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यूपी का राजनीतिक गुणा-भाग : सपा-बसपा के पास खोने को कुछ भी नहीं...जो होगा प्लस होगा

राजनीतिक तौर पर यूपी के रुझान को समझने के लिए आइए इसे छह हिस्सों- पश्चिम उत्तर प्रदेश, रुहेलखंड, अवध, दोआब, पूर्वांचल और बुंदेलखंड में बांटते हुए 2014 लोकसभा चुनाव के आंकड़ों पर नज़र डालते हैं।
सांकेतिक तस्वीर
चित्रांकन : विकास ठाकुर

तुम्हारे पास खोने को कुछ भी नहीं है, सिवाय अपनी जंज़ीरों के...और पाने के लिए पूरी दुनियामज़दूरों के संदर्भ में कार्ल मार्क्स का ये प्रसिद्ध कथन अक्सर दोहराया जाता है। इसी को अगर कुछ बदलकर यूपी के संदर्भ में कहा जाए तो ये सच है कि समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के पास अब खोने को कुछ नहीं है और पाने को पूरा यूपी है।

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के संदर्भ में यह बात उलट जाती है और उसके पास यूपी में अब कुछ भी अतिरिक्त पाने को नहीं है, बल्कि खोने को पूरी सत्ता है। बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में अपना अधिकतम पा लिया। 80 में से 71 सीट। दो सीट उसके सहयोगी दल अपना दल को मिलीं। जो अब उससे छिटकने को तैयार दिखता है। इसके विपरीत समाजवादी पार्टी ने 2017 में न सिर्फ प्रदेश की सत्ता गंवाई बल्कि 2014 के लोकसभा चुनाव में महज़ 5 सीट पाकर हाशिये पर सिमट गई। बहुजन समाज पार्टी का हाल तो और भी बुरा हुआ और 2014 के चुनाव में वह 19.6 प्रतिशत वोट पाकर भी एक भी सीट न जीत पाई और इस तरह बसपा 16वीं लोकसभा में अपना खाता तक नहीं खोल पाई।

हालांकि दोनों दलों सपा-बसपा ने एक समय अलग-अलग भी अपनी मजबूत मौजूदगी दर्ज की है, लेकिन बदलती राजनीतिक परिस्थितियों में वे अपनी-अपनी हैसियत बरकरार रखने में नाकाम रहे। यही वह वजह है जिसने उन्हें अब एक साथ आने को मजबूर किया है, या जिसकी वजह से उनकी साथ आने की समझदारी बनी है। इससे पहले सपा और बसपा सन् 1993 में साथ आईं थीं। उस समय बसपा प्रमुख कांशीराम और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने समझौता किया था और उसने यूपी की राजनीति की दिशा बदलते हुए पूरे देश पर प्रभाव डाला था।

लेकिन उसके बाद दुर्भाग्य से 2 जून 1995 का लखनऊ गेस्ट हाउस कांड हो गया, जिसने दोनों पार्टियों के बीच ऐसी खाई बनाई जो करीब 25 बरस बाद पाटी जा सकी है।

शायद ये देश की असधारण परिस्थितयों का ही नतीजा है जो बसपा प्रमुख मायावती ने साफ लफ़्ज़ों में कहा कि उन्होंने जनहित को गेस्ट हाउस कांड से ऊपर रखते हुए सांप्रदायिकता के खिलाफ समझौते का फैसला लिया है। लगभग यही परिस्थितियां 1993 में थीं। उस समय यूपी में बाबरी मस्जिद गिराई जा चुकी थी, और देश के साथ पूरा प्रदेश सांप्रदायिकता की आग में झुलस रहा था। उस समय दलितों और पिछड़ों के इस गठबंधन का उदय हुआ और यूपी की राजनीति पूरी तरह बदल गई।

और अब जब ये दोनों दल साथ आए हैं तो क्या एक बार फिर देश-प्रदेश की राजनीति बदलेगी। मायावती ने तो इस गठबंधन को एक नई राजनीतिक क्रांति करार दिया और कहा है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की नींद उड़ा देगा।

दावों और बयानों से अलग ये कैसे संभव होगा, आंकड़ों की नज़र से इसे देखना-समझना होगा। समझना होगा कि यूपी में अकेले 71 सीटों (वतर्मान में 68 सीट, 2018 में हुए तीन उपचुनाव गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में बीजेपी की हार हुई है।) पर काबिज़ हुई बीजेपी को ये गठबंधन कैसे परास्त कर सकता है। इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण तो पिछले इन्हीं तीनों उपचुनाव ने पेश किया है। लेकिन इसके अलावा क्या?  क्या गोरखपुर, फूलपुर पूरी यूपी में दोहराया जा सकेगा।

याद रखें कि इस गठबंधन से कांग्रेस बाहर है। हालांकि वह गोरखपुर-फूलपुर उपचुनाव में भी बाहर थी और उसने गठबंधन उम्मीदवार के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े किए थे।

इसे भी पढ़ें : यूपी : सपा-बसपा गठबंधन के साथ बीजेपी की उल्टी गिनती शुरू!

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यूपी का राजनीतिक गणित और गुणा-भाग समझने के लिए इसे मोटे तौर पर चार भागों पश्चिम उत्तर, पूर्वांचल, अवध या मध्य यूपी और बुंदेलखंड में बांटा जा सकता है। इस प्रदेश को इसी तरह चार प्रदेशों में बांटने की वकालत मायावती भी करती रही हैं, क्योंकि जनसंख्या के तौर पर तो यूपी देश का सबसे बड़ा राज्य तो है ही, क्षेत्रफल में भी चौथा सबसे बड़ा राज्य है। इन क्षेत्रों की एक-दूसरे से भगौलिक दूरी के साथ सांस्कृतिक विविधता भी काफी है। यही वजह है कि राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के अध्यक्ष अजित सिंह तराई के इलाकों के साथ पश्चिम उत्तर प्रदेश को हरित प्रदेश के नाम से अलग करने की मांग करते रहे हैं। (याद रखें कि उत्तराखंड भी इसी उत्तर प्रदेश से अलग हुआ है।)

क्षेत्रीय विविधता है तो राजनीतिक विविधता भी होगी। और यही वजह है कि उत्तर प्रदेश का राजनीतिक अध्ययन करने के लिए इसे चार हिस्सों में बांटकर वोट के रुझान को समझा जा सकता है।

उत्तर प्रदेश में इस समय कुल 75 ज़िलें हैं और लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं। आमतौर पर इनमें 22 ज़िले पश्चिमी उत्तर प्रदेश, 32 ज़िले पूर्वांचल या पूर्वी उत्तर प्रदेश, 14 ज़िले अवध या मध्य उत्तर प्रदेश और 7 ज़िले बुंदेलखंड में आते हैं।

इनमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जिसे जाट बाहुल्य या गन्ना बेल्ट बोला जाता है, में बहुजन समाज पार्टी का दबदबा रहा है और पूर्वांचल में सपा अपना दावा ठोंकती रही है।  

राजनीतिक तौर पर यूपी के रुझान को और विस्तार और सरल ढंग से समझने के लिए राजनीतिक जानकार और सर्वेक्षणकर्ता इसे चार की जगह छह हिस्सों में बांटते हैं। इनमें पश्चिम उत्तर प्रदेश, पूर्वांचल और बुंदेलखंड के अलावा रुहेलखंड, अवध और दोआब का हिस्सा है।  

सबसे पहले आपको पूरे यूपी की स्थिति बताते हैं जो 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान रही।

यूपी- कुल सीट - 80

दल         सीट     वोट प्रतिशत

बीजेपी     71        42.3%

सपा        05        22.2%

कांग्रेस     02        07.5%

बसपा      00        19.6%

इस वोट प्रतिशत का विश्लेषण करें तो मोदी लहर के चलते बीजेपी ने 42.2 प्रतिशत वोट हासिल करके 71 सीटें जीत लीं लेकिन सपा और बसपा ने भी मिलकर उससे बहुत कम वोट नहीं पाया। दोनों को मिलाकर 41.8 प्रतिशत वोट मिले। ये अलग बात है कि ये वोट प्रतिशत सीटों में ट्रांसलेंट नहीं हो पाया और सपा को केवल 5 और बसपा को शून्य यानी एक भी सीट नहीं मिली।

'सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डवलपिंग सोसायटी' (सीएसडीएस) से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक यूपी को 6 हिस्सों में बांटकर देखते हैं कि इन क्षेत्रों में 2014 के लोकसभा चुनाव में विभिन्न दलों की स्थिति क्या रही।

पूर्वांचल- कुल सीट - 30

दल         सीट    वोट प्रतिशत (%)

कांग्रेस      0              6.0

बीजेपी      29            41.2

बसपा        0             20.6

सपा          1            22.0

अन्य          0           10.0

पूर्वांचल में बीजेपी ने 41.2 प्रतिशत मत पाकर 29 सीटें जीत लीं और सपा और बसपा ने विपक्ष के वोटों का बंटवारा करते हुए कुछ हासिल नहीं किया। सपा को 22 प्रतिशत वोट पाकर केवल एक सीट मिली और बसपा 20.6 प्रतिशत वोट हासिल कर भी एक भी सीट नहीं जीत पाई। अब अगर दोनों के वोट मिल जाएं (22+20.6) तो  दोनों 42.6 फीसदी वोट पाकर बीजेपी पर बढ़त बना सकते हैं।

पश्चिमी यूपी- 9 सीट

दल        सीट    वोट प्रतिशत (%)

कांग्रेस    0         9.8

बीजेपी    9         50.2

बसपा     0         18.50

सपा       0         17.8

अन्य       0         3.7

पश्चिमी यूपी में बीजेपी ने क्लीन स्वीप किया और सपा-बसपा से बहुत ज़्यादा वोट (50.2 प्रतिशत) पाकर सभी 9 सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन 2014 से पहले यहां ऐसा नहीं था। बसपा इस इलाके में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करती रही है। इसलिए इस इलाके में सपा या बसपा को अपनी ज़मीन वापस पाने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। इस क्षेत्र की कुछ सीटों पर आरएलडी के नेता अजित सिंह भी अपना दावा ठोंकते हैं। उन्हें भी इस गठबंधन को साधना होगा।

रुहेलखंड- 10 सीट

दल         सीट     वोट प्रतिशत (%)

कांग्रेस     0          4.3

बीजेपी     9         42.6

बीएसपी   0         17.7

सपा        1         31.4

अन्य        0        4.0

रामपुर, बरेली, पीलीभीत का इलाका रुहेलखंड में आता है। यहां भी वही ट्रेंड देखने को मिला और बीजेपी ने 42.6 प्रतिशत वोट पाकर 10 में से 9 सीटें कब्ज़ा लीं। इस इलाके में समाजवादी पार्टी ने एक अच्छा वोट शेयर 31.4 प्रतिशत पाया लेकिन सीट एक ही जीत सकी। बसपा ने यहां 17.7 प्रतिशत वोट पाया। अब दोनों को अगर जोड़ दिया जाए तो फिर बीजेपी से बड़ी संख्या होती है। और यहां बदलती हवा का असर पश्चिम उत्तर प्रदेश की बाकी 9 सीटों पर भी पड़ेगा।

अवध - कुल सीट 13

दल        सीट    वोट प्रतिशत (%)

कांग्रेस    2       17.8

बीजेपी   11       39.6

बीएसपी  0        21.3

सपा       0        15.5

अन्य       0        5.7

राजधानी लखनऊ और आसपास का क्षेत्र अवध कहलाता है। इस क्षेत्र में 2014 में बीजेपी 39.6 फीसदी वोट पाकर 11 सीटें हथिया लीं। लेकिन 21.3 फीसदी और 15.5 फीसदी वोट पाकर भी बसपा और सपा खाली हाथ रहे।

दोआब- कुल 14 सीट

दल        सीट    वोट प्रतिशत (%)

कांग्रेस     0       6.9

बीजेपी    11      46.1

बसपा      0       18

सपा        3       25.2

अन्य       0        3.8

दोआब यानी दो पानी यानी दो नदियों के बीच का क्षेत्र। यानी गंगा-जमुना तहज़ीब। यूं तो ये इलाका बहुत विस्तृत है... यह इलाका सहारनपुर, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ से लेकर इटावा, इलाहाबाद तक फैला है। सीटों का हिसाब लगाएं तो इस इलाके में 2014 में बीजेपी अच्छी बढ़त बनाती है और 46.1 फीसदी वोट पाकर 14 में से 11 सीटें पाती है। जबकि 25.2 फीसदी वोट पाकर सपा तीन सीटे जीत पाती है और बसपा 18 फीसदी वोट शेयर के साथ तीसरे स्थान पर खिसक जाती है और उसके हिस्से एक भी सीट नहीं आती है। यहां भी दोनों को मिलकर काफी मेहनत करने की ज़रूरत है।

बुंदेलखंड- कुल सीट- 4

दल        सीट    वोट प्रतिशत (%)

कांग्रेस     0       6.6

बीजेपी     4       45.00

बसपा      0       20.6

सपा        0       22.1

अन्य       0      5.6

बुंदेलखंड का नाम आते ही सूखा और किसानों की बदहाली की तस्वीर सामने आती है। यह इलाका यूपी और मध्य प्रदेश दोनों में फैला है। यूपी में ही बुंदेलखंड में सात ज़िले महोबा, झांसी, बांदा, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर और चित्रकूट आते हैं। इस इलाके में कुल चार लोकसभा सीटें हैं और यहां 45 फीसदी वोट पाकर बीजेपी ने सभी 4 सीटें जीत लीं, जबकि इससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का यहां खाता भी नहीं खुल पाया था और सपा ने यहां 2 और बसपा और कांग्रेस ने एक-एक सीट जीती थी। 2014 के चुनाव में सपा और बसपा ने यहां मिलाकर कुल 42.7 वोट हासिल किया। यहां भी इन दोनों को अपनी खोई ज़मीन पाने के लिए एक-दूसरे के साथ के अलावा अतिरिक्त मेहनत करनी होगी।

लेकिन अंत में वही बात कि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी पूरे प्रदेश में अपना अधिकतम पा चुकी है। 2017 विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने अच्छी बढ़त हासिल की लेकिन तब से अब तक गंगा-यमुना में बहुत पानी बह चुका है। जैसे 2017 में केंद्र में मोदी शासन का यूपी में बीजेपी को फायदा मिला, बिल्कुल उसके उलट अब 2019 में मोदी शासन से नाराज़गी के साथ योगी सरकार के कारनामोंजिसमें मॉब लिंचिंग से लेकर फर्जी एनकाउंटर और हत्या-बलात्कार सब शामिल हैं, का असर इन चुनावों में देखने को मिल सकता है। देश से लेकर प्रदेश तक किसान, मज़दूर, युवा इसका ऐलान भी कर रहे हैं। सच में हालत ये है कि अपना वोट बैंक बचाए रखने तक के लिए मोदी जी को सवर्ण आरक्षण जैसे संविधान विरोधी कदम तक उठाना पड़ रहा है।  

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