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रामपुर से आज़म ख़ान की पत्नी को टिकट, क्या है सपा की सियासत?

रामपुर विधानसभा सीट से आज़म ख़ान नौ बार विधायक रहे हैं और फिलहाल दर्जनों मुकदमों का सामना कर रहे हैं, बीते संसद के सत्र में पीठासीन बिहार के शिवहर से सांसद रमादेवी को लेकर आज़म की टिप्पणी से उनकी किरकिरी भी खूब हुई थी।
azamkhan and his wife
Image courtesy: WikiBio

महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनावों के साथ ही उत्तर प्रदेश की 11 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। उत्तर प्रदेश के रामपुर सदर की विधानसभा सीट इस बार उपचुनावों में हॉट सीट बनी हुई है। समाजवादी पार्टी (सपा) का गढ़ मानी जाने वाली ये सीट बीते कई सालों से आज़म ख़ान की जीत का किला बन चुकी है। हालांकि आज़म ख़ान  के लोकसभा सांसद बन जाने के बाद से ये सीट खाली हो गई है लेकिन सपा अभी भी इस सीट पर आज़म के वर्चस्व को ही कायम रखना चाहती है।

बता दें कि रामपुर विधानसभा सीट से आज़म ख़ान नौ बार विधायक रहे हैं और फिलहाल दर्जनों मुकदमों का सामना कर रहे हैं, बीते संसद के सत्र में पीठासीनबिहार के शिवहर से सांसद रमादेवी को लेकर आज़म की टिप्पणी से उनकी किरकिरी भी खूब हुई थी। लेकिन इसके बावजूद नेता के तौर पर जनता के बीच उनके प्रभाव को कम नहीं आंका जा सकता। ऐसे में बीते रविवार समाजवादी पार्टी ने आज़म ख़ान की पत्नी तंजीन फातिमा को रामपुर से उम्मीदवार घोषित कर आज़म के गढ़ को बचाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दी है। तंजीन ने 30 सितंबर को अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया है। गौरतलब है कि रामपुर में 21अक्तूबर को उपचुनाव होने हैं, लेकिन राजनीति के गलियारों में इस सीट के समीकरण की चर्चा अभी से तेज हो गई है।

रामपुर विधानसभा के सियासी समीकरण

रामपुर विधानसभा सीट पर आज़ादी के बाद से अब तक मुसलमान नेता ही विधायक बनते रहे हैं। इस सीट के इतिहास पर नज़र डाले तो आज़म ख़ान यहां साल 1980 से लेकर अब तक लगातार चुनाव जीते हैं। सिर्फ एक बार 1996 में कांग्रेस के अफरोज़ अली खां ने उन्हें शिकस्त दी थी। इसके बाद से आज़म ने लगातार अपना लोहा मनवाया है। साल2017 में जब बीजेपी की सुनामी आई थी तब भी आज़म ख़ान अपनी और अपने बेटे की सीट बचाने में कामयाब रहे थे।

रामपुर सीट वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव परिणाम

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लेकिन इस बार उपचुनाव में बसपा अपने अस्तिव की लड़ाई लड़ रही है। रामपुर में बसपा ने कस्टम विभाग के पूर्व अधिकारी जुबैर मसूद खान को टिकट दिया है। वह यहां पर मुस्लिम प्रत्याशी उतार कर दलित मुस्लिम का गठजोड़ बनाकर जीत हासिल करने की जुगत में लगी है। रामपुर सीट को मुस्लिम-दलित बहुल माना जाता है। यहां करीब 52 प्रतिशत मुस्लिम और 17 प्रतिशत दलित मतदाता हैं। यहां मुस्लिम समुदाय के एक बड़े तबके का  साथ  आज़म ख़ान को मिलता रहा है लेकिन इस बार परिस्थितियां थोड़ी अलग हैं, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) भी पहली बार उपचुनाव के मैदान में है। बसपा ने पहले कभी किसी उपचुनाव में हिस्सा नहीं लिया। 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बसपा ने सीटवार निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन किया था। तो वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में लोकसभा की तीन सीटों और विधानसभा की एक सीट पर हुये उपचुनाव में बसपा ने सपा उम्मीदवारों को समर्थन दिया था।

हालांकि इस बार कांग्रेस ने भी रामपुर विधानसभा सीट से मुस्लिम उम्मीदवार उतार कर सपा और बसपा का खेल खराब करने की कोशिश की है। कांग्रेस ने  प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अरशद अली खां गुड्ड़ू को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। गुड्डू लंबे समय से कांग्रेस से जुड़े हुए हैं। वह 1985 में एनएसयूआई के अध्यक्ष थे। यूथ कांग्रेस में भी उन्होंने कई अहम जिम्मेदारियां संभालीं हैं। इसके बाद वह लगभग आठ सालों तक नगर अध्यक्ष रहे हैं। गुड्डू पहली बार किसी चुनाव में उतरे हैं।

आज़म ख़ान का यह किला फतेह करने के लिए रामपुर से भाजपा द्वारा मुस्लिम प्रत्याशी को उतारे जाने की अटकलें लगाई जा रही थीं लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। भाजपा ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए पार्टी के वरिष्‍ठ नेता भारत भूषण गुप्ता पर दांव खेला है। भारत भूषण गुप्ता 2012 में बसपा की टिकट पर  विधानसभा का चुनाव लड़े थे। इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए। भारत भूषण गुप्ता दो बार जिला पंचायत सदस्य रहे हैं और व्यापार मंडल से भी जुड़े रहे हैं। भारत भूषण गुप्ता की पत्नी दीपा गुप्ता बीजेपी से नगर पालिका का चुनाव लड़ चुकी हैं।

रामपुर विधानसभा सीट से उम्मीदवार

तंजीन फातिमा - समाजवादी पार्टी

अरशद अली खां- कांग्रेस

जुबैर मसूद - बसपा

भारत भूषण- बीजेपी

रामपुर के एक बीएसपी नेता ने न्यूज़क्लिक को बताया, “बहन मायावती जी ने जुबैर मसूद खान जी को प्रत्याशी बहुत सोच-समझकर बनाया है। हमारा मकसद इलाके में मुस्लिम और दलितों में समन्वय कर उनकी आवाज़ को मुख्य धारा में लाने की है। आज़म ख़ान ने रामपुर विधानसभा के विधायक के तौर पर केवल अपनी हुकुमत जमाई है, जनता के लिए उन्होंने कोई काम नहीं करवाया है।”

राजनीति के जानकारों का मानना है कि बीएसपी और कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी उतारने के कारण मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो सकता है। इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिल सकता है। हालांकि आज़म को मुकदमों पर सहानुभूति भी मिल सकती है। एसपी-बीएसपी का अलग लड़ना और कांग्रेस का मुस्लिम प्रत्याशी खड़ा करना उनके लिए कठनाईयां खड़ी कर सकता है।

राजनीति विश्लेषक राजीव कुमार ने न्यूज़क्लकि से बातचीत में बताया, आज़म ख़ान की खास बात रही है की उन पर मोदी लहर का असर देखने को नहीं मिलता। फिर चाहें विधानसभा हो या लोकसभा का चुनाव। आप इस बात को नहीं नकार सकते कि मुस्लिमों ने हमेशा उन्हें पसंद किया है। हांलाकि आज़म के बारे में ये भी एक सच्चाई है कि जितने लोग उन्हें पंसद करने वाले हैं, उतने ही उनके यहां पर विरोधी भी हैं।’

उन्होंने आगे कहा कि रामपुर में मुस्लिम वोट बहुत है इस कारण से यह कहना मुश्किल है कि वोटों का कितना बंटवारा हो पाएगा लेकिन अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो निश्चित ही बीजेपी को बढ़त मिल सकती है।

कई दशकों से रामपुर चुनावों पर नज़र रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर जोशी का कहना है, 'रामपुर की सीट सपा के साथ-साथ आज़म ख़ान की भी प्रतिष्ठा की सीट है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जब पूरे देश में मोदी सुनामी देशने को मिली तब भी आज़म ने अपनी सीट अच्छे मार्जिन से जीती थी। 2017 में भी बीजेपी उनके किले में सेंध नहीं लगा पाई और उन्होंने अपनी और अपने बेटे की सीट पर जीत हासिल की थी। आप माने या ना माने आज भी रामपुरवासियों के बीच आज़म की अच्छी साख है।'

उमाशंकर जोशी का कहना है कि इस समय आज़म भले ही प्रशासनिक और सरकारी घेराबंदी में हैं लेकिन उनका प्रभाव कम नहीं हुआ है। ऐसे में यह उनकी नाक का सवाल है। बीजेपी इस सीट को हर हाल में जीतना चाहती है। ऐसे में यहां एक दिलचस्प लड़ाई होने की संभावना है।

समाजवादी पार्टी की सियासत

बता दें कि तंजीन फातिमा राज्यसभा सांसद हैं और उनका कार्यकाल नवंबर 2020 में खत्म हो रहा है। अगले साल तंजीन समेत समाजवादी पार्टी के पांच सदस्य राज्यसभा से रिटायर हो जाएंगे और यदि पार्टी के मौजूदा विधायकों की संख्या देखें तो सपा एक से ज्यादा सदस्य को शायद ही राज्यसभा भेज सके। ऐसे में सपा के लिए तंजीन को रामपुर की सीट से विधानसभा भेजना पार्टी की सोची- समझी रणनीति हो सकती है।

लोकसभा चुनावों में कई दिग्गज़ों के किले ढाहने वाली बीजेपी अब आज़म के गढ़ रामपुर में अपना दमखम लगा रही है। इसलिए समाजवादी पार्टी पर अब अपना मौजूदा गढ़ बचाने की भी मज़बूरी है। जहां एक ओर आज़म के सामने अपनी सीट बचाने की चुनौती है, वहीं समाजवादी पार्टी के सामने अपना वोटबैंक सुरक्षित रखने की भी चुनौती है।

ये समझना मुश्किल नहीं कि आज़म की छोड़ी सीट पर उनकी पत्नी को उम्मीदवार बनाकर समाजवादी पार्टी की एक तीर से दो निशाने साध रही है। एक ओर चुनाव में पार्टी को आज़म ख़ान के प्रभाव का सीधा फायदा मिलेने की उम्मीद है तो वहीं दूसरी ओर पार्टी इसे चुनाव में सहानुभूति फैक्टर के तौर पर भुनाने की भी कोशिश करेगी और हो सकता है कि अगर आज़म ख़ान सीट बचा ले गए तो जनसमर्थन पर मुहर के जरिए उनकी मुश्किलें कम भी हो सकती हैं।

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