Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

उत्तराखंड : क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट पर टकराव जारी, मरीज़ हलकान

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के विरोध में उत्तराखंड में 15 फरवरी से निजी डॉक्टर हड़ताल पर हैं। निजी क्लीनिक पर ताले लगे हुए हैं। पहले ही लचर स्वास्थ्य व्यवस्था से जूझ रहे सरकारी अस्पताल इसके चलते दबाव में आ गए हैं।
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: Hindustan

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के विरोध में उत्तराखंड में 15 फरवरी से निजी डॉक्टर हड़ताल पर हैं। निजी क्लीनिक पर ताले लगे हुए हैं। पहले ही लचर स्वास्थ्य व्यवस्था से जूझ रहे सरकारी अस्पताल इसके चलते दबाव में आ गए हैं। इस सबमें सबसे अधिक मुश्किल है आम लोगों की, जिन्हें इलाज के लिए उत्तर प्रदेश और दिल्ली तक के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। निजी डॉक्टरों की हड़ताल से आम लोगों को हो रही परेशानी को देखते हुए सत्र के दौरान विपक्ष ने सदन से वॉक आउट किया। नैनीताल हाईकोर्ट भी इस पर चिंता जता चुका है।

देहरादून की संजना बहुगुणा कहती हैं कि “मेरे बेटे को रात 104 डिग्री बुखार हो गया। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसे कहां लेकर जाऊं। दून अस्पताल और महंत इंद्रेश जैसे अस्पताल पर मैं बिलकुल भरोसा नहीं करती। प्राइवेट डॉक्टर हड़ताल पर चल रहे हैं, मेरे लिए ये स्थिति परेशान करने वाली थी।

क्यों हड़ताल पर हैं निजी चिकित्सक

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट 2010 को उत्तराखंड में वर्ष 2016 में लागू किया गया। इस कानून से राज्य के ज्यादातर प्राइवेट नर्सिंग होम और क्लीनिक मानक पूरे नहीं होने पर प्रभावित हो रहे हैं। इसके साथ ही देहरादून में मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण के सीलिंग की कार्रवाई के जद में भी शहर के ज्यादातर नर्सिंग होम आ रहे हैं। ये दो बड़ी वजहें हैं, जिसके चलते पिछले वर्ष भी डॉक्टरों और सरकार के बीच रस्साकशी चलती रही। अपनी मांगें पूरी न होते देख, निजी डॉक्टर हड़ताल पर चले गए।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की देहरादून शाखा के अध्यक्ष डॉ संजय गोयल कहते हैं कि जो नर्सिंग होम पिछले बीस-तीस वर्षों से चल रहे हैं, क्लीनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट के लागू होने पर, उनके बंद होने या फिर दोबारा नए सिरे से शुरू करने की नौबत आ जाएगी। नए कानून के मुताबिक पुराने निजी अस्पतालों का डिजायन, उसका आकार, उनका स्टाफ सब कुछ या तो बाहर हो जाएगा, या फिर सबकुछ रि-डिजायन करना होगा, जिसकी लागत बहुत अधिक आएगी और अंततइसका सारा बोझ मरीजों को ही झेलना पड़ेगा।

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के साथ ही देहरादून के निजी अस्पतालों पर एमडीडीए की सीलिंग की कार्रवाई का भी असर पड़ रहा है। डॉ संजय गोयल कहते हैं कि जो नर्सिंग होम्स पिछले कई वर्षों से चल रहे हैं, उन्हें आज के कानून के पालन को कहा जा रहा है। एमडीडीए करीब 50 नर्सिंग होम्स को बंद करने के नोटिस भेज चुका है। इनमें से कई क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्टर्ड भी हैं। वे बताते हैं कि देहरादून के करीब 70 फीसदी निजी नर्सिंग होम क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत पंजीकृत हैं। उनका मानना है कि उत्तराखंड की भौगोलिक परिस्थितियों के लिहाज से क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट में ढील दी जानी चाहिए। नए नर्सिंग होम्स पर नया कानून लगाएं।

निजी चिकित्सकों की हड़ताल मरीजों पर पड़ रही भारी

निजी डॉक्टरों की हड़ताल के मुद्दे पर गुरुवार को विपक्षी दल कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट भी किया। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा माहरा दसौनी का कहना है कि हमारे प्रदेश के स्वास्थ्य के जो हालात हैं, उसमें हम निजी डॉक्टरों की हड़ताल को अफोर्ड नहीं कर सकते। क्योंकि सरकारी अस्पताल इतने मजबूत नहीं हैं कि लोगों को इलाज मुहैया करा सकें। प्राइवेट डॉक्टरों की हड़ताल का खामियाजा मरीज ही भुगत रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता कहती हैं कि प्रचंड बहुमत और डबल इंजन के चलते सरकार का रवैया अड़ियल हो गया है। वे न तो बेरोजगारों से बात कर रहे हैं, न अतिथि शिक्षकों से बात कर रहे हैं, न डॉक्टरों से बात कर रह हैं। सिर्फ डंडा चलाने का रुख़ अपनाया है। गरिमा दसौनी कहती हैं कि सरकार कम से कम डॉक्टरों को बातचीत के लिए तो बुलाए। वे कहती हैं कि राज्य की हिसाब से क्लीनिकल एस्टिमिंट एक्ट में शिथिलीकरण की जरूरत है। इस कानून के मानकों पर फिट बैठना हर अस्पताल के बस की बात नहीं है।

गरिमा एक जरूरी बात कहती हैं कि अटल आयुष्मान योजना लागू करने के लिए राज्य सरकार को निजी अस्पतालों की जरूरत पड़ी, क्योंकि सरकारी अस्पताल सभी सेवाएं देने में सक्षम नहीं हैं। इसके लिए सरकार ने निजी अस्पतालों को भी इम्पैनल किया। इनमें वो अस्पताल भी शामिल हैं जो क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत रजिस्टर्ड नहीं हैं, जैसे कि देहरादून का लाइफ लाइन अस्पताल। तो जो अस्पताल पंजीकृत नहीं है, वो अटल आयुष्मान योजना के लिए इम्पैनल्ड कैसे हो गया।

नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश ने इस मुद्दे पर सदन में कहा कि ये एक्ट केंद्र की तरह ही प्रदेश में लागू किया जा रहा है। इस एक्ट के साथ विकास प्राधिकरण ने भी जो प्रावधान किए हैं, वो कई वर्ष पहले बने अस्पतालों के लिए अव्यहवारिक है। सदन में कहा गया कि राज्य के 50 बेड से कम अस्पतालों को एक्ट के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए। इस पर सत्ता पक्ष के विधायकों ने प्रदेश की परिस्थितियों के हिसाब से एक्ट में संशोधन की बात कही।

सरकारी अस्पतालों पर बढ़ा दबाव

देहरादून के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ एस के गुप्ता कहते हैं कि निजी डॉक्टरों की हड़ताल के चलते सरकारी अस्पतालों पर दबाव जरूर बढ़ गया है। लेकिन फिलहाल स्थिति नियंत्रण में हैं। उनका कहना है कि मैक्स अस्पताल, महंत इंद्रेश अस्पताल, ऋषिकेश के एम्स अस्पताल की वजह से सरकारी अस्पतालों पर आ रहा मरीजों का भार बंट गया है। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य महानिदेशालय का आदेश होगा तो संविदा पर अधिक से अधिक डॉक्टर तैनात किये जाएंगे।

नैनीताल हाईकोर्ट ने दिए निर्देश

हड़ताल के दौरान राज्यभर से मरीजों की दिक्कतों की खबरें आ रही हैं। नैनीताल हाईकोर्ट ने भी एक जनहित याचिका पर मामले का संज्ञान लिया और सरकार को आदेश दिये कि हर मरीज को सरकारी अस्पताल में इलाज सुनिश्चित कराएं। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को 27 फरवरी तक संविदा चिकित्सकों की नियुक्ति करने के आदेश दिए। साथ ही दूसरे राज्यों की मदद लेने के निर्देश भी दिए और इस पर रिपोर्ट मांगी है। हाईकोर्ट ने इंडियन मेडिकल एसोसिशन से क्लीनिकल इस्टेबलिशमेंट के तहत पंजीकरण कराने वाले निजी चिकित्सकों का ब्यौरा भी मांगा है। पिछले वर्ष भी अपने एक आदेश में नैनीताल हाईकोर्ट ने क्लीनिकल एस्टीब्लेशमेंट एक्ट-2010 के तहत जो क्लीनिक रजिस्टर्ड नहीं हैं, उन्हें सील करने के आदेश दिए थे।

क्या है क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट के तहत सभी निजी-सरकारी अस्पतालों, नर्सिंग होम्स को मरीजों को न्यूनतम जरूरी सुविधाएं मुहैया करानी होंगी। मरीज का इलेक्ट्रॉनिक हेल्थ रिकॉर्ड अस्पताल के पास सुरक्षित होना चाहिए। इस एक्ट के प्रावधान के तहत सभी चिकित्सा संस्थान इमरजेंसी में किसी मरीज के पहुंचने पर उसे जरूरी स्वास्थ्य सुविधा मुहैया करायें, ताकि रोगी को स्थिर किया जा सके। साथ ही अस्पताल मरीजों से मनमाने पैसे नहीं वसूल सकेंगे। उन्हें अपनी सेवाओं की कीमत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमाओं के भीतर ही लेनी होगी। यही नहीं उन्हें स्वास्थ्य सुविधाओं के बदले ली जा रही कीमत को अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में दीवार पर चस्पा करना होगा। साथ ही नर्सिंग होम के लिए न्यूनतम भूमि सीमा भी निर्धारित की गई है। उसके साथ सड़क की न्यूनतम चौड़ाई भी तय की गई है। क्योंकि बहुत से नर्सिंग होम्स और क्लीनिक बेहद छोटी छोटी जगहों पर संचालित हो रहे हैं। जहां मरीजों से पैसे तो पूरे लिए जाते हैं लेकिन सुविधाएं पूरी नहीं मिलतीं।

इस एक्ट से जुड़े प्रावधानों का उल्लंघन करने पर अस्पताल का रजिस्ट्रेशन रद्द होने से लेकर उन पर जुर्माने तक का प्रावधान है।

क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट चिकित्सा सेवा के क्षेत्र में बड़े सुधार के रूप में देखा जा रहा है। इससे अस्पतालों में दी जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं की जानकारी जुटाना आसान हो जाएगा और स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर योजनाएं बनाने में भी मदद मिलेगी। साथ ही प्राइवेट अस्पतालों में कन्या भ्रूण जांच जैसे गैर-कानूनी कार्य भी नहीं किये जा सकेंगे।

क्या डॉक्टर कर रहे मनमानी

निजी डॉक्टरों को लगता है कि इस एक्ट के लागू होने से उन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ जाएगा। आईएमए देहरादून के अध्यक्ष डॉ गोयल कहते हैं कि नए कानून के तहत अस्पतालों के संचालन में डॉक्टरों की भूमिका ही खत्म हो जाएगी। प्रशासनिक पद का कोई सामान्य व्यक्ति भी आकर आपके नर्सिंग होम की पड़ताल कर सकता है, उसे बंद कर सकता है, जबकि छोटे-बड़े अस्पतालों के संचालन की समझ एक डॉक्टर के पास ही होगी। वे चाहते हैं कि 50 से कम बेड वाले नर्सिंग होम्स को इस कानून के दायरे से बाहर रखा जाए।

कई जानकारों का कहना है कि कुछ व्यावहारिक दिक्कतें तो हैं लेकिन क्लीनिकल इस्टेब्लिशमेंट एक्ट का लागू होना, आम लोगों के लिए सहूलियत भरा है और डॉक्टरों की मनमानी पर अंकुश लगाता है। सरकारी अस्पतालों में बेहतर सुविधाएं न मिलने से ही लोग प्राइवेट अस्पतालों का रुख़ करते हैं। छोटी से छोटी बीमारी के लिए ज्यादातर डॉक्टरों की फीस ही पांच सौ रुपये से शुरू होती है। फिर वहां भी उन्हें बहुत अच्छी सुविधाएं नहीं मिलतीं। मरीज शिकायत तक नहीं कर सकता। ज्यादातर नर्सिंग होम में पीने का पानी और साफ शौचालय तक नहीं मिलता। डॉक्टरों को लगता है कि इस एक्ट के लागू होने से उनकी कमाई पर सीधा असर पड़ेगा, इसीलिए वे इसका विरोध कर रहे हैं।

आईएमए देहरादून का कहना है कि जब तक सरकार को ठोस उपाय लेकर नहीं आती है, उनकी हड़ताल जारी रहेगी। जबकि सदन में ये मामला उठाये जाने पर राज्य सरकार ने कहा कि ये कानून प्रदेश की परिस्थितियों के अनुरूप बनाया जाएगा। इस मसले पर सरकार जल्द ही अपना एक्ट लेकर आएगी।

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest