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आख़िर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ कैसे हो गया?

अमेरिकी शोध संस्था फ्रीडम हाउस के मुताबिक भारत में आम आदमी के अधिकारों का हनन हो रहा है और मूलभूत स्वतंत्रताओं को छीना जा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों, ग़ैर-सरकारी संगठनों और सरकार की आलोचना करने वाले अन्य लोगों को परेशान किए जाने की घटनाओं में मोदी शासन में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है।
आख़िर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अब ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ कैसे हो गया?
फाइल फोटो, साभार : economictimes

‘सबका साथ-सबका विकास’ की बात करने वाली केंद्र की मोदी सरकार एक बार फिर अपने ‘नेगेटीव विकास’ को लेकर चर्चा में है। अमेरिका के प्रतिष्ठित थिंक टैंक फ्रीडम हाउस ने अपनी 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड-2021’ की रिपोर्ट में भारत के फ्रीडम स्कोर को घटा दिया है। इस रिपोर्ट में भारत का दर्जा पिछले साल के ‘फ्री’ यानी स्वतंत्र से ‘पार्टली फ्री’ यानी आंशिक रूप से स्वतंत्र कर दिया गया है। इस ताजा रिपोर्ट में संस्था ने भारत में अधिकारों और आज़ादी में आई कमी को लेकर भी गंभीर चिंता व्यक्त की है।

आपको बता दें कि 'फ्रीडम हाउस' एक गैर-सरकारी संगठन है, जो अमेरिकी सरकार द्वारा वित्तपोषित है। संस्थान हर साल 'फ्रीडम इन द वर्ल्ड' रिपोर्ट निकालता है। इस रिपोर्ट में दुनिया के अलग अलग देशों में राजनीतिक आजादी और नागरिक अधिकारों के स्तर की समीक्षा की जाती है।

इस रिपोर्ट में कुछ चुनिंदा जगहों को मानवीय और राजनीतिक स्वतंत्रता के कई मानकों के आधार पर भी परखा जाता है। सभी मानकों के आधार पर इस रिपोर्ट में देशों को स्कोर दिया जाता है। 2021 के अंक में 195 देशों और 15 इलाकों में 1 जनवरी 2020 से लेकर 31 दिसंबर 2020 तक हुए घटनाक्रमों का विश्लेषण किया गया है।

इस साल की रिपोर्ट में भारत के बारे में क्या लिखा है?

संस्थान ने इस साल की रिपोर्ट में भारत के बारे में कहा है कि भारत में एक बहुपार्टी लोकतंत्र है, बावजूद इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार ने भेदभाव वाली नीतियों और मुस्लिम आबादी को प्रभावित करने वाली बढ़ती हिंसा की अगुवाई की है।

बोलने की आज़ादी पर अंकुश और असहमति की आवाज़ दबाने की कोशिश

रिपोर्ट के अनुसार 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ही देश में राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में कमी आई है। संस्था का आंकलन है कि भारत में मानवाधिकार संगठनों पर दबाव बढ़ा है, बुद्धजीवियों और पत्रकारों को डराने का चलन बढ़ा है और विशेष रूप से मुसलमानों को निशाना बना कर कई हमले किए गए हैं।

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रिपोर्ट में लिखा है, "भारत का संविधान नागरिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी और धार्मिक आज़ादी शामिल हैं। लेकिन, पत्रकारों, ग़ैर-सरकारी संगठनों और सरकार की आलोचना करने वाले अन्य लोगों को परेशान किए जाने की घटनाओं में मोदी शासन में बहुत इज़ाफ़ा हुआ है।"

देश-द्रोह के क़ानून के दुरुपयोग का ज़िक्र

रिपोर्ट में कहा गया है कि राजनीतिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रता में गिरावट 2019 में मोदी के दोबारे चुने जाने के बाद ही तेज हो गई थी। संस्था देशों को 25 मानकों पर अंक देती है, जिनमें आज़ादी और अधिकारों से जुड़े कई सवाल शामिल हैं। आम लोगों द्वारा स्वतंत्रता से और बिना किसी डर के अपने विचार व्यक्त करने के सवाल पर में हाल के वर्षों में कई लोगों के खिलाफ राजद्रोह जैसे आरोप लगाने के चलन में आई बढ़ोतरी की वजह से भारत के अंक गिर गए हैं।

इस रिपोर्ट में भारत के देशद्रोह (राजद्रोह) के क़ानूनों के कथित तौर पर दुरुपयोग का ज़िक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों, छात्रों और आम नागरिकों को इन क़ानूनों का निशाना बनाया गया है।

गैर-सरकारी संगठनों के काम करने की स्वतंत्रता पर सवाल

गैर सरकारी संगठनों को काम करने की स्वतंत्रता के सवाल पर भी विदेश से पैसे लेने के कानून में बदलाव और एमनेस्टी के दफ्तर भारत में बंद हो जाने की वजह से रिपोर्ट में भारत के अंक गिर गए हैं।

प्रेस की आज़ादी

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि मोदी सरकार में प्रेस की आजादी पर हमले नाटकीय रूप से बढ़े और अधिकारियों ने मीडिया की आलोचनात्मक आवाज़ों को खामोश करने के लिए सुरक्षा, मानहानि, देशद्रोह और हेट स्पीच के कानूनों और साथ ही अवमानना के आरोपों का इस्तेमाल किया।

रिपोर्ट ने रिपब्लिक टीवी के एंकर अर्नब गोस्वामी की बार्क के पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी पार्थो दासगुप्ता के साथ कथित चैट के खुलासे के संदर्भ में कहा, ‘वहीं जहां एक तरफ राजनेताओं, बिजनेस अधिकारियों और लॉबिस्टों तो दूसरी तरफ प्रमुख मीडिया हस्तियों और मीडिया आउटलेट्स के मालिकों के बीच घनिष्ठ संबंधों के खुलासे ने प्रेस में जनता के विश्वास को चोट पहुंचाई है।’

न्यायिक दबाव पर भी उठे सवाल

अदालतों के स्वतंत्र होने के सवाल पर भी भारत के अंक गिरे हैं। इसके पीछे देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को राज्यसभा का सदस्य बनाना, सुप्रीम कोर्ट द्वारा सरकार के पक्ष में कई फैसले देने का पैटर्न और सरकार के खिलाफ फैसला देने वाले एक जज के ट्रांसफर जैसी घटनाओं को गिनाया गया है।

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फरवरी 2020 में दिल्ली हाईकोर्ट से जस्टिस एस. मुरलीधर के स्थानांतरण का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है, ‘एक मामले में नई दिल्ली में दंगों- जिसमें 50 से अधिक लोग मारे गए, जिनमें ज्यादातर मुसलमान थे, के दौरान कोई कार्रवाई न करने के लिए पुलिस को फटकार लगाने के तुरंत बाद एक न्यायाधीश का तबादला कर दिया गया।’

इस रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के लव जिहाद कानून पर भी ध्यान देने की बात कही गई है, जिसमें अंतरधार्मिक विवाह के जरिये होने वाले जबरन धर्म परिवर्तन पर रोक लगाने की बात कही गई थी और कथित तौर पर हिंदू महिलाओं को इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के लिए कई मुस्लिम पुरुषों को गिरफ्तार किया गया था।

एक समुदाय के साथ भेदभाव की बात

फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में नागरिकता क़ानून (सीएए) में हुए बदलावों को भेदभाव वाला बताया गया है और कहा गया है कि पिछले साल फ़रवरी में इस क़ानून के चलते हुए विरोध-प्रदर्शनों में हिंसा हुई। इसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए जिनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि हालांकि, भारत आधिकारिक तौर पर सेक्युलर राज्य है, लेकिन हिंदू राष्ट्रवादी संगठन और कुछ मीडिया आटलेट्स मुस्लिम-विरोधी विचारों को प्रमोट करते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस गतिविधि को बढ़ावा देने का आरोप नरेंद्र मोदी की सरकार पर भी लगता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि गायों के साथ दुर्व्यवहार या गोहत्या के लिए मुसलमानों पर हमले किए जाते हैं। रिपोर्ट में भारत में कोरोना वायरस महामारी से निबटने के लिए पिछले साल लगाए गए लॉकडाउन के चलते प्रवासी मज़दूरों को हुई दिक्क़तों का भी ज़िक्र किया गया है। साथ ही कहा गया है कि अक्सर मुसलमानों को वायरस फैलाने के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया था। इन आरोपों को लगाने वालों में सत्ताधारी पार्टी के अधिकारी भी शामिल रहे हैं।

इन उदाहरणों को देकर रिपोर्ट में कहा गया है कि "लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रबल समर्थक और चीन जैसे देशों के खिलाफ खड़ा होने वाला देश बनाने की जगह, मोदी और उनकी पार्टी भारत को तानाशाही की तरफ ले जा रहे हैं।" रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यह और ज्यादा चिंताजनक इसलिए हैं क्योंकि भारत के ‘आंशिक रूप से स्वतंत्र’ श्रेणी में आने के बाद अब दुनिया की 20 प्रतिशत से भी कम आबादी स्वतंत्र देशों में बची है। यह 1995 के बाद अभी तक का सबसे कम अनुपात है।

कश्मीर का दर्जा पिछले साल के जैसे ही "स्वतंत्र नहीं"

कश्मीर पर फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट में ‘भारतीय कश्मीर’ पर एक अलग रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट में कश्मीर का दर्जा पिछले साल के जैसे ही "स्वतंत्र नहीं" रखा गया है। पिछले साल यह स्कोर 28 था जो कि अब घटकर 27 रह गया है। 2013 से 2019 के बीच कश्मीर को आंशिक स्वतंत्र का दर्जा दिया गया था। इस साल की रिपोर्ट में कश्मीर में राजनीतिक अधिकारों को 40 में से 7 नंबर दिए  गए हैं, जबकि नागरिक अधिकारों में 60 में से 20 अंक मिले हैं।

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क्या है भारत का अलग-अलग पैमानों पर स्कोर?

भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र का दर्जा देते हुए फ्रीडम हाउस की फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2021 रिपोर्ट में 100 मानकों पर भारत का स्कोर 67 तय किया गया है। पिछले साल भारत का स्कोर 70 था और इसका दर्जा फ्री यानी स्वतंत्र का था।

रिपोर्ट में राजनीतिक अधिकारों के लिए 40 अंकों में से भारत को 34 नंबर दिए गए हैं। जबकि नागरिक अधिकारों में 60 अंकों में से भारत को 33 नंबर ही मिले हैं।

इंटरनेट की आज़ादी को लेकर भारत का स्कोर 51 रहा और इसमें भी भारत को आंशिक रूप से स्वतंत्र का दर्जा दिया गया है।

प्रेस की आज़ादी के विषय पर भारत का स्कोर 4 में से 2 है। फ्रीडम हाउस ने कहा है कि मोदी सरकार के तहत हालिया वर्षों में प्रेस की आज़ादी पर हमले नाटकीय रूप से बढ़े हैं।

धार्मिक आज़ादी जिसमें लोगों को अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त करने में मिलने वाली आज़ादी का जिक्र है, इसमें भारत को 4 में से 2 नंबर मिले हैं।

इस रिपोर्ट के बारे में अमेरिका का क्या कहना है?

आज़ादी के मामले में इस रिपोर्ट में अमेरिका की भी आलोचना की गई है। यूएसए की नई प्राथमिकताओं के बारे में अपने पहले प्रमुख नीतिगत भाषण में विदेश सचिव एंटनी ब्लिंकन ने रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए कहा, ‘हम लोकतंत्र का नवीनीकरण करेंगे, क्योंकि यह खतरे में है। स्वतंत्र वॉचडॉग समूह फ्रीडम हाउस की एक नई रिपोर्ट बहुत ही रोमांचक है। दुनियाभर में अधिनायकवाद और राष्ट्रवाद बढ़ रहा है और सरकारें कम पारदर्शी हो रही हैं और लोगों का विश्वास खो दिया है।’

रिपोर्ट में कहा गया, ‘अल्जीरिया, गिनी और भारत जैसे देशों की सरकारें, जो  2019 के विरोध प्रदर्शनों से सकते में आ गई थीं, दोबारा पकड़ बनाती दिखीं, प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया, नए कड़े कानून पारित हुए और कुछ मामलों में क्रूर कार्रवाई का सहारा लिया, जिसके लिए उन्हें कुछ अंतरराष्ट्रीय नतीजों का सामना करना पड़ा।’

क्या ऐसे बनेंगे विश्वगुरु?

गौरतलब है कि भारत को विश्वगुरु बनाने का सपना दिखाने वाली मोदी सरकार इस रिपोर्ट के आने के बाद नई आलोचनाओं में घिर गई है। सरकार से फिलहाल इस पर जबाव देते नहीं बन रहा है, लेकिन जानकारों का मानना है कि फ्रीडम हाउस की रिपोर्ट ऐसी पहली रिपोर्ट नहीं है जिसमें भारत की रैंकिंग नीचे आई है। पिछले कुछ साल से लगातार अलग-अलग रिपोर्ट्स में भारत की रैंकिंग में गिरावट आ रही है। देश में बढ़ते असंतोष के बीच वर्ल्ड बैंक, वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम, इकनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल समेत 40 ऐसे इंडेक्स हैं जहां पर 2014 से भारत की रेटिंग नीचे आई है।

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