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उत्तराखंड में मंदी के साथ वालमार्ट की भी होगी एंट्री!

उत्तराखंड में वालमार्ट प्रवेश करने को तैयार है। व्यापारियों ने कहा कि यदि सरकार अपना फैसला वापस नहीं लेती तो व्यापारी वर्ग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगा लेकिन राज्य में वालमार्ट को नहीं आने दिया जाएगा।
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फोटो साभार : walmart.com

जिस समय में देश की अर्थव्यवस्था पर मंदी की दस्तक सुनाई दे रही है, उसी समय में उत्तराखंड जैसे पहले से बेरोज़गारी की मार झेल रहे राज्य में वालमार्ट प्रवेश करने को तैयार है। राज्य के व्यापार जगत से जुड़े संगठनों ने सरकार के इस फ़ैसले का विरोध किया है। सरकार के इन फ़ैसलों को लेकर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस का प्रतिरोध नज़र नहीं आता। जन संगठन ही विपक्ष का मोर्चा संभाल रहे हैं।

वालमार्ट का विरोध

दुनियाभर के कई देशों में विरोध के चलते निकाली गई कंपनी वालमार्ट को राज्य में स्टोर खोलने की जगह मिल गई है, इसका व्यापारी संगठनों ने विरोध किया। 23 अगस्त को प्रदेश उद्योग व्यापार मंडल समिति, द होल सेल डीलर्स एसोसिएशन समेत अन्य व्यापारी संगठनों ने बैठक कर कहा कि वालमार्ट के आने से कम लोगों को रोजगार मिलेगा जबकि सीधे तौर पर बेरोज़गार होने वाले लोगों की संख्या कहीं अधिक होगी। छोटे खुदरा दुकानदार इससे प्रभावित होंगे। व्यापारियों ने कहा कि यदि सरकार ये फैसला वापस नहीं लेती तो व्यापारी वर्ग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेगा लेकिन राज्य में वालमार्ट को नहीं आने दिया जाएगा।

वालमार्ट को लेकर सरकार का फ़ैसला

22 अगस्त को राज्य के मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह, प्रमुख सचिव उद्योग मनीषा पंवार और उद्योग निदेशक सुधीर नौटियाल के साथ वालमार्ट इंडिया के अधिकारी की बैठक हुई। बैठक में वालमार्ट को देहरादून, हल्द्वानी और हरिद्वार में स्टोर खोलने की मंजूरी दी गई है। बैठक के बाद हरिद्वार और हल्द्वानी में ज़मीन का चयन कर लिया गया है। जबकि देहरादून शहर के पास चार एकड़ भूमि की तलाश की जा रही है। तीन रिटेल स्टोर में वालमार्ट राज्य में 180 करोड़ का निवेश करेगा। एक स्टोर में दो हज़ार लोगों को नौकरी मिलने का अनुमान है। बताया गया कि रिटेल स्टोर में ये अमेरिकी कंपनी 25 प्रतिशत उत्तराखंड के उत्पाद खरीदेगी। जिससे यहां के पारंपरिक अनाज, मशरूम समेत अन्य वस्तुओं को ग्लोबल मार्केट उपलब्ध होगा।

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वालमार्ट को लाने का तरीका गलत-कांग्रेस

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र कुमार अग्रवाल कहते हैं कि वालमार्ट को जिस ढंग से लाया जा रहा है, वो ढंग गलत है। वे पूछते हैं कि भाजपा ने पहले वालमार्ट का विरोध क्यों किया और आज क्यों वे वॉलमार्ट को ला रहे हैं। कांग्रेस का मानना है कि सप्लायर्स या छोटे दुकानदारों के विचार जाने बिना ये फैसला नहीं किया जाना चाहिए था। वे मानते हैं कि छोटे व्यापारियों के संदेह दूर करने के लिए राज्य सरकार ने कोई पहल नहीं की। सरकार को स्थानीय सप्लायर्स से बात करनी चाहिए थी, किसानों को विश्वास में लेना चाहिए था। वे त्रिवेंद्र सरकार के एकतरफा निर्णय को ठीक नहीं समझते।

सुरेंद्र अग्रवाल कहते हैं कि यदि स्थानीय व्यापारी वालमार्ट का विरोध करते हैं तो उनकी पार्टी व्यापारियों के पक्ष में खड़ी होगी।

हम कमरा बंद करके नहीं रह सकते- भाजपा

देहरादून में भाजपा प्रवक्ता देवेंद्र भसीन का कहना है सरकार ने सोच समझ कर फैसला लिया है। जिस तरह के नए आर्थिक युग में हम रह रहे हैं, हमें खुद को उस हिसाब से ढालना ही पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर हमारा सामान बाहर जाता है, बाहर का सामान देश में आता है। उनके मुताबिक भाजपा की कोशिश है कि स्थानीय बाज़ार मज़बूत हों। इसके लिए सुरक्षा नहीं बल्कि प्रतियोगिता के ज़रिये नई चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय चेन दुनियाभर में चल रही हैं। हम कमरा बंद करके नहीं रह सकते। देवेंद्र भसीन कहते हैं कि हमारा बाज़ार बहुत बड़ा है। दुनियाभर के लोग यहां आ रहे हैं। आज की तारीख में दुनिया भर के मॉल चल रहे हैं, तो स्थानीय दुकानें भी चल रही हैं।

वालमार्ट का रिकॉर्ड रोजगार खाने का है- सीपीआई एमएल

सीपीआई-एमएल के नेता इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि वालमार्ट के आने से छोटे स्तर पर व्यापार करने वाले लोगों का रोजगार सीधे तौर पर प्रभावित होगा। पहले ही मंदी की मार चौतरफा पड़ी हुई है। वालमार्ट खोलकर सरकार छोटे कारोबारियों की बर्बादी का रास्ता सरकार खोलने जा रही है। वे कहते हैं कि भाजपा विपक्ष में रहते हुए जिन चीजों का विरोध करती है, सत्ता में रहते हुए उससे ज्यादा आक्रमकता से उसे लागू करना चाहती है। वालमार्ट का दुनिया में इतिहास देखा जाना चाहिए। एक समय में अमेरिका के कई प्रांतों में लोगों ने वॉलमार्ट स्टोर बंद करने को लेकर प्रदर्शन किये, क्योंकि ये सारा रोज़गार खा जाते हैं। वालमार्ट का दुनिया में रिकॉर्ड रोजगार पैदा करने का नहीं, बल्कि खा जाने का रिकॉर्ड है।

लेकिन सरकार तो राज्य में पूंजी निवेश आने से ख़ुश है? इस सवाल पर इंद्रेश कहते हैं कि पूंजी निवेश छलावे वाला शब्द है। अभी तक का जो रिकॉर्ड है, उसके तहत, जिन लोगों ने राज्य में पूंजी निवेश किया, उन्हें जमीन सरकार देती है, साथ ही तमाम तरह की सहूलियतें दी जाती हैं। इस तरह वे उद्यमी राज्य में पूंजी निवेश नहीं करते, बल्कि सरकार जनता का पैसा उनके धंधे में निवेश करती है, जिससे वो कंपनी मुनाफा कमाती है।

विपक्ष इन मुद्दों पर सरकार को क्यों नहीं घेर पाता? इस सवाल पर इंद्रेश मैखुरी कहते हैं कि विधानसभा के भीतर जो पक्ष और विपक्ष है, उसमें नीतियों के स्तर पर कोई असहमति नहीं है। बल्कि ये कह सकते हैं कि इन्हें लागू करने का अवसर जिसके हाथ में है, वो इसे लागू कर रहा है। आर्थिक मुद्दों पर दोनों सत्ता पक्ष और विपक्ष एक हैं। वे राज्य के पहाड़ी-मैदानी जिलों में ज़मीन खरीद से सीलिंग हटाने का उदाहरण देते हैं। जब पहाड़ी जिलों से सीलिंग हटायी गई तो नेता प्रतिपक्ष इंदिरा ह्रदयेश ने सरकार से पूछा कि पहाड़ों पर जमीन बेचने का कानून क्यों लागू किया जा रहा है, मैदानों में क्यों नहीं करते। हालांकि कांग्रेस के एक मात्र विधायक मनोज रावत ने इसका विरोध किया था। बाद में सरकार ने मैदानी जिलों में भी जमीन खरीद पर लगी रोक हटा दी।

विपक्ष क्यों नदारद है?

सामाजिक-आर्थिक मुद्दों पर संवेदनशील आर अग्रवाल ने सोशल मीडिया पर अपने एक संदेश में लिखा “समझ मेँ नहीं आता कि जब देश की जनता भयानक मंदी, जॉब लॉस, शिक्षा, स्वास्थ्य, भीड़ की हिंसा, महंगाई आदि मुद्दों से जूझ रही है तो विपक्ष को सांप क्यों सूंघ गया हैं, वे विरोध क्यों नहीं कर रहे? उत्तराखंड में देहरादून हरिद्वार और हल्द्वानी में वालमार्ट खुलने वाले हैं जो पड़ोसी दुकानदारों का व्यापार तबाह करेंगे। आपको याद होगा जब मनमोहन सिंह सरकार ने वालमार्ट को अनुमति दी थी तो किस तरह सुषमा स्वराज ने प्याज की मालाएं पहनकर गांधी जी की मूर्ति पर, संसद भवन के बाहर नाटक किया था और तमाम भाजपा के नेताओं ने इस तरह पेट्रोल के दाम बढ़ने पर सड़कों पर नाटक किया था।

आज विपक्ष क्यों नदारद है? अगर वे सोच रहे हैं कि मूर्खों ने इन्हें वोट दिया, अब झेले और आगे पछताएंगे, तो यहां मैं बता दूं कि जनता की याददाश्त बहुत कमजोर और छोटी होती है। सत्ता के अंतिम साल में ये फिर से कुछ नाटक करेंगे और जनता फिर से भाव विभोर होकर इन्हें वोट दे देगी। इसलिए यदि अभी से माहौल नहीं बनाया तो अगले सौ साल तक इन्हें विपक्ष में बैठाना पड़ेगा।”
इस समय वालमार्ट के 27 देशों में 58 बैनर के तहत करीब 11,300 रिटेल इकाइयां चल रही हैं। साथ ही दस देशों में ई-कॉमर्स वेबसाइट भी चल रही हैं। भारतीय खुदरा बाज़ार का आकार बड़ा है। बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप और रिटेलर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक वर्ष 2020 तक ये एक ट्रिलियन का बाज़ार हो जाएगा, जो कि वर्ष 2015 में 600 बिलियन डॉलर था। अमेज़न, फ्लिपकार्ट, वालमार्ट, रिलायंस जैसी कंपनियां इस बड़े बाज़ार का मुनाफा लेंगी। जबकि आर्थिक नीति ऐसी होनी चाहिए कि इसका फायदा छोटे-मझोले व्यापारी तक पहुंचे। वालमार्ट हर तरीक से भारतीय बाज़ार में अपनी पैठ बढ़ाना चाहती है। जबकि सरकारों की कोशिश अपने व्यापारियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने की होनी चाहिए।

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