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Election 2024: क्या यही लोकतंत्र है ?

लोकतंत्र का मतलब जनता का तंत्र। यानी आम लोगों का तंत्र। ऐसा तंत्र जिसमें सबको बराबर की हिस्सेदारी मिले चाहे वह आम हो या खास, सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, राजा हो या रंक। क्या ऐसा हो रहा है?
EVM

देश में आम चुनाव हो रहे हैं। सात चरणों में होने वाले चुनाव के पांच चरण बीत चुके हैं। जो कुछ दीख रहा है, जो कुछ सुनाई पड़ रहा है और जो थोड़ा बहुत मीडिया में आ रहा है उससे बरबस यह पूछने को मन कर रहा है कि क्या यही लोकतंत्र है ? लोकतंत्र का मतलब जनता का तंत्र। यानी आम लोगों का तंत्र। ऐसा तंत्र जिसमें सबको बराबर की हिस्सेदारी मिले चाहे वह आम हो या खास, सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, राजा हो या रंक। क्या ऐसा हो रहा है ?

चुनाव शुरू होने से पहले ईवीएम ( इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन ) की

निष्पक्षता को लेकर बातें हो रही थीं। कहा जा रहा था कि इन मशीनों के जरिये लोगों के वोट को प्रभावित किया जा सकता है। चुनाव आयोग में ढेरों शिकायतें की गईं। पर चुनाव आयोग के कान पर जूं नहीं रेंगी। मशीन से निकलने वाली पर्चियों ( वीवी पैट ) की 100 प्रतिशत गिनती की मांग को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, सुप्रीम कोर्ट ने विचार भी किया लेकिन आखिर में याचिका खारिज कर दी। यह बात सुप्रीम कोर्ट ही जाने कि उसने याचिका में कोई दम न देखकर याचिका खारिज की या फिर यह सोचकर कि अब चुनाव शुरू हो चुके हैं और ऐसे में नई बात शामिल कराना संभव नहीं है। बहरहाल एक बार जब चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई तो ईवीएम की बात पीछे छूट गई। यह ठीक भी था क्योंकि ईवीएम पर सवाल उठाकर उसी ईवीएम के जरिये चुनाव लड़ना उचित भी नहीं होता।

चुनाव अधिसूचना जारी होने के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग तारीखों पर नामांकन की प्रक्रिया शुरू हुई। सबसे पहले खजुराहो का मामला सामने आया। खजुराहो में कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के लिए एक सीट छोड़ी। लेकिन वहां सपा प्रत्याशी का पर्चा खारिज हो गया। कहा गया उम्मीदवार ने पर्चा ठीक से नहीं भरा था। लोगों को शक तो हुआ फिर भी लोगों ने मान लिया कि हो सकता है उम्मीदवार से कोई त्रुटि रह गई हो। इसके बाद

गुजरात के सूरत का मामला सामने आया। यहां से भी  कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा खारिज हो गया। पता चला कि पर्चा योजनाबद्ध ढंग से खारिज कराया गया। 

कांग्रेस उम्मीदवार के बीजेपी के हाथों बिक जाने की खबरें सामने आईं। बताया गया कि उस उम्मीदवार को करोड़ों रुपये दिये गये। उसके प्रस्तावक तक बीजेपी के लोग बने। कांग्रेस उम्मीदवार के अलावा बाकी जितने लोगों ने पर्चे भरे थे सभी के पर्चे किसी न किसी तरह वापस करा लिये गये। नतीजा यह निकला कि बीजेपी उम्मीदवार सूरत से निर्विरोध चुनाव जीत गया। यह भी पता

चला कि गुजरात में ऐसे कई और पर्चे खारिज कराने की योजना बनाई गई थी लेकिन सफलता सिर्फ सूरत में ही मिल पाई। मध्य प्रदेश के इंदौर में भी ऐसा ही हुआ। वहां से भी कांग्रेस उम्मीदवार का पर्चा खारिज हुआ। उसने अपना नाम ठीक से नहीं भरा था। पर्चा खारिज होने के बाद वह उम्मीदवार बीजेपी में शामिल हो गया। पता चला कि उसके उम्मीदवार बनने के बाद से उसके खिलाफ

मुकदमा कर दिया गया और जेल भेजने के नाम पर धमका कर परचा खारिज कराने के लिए दबाव बनाया गया।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में तो और भी गजब का खेल हुआ है। यहां से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं। इंडिया गठबंधन की ओर से यहां के प्रत्याशी कांग्रेस के अजय राय हैं। पहले बीजेपी और उसकी आईटी सेल ने अफवाह फैलाई कि अजय राय बीजेपी में शामिल हो रहे हैं। जब वह बात परवान नहीं चढ़ी तो कहा गया कि वे अपना परचा सूरत और इंदौर की तरह खुद खारिज करवा लेंगे। लेकिन असली बात बाद में सामने आई। दरअसल इस बार

मुकाबला कांटे का है। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और बीजेपी को मजबूती से टक्कर दे रहे हैं। कहीं नरेंद्र मोदी की यह सीट खतरे में न फंस जाए इसलिए प्रशासन की मदद से मोदी की राह आसान करने की कोशिश की जा रही थी। जो लोग यहां से पर्चा भरना चाहते थे उन्हें पर्चा नहीं भरने दिया जा रहा था। उन्हें कई दिनों तक फॉर्म ही नहीं दिया गया। आखिर में जब हो हल्ला मचा और लोग पर्चा भरने में सफल रहे तो कोई न कोई बहाना बनाकर उनका पर्चा खारिज कर दिया गया। 

बनारस से 33 लोगों का पर्चा खारिज किया गया है। बनारस के इतिहास में अब तक इतने पर्चे कभी खारिज नहीं हुए। कुछ लोगों का पर्चा तो इस आधार पर खारिज किया गया कि उन्होंने शपथ नहीं ली थी। जब कि उन लोगों का कहना है कि वे शपथ दिलाने को प्रशासन से कहते रहे लेकिन प्रशासन ने उनकी एक नहीं सुनी।

मतदान में भी ढेरों गड़बड़ियों की शिकायतें सामने आ रही हैं। रायबरेली, जहां से राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं, में दो दर्जन से ज्यादा ईवीएम खराब पाई गईं और बदली गईं। (बदली गई ईवीएम में ज्यादा वोट होने का भी शक जताया जा रहा है। ) सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के कन्नौज क्षेत्र में भी यही हाल हुआ। दोनों जगहों पर बूथों पर कब्जा करके जबरन वोट डलवाए जाने की कई शिकायतें की गई हैं। फर्रूखाबाद में एक व्यक्ति ने आठ बार वोट डाला और उसका वीडियो भी वायरल कर दिया। मतदान के बाद स्ट्रांग रूम में रखे ईवीएम से भी एक जगह 45 मिनट तक बिजली जाने की सूचना है। इस दौरान क्या हुआ होगा कोई नहीं जानता।

इस बीच चुनाव आयोग ने एक नया खेल खेलना शुरू किया है। अभी तक आम तौर पर आंकड़े चुनाव खत्म होने के साथ ही जारी कर दिये जाते थे। अगले दिन सात बजे के करीब फाइनल आंकड़े जारी कर दिये जाते थे जिसमें मामूली अंतर होता था। लेकिन इस बार चुनाव आयोग ने पहले चरण के मतदान के करीब दस दिन और

दूसरे चरण के मतदान के करीब चार दिन बाद आंकड़े जारी किये। उसमें भी आंकड़े पूरे नहीं दिये। सिर्फ मत प्रतिशत जारी किया। उस मत प्रतिशत में भी पहले जारी किये गये मत प्रतिशत से करीब छह-सात प्रतिशत का अंतर है। इस पर कई समूहों ने सवाल उठाया है और मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में जा पहुंचा है। इस बार मामला और गंभीर है और सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि वह जरूरत पड़ी तो इस मामले पर पूरी रात सुनवाई करेगा।

मतलब ये कि पहले विपक्ष ईवीएम से लड़े, फिर अपने उम्मीदवारों को ( दबाव और लालच दोनों से ) बचाये रखे, फिर फर्जी वोट न पड़ने दे, फिर स्ट्रांग रूम में उसकी हिफाजत पर नजर रखे, फिर काउंटिंग पर भी नजर रखे ( चंडीगढ़ मेयर चुनाव की घटना को देखते हुए ) और इसके बाद भी खुदा न खास्ते विजयी हो जाए तो भी सरकार बनाने से वंचित रह जाए या उसके विधायकों सांसदों को

खरीद कर सत्ता पक्ष अपनी सरकार बना ले। गोवा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश की तरह। सचमुच क्या यही लोकतंत्र है ? क्या यहां सबको समान अवसर मिल रहा है?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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