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कोटा: दो और छात्रों ने की आत्महत्या.. शिक्षा,समाज या सरकार, कौन ज़िम्मेदार?

कोचिंग हब यानी कोटा में छात्रों की आत्महत्या का सिलसिला रुक नहीं रहा है। बीते रविवार को फिर दो छात्रों ने आत्महत्या कर ली। ऐसे ही पिछले कुछ सालों के आंकड़े भी बहुत डराने वाले हैं।
Kota
प्रतीकात्मक तस्वीर।

रविवार यानी 27 अगस्त को 3 बजकर 20 मिनट पर अविष्कार संभाजी कासले की नीट परीक्षा खत्म होनी थी, लेकिन उसने 5 मिनट पहले पेपर कंपलीट कर लिया और क्लास रूम से बाहर निकल आया। क्लास से बाहर निकलने के बाद अविष्कार सीधे बिल्डिंग की छठी मंज़िल पर गया और उसने वहां से छलांग ली। अस्पताल पहुंचने पर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया।

16 साल 11 महीने का अविष्कार संभाजी कासले पिछले तीन सालों से कोटा के तलवंडी इलाके में अपने नाना-नानी के साथ रह रहा था, और जवाहर नगर की एक कोचिंग में नीट की तैयारी कर रहा था। मूल रूप से संभाजी महाराष्ट्र के लातूर का रहना वाला था।

अविष्कार के मौत की जानकारी डिप्यूटी सुपरीटेंडेंट ऑफ पुलिस केएसल राठौर ने दी है।

अविष्कार संभाजी की मौत के ठीक चार घंटे बाद शाम करीब 7 बजे 18 साल के आदर्श को उसके भाई और बहन ने आवाज़ लगाई कि चलकर खाना खा लो। आदर्श के नहीं सुनने पर उसके कमरे का दरवाज़ा खटखटाया (3 रूम का फ्लैट है)। फिर भी कोई जवाब नहीं मिलने पर दोनों ने मिलकर दरवाज़ा तोड़ दिया। जब दरवाज़ा टूटा तब दोनों ने देखा कि आदर्श ने पंखे में फंदा लगाकर ख़ुद को मौत के घाट उतार लिया है। आदर्श की मौत के बाद उसकी बहन ने बताया कि पिछले कुछ महीनों से आदर्श जितने भी इग्ज़ाम दे रहा था उसके नंबर कम आ रहे थे। जैसे 700 में सिर्फ 250 या 270 नंबर आने के कारण वो परेशान था।

आदर्श मूल रूप से बिहार के रोहतास ज़िले का रहने वाला था, और कोटा के लैंडमार्क एरिया में अपनी बहन और कज़न भाई के साथ एक फ्लैट में रहता था।

आदर्श की मौत के बारे में जानकारी कोटा के एएसपी भागवत सिंह हिगाड़ ने दी है।

इस दोनों छात्रों के आत्महत्या का कारण परीक्षा हो सकती है, इसलिए यहां एक बात बतानी ज़रूरी है कि जिस परीक्षा के बाद दोनों छात्रों ने खुदकुशी की, वो एक कोचिंग सेंटर में हो रही थी। तमाम सवालों में एक सवाल ये भी बनता है कि छात्र-छात्राओं को थोड़ा बहुत पढ़ा देने के बाद इतनी आधिकारिकता से इग्ज़ाम लेने का हक कोचिंग संस्थानों को कौन देता है?

ये सवाल राजस्थान के कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियास ने भी उठाया है। उनका कहना है कि कोचिंग संस्थान बहुत पैसे वाले हैं, लेकिन वो अपने पैसे के दम पर बच्चों को तंग नहीं कर सकते। कोचिंग वालों को कोई अधिकार नहीं है टेस्ट लेने का। कोचिंग वाले बच्चों की सुरक्षा के लिए एक पैसा नहीं खर्च करते।

आपको बता दें कि इसी महीने 12 अगस्त को कोटा के कलेक्टर ओपी बुनकर ने आदेश जारी किया था, कि सभी कोचिंग संस्थान रविवार को बंद रहेंगे और किसी भी तरह की कोई परीक्षा नहीं होगी, इसके बावजूद परीक्षा ली गई। अब रविवार को हुई घटना के बाद आधी रात को फिर से एक एडवाइज़री जारी कर सभी कोचिंग संस्थानों पर दो महीने तक टेस्ट लेने पर बैन लगा दिया गया है।

राजस्थान का कोटा कोचिंग संस्थानों का हब कहा जाता है, यहां देशभर से बच्चे इंजीनियर और डॉक्टर बनने का सपना लेकर आते हैं, लेकिन हर छात्र इसमें कामयाब हो जाए ये ज़रूरी तो नहीं। अब विडंबना ये है कि जिन छात्रों को जिस विषय में रूचि नहीं होती वो भी अपने परिजनों के या समाज के दबाव कोचिंग संस्थानों के चक्कर काट रहे हैं। ऐसे में जब वो ख़ुद को फेल होता पाते हैं और लोगों के सामने ख़ुद को छोटा महसूस करते हैं, तब वो आत्महत्या करने जैसा कदम चुन लेते हैं।

डिप्रेशन में आकर आत्महत्या करने वाले बच्चों को कुछ दिनों पहले ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एक संदेश दिया था। अशोक गहलोत ने अभिभावकों से अपील की थी कि अपने बच्चों पर कुछ भी बनने के लिए दबाव नहीं बनाना चाहिए, बल्कि वो जो चाहें, उन्हें बनने दीजिए। इस दौरान अशोक गहलोत ने ख़ुद के बारे में भी बताया था कि वो डॉक्टर बनना चाहते थे लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो पाए थे। इसके बाद वो सोशल वर्कर बने और फिर राजस्थान में मुख्यमंत्री बने।

फिलहाल यहां तो यही कहना होगा कि बयानबाज़ी के साथ अगर मुख्यमंत्री और उनकी सरकार प्रदेश में छात्रों के लिए कुछ विशेष क़दम उठाए और विशेष योजना बनाएं, तो ऐसी घटनाएं रुक सकती हैं। क्योंकि अभी तक हुई घटनाओं के आंकडे डराने वाले हैं।

सिर्फ 11 दिनों में 4, पिछले आठ महीने में 23, पिछले एक साल में 29 और पिछले दस सालों में 160 से ऊपर छात्र जान दे चुके हैं...

जनवरी: अली राजा ने सुसाइड किया। इसे कोटा आए पांच महीने ही हुए थे।

8 फरवरी: बाड़मेर की कृष्णा और उत्तरप्रदेश के धनेश कुमार ने फांसी लगाई।

12 जून: महाराष्ट्र के 17 साल के भार्गव केशव ने कमरे में फांसी लगा ली। 2 महीने तक कोटा में रहा। जेईई की तैयारी कर रहा था।

27 जून: उदयपुर के सलूंबर के रहने वाले 18 साल के मेहुल वैष्णव ने हॉस्टल में फांसी लगाई थी। नीट की कोचिंग कर रहा था।

7 जुलाई: यूपी के रामपुर के 17 साल के बहादुर सिंह ने फांसी लगाकर सुसाइड किया। जेईई की तैयारी कर रहा था।

3 अगस्त: नीट की तैयारी कर रहे यूपी के छात्र मनजोत ने सुसाइड किया था।

4 अगस्त: बिहार के चंपारण के भार्गव मिश्रा ने सुसाइड किया था। जेईई की तैयारी के लिए आया था।

10 अगस्त: यूपी के आजमगढ़ के रहने वाले 17 साल के मनीष प्रजापति ने हॉस्टल में फंदा लगाकर सुसाइड कर लिया। मनीष 6 महीने पहले ही कोटा आया था और जेईई की तैयारी कर रहा था।

16 अगस्त: बिहार का रहने वाला 18 साल का वाल्मीकि प्रसाद जांगिड़ जुलाई 2022 में कोटा आया था। स्टूडेंट ने कमरे की खिड़की से लटक कर सुसाइड किया था।

28 अगस्त: बिहार के रहने वाले आदर्श और महाराष्ट्र के स्टूडेंट अविष्कार संभाजी ने सुसाइड कर लिया।

इन आंकड़ों के अलावा इसी साल मार्च में विपक्ष के नेता सतीश पूनिया ने विधानसभा में कुछ आंकड़े रखे थे। उनका कहना था कि कोटा इस समय कोचिंग और एजुकेशन का हब है, लेकिन पिछले चार सालों के आंकड़े देखें तो चौंकाने वाले हैं, और इस साल का देखेंगे तो पूरे राजस्थान के लिए चिंता का विषय है। दस हजार नौजवान आत्महत्याएं करते हैं, जिसमें 2,442 विद्यार्थी हैं। अकेले कोटा संभाग में 55 बच्चों ने आत्महत्याएं की हैं और 2022 में 16 बच्चों ने आत्महत्याएं की हैं।

ख़ैर... सबके आंकड़े अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन यहां मूल सवाल ये है कि आत्महत्या के बढ़ते इन आंकड़ों का वाजिब कारण क्या है? इन्हें खत्म कैसे किया जाए?

इन आत्महत्याओं के पीछे का मुख्य कारण अगर ढूंढने निकलेंगे तो पता चलेगा कि परीक्षा में फेल होने का डर नहीं बल्कि फेल होने के बाद अपमान और तिरस्कार अहम वजह है।

विशेषज्ञों का कहना है कि छात्रों को अक्सर पढ़ाई की बजाय भावनात्मक तनाव से जूझना मुश्किल लगता है। अक्सर दूसरों की उम्मीदों का बोझ उनकी खुद की उम्मीदों के साथ जुड़ जाता है, जो छात्रों का अपना उत्साह खत्म कर देता है।

इसके अलावा कोटा के कोचिंग संस्थानों में एक के बाद एक व्याख्यान, परीक्षा, अपने साथियों से आगे निकलने की निरंतर दौड़ और पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करते-करते कई छात्र हार मान जाते हैं। विशेषज्ञों का ये मानना है कि हमें यह स्वीकार करना होगा कि जेईई और एनईईटी बहुत कठिन परीक्षाएं हैं, जिसके लिए हर बच्चा तैयार नहीं होता, लेकिन कुछ माता-पिता अपने बच्चों को इसे हासिल करने के लिए जबरन कोटा भेजते हैं, क्योंकि वे चाहते हैं कि उनके बच्चे डॉक्टर या इंजीनियर बनें। इसके चलते बच्चे अक्सर इस चिंता में रहते हैं कि परीक्षा में सफल नहीं होने पर वह क्या मुंह दिखाएंगे।

यहां पर एक बात ये ध्यान देने वाली है कि हमारे समाज में ज्यादातर माता-पिता को लगता है कि उनके बच्चे के कोचिंग सेंटर में दाखिला लेने के बाद उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर लिया है, क्योंकि उन्होंने फीस का भुगतान कर दिया है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, छात्रावास में रहने वाले केवल 25 फीसदी छात्रों के माता-पिता हॉस्टल के ‘केयरटेकर’ से बात करके अपने बच्चों के बारे में नियमित पूछताछ करते हैं, जबकि बाकी 75 फीसदी 2-3 महीने में एक बार पूछताछ करते हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कोटा में इस समय कुल 4000 के करीब हॉस्टल हैं, 40 हजार से ज्यादा पीजी चलाए जा रहे हैं। दो लाख के करीब छात्र अपने घर से दूर यहां भविष्य बनाने लगातार आ रहे हैं।

तमात कारणों के जाल हैं जिसमें फंसकर बच्चे अपने जीवन को जीने में असमर्थ हो रहे हैं, अब इसमें समाज का तो बड़ा योगदान है ही, और माता-पिता इसे अपने अभिमान से भी जोड़कर खतरनाक बना रहे हैं, लेकिन सरकारें इसके लिए क्या कर रही हैं और कोचिंग संस्थानो पर कैसे और क्या सख्ती कर रही हैं ये भी सोचने का विषय है।

* कोटा में छात्रों के बढ़ते आत्महत्या के मामलों को देखते हुए अब सरकार ने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का हवाला देते हुए कोचिंग संस्थाओं की परीक्षाओं पर दो महीने के लिए रोक लगा दी।

* इस महीने की शुरुआत में ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी आत्महत्या के मामलों में चिंता जताई थी और बढ़ती आत्महत्या के मामलों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया और उसे जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा।

* मौत के मामले कम करने के लिए सरकार के निर्देशानुसार हॉस्टलों में जाल लगाए गए हैं। प्रशासन का मानना है कि इससे ऊंची मंजिलों से कूदना रोका जा सकता है।

* प्रशासन की कई बैठकों के बाद एक बड़ा कदम बच्चों के कमरों में स्प्रिंग-लोडेड पंखे लगाने का निर्देश जारी करना रहा। इन पंखों की खासियत ये है कि 20 किलो से ज्यादा वजन डालने पर पंखे पर लगा स्प्रिंग खींच जाता है और आत्महत्या करना असंभव हो जाता है।

हालांकि सरकार की ऐसे कदम पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सुसाइड की घटनाओं पर दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने भी एक ट्वीट करते हुए लिखा है कि राजस्थान के कोटा में कल 2 नीट छात्रों ने आत्महत्या कर ली, इस साल अब तक 22 बच्चे जिंदगी से जंग हार चुके हैं। बीते दिनों हमने देखा था आत्महत्या रोकने के लिए पीजी के पंखे बदलवाए जा रहे थे। ये हमारी शिक्षा व्यवस्था का हाल है। इसकी जगह जरूरत पंखा बदलने की नहीं, शिक्षा सिस्टम बदलने की है। बच्चों की मेंटल हेल्थ पर काम करना भी जरूरी है।

फिलहाल कोटा में छात्रों द्वारा की जाने वाली लगातार आत्महत्या की घटनाएं किसी को भी पच नहीं रही हैं, हर कोई सिस्टम, समाज और सरकार पर सवाल उठा रहा है। लेकिन ये ठीक कब होंगे, आत्महत्याओं का सिलसिला बंद कब होगा? इंतज़ार इसका है।

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