वाले निविदाओं को वापस लेने पर ही सहमति नहीं दी थी, बल्कि यह भी लिखित आश्वासन दिया था कि बिजली का निजीकरण करने के लिए कोई भी कदम नहीं उठाया जाएगा।

दुबे ने समझौते के बारे में कहा - कि बिजली कर्मचारियों की सहमति के बिना कोई निजीकरण नहीं होगा – इस बाबत राज्य बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा की उपस्थिति में हस्ताक्षर किए गए थे।

और फिर भी, शर्मा ने मीडिया को यह कहते हुए पाया गया कि, "राज्य सरकार ने प्रतिस्पर्धी वाली बोली-प्रक्रिया के माध्यम से बिजली संयंत्रों को बनाने के फैंसले केंद्र सरकार की नीति का पालन करने के लिया किया है।"

2 मई को जारी एक प्रेस वक्तव्य में पीईजेएसी ने बिजली विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों पर करचना बिजली संयंत्र के बारे में बिजली मंत्री और मुख्यमंत्री को गुमराह करने का भी आरोप लगाया है। समिति ने कहा कि श्रीकांत शर्मा का बयान है कि प्रतिस्पर्धात्मक बोली के मार्ग के माध्यम से बिजली सस्ती होगी, और कर्चाना बिजली संयंत्र के मामले में यह विपरीत साबित हुआ था, जिससे पहले वाली बोली लगाने से भ्रष्टाचार एमिन बढ़ोतरी हुयी थी।

पीईजेएसी ने कहा कि करचना परियोजना के लिए पहली बोली अप्रैल 2008 में हुई थी। उस समय, यूपीपीसीएल से उत्पन्न बिजली बेचने के लिए न्यूनतम दर 2.83 रुपये प्रति यूनिट थी, जिसे सरकार ने खारिज कर दिया था क्योंकि यह बाजार मूल्य से अधिक थी। बोली फिर से हुई, और जून 2008 में, उद्धृत न्यूनतम दर 2.60 रुपये प्रति यूनिट थी, लेकिन सरकार ने फिर से यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह अभी भी बाजार दर से अधिक है।

लेकिन मार्च 2009 में, निविदा को जेपी ग्रुप की जयप्रकाश पावर वेंचर्स को बेच दिया गया था, जिसने 3.5 रुपये प्रति यूनिट की न्यूनतम दर उद्धृत की थी।

इस तरह, पीईजेएसी ने कहा, "बोली लगाने का नाटक" सरकार की पसंद की एक निजी कंपनी को निविदा देने के लिए आयोजित किया गया था, भले ही उसने उच्च कीमत उद्धृत की हो।

पीईजेएसी ने कहा कि इस घोटाले के बारे में एक रिपोर्ट में नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने कहा था कि प्रति यूनिट 45 पैसे अधिक की कीमत पर निविदा प्रदान करके सरकार ने जेपीवी को कुल लागत से मुनाफा कमाने की अनुमति दी थी, जिसे मूल रूप से 1980 मेगावाट की क्षमता का प्लांट माना जाता था। समिति ने कहा कि राज्य सरकार को जवाब देना चाहिए कि सीएजी रिपोर्ट के मद्देनज़र क्यों नहीं कार्रवाई की गई थी और क्यों निजी कंपनी को अभी भी ब्लैकलिस्ट नहीं किया गया।

2014 में, जेपीवी के 2013 में पीछे हटने के बाद करवाण बिजली परियोजना को समाजवादी पार्टी (एसपी) सरकार द्वारा यूपीआरवीयूएनएल को सौंप दिया था। असल में, उच्च दर उद्धृत करने के बाद भी, जेपी समूह ने परियोजना को त्यागने का जो कारण दिया था वह कि "प्रस्तावित परियोजना 2009 में परियोजना को हासिल करने के लिए उद्धृत दरों कम थी और परियोजना के लिए आवश्यक कुल भूमि भी अभी तक सौंपी नहीं गई थी।"

पीईजेएसी ने पूछा कि परिस्थितियों में ऐसा क्या हुआ है जिसने राज्य सरकार को फिर से संयंत्र को निजी क्षेत्र में सौंपने के लिए प्रेरित किया है। पीईजेएसी ने हिंदी में जारी अपने बयान में कहा, "लोग सोच रहे हैं कि इसका मतलब है कि फिर कोई भ्रष्टाचार घोटाला पक रहा है?" यह 2008 में कहा गया था कि परियोजना को सार्वजनिक क्षेत्र में ही दिया जाएगा, और 2012 तक इसे पूरा कर लिया जाएगा। अब बोली प्रक्रिया में एक वर्ष से अधिक लग गया, और अब यह कहना मुश्किल है कि यह संयंत्र कब पूरा हो जाएगा।

समिति ने राज्य सरकार को चेतावनी दी कि यदि कर्मचारियों ने राज्य में विरोध आंदोलन शुरू किया, तो सरकार उसके परिणामों के लिए अकेले ही ज़िम्मेदार होगी क्योंकि सरकार ने ही 5 अप्रैल के समझौते का उल्लंघन किया हैं।

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