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भारत
राजनीति
दो कदम, दो पहलू : जो पश्चिम बंगाल के चुनावी रुख़ को बदल सकते हैं?
बंगाल में मुस्लिम समुदाय के प्रभावशाली नेताओं का कहना है कि वे राज्य में आपसी सद्भाव को कायम रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं और इस सद्भाव को सांप्रदायिक ताकतों द्वारा तबाह नहीं होने देंगे।
रबींद्र नाथ सिन्हा
16 Jan 2021
Translated by महेश कुमार
 बंगाल के चुनावी रुख़

कोलकाता: आने वाले हफ्तों में पश्चिम बंगाल की राजनीति पर दो महत्वपूर्ण घटनाक्रमों का असर पड़ने की उम्मीद है-एक की घोषणा 21 जनवरी को की जाएगी और दूसरे की इस महीने के पहले सप्ताह में गुजरात के अहमदाबाद में शुरूआत हो चुकी है।

21 जनवरी को हुगली जिले के जाने-माने मुस्लिम तीर्थस्थल फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी एक नई राजनीतिक पार्टी की शुरुआत की घोषणा करेंगे, जिसका आगामी विधानसभा चुनावों पर कुछ असर पड़ने की उम्मीद है। राज्य में मुसलमान मतदाताओं की बड़ी तादाद हैं।

दूसरी ओर, अहमदाबाद में 5 जनवरी को आयोजित तीन दिवसीय समनवय बैठक में, जैसा कि समझा जाता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शीर्ष नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा को परामर्श दिया है कि वे तृणमूल कांग्रेस (TMC) के भगोड़े नेताओं या सदस्यों को पार्टी में शामिल करने में संयम बरते और कार्यकर्ताओं और भगोड़े उम्मीदवारों की संख्या को सिर्फ इसलिए न बढ़ाएँ कि बाद में उनके कुछ आधार को देखते हुए गर्मियों में होने वाले विधानसभा चुनावों में उम्मीदवारों के रूप में खड़ा करा जा सके।  

नया राजनीतिक मोर्चा

सामान्य हालात में, पश्चिम बंगाल के गठन में कोई मुस्लिम मौलवी किसी राजनीतिक पार्टी की घोषणा खासकर उस राज्य में जिसकी मुस्लिम आबादी काफी बड़ी है, उसने उतना ध्यान आकर्षित नहीं किया होता जितना कि अब्बास द्वारा उठाए कदम हो रहा है, क्योंकि अब लग ये रहा है कि अब्बास ने पीरजादा तवहा सिद्दीकी से नाता तोड़ लिया है और जो फरफ़ुरा शरीफ़ की प्रमुख हस्ती हैं। काफी लंबे अरसे से सिद्दीकी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के समर्थक रहे हैं।

हाल ही के दिनों में, पीरज़ादा अब्बास ने दो किस्म के संकेत दिए हैं; एक, कि उनकी पार्टी किसी बड़ी राष्ट्रीय स्तर की पार्टी जिसकी मजबूत धर्मनिरपेक्ष साख पर हो, से जुड़ने में दिलचस्पी रखती है, और दूसरी, कि उनकी पार्टी एक ऐसा मंच होगा, जो पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों को इकट्ठा करेगा फिर चाहे वे किसी भी धर्म या विश्वास से नाता रखते हों। इस संदर्भ में, इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि कांग्रेस के दो वरिष्ठ नेता जिसमें अधीर रंजन चौधरी और अब्दुल मन्नान ने हाल के हफ्तों में अब्बास से मुलाकात की थी। मन्नान ने कुछ दिन पहले मौलवी के साथ अलग से मुलाकात की थी।

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्य सचिव सूर्यकांता मिश्रा ने हाल ही में एक टीवी चर्चा में एक महत्वपूर्ण बात कही कि “अब्बास” ने कहा है कि वे सामाजिक रूप से उत्पीड़ित और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों के साथ अपनी पार्टी का आधार बनाएंगे। मिश्रा से एंकर ने जब फुरफुरा की प्रस्तावित पार्टी के साथ असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लीमीन के साथ जाने पर माकपा नेता मिश्रा से सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि हम जानते हैं कि बिहार में क्या हुआ था। ओवैसी ने यह स्पष्ट कर दिया है कि एआईएमआईएम अब्बास के नेतृत्व में पश्चिम बंगाल में चुनाव लड़ेगी और भाषा की बाधा को देखते हुए, वे कम उम्मीदवारों को मैदान में उतारेगी।

मुस्लिम किस रास्ते जाएंगे?

फुरफुरा शरीफ की बड़ी हस्तियों में स्पष्ट विभाजन और एआईएमआईएम कारक को ध्यान में रखते हुए, न्यूज़क्लिक ने मुस्लिम समुदाय की कई प्रभावशाली व्यक्तियों से बात की ताकि उनकी सोच और उभरती स्थिति का आकलन किया जा सके। 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, पश्चिम बंगाल में 27.1 प्रतिशत मुस्लिम आबादी थी जो कि असम से पीछे है, जिसकी मुस्लिम आबादी 34.22 प्रतिशत थी। यदि केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप (96.68 प्रतिशत), और जम्मू और कश्मीर (68.31 प्रतिशत) की मुस्लिम आबादी को मान ले तो पश्चिम बंगाल चौथे स्थान पर आता है। इसके अलावा, पश्चिम बंगाल के तीन जिलों- मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर- में उनकी आबादी की हिस्सेदारी 50 प्रतिशत है। अन्य जिलों में भी मुस्लिमों की संख्या बहुत अधिक है। कुल मिलाकर, वे 90 निर्वाचन क्षेत्रों के नतीजों को प्रभावित करने का दम रखते हैं, जो कुल 294 सीटों का 30 प्रतिशत सीटों से अधिक है। इस बात को सभी व्यापक रूप से मानते हैं कि पिछली जनगणना के बाद गुजरे 10 वर्षों में, जनसंख्या बढ़ी ही है।

अखिल भारतीय इमाम मुअज्जिन और समाज कल्याण संगठन की पश्चिम बंगाल शाखा के अध्यक्ष मौलाना शफीक कासमी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि राज्य के लोग दृष्टिकोण में धर्मनिरपेक्ष हैं और विभाजनकारी ताकतें अपने खेल में सफल नहीं होंगी। “टीएमसी मंत्रालय ने बहुत काम किया है; कुछ कमियाँ हैं जो रहेंगी। एआईएमआईएम जांच कर रही है कि वह कितने पानी में है, ”कासमी ने उक्त बातें बताई जो कोलकाता में प्रसिद्ध नखोदा मस्जिद के इमाम और अखिल भारतीय मिल्ली काउंसिल के उपाध्यक्ष भी हैं।

राष्ट्रीय इमाम संगठन की मुर्शिदाबाद इकाई के महासचिव, अब्दुर रज़्ज़ाक़ ने क़ासमी के आकलन को सही बताया और दावा किया कि उनकी कल्याणकारी गतिविधियों के लाभार्थियों में हमेशा हिंदू, आदिवासी और अन्य धर्मों के लोग भी शामिल रहते हैं। “हमारे धर्मनिरपेक्ष रुख के कारण, सांप्रदायिक ताक़तें हमारे जिले में अपना खेल जमाने में सफल नहीं होती हैं। हम सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखने के मामले में बहुत सचेत हैं।

“बंगाली भाषी मुसलमान राज्य में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं। जमायत उलेमा-ए-हिंद की राज्य इकाई के महासचिव अब्दुफ़ सलाम ने कहा, "सांप्रदायिक ताकतें उन्हें विभाजित नहीं कर सकती हैं।"

सांप्रदायिक सौहार्द के पहलू से परे जिस पर वे सब एकमत हैं, उन्होंने कुछ दिलचस्प टिप्पणियां कीं। कासमी ने कहा कि वे बैलेट पेपर प्रणाली को वापस लाने के पक्ष में हैं। “समय-समय पर ईवीएम तंत्र की गड़बड़ी सामने आती है। लेकिन हम इससे चिपके हुए हैं। बिहार के कुछ 25 निर्वाचन क्षेत्रों के परिणामों पर संदेह होता है।

रज़्ज़ाक़ ने दो बातें कही- सबसे पहली बात तो  फुरफुरा की परिस्थि प्रमुख हस्तियों के टकराव को दर्शाती है और इस पर अधिक ध्यान देने की जरूरत नहीं है; दूसरे, मुसलमानों को अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए अधिक अवसर मिलने चाहिए।

सलाम ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "हम नियमित रूप से यह आकलन करने की कोशिश कर रहे हैं कि राज्य को 'सोनार बांग्ला' बनाने के भाजपा के शोर-शराबे वाले अभियानों और आश्वासनों से हिंदू समुदाय कितना प्रभावित हो रहा हैं।" यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि उनका संगठन टीएमसी से साथ गठबंधन में है और संगठन के अध्यक्ष सिद्दीकुल्लाह चौधरी वर्तमान सरकार में जन शिक्षा और पुस्तकालय सेवाओं के मंत्री हैं।

बिना दलबदलुओं के भाजपा की जीत की कोशिश 

यह बात पूरी तरह से स्पष्ट है कि राज्य के मुस्लिम संगठन भाजपा के आक्रामक अभियान पर नज़र गढ़ाए हुए है क्योंकि भाजपा का पश्चिम बंगाल में पहली बार सत्ता हथियाने का इरादा है। वे पहले से ही लोगों को सचेत करने का काम कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मालूम है कि अगर भाजपा सत्ता में आने में सफल हो गई तो उसके खतरे भयानक होंगे। "वे धर्मगुरुओं/मौलवियों से चाहते हैं कि वे मतदाताओं का मार्गदर्शन बहुत ही चतुराई से करें"-मुर्शिदाबाद जिले के बेरहामपुर में 10 जनवरी को आयोजित जनसभा में यह जोरदार दलील दी गई थी, जहां कांग्रेस नेता अधीर चौधरी मौजूद थे, जो लोकसभा में इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, और उनका यहाँ काफी प्रभाव भी है।

जानकार सूत्रों का कहना है कि अहमदाबाद की बैठक में, आरएसएस के शीर्ष नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा नेता टीएमसी से दलबदलुओं को लेने में सावधानी बरतें, ताकि संघ परिवार के "चाल, चरित्र और चेहरे" को नुकसान न हो। एक स्क्रीनिंग कमेटी बनाई गई है जिसमें अनुभवी संघ के पदाधिकारी शामिल हैं, वे पार्टी की सदस्यता मानने वालों के अपराध रिकॉर्ड का आकलन करेंगे, और स्क्रीनिंग पैनल की संतुष्टि के बाद ही पार्टी में शामिल किया जाएगा। 

पश्चिम बंगाल के प्रांत कार्यवाहक जिष्णु बसु ने न्यूज़क्लिक को बताया कि भाजपा पहले के मुक़ाबले राज्य में बढ़ी है और पार्टी अपनी जरूरतों का ध्यान रखने के काबिल है। लेकिन फिर भी यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि एक संतुलित दृष्टिकोण लिया जाए और यदि फिर भी स्थिति आरएसएस के हस्तक्षेप की मांग करती है, तो उसे पूरा किया जाएगा। 

अहमदाबाद में हुए कॉन्क्लेव की इस पृष्ठभूमि के विपरीत, यह उल्लेख किया जा सकता है कि नड्डा 9 जनवरी को, यानी अहमदाबाद बैठक के बाद पार्टी के ’कनेक्ट विद फार्मर्स प्रोग्राम’ के लिए पश्चिम बंगाल में आए थे। गौरतलब है कि कोई “स्विच-ओवर नहीं था और इसलिए, भाजपा के झंडे देने का कोई औपचारिक आयोजन नहीं किया गया”। राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार अगर बीजेपी नेतृत्व अपने वैचारिक मार्गदर्शन का पालन करता है, तो ममता और उनकी पार्टी के लिए आरएसएस का रुख सुकून देने वाला होना चाहिए।

जीष्णु बसु ने कहा, "बांग्लादेश से घुसपैठ की बढ़ती घटनाओं और इस्लामिक कट्टरपंथ के उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए लोगों में जागरूकता बढ़ाना पार्टी की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए।"

इस बीच, चुनाव आयोग सुदीप जैन, डिप्टी ईसी के माध्यम से विभिन्न अंतरालों पर राज्य में मौजूदा हालात का आकलन कर रहा है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Two Moves, Two Sides: Which will Change Political Wind in Election-bound West Bengal?

West Bengal election
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