Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

गुवाहाटी : बेदख़ली अभियान में पुलिस के दुर्व्यवहार के ख़िलाफ़ 2 महिलाओं ने अर्धनग्न होकर किया प्रदर्शन

असम सरकार का दावा है कि परिस्थितिकी (Ecology) को बचाने के लिए सिलसाको बील (झील) के निवासियों को बेदख़ल करना ज़रूरी है।
Guwahati
पिछले सप्ताह दो दिन चले बेदखली अभियान में गुवाहाटी में सिल्साको बील (झील) में कई घरों को ध्वस्त कर दिया गया था।

दशकों पहले, कुछ लोगों ने कृषि और मछली पकड़ने में लगे पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील वेटलैंड/आर्द्रभूमि के पास भूमि के एक बड़े हिस्से पर बसना शुरू कर दिया था। समय के साथ, जनसंख्या बढ़ी और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील वेटलैंड के विनाश को रोकने के लिए एक कानून बनाया गया। जैसे-जैसे समय बीतता गया, पारिस्थितिक बहाली के नाम पर असम सरकार ने अचानक लोगों को बेदखल करना शुरू कर दिया, इसमें वे लोग भी शामिल थे जो  कानून बनने से पहले वहां रहते थे। ये लोग बेघर और भूमिहीन हो गए हैं और उनका भविष्य अब अंधकारमय दिख रहा है।

यह कोई काल्पनिक बात नहीं बल्कि असम की राजधानी गुवाहाटी के सिलसाको बील (झील) इलाके के हजारों लोगों की हकीकत है। पुलिस और सीआरपीएफ की मदद से 1 से 2 सितंबर तक चलाए गए बड़े पैमाने के बेदखली अभियान का निवासियों ने कड़ा विरोध किया है।

1 सितंबर को, विरोध तब बदसूरत हो गया जब दो महिला प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस ने "दुर्व्यवहार" किया और उन्होने इसके विरोध में अपने कपड़े उतारने शुरू कर दिए।

प्रदर्शनकारियों में से एक ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए न्यूज़क्लिक को बताया कि, “पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया। उन्होंने अर्धनग्न होकर अपनी ज़मीन और घर की रक्षा करने की कोशिश की”। कुछ ही देर बाद, कृषक मुक्ति संग्राम समित के सचिव बिद्युत सैकिया और सदस्य आकाश डोले, दो अन्य महिलाओं और तीन अन्य पुरुषों सहित दो महिलाओं और सात अन्य प्रदर्शनकारियों को दंगा करने या सरकारी कर्मचारी को अपनी ड्यूटि करने से रोकने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। अगले दिन गुवाहाटी में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत में उन्हें जमानत दे दी गई।

इसके अलावा, महिलाओं सहित 34 अन्य प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया और आधी रात को रिहा कर दिया गया। शरीफा बेगम ने न्यूज़क्लिक को अपना अनुभव बताते हुए कहा कि, “पांच पुरुष पुलिसकर्मी मुझे खींचकर पुलिस वैन में ले गए। मेरे कंधे अभी भी दर्द कर रहे हैं। वहां कोई महिला पुलिसकर्मी नहीं थी। अन्य महिला प्रदर्शनकारियों के साथ भी ऐसा ही व्यवहार किया गया''।

आगे कहा कि, वहाँ से “हमें काहिलपारा में चौथी असम पुलिस बटालियन में ले जाया गया, जो बहुत दूर है, और खराब मोबाइल नेटवर्क था और हमें एक अलग कमरे में रखा गया था। हम दुनिया से कट गये थे। दोपहर के समय हमसे पूछा गया कि क्या हमें भूख लगी है। हमने खाने से इनकार कर दिया'। “पुलिस ने हमें आधी रात को बोरबारी के पास छोड़ दिया। हमें अपने टूटे हुए घरों तक पहुंचने के लिए काफी दूर तक पैदल चलना पड़ा।”

दुखद कहानियाँ

रूबी बासुमतारी, जिनके पति की दो साल पहले मृत्यु हो गई थी, और उनकी दो बेटियाँ 2005 से सिल्साको में रह रही हैं। "हमने 2002 में प्लॉट खरीदा था।" न ही, हमें बेदखली का कोई नोटिस नहीं मिला," रोते हुए बासुमतारी ने अपने ध्वस्त हुए खंडहर घर के बीच न्यूज़क्लिक को बताया, जो एक दशक से अधिक समय से उनका आश्रय स्थल था।

बासुमतारी ने आरोप लगाया कि, “कल (1 सितंबर) वे हमें बताने आए थे कि हमारा केवल गेट और एक छोटा कमरा तोड़ा जाएगा। जबकि, बुलडोज़रों ने पूरे घर को ही ध्वस्त कर दिया”। सिल्साको के निवासी असुरक्षित हैं और डरे हुए हैं क्योंकि ड्रोन उन पर नज़र रखे हुए हैं कि कोई नई संरचना तो नहीं बन रही है। कल्पना तेरांग और रितुभ हजारिका के पास सुनाने के लिए ऐसी ही कहानियाँ थीं। वे अभी भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि 2008 में गुवाहाटी जल निकाय (संरक्षण) अधिनियम लागू होने से पहले ही वहां बसे लोगों को कैसे बेदखल किया जा सकता था।

imageनिवासियों ने कहा कि उन्हें अफसोस है कि उन्होने भाजपा को वोट दिया। 

एक निवासी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि, “हम अवैध आप्रवासी नहीं बल्कि देशज हैं। हमने भाजपा को वोट दिया और कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वे हमारे साथ ऐसा कर सकते हैं। हमने [मुख्यमंत्री] हिमंत [बिस्वा सरमा] पर भरोसा करके पाप किया, जब उन्होंने अपने चुनाव अभियान में घोषणा की थी कि सभी को पट्टे आवंटित किए जाएंगे”।

बुलडोज़रों की सुरक्षा में तैनात एक पुलिसकर्मी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए कहा कि, “सरकार जो कर रही है वह अपराध है। हम असहाय होकर अपना कर्तव्य निभा रहे हैं; हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। लोगों को इस तरह प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए।” सिलसाको में रहने वाली एक महिला पुलिसकर्मी भी अपना घर और पशुधन खो चुकीं हैं। 

imageमकान तोड़े जाने के बाद बेघर हुए लोग।

वाहिदा बेगम और शायरा बेगम ने पूछा कि, “हम पिछले 30 वर्षों से यहाँ हैं। हमने यहां धान की खेती देखी है। क्या कोई आर्द्रभूमि में चावल उगा सकता है?” 

“हमें गुवाहाटी नगर निगम से आवंटित मकान नंबरों पर बिजली बिल मिलते हैं। वे कैसे कह सकते हैं कि हम अवैध हैं?” वहीदा और शायरा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि 2008 के बाद वहां आबादी बढ़ी है। “प्रफुल्ल महंत के समय में, एक दीवार खड़ी की गई थी और हमें बताया गया था कि यहां एक नया एमएलए छात्रावास विकसित किया जाएगा। लेकिन दीवार हमारे घर से बहुत दूर है और वेटलैंड (आर्द्रभूमि) भी दूर है।'' 

imageगुवाहाटी नगर निगम के घर की नंबर प्लेट एक ध्वस्त घर के खंडहरों के बीच पड़ी है।

imageकई निवासियों ने दावा किया कि उन्हें गुवाहाटी नगर निगम द्वारा आवंटित घर के नंबर पर बिजली बिल मिले हैं।

यह बेदखली जसूला ब्रह्मा, उनकी पत्नी और उनके स्कूल जाने वाले बेटे के लिए एक दुःस्वप्न था। वह स्वास्थ्य विभाग में एक ठेके पर चालक है, वह 15 वर्षों से वहां रह रहे हैं। “विध्वंस अभियान से पहले कोई नोटिस नहीं दिया गया था। मेरे पास भी बिजली बिल हैं जिनमें मेरा पता और जीएमसी हाउस प्लेट और होल्डिंग नंबर अंकित हैं।''

इस त्रासदी से आहत होकर, जमुना बाला दत्ता (92), जो इलाके से बहुत दूर रहती हैं, बेदखल निवासियों से मिलने आईं। “मैं इन परेशान लोगों से मिलने से खुद को रोक नहीं सकी। उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया कि, क्या सरकारें कभी कोई अच्छा काम करती हैं? इन लोगों पर अत्याचार किया जा रहा है'।

सरकार के दावे, निवासियों का डर

न्यूज़क्लिक ने पहले रिपोर्ट किया था कि सरकार ने दावा किया था कि पारिस्थितिक बहाली के लिए और 'मिशन फ्लड फ्री गुवाहाटी' के तहत गुवाहाटी के कृत्रिम बाढ़ के मुद्दों को संबोधित करने के लिए निवासियों को हटाना आवश्यक है।

हालांकि, निवासियों को डर है कि बुनियादी ढांचे के विकास के नाम पर साफ की गई जमीन को बड़े कॉर्पोरेट लॉबी को सौंप दिया जा सकता है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जिंजर होटल, हिमतसिंगका बिल्डिंग, बदरुद्दीन अजमल की इमारत और असम के मंत्री जयंत मल्ला बरुआ का घर, जो कथित तौर पर वेटलैंड में थे, बरकरार क्यों हैं।

रायजोर दल के अध्यक्ष और शिवसागर से विधायक अखिल गोगोई ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार "देशज लोगों को बेदखल कर रही है लेकिन बदरुद्दीन अजमल, हिमतसिंगका और जिंजर होटल की रक्षा कर रही है"।

असम जातीय परिषद के अध्यक्ष लुरिनज्योति गोगोई ने एक बयान में कहा कि, “जबकि असम के लोगों को उनके घरों से बेदखल कर दिया गया है, बाबा रामदेव को लाखों बीघे ज़मीन दे दी गई है। इससे पता चलता है कि भाजपा किस तरह देशज विरोधी और जनविरोधी है।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरमा और उनके परिवार के पास काफी जमीन है। एक मीडिया बयान में उनके हवाले से कहा गया, "हिमंत बिस्वा सरमा और उनका परिवार बेदखल लोगों की पीड़ा का एहसास नहीं कर सकते हैं क्योंकि उनके पास बड़ी मात्रा में जमीन है।"

न्यूज़क्लिक की पिछली रिपोर्ट में, सुप्रीम कोर्ट के वकील उपमन्यु हजारिका ने बेदखली अभियान और संरक्षित आर्द्रभूमि की सीमा के लिए स्पष्ट सीमांकन की कमी के संबंध में कुछ गंभीर सवाल उठाए थे।

बेदखल हुई एक महिला और बेदखली के खिलाफ मुखर युवा नैना बेगम ने न्यूज़क्लिक को बतायाकि, "कुछ दिन पहले, राजस्व मंत्री जोगेन महान ने एक बैठक में कहा था कि क्षेत्र में किसी भी परियोजना की योजना नहीं बनाई गई है।"

उन्होंने आरोप लगाया कि जमीन "संभवतः कुछ बड़ी बिल्डिंग लॉबी को सौंप दी जाएगी जो यहां आवासीय परिसरों का निर्माण करेंगे"।

अधिकांश निवासियों का मानना है कि यह अभियान भूमि के विशाल हिस्से को बड़े कॉर्पोरेट लॉबी को सौंपने की दिशा से प्रेरित है।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।

2 Women Protest Half-Naked After Manhandled by Police in Guwahati Eviction Drive

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest