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उत्तराखंड : अब देवी जागरण से तय होगी हिन्दुत्व की राजनीति !

देहरादून में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने यहां की सभी जागरण संस्थाओं और कलाकार एकता परिवार जागरण समिति के साथ बैठक कर कुछ बिंदु तैयार किये, जिन पर वे आगे कार्य करेंगे।
सांकेतिक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : YouTube

“ठंडो रे ठंडो, मेरे पहाड़ की हवा ठंडो, पानी ठंडो...।” पहाड़ के लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी के इस गीत में पहाड़ की सिर्फ हवा और पानी ही ठंडी नहीं है, बल्कि पहाड़ का मिज़ाज भी ठंडा है। ठंडे हिमालय की छांव में गंगा भी ठंडी है, पंदियार-बुग्याल की अनुभूति भी ठंडी है। बुरांस-देवदार ठंडे-ठंडे हैं। इस ठंडक में शांति है।

ये गीत उत्तराखंड के ठंडे मिज़ाज को दर्शाता है। लेकिन जिस तरह पिछले कुछ वर्षों में पूरे देश में हिंदुत्व के नाम पर सार्वजनिक स्थलों पर गुंडई-दबंगई बढ़ी है, उत्तराखंड भी इससे अछूता नहीं रहा। लड़कियों के साथ अपराध, दलितों के साथ अपराध तो यहां बढ़ ही रहे हैं, धर्म के नाम पर होने वाले फसाद भी लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले दो-तीन वर्षों में इस तरह की घटनाओं में तेजी आई है।

देहरादून में विश्व हिन्दू परिषद और बजरंग दल ने यहां की सभी जागरण संस्थाओं और कलाकार एकता परिवार जागरण समिति के साथ बैठक कर कुछ बिंदु तैयार किये, जिन पर वे आगे कार्य करेंगे। इसके तहत शहर में आयोजित होने वाले जागरण में वे दस मिनट हिंदुत्व को लेकर चर्चा करेंगे। हिंदुत्व के नाम पर वोट डालने, हिंदू राष्ट्र बनाने की कोशिश की जैसे बहसें की जाएंगी।

बैठक में तय किया गया कि भजन गाने वाले मुस्लिम कलाकारों का पूरी तरह बहिष्कार किया जाएगा और सिर्फ हिन्दू कलाकारों को प्रमुखता दी जाएगी। जागरण में आने वाले लोगों के माथे पर तिलक जरूर लगा हो। लोगों के लिबास जागरण में मर्यादित और सात्विक हों। अब कौन सा पहनावा मर्यादित कहलाएगा, कौन सा नहीं ये सोचने का विषय है। इसके साथ ही जागरण में नशा न करें जैसी बातें भी कही गईं हैं। जल्द ही ये सभी संस्थाएं एक विशाल धार्मिक कार्यक्रम की योजना भी बना रही हैं।

इसके साथ ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भी आलोचना की गई और कहा गया कि उनका नज़रिया हिंदुत्व के लिए सही नहीं है। लोगों से आग्रह किया गया कि ममता बनर्जी के लिए जय श्रीराम नाम से पोस्ट कार्ड, ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर संदेश भेजे जाएं।

देहरादून में बजरंगदल के संयोजक विकास वर्मा कहते हैं कि हमने तय कर दिया है कि मुस्लिम कलाकार किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किये जाएंगे। ऐसा क्यों, ये पूछने पर उनका कहना है कि राज्य में लव जेहाद के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। वे हरिद्वार के धनपुरा का उदाहरण देते हैं और कहते हैं कि वहां मुस्लिम आबादी बढ़ने की वजह से हिंदू लोगों ने पलायन किया है। 

फिर कैसे हासिल करेंगे सबका विश्वास” 

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा माहरा दसौनी इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताती हैं। उनका कहना है कि इस तरह के संदेश से वैमनस्यपूर्ण वातावरण बनाने की कोशिश की जा रही है। जिला प्रशासन को भड़काऊ बयान देने के लिए इस पर कार्रवाई करनी चाहिए। वे कहती हैं कि जहां-जहां भी भाजपा शासित राज्य हैं, वहां  दलितों और अल्पसंख्यकों के साथ जुर्म बढ़े हैं। इससे सबका साथ-सबका विकास और अब सबका विश्वास वाला भाजपा का नारा खोखला साबित होता है। वे कहती हैं कि हमारा देश अपने लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए जाना जाता है। अनेकता में एकता के लिए जाना जाता है। पिछले कुछ समय में लगातार भारत के अनूठेपन को आघात पहुंचाया जा रहा है। इस तरह के माहौल में सबका विश्वास कैसे पैदा होगा। गरिमा कहती हैं कि सरकार को ऐसे तत्वों पर नकेल कसने के लिए आगे आना चाहिए। हम सर्व धर्म समभाव और वसुधैव कुटुंबकम की नीति वाले लोग हैं। कांग्रेस प्रवक्ता इस तरह के बयान जारी करने वालों पर कड़ी कार्रवाई की मांग करती हैं।

प्रदेश भाजपा के मीडिया प्रमुख देवेंद्र भसीन कहते हैं कि उन्हें इस मामले की कोई जानकारी नहीं है। साथ ही वे जोड़ते हैं कि हमारी पार्टी का बजरंग दल से कोई संबंध नहीं है। हालांकि ये बात संज्ञान में आने पर उन्होंने प्रेस नोट पढ़ने के लिए मांगा।

धर्म के नाम पर पहाड़ का मिज़ाज बदलने की कोशिश

सामाजिक कार्यकर्ता गीता गैरोला कहती हैं कि पिछले तीन वर्षों में राज्य में कई जगहों पर दंगे कराने की कोशिश की गई लेकिन ऐसे अराजक तत्वों को सफलता नहीं मिली। वे कहती हैं कि इसी वर्ष  देहरादून में कश्मीरी छात्रों के नाम पर दंगे फैलाने की कोशिश की गई। ऐसे ही सतपुली में, उधमसिंहनगर में दंगा भड़काने की कोशिश हुई। कोटद्वार में पिछले वर्ष दो बार दंगे जैसे हालात बनाए गए। गीता कहती हैं कि यहां के लोग आमतौर पर हिंसक प्रवृत्ति के नहीं हैं, लेकिन अब वे भी सीख रहे हैं। माहौल बदल रहा है, ऐसे में आगे चलकर यहां के लोगों में हिंसा की प्रवृत्ति बनती चली जाएगी। गीता कहती हैं कि पहाड़ में भले ही छूतपात होती रहे लेकिन मारपीट और दंगे की नौबत नहीं आने दी गई। चाहे वे किसी भी पार्टी के लोग रहे हों। लेकिन इस दिशा में खूब कोशिश की जा रही है।

जब हमें ऐसी खबरें मिलती हैं कि हिंदू की जान बचाने के लिए मुस्लिम ने रोजा तोड़कर रक्त दान किया। या मुस्लिम कारीगर राखी बनाते हैं, नवरात्रों में देवी की मूर्तियां बनाते हैं, वे पतंगे बनाते हैं, जिसे बसंत पंचमी पर हम आकाश में तान देते हैं, वे जो सुरमा बनाते हैं, उन्हें हम आंखों में सजाते हैं, उनकी कारीगरी किए लिबास हम शान से पहनते हैं....तो इन्हीं वाकयों में गंगा-जमुनी तहजीब की लहरें दिलों को छूती नज़र आती हैं। ऐसे में हिंदुत्व के नाम पर अपनी राजीनितक रोटियां सेंक रहे और नौजवानों को देश-पर्यावरण के लिहाज से जरूरी कामों में न ले जाकर, धर्म और फसाद के लिए भड़काने वालों को कड़क संदेश देने की आवश्यकता है। ये काम सरकारों को ही करना होगा। जनता को भी समझना होगा कि भीड़ तंत्र का हिस्सा न बनें, जागरण में दस मिनट की बहस अपने लड़कों को तमीज सिखाने के लिए दें कि वे बलात्कार न करें। दस मिनट की बहस ये बताने के लिए कि हम अपनी हवा-मिट्टी-पानी को कैसे बचाएं रखें। ये सब बचेगा तो धर्म खुद-ब-खुद बच जाएगा।

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