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एमपी: रेलवे ने ललितपुर-सिंगरौली लाइन में 300 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार की आशंका जताई

अधिकारियों की मदद से बाहरी लोगों और फ़र्ज़ी लाभार्थियों ने कथित तौर पर सीधी और सिंगरौली में ज़मीन गवाने वालों, मुख्य रूप से आदिवासियों को दिए गए मुआवज़े का एक बड़ा हिस्सा हड़प लिया है।
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कुर्सा गांव जहां आधे-अधूरे पक्के मकान पाए गए, जिनका अधिग्रहण किया जाना था। फोटो- काशिफ काकवी

भोपाल/सिंगरौली: संकरी-कीचड़ भरी सड़कों, गहरे हरे जंगलों और छोटी पहाड़ियों को छोड़कर, सिंगरौली ज़िला मुख्यालय से 50 किमी दूर छोटा गांव कुर्सा में कुछ भी असाधारण नहीं है।

फिर भी, यह गांव तब से पिछले दो-तीन सालों से सुर्खियों में है जब मध्य प्रदेश सरकार ने भारतीय रेलवे की ओर से 541 किलोमीटर लंबी ललितपुर-सिंगरौली रेलवे लाइन बिछाने के लिए भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 की धारा 11 के तहत अधिग्रहण के लिए इस गांव के एक प्रमुख हिस्से को संरक्षित क्षेत्र के रूप में अधिसूचित किया था।

अधिसूचना के तुरंत बाद, गांव के उन हिस्सों में, जिनका अधिग्रहण किया जाना था, आधे-अधूरे पक्के मकान मशरूम्स की तरह उगने लगे थे।

जब न्यूज़क्लिक ने इस साल जुलाई में कुर्सा गांव का दौरा किया, तो उन्हें झटका लगा, क्योंकि जिस गांव के निवासी दिन में दो वक्त की रोटी के लिए असमर्थ हैं, फटे कपड़े पहनते हैं और दैनिक जीवन की बुनियादी सुविधाओं का अभाव है, वहां कई लावारिस कंक्रीट के घर पाए गए जहां से रेलवे ट्रैक गुजर रहा है।

निर्मित किए गए इन घरों के आसपास दशकों पुराने मिट्टी के ढेरों में रहने वाले आदिवासी लोगों के एक समूह ने कहा कि ये घर पिछले दो-तीन सालों में 'बाहरी लोगों' ने बनाए हैं, तब-जब क्षेत्र को रेलवे लाइन बिछाने के लिए 'संरक्षित' के रूप में अधिसूचित किया गया था। हालांकि, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि इन घरों को बनाने के पीछे कौन था और उन्होंने इसे क्यों छोड़ दिया था।

गांव के एक आदिवासी निवासी वीर बहादुर सिंह ने बताया कि, "पिछले दो-तीन सालों में, कई बाहरी लोगों ने आदिवासियों से औने-पौने दाम पर ज़मीनें खरीदीं, जिनकी तीन डिसमल ज़मीन का अधिग्रहण करने के लिए एक साल पहले सर्वेक्षण किया गया था, लेकिन उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं थी और न ही मुआवज़े की कोई जानकारी थी।" उन्होंने कहा कि, "आदिवासियों ने ज़मीनें बेच दीं क्योंकि वे रेलवे की परियोजना से अनभिज्ञ थे।"

कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। जब न्यूज़क्लिक ने इलाके का दौरा किया तो अधिग्रहीत की जाने वाली अधिसूचित भूमि पर अभी भी घर बनाए जा रहे थे।

कुर्सा गांव निवासी बृजमोहन का निर्माणाधीन मकान, रेलवे परियोजना के तहत उनके घर का अधिग्रहण किया जाना है। [फोटो- काशिफ काकवी]

पेशे से ड्राइवर, 45 वर्षीय आदिवासी सूरजभान सिंह ने दावा किया कि अधिग्रहण के लिए अधिसूचना जारी होने के बाद उसने अपनी ज़मीन पर एक बड़ा घर बनाने के लिए 25 लाख रुपये का क़र्ज़ लिया था।

उन्हें निर्माणाधीन ढांचे के लिए रेलवे से 2 करोड़ रुपये से अधिक के मुआवज़े की उम्मीद है। सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके पांच भाई भी भारी मुआवज़े का दावा करने के लिए उनके नक्शेकदम पर चल रहे हैं।

कुर्सा मध्य प्रदेश के सिंगरौली ज़िले के उन 22 गांवों में से एक है जहां रेलवे 541 किलोमीटर लंबी ललितपुर-सिंगरौली लाइन के निर्माण के लिए भूमि अधिग्रहण कर रहा है।

ललितपुर-सिंगरौली रेल लाइन परियोजना

केंद्र सरकार ने 1997-98 में उत्तर प्रदेश को पूर्वी मध्य प्रदेश से जोड़ने के लिए रेलवे ट्रैक बिछाने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन धन की वजह से इस परियोजना में देरी हुई। 18 अक्टूबर, 2016 को इसमें फिर से तेज़ी आई, जब तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने 6,672 करोड़ रुपये मंजूर किए और अभी तक बनने वाले सीधी रेलवे स्टेशन की नींव रखी थी।

निर्माणाधीन 541 किलोमीटर ललितपुर-सिंगरौली रेल लाइन परियोजना। [फोटो - स्पेशल अरेंजमेंट]

जब दो दशक पुराने प्रोजेक्ट को फंड मिला, तो कई लोगों ने इसके ज़रिए एक गुप्त और अवैध भुगतान; यानी रिश्वत के माध्यम से तेज़ी से पैसा कमाने के अवसर के रूप में देखा। ललितपुर-सिंगरौली रेलवे लाइन के 541 किलोमीटर में से लगभग 460 किलोमीटर के पैच पर काम सुचारू रूप से चला, लेकिन सीधी और सिंगरौली में काम शुरू होने के बाद इसमें रुकावट आ गई।

भाजपा के राज्यसभा सांसद अजय प्रताप सिंह ने कहा कि, "सीधी और सिंगरौली के बीच प्रस्तावित मार्ग उद्घाटन के दो सप्ताह के भीतर बदल गया। नया मार्ग न केवल प्रस्तावित मार्ग से आठ किलोमीटर लंबा है, बल्कि शक्तिशाली जमींदारों, राजनेताओं और नौकरशाहों के गांवों से होकर गुजरता है, जिससे लोगों को अपने गंतव्य तक पहुंचने में 10 मिनट की देरी लगती है।"

जब सिंह ने संसद में इस मुद्दे को उठाया और प्रस्तावित मार्ग में बदलाव का कारण पूछा, तो केंद्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा, "प्रस्तावित मार्ग को बदलने के पीछे स्थानीय कारण थे।"

76 किलोमीटर लंबी सीधी सिंगरौली रेल परियोजना का संशोधित मानचित्र। [फोटो - रेलवे]

सिंह ने बताया, "8 किमी जोड़ने से रेलवे पर 100 करोड़ रुपये से अधिक का वित्तीय बोझ बढ़ जाता है और साथ ही परियोजना में भी देरी होती है, जिससे इलाके का विकास बाधित होता है। इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार होता है।"

भाजपा सांसद का कहना है कि अधिकारी भ्रष्टाचार में लिप्त हैं

न्यूज़क्लिक द्वारा हासिल इस वर्ष 3 अप्रैल की आंतरिक समीक्षा रिपोर्ट के अनुसार, सीधी-सिंगरौली में 76 किलोमीटर इलाके में लाइन बिछाने के लिए भूमि अधिग्रहण में, रेलवे अधिकारियों पर 300 करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप लगा है। यह कथित भ्रष्टाचार तब सामने आया जब रेलवे को दोनों ज़िलों में भ्रष्टाचार की कई शिकायतें मिलीं। रेलवे सिंगरौली के 22 गांवों के अलावा सीधी के 91 गांवों में छह साल से ज़मीन अधिग्रहण कर रहा है।

न्यूज़क्लिक के पास मौजूद एक ख़त के अनुसार, अकेले सिंगरौली के कुर्सा में पश्चिम-मध्य रेलवे के निर्माण प्रभाग द्वारा मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव [राजस्व] और सिंगरौली ज़िला कलेक्टर को लिखे गए ख़त में 60 में से 27 भूखंडों में विसंगतियां थीं।

सिंह ने आरोप लगाया कि उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, भूमि अधिग्रहण अधिकारी, तहसीलदार, पटवारियों सहित कुछ भ्रष्ट अधिकारी भू-माफियाओं के साथ मिलकर रेलवे को करोड़ों रुपये का चूना लगा रहे थे। उन्होंने कहा, "यह सिंडिकेट इतना शक्तिशाली है कि वे प्रस्तावित मार्ग को बदलने में कामयाब रहे हैं और इसे उन इलाकों से निकाला है जहां उन्होंने पैसा कमाने के लिए पहले ही ज़मीनें खरीद ली हैं।"

जब उनसे पूछा गया कि क्या सत्तारूढ़ दल के राजनेता भी भ्रष्टाचार में शामिल हैं, तो उन्होंने कहा, “मेरी और मेरी पार्टी की भ्रष्टाचार पर ज़ीरो-टोलरेंस की नीति है। जो लोग इसमें शामिल हैं उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।”

सीधी संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करने वाली सांसद रीति पाठक ने कहा कि ललितपुर-सिंगरौली रेल परियोजना इस इलाके खासकर सीधी को एक नया जीवन देगी, जहां कोई रेलवे लाइन नहीं है। लेकिन भूमि अधिग्रहण में भ्रष्टाचार के मुद्दे के कारण परियोजना में देरी हुई है।

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें भूमि अधिग्रहण में भ्रष्टाचार की कोई शिकायत मिली है, पाठक ने कहा, “मुझे कई शिकायतें मिलीं, जिन्हें मैंने जांच के लिए दोनों ज़िलों के ज़िला कलेक्टरों को भेज दिया है। उन्होंने कुछ मामलों में जांच समितियां भी गठित की हैं। लेकिन मुझे नतीजा नहीं पता है।” उन्होंने कहा, "यह ज़िला प्रशासन पर निर्भर है कि वह गलत काम करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करे और परियोजना में तेज़ी लाए।"

जबकि सिंगरौली ज़िले के एक व्हिसलब्लोअर डीपी शुक्ला ने आरोप लगाया कि जहां भी रेलवे या राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों ने ज़िला प्रशासन को अनियमितताओं के बारे में बताया और जांच की मांग की, ज़िला कलेक्टर ने उन अधिकारियों को जांच के लिए नियुक्त किया जो भ्रष्टाचार में खुद गहराई से शामिल थे।

उन्होंने कहा, "जब भ्रष्टाचार में शामिल व्यक्ति को भ्रष्टाचार की जांच करने का काम सौंपा जाता है, तो परिणाम स्पष्ट होता है।"

किसान से व्हिसलब्लोअर बने शुक्ला और उनके 88 वर्षीय पिता को अब इस मुद्दे को उठाने के लिए तीन एफआईआर का सामना करना पड़ रहा है।

न्यूज़क्लिक की जांच से क्या पता चला!

जब न्यूज़क्लिक ने रिकार्ड्स पर नज़र डाली, तो यह पता चला कि बाहरी लोग और काल्पनिक लाभार्थी, अधिकारियों की मदद से, भूमि खोने वालों को दिए जाने वाले मुआवज़े का बड़ा हिस्सा काट रहे थे। कई मामलों में, करोड़ों में मुआवज़े का दावा करने वाले व्यक्तियों की संपत्तियों से बाहरी लोगों के नाम जुड़े हुए थे।

कुर्सा के बगल में स्थित ढोंगा गांव के ज़मीन खोने वालों में से एक, रामानुज गुज्जर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "एक बिचौलिए ने मुझसे मेरी 72 डिसमिल [0.719 एकड़] कृषि भूमि के लिए 85 लाख रुपये का पुरस्कार पाने के लिए 5 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए कहा जो परियोजना का हिस्सा है। जब मैंने इनकार कर दिया, तो मेरी भूमि को गैर-कृषि भूमि के रूप में पहचाना गया, और मुआवज़ा लगभग आधा कर दिया गया, जिसे 36 लाख रुपये से घटाकर 20 लाख रुपये कर दिया गया।'

उन्होंने कहा कि गुहार लगाने ''मैं हाई कोर्ट जाऊंगा।''

रामानुज गुज्जर अपनी पैतृक संपत्ति के बाहर खड़े हैं (फोटो- काशिफ ककवी)

पिछले तीन सालों में राज्य सरकार और सीधी व सिंगरौली के ज़िला कलेक्टरों को भेजे गए कई पत्रों में, रेलवे ने विसंगतियों की तरफ इशारा किया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। न्यूज़क्लिक के पास मौजूद एक पत्र में, रेलवे ने रेखांकित किया है कि सिंगरौली ज़िले में, केवल एक भूखंड में तीन से 27 घर दिखाए गए थे जो पिछले सर्वेक्षणों में नहीं थे।

इतना ही नहीं, निष्कर्षों से यह भी पता चलता है कि भूमि मालिकों ने न केवल रेल लाइन बिछाने के लिए प्रस्तावित इलाकों में घर बनाए हैं, बल्कि न्यायिक स्टांप पेपरों का दुरुपयोग करते हुए और भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए भूमि स्वामित्व में बदलाव या स्थानांतरित भी किया है। हालांकि, न्यायिक स्टाम्प और भूमि अधिग्रहण अधिनियम मानदंडों की योग्यता को धता बताते हुए अवार्ड कर दिया गया।

ऐसा लगता है कि भूमि मालिकों के अलावा कुछ नौकरशाह भी रेलवे को धोखा देने के लिए भू-माफिया के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

निष्कर्षों से यह भी पता चलता है कि सिंगरौली के गिधेर गांव में, अधिकारियों ने एक आदिवासी की पैतृक भूमि पर सात फ़र्ज़ी लाभार्थियों को दिखाया, जिनमें से प्रत्येक के पास नकली घर थे। वे सभी गैर-आदिवासी थे। जब आदिवासियों ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी तो 'फ़र्ज़ी दावेदार' गायब हो गए।

क़ानून के अनुसार, कलेक्टर की अनुमति के बिना आदिवासियों की ज़मीन न तो खरीदी जा सकती है और न ही गैर-आदिवासियों के बीच वितरित की जा सकती है।

अधिवक्ता योगेश्वर प्रसाद तिवारी, जिन्होंने भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया में कथित भ्रष्टाचार के कई मामलों को निचले और उच्च न्यायालय में उठाया, ने कहा कि, “सीधी और सिंगरौली में भूमि अधिग्रहण में भ्रष्टाचार की डिग्री को इस तथ्य से समझा जा सकता है कि रेलवे ने 541 किलोमीटर की परियोजना के लिए 15,000 से अधिक भूमि मालिकों से ज़मीन ली, जिनमें से 11,605 सिर्फ इन दोनों ज़िलों में हैं।

इस साल जुलाई में पेश किए गए मध्य प्रदेश विधानसभा के रिकॉर्ड के मुताबिक सीधी में 6,809 और सिंगरौली ज़िले में 4,796 दावेदार हैं, जो पिछले सर्वे से काफी ज़्यादा है। उन्होंने कहा, "अगर सरकार जांच शुरू करती है, तो 3,000-4,000 से अधिक फ़र्ज़ी दावेदार मिलेंगे।"

इसी तरह, पूर्वा जागीर गांव में भूमि अधिग्रहण के चार मामलों में, एक ही संपत्ति में 3 से 15 घर दिखाए गए थे, जो पिछले सर्वेक्षणों में मौजूद नहीं थे।

गिधेर गांव में दो आदिवासी नाबालिग भाइयों के प्लॉट पर 27 घर दिखा दिये गये और मुआवज़े के तौर पर 1.35 करोड़ रुपये की राशि निकाल ली गयी। ज़मीन मालिकों को इसकी जानकारी भी नहीं है।

सिंगरौली के चीवा गांव में, एक पीडब्ल्यूडी दैनिक वेतनभोगी कर्मचारी को परियोजना के लिए एक एकड़ में फैले तीन घर देने के लिए 2.88 करोड़ रुपये अवार्ड किए गए। एक साल बाद, वह रहस्यमय परिस्थितियों में मृत पाया गया। उनके निधन के लगभग चार महीने बाद, उन्हें दिए गए 2.88 करोड़ रुपये में से 2.48 करोड़ रुपये की राशि सिंगरौली ज़िले के देवसर ब्लॉक में तैनात पीडब्ल्यूडी के सब-इंजीनियर दधीच सिंह के तीन रिश्तेदारों को हस्तांतरित कर दी गई। लाभार्थियों में से एक दधीच सिंह के पुत्र लवलेश सिंह हैं।

दिलचस्प बात यह है कि 18 मई, 2022 को दधीच सिंह को भाजपा के उच्च सदन के नेता अजय प्रताप सिंह के सहायक क्लर्क के रूप में नियुक्त किया गया था, जिन्होंने परियोजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया था और न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कुछ नौकरशाहों की मिलीभगत का आरोप भी लगाया था।

सीधी डीएम का दधीच सिंह को भाजपा सांसद कार्यालय में नियुक्ति दिया गया पत्र

कई पत्रों में और मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस के साथ बैठकों में, रेलवे ने परियोजना के भूमि अधिग्रहण में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

इस साल जुलाई में मुख्य सचिव बैंस को न्यूज़क्लिक के पास मौजूद नवीनतम पत्र में, रेलवे ने सिंगरौली ज़िला प्रशासन पर भ्रष्टाचार का संदेह करते हुए, रेलवे अधिकारियों की अनुपस्थिति में प्रस्तावित भूमि का मूल्यांकन या सर्वेक्षण करने का आरोप लगाया था।

कुछ और खुलासे

दोनों ज़िलों में ज़मीन अधिग्रहण के हर मामले में कुछ चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। न्यूज़क्लिक ने सीधी ज़िले के एक दिलचस्प मामले का पता लगाया जो परियोजना में शक्तिशाली लोगों की भागीदारी का संकेत देता है।

अगस्त 2019 में, जब सीधी ज़िले के एक कलेक्टर ने सीधी के चंदवाही गांव की सीता सिंह के नाम पर 50 डिसमिल कृषि भूमि के एक टुकड़े के लिए 2.5 करोड़ रुपये का मुआवज़ा देने से इनकार कर दिया, तो उन्हें आलोचना का सामना करना पड़ा।

अपनी जांच के आधार पर, उन्होंने पश्चिम मध्य रेलवे, जबलपुर को एक पत्र लिखकर ज़िले में भूमि अधिग्रहण मामलों में प्रचलित विसंगतियों को उजागर किया। पत्र के एक सप्ताह बाद उन्हें लूप लाइन से हटा दिया गया।

कलेक्टर के तबादले के बाद 2020-21 में हुए संशोधित सर्वे में सीता सिंह को 5.12 लाख रुपये का अवार्ड दिया गया, जो पहले 2.5 करोड़ रुपये होना था।

खोभा गांव में, शकुंतला और उनके दो बेटों के नाम पर 4.16 एकड़ [1.685 हेक्टेयर] का एक टुकड़ा दो बार अधिग्रहित किया गया था। पहले में, 13.89 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया था, जबकि दूसरे में, इसे 30 डिवीजनों में विभाजित किया गया था और 30 करोड़ रुपये की राशि दिए जाने का अनुमान है।

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के एक सवाल के जवाब में इस साल 11 अगस्त को उच्च सदन में साझा किए गए रेलवे के आंकड़ों के अनुसार, भूमि अधिग्रहण में इन विसंगतियों ने परियोजना के बजट को 2016 में 6,672 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 8,913 करोड़ रुपये कर दिया था।

पश्चिम मध्य रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी [निर्माण], मनोज कुमार अग्रवाल ने कहा, "जब भी हमें भूमि अधिग्रहण में कोई शिकायत या विसंगतियां मिलीं, तो राज्य सरकार और ज़िला कलेक्टरों को सूचित किया गया था। कार्रवाई करना उन पर निर्भर है। हमने वही किया जो हमें करना चाहिए था।"

जब उनसे पूछा गया कि क्या रेलवे सरकार की कार्रवाई से संतुष्ट है या नहीं, तो उन्होंने कहा, "हमने कई पत्र भेजे लेकिन हमें शिकायतों पर राज्य द्वारा की गई कार्रवाई की जानकारी नहीं मिली।"

जब न्यूज़क्लिक ने मुख्य सचिव [राजस्व] निकुंज श्रीवास्तव से यह जानने के लिए संपर्क किया कि विभाग ने रेलवे की शिकायतों पर क्या कार्रवाई की है, तो उन्होंने कहा, "मुझे ऐसी किसी भी शिकायत या पत्र की जानकारी नहीं है क्योंकि मैंने हाल ही में कार्यालय का कार्यभार संभाला है। इसलिए, मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकता हूं।”

न्यूज़क्लिक ने स्थानीय विधायक और पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल से भी बात की। उन्होंने कहा, ''2016 में जब रेलवे ने बजट को मंजूरी दी तो बीजेपी नेताओं ने अपनी पीठ थपथपाई, लेकिन वे ही लोग हैं जो भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं। सत्ता का दुरुपयोग करते हुए, वे प्रस्तावित मार्ग को मोड़ने में सफल रहे, निषेध के बावजूद अवैध रूप से ज़मीनें खरीदीं और रेलवे के साथ धोखाधड़ी की।

उन्होंने आगे कहा, "एक तरफ, फ़र्ज़ी लाभार्थियों को मुआवज़ा मिल रहा है, लेकिन दूसरी तरफ, असली भूमि धारक या तो मुआवज़े के लिए दर-दर भटक रहे हैं या उन्हें अपने हक से कम मुआवज़ा मिल रहा है।"

उन्होंने आगे कहा, “ऐसे समय में जब रेलवे अनियमितताओं की ओर इशारा कर रहा है, कई लोगों ने उच्च न्यायालय का रुख किया है और चुनौती दी है कि राज्य सरकार ने संदिग्ध लाभार्थियों को मुआवज़ा कैसे दिया। कुर्सा गांव में जहां 27 मामलों में रेलवे ने मुआवज़ा नहीं देने को कहा, फिर क्यों दिया गया? भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का घोर उल्लंघन है।”

सिंगरौली के ज़िला कलेक्टर अरुण कुमार परमार टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे क्योंकि एक सप्ताह से अधिक समय तक बार-बार प्रयास करने के बावजूद उन्होंने फोन या मेसेज का जवाब नहीं दिया।

रेलवे की शिकायत की रचना

पश्चिम मध्य रेलवे ने पिछले तीन वर्षों में अनियमितताओं को उजागर करते हुए मध्य प्रदेश सरकार के विभिन्न अधिकारियों को दो दर्जन से अधिक पत्र लिखे। लेकिन उन दो पत्रों को उजागर करना महत्वपूर्ण है जो परियोजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को उजागर करते हैं।

सिंगरौली ज़िले में विसंगतियों की शिकायतों से परेशान होकर, 7 जनवरी, 2022 को रेलवे ने मध्य प्रदेश के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव [राजस्व] और ज़िला कलेक्टर को मामले-वार अनियमितताओं को चिह्नित करते हुए एक पत्र लिखा, जो न्यूज़क्लिक के पास मौजूद है।

पत्र में कहा गया है, “देवसर तहसील के पुरवा जागीर गांव में, ब्रिजेश कुमार की आधा एकड़ ज़मीन [0.220 हेक्टेयर] पर सात घर दिखाए गए और 2.06 करोड़ रुपये का अवार्ड पारित किया गया। 10 मई 2018 और जून 2018 को किए गए राजस्व विभाग के पिछले सर्वेक्षणों में, संपत्ति में ब्रिजेश के नाम पर एक कच्चा घर, हैंडपंप, पेड़ और एक पक्का घर है। फिर सर्वेक्षण के बाद सात अन्य घर और उनके मालिक दावा करने के लिए कैसे सामने आ गए?”

रेलवे ने पूछा, “जब ब्रिजेश एकमात्र भूमि मालिक है, तो विजय पांडे और उमेश द्विवेदी को उसकी संपत्ति पर प्रत्येक को 39.47 लाख रुपये का भुगतान क्यों किया गया। यह कैसे हुआ?"

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए, ज़मीन के मालिक, ब्रजेश कुमार ने कहा, “अधिकारियों ने मेरी संपत्ति पर सात घर दिखाए और अन्य की सह-मालिक के रूप में पहचान की और 2.6 करोड़ रुपये का मुआवज़ा मंजूर किया। सात बाहरी लोगों को 1.60 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया गया था और मुझे जुलाई 2023 में 98 लाख रुपये का भुगतान तब मिला जब मैं सात सह-मालिकों की योग्यता को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय में गया।

उन्होंने आगे कहा, “मैंने इस मुद्दे को ज़िला कलेक्टर, एसडीएम और अन्य संबंधित अधिकारियों के सामने उठाने की कोशिश की, लेकिन इसे अनसुना कर दिया गया। इसलिए मुझे उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा और मामला अब न्यायालय में विचाराधीन है।''

रेलवे के पत्र में आगे बताया गया है कि पुरवा जागीर गांव के चार अन्य मामलों में, तीन के बदले 15 घरों को केवल एक ही संपत्ति में दिखाया गया था जो पिछली सूची में नहीं थे।

पुरवा जागीर गांव के अलावा जिन 21 गांवों में इस परियोजना के लिए ज़मीन अधिग्रहीत की जानी है, वहां एक प्लॉट में तीन के बदले 27 मकान दिखा दिए गए, जो चौंकाने वाली बात है।

(पत्र के) अंत में, रेलवे ने देवसर और चितरंगी तहसील के भूमि अधिग्रहण अधिकारियों से झोको, खमरिया कला, कुर्सा, चीव, बालूगढ़, अमो, खोभा और गोडवाली गांवों में निर्माणाधीन संरचनाओं को अवैध घोषित करने का आग्रह किया क्योंकि इनका निर्माण भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 के तहत रोक के बाद किया गया था। लेकिन कार्रवाई के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली।

पत्र में कहा गया है कि इसके अलावा, झोको, खमरिया कला और कुर्सा में, जहां कुछ ज़मीनों का अधिग्रहण किया जाना बाकी है, ज़मीन मालिकों ने निषेध के बावजूद एक या दो मंज़िला इमारतों का निर्माण किया है।

इस पत्र के जवाब में, 6 अप्रैल, 2022 को सिंगरौली कलेक्टर ने एक पत्र को खारिज कर दिया था, जिसमें स्पष्ट किया गया था कि 23 नवंबर, 2020 को एसडीएम और रेलवे अधिकारियों द्वारा एक जांच की गई थी जिसमें विजय पांडे और उमेश द्विवेदी को संपत्ति के कागजात दिखाए गए थे। और ज़मीन मालिक ब्रजेश कुमार की सहमति से 7,894,264 रुपये उनके खाते में बराबर-बराबर ट्रांसफर कर दिये गये।

जवाबी पत्र में आगे कहा गया है, जहां तक गिधेर गांव का सवाल है, संयुक्त जांच टीम को एक भूखंड पर 27 घर मिले हैं।

हालांकि, ज़िला प्रशासन ने रेलवे द्वारा लगाए गए सभी आरोपों को स्वीकार किया है, लेकिन दावा किया कि रेलवे अधिकारी भूमि अधिग्रहण की पूरी प्रक्रिया में शामिल थे और मुआवज़ा उनकी देखरेख में दिया गया था।

विशेष रूप से, जवाबी पत्र में इस बात पर कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि निषेध के बावजूद भूमि कैसे हस्तांतरित, डायवर्ट या विभाजित की गई, और भूमि के एक टुकड़े में 27 हितधारक कैसे हो सकते हैं जो पिछले सर्वेक्षण में मौजूद नहीं थे।

पत्र में प्रतिबंधित भूमि पर चल रहे निर्माण या ज़िला प्रशासन ने उन गलत काम करने वालों के खिलाफ क्या कार्रवाई की है, इस पर भी कोई टिप्पणी नहीं की गई है।

रेलवे की शिकायत के विरुद्ध फैंटम दावेदारों को किया गया भुगतान

न्यूज़क्लिक के पास मौजूद एक अन्य महत्वपूर्ण पत्र में 3 फरवरी, 2021 के, रेलवे ने कुर्सा गांव के भूमि अधिग्रहण में स्पष्ट विसंगतियों पर प्रकाश डाला - यह वह साल है जब इस रिपोर्टर ने जुलाई में दौरा किया था।

कुर्सा गांव में कुल 60 में से 27 भूखंडों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार की रेलवे की शिकायत के बाद, सिंगरौली ज़िला कलेक्टर ने 23 नवंबर, 2020 को आठ अधिकारियों की एक जांच टीम बनाई, जिसने दो महीने बाद, 24 जनवरी, 2021 को निरीक्षण किया था।

जांच टीम के निष्कर्षों पर प्रकाश डालते हुए, रेलवे ने एक सप्ताह बाद 3 फरवरी, 2021 को सिंगरौली ज़िला कलेक्टर को एक पत्र लिखा।

पत्र में कहा गया है: सभी 27 भूखंडों में, जांच टीम को गैर-आवासीय निर्माण, झोपड़ी, खोखे और अन्य जीर्ण-शीर्ण अवस्था में मिले। इन घरों की दीवारें 3 से 5 फीट ऊंची और चार इंच मोटी होती हैं। इनमें से किसी भी घर में खिड़कियाँ, दरवाज़े, छतें या अन्य कुछ नहीं है। इस प्रकार, इन संरचनाओं को घरों के रूप में नहीं गिना जा सकता है। इन संरचनाओं का निर्माण इस प्रकार किया गया था कि एक घर में कई छोटे घर दिखें।

रेलवे ने यह भी बताया, “दिलचस्प बात यह है कि इन भूखंडों के भूमि मालिक स्थानीय हैं लेकिन घर बाहरी लोगों के हैं। एक मामले में ज़मीन तो अशोक कुमार कुम्हार की है, लेकिन जिन 19 घरों पर उनकी संपत्ति दिखायी गयी है, वे बाहरी लोगों के हैं।19 घरों के बदले सभी घर मालिकों को 6.59 करोड़ रुपये का मुआवज़ा दिया गया है।”

कुर्सा गांव के सभी 27 भूखंडों में से मात्र एक भूखंड में 2/17 मकान दर्शाये गये हैं।

पत्र का निष्कर्ष है कि इन संरचनाओं का निर्माण भूमि अधिग्रहण अधिनियम-2013 का उल्लंघन करके रेलवे से अवैध रूप से मुआवज़ा लेने के लिए भूमि मालिकों की सहमति से बाहरी लोगों द्वारा अंजाम दिया गया था।

अत: पुश्तैनी व आवासीय मकानों को छोड़कर बाकी ज़मीनों पर पारित अवार्ड रद्द किया जाए अन्यथा रेलवे को भारी नुकसान होगा। इसके अलावा, ये बाहरी लोग रोक लगाने के बावजूद अभी तक अधिग्रहीत भूमि पर घरों के निर्माण में भी शामिल हैं।

इस पत्र का जवाब रेलवे को नहीं मिला।

इस साल जुलाई के मध्य प्रदेश विधानसभा के आंकड़ों के अनुसार, राज्य सरकार ने 12.21 एकड़ ज़मीन हासिल करने के लिए दावेदारों को 7.02 करोड़ रुपये का मुआवज़ा दिया है, जबकि 1.03 करोड़ रुपये का भुगतान होना बाकी है।

सूत्रों ने कहा कि ज़िला प्रशासन ने उन संदिग्ध लाभार्थियों को भुगतान किया, जहां जांच टीम ने अनियमितताएं पाई थीं और राज्य सरकार से उनके मुआवज़ा वाले अवार्ड रद्द करने का आग्रह किया था।

व्हिसिलब्लोअर डीपी शुक्ला ने कहा, "हालांकि रिपोर्ट में संदिग्ध भूखंडों और बाहरी लोगों के भुगतान को रोकने का सुझाव दिया गया था, लेकिन राजस्व विभाग ने मंजूरी दे दी और भुगतान कर दिया।"

सीधी कलेक्टर का किया गया तबादला

सीधी ज़िला कलेक्टर अभिषेक सिंह के मामले ने परियोजना में सीधी और सिंगरौली ज़िलों में भूमि अधिग्रहण में कथित भ्रष्टाचार पर प्रकाश डाला है।

एक पत्र में, [नीचे] उन्होंने 1 अगस्त, 2019 को पश्चिम मध्य रेलवे के उप मुख्य अभियंता को लिखा जिसमें सिंह ने बताया कि, “मैं इस तथ्य पर भी आपका ध्यान आकर्षित करना चाहूंगा कि भूमि अधिग्रहण के लिए अनैतिक प्रक्रियाओं का विकल्प चुना गया था जिसमें स्थानीय और रेलवे कर्मचारी शामिल थे."

सीधी डीएम का डब्ल्यूसीआर को पत्र, भ्रष्टाचार का लगाया आरोप

पत्र में आगे कहा गया है कि, “भूमि अधिग्रहण के एक मामले में, मैंने पाया कि रेलवे से बड़ी रकम और नौकरी पाने के उद्देश्य से, ज़मीन के एक टुकड़े को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट दिया गया और टिन-शेड से बने घरों को दिखा दिया गया। मैं यह देखकर हैरान रह गया कि अधिकारियों ने ऐसे टिन-शेड वाले घर को 2.5 करोड़ रुपये का अवार्ड दिया। इस मूल्यांकन में रेलवे इंजीनियरों के हस्ताक्षर भी हैं।

पत्र के एक हफ्ते बाद, सिंह को हटा दिया गया और राज्य चुनाव आयोग कार्यालय में एक अतिरिक्त पोस्टिंग दे दी गई।

नाम न छापने का अनुरोध करते हुए, सिंह के साथ काम करने वाले एक अधिकारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, "जब एक वरिष्ठ अधिकारी ने ज़मीन के एक टुकड़े के लिए 2.5 रुपये की मंजूरी मांगी, तो उन्होंने संपत्ति देखने की इच्छा जताई और पाया कि यह एक कृषि भूमि है और टिन-शेड वाले घर बने हुए हैं।" जब उन्होंने आवेदन ठुकरा दिया तो सचिवालय के एक ताकतवर आईएएस अधिकारी ने उन्हें रकम चुकाने के लिए करीब तीन दिन तक मनाने की कोशिश की, लेकिन जब वह अपने फैसले से नहीं हटे तो उनका तबादला कर दिया गया।”

सिंह ने कथित तौर पर सीधी के चंदवाही गांव के सीता सिंह की भूमि अधिग्रहण में अनियमितताएं पाईं। टिन-शेड वाले घर के साथ उनकी आधा एकड़ कृषि भूमि [0.44 एकड़] के लिए, उन्हें 2.5 करोड़ रुपये का अवार्ड दिया गया। बहरहाल, कलेक्टर की आपत्ति के बाद हुए संशोधित सर्वे में ज़मीन का अवार्ड 5.12 लाख कर दिया गया है।

पीडब्लूडी कर्मचारी मृत पाया गया, पैसा उसके बॉस के परिवार को गया

एक अधिसूचना के अनुसार, चीवा गांव के निवासी और पीडब्ल्यूडी सिंगरौली में दिहाड़ी मज़दूर राममनोहर द्विवेदी [55] के 1.03 एकड़ में बने दो घरों और एक खेत को परियोजना के लिए रेलवे की ओर से राजस्व विभाग द्वारा अधिग्रहित करने के लिए 2017 में अधिसूचित किया गया था।

उनकी संपत्तियों के मूल्यांकन के एवज में विभाग ने 9 जुलाई 2020 को 2.88 करोड़ रुपये का अवार्ड दिया।

उनके बेटे रुद्रनारायण द्विवेदी के अनुसार, उनके पिता उनके बैंक खाते में वित्तीय राहत हस्तांतरित करने के लिए लगभग एक साल तक दर-दर भटकते रहे, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अवार्ड की घोषणा के लगभग एक साल बाद 7 जुलाई, 2021 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई।

पुलिस ने निष्कर्ष निकाला: "वह अपने बेटे द्वारा अनुमति के बिना शादी करने से परेशान थे और उन्होंने आत्महत्या कर ली थी।"

उनकी मृत्यु के कुछ महीनों बाद, द्विवेदी के हस्ताक्षर वाला एक हलफनामा सामने आया, जिसमें बताया गया कि उन्होंने घर का एक-चौथाई हिस्सा तीन लोगों - पूर्णिमा सिंह, लवलेश रतन सिंह और विंदू सिंह - को हस्तांतरित कर दिया था - जो उनके वरिष्ठ और पीडब्ल्यूडी उप-अभियंता दधीच सिंह के रिश्तेदार थे। देवसर तहसील में तैनात उनके बेटे रुद्रनारायण ने उक्त आरोप लगाया है।

हलफनामे के आधार पर, जिसमें तारीखें नहीं थीं, 2.88 करोड़ रुपये में से विभाग ने राममोहन और उनके बेटे का नाम छोड़कर 2.48 करोड़ रुपये उनके खातों में स्थानांतरित कर दिए।

लवलेश, जिसके खाते में 1.7 करोड़ रुपये आए, वह दधीच सिंह का बेटा है, जबकि दो अन्य उसके परिवार के सदस्य थे, ऐसा आरोप द्विवेदी के बेटे रुद्रनारायण ने लगाया, जिन्होंने मामले की जांच के लिए आर्थिक अपराध शाखा सहित सरकारी जांच एजेंसियों को शिकायत की, लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है।

जब उन्होंने अगस्त 2022 में जबलपुर उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की, तो कुछ महीने बाद, उन्हें कथित तौर पर शेष 40 लाख रुपये मिले, जो तीन अन्य हितधारकों को वितरित करने के बाद बचे थे।

फोन पर बात करते हुए रुद्रनारायण ने आरोप लगाया कि, “पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर दधीच सिंह, जिनके परिवार के सदस्यों को पैसा मिला, वह मेरे पिता के वरिष्ठ थे और अक्सर हमारे घर आते थे। मुआवज़े की रकम हड़पने के लिए उन्होंने मेरे पिता को मार डाला और पेड़ पर लटका दिया। उन्होंने उनकी मौत को आत्महत्या साबित करने के लिए मेडिकल और पुलिस रिपोर्ट में भी हेरफेर किया है।”

न्यूज़क्लिक द्वारा हासिल की गई उच्च न्यायालय में विचाराधीन रिट याचिका में, रुद्रनारायण ने आरोप लगाया कि, "पिता की मृत्यु के बाद, देवसर तहसील के भूमि अधिग्रहण अधिकारी आकाश सिंह और पीडब्ल्यूडी के उप-अभियंता दधीच सिंह ने एक-दूसरे के साथ मिलकर हेरफेर कर अनुचित लाभ उठाया है। अवार्ड सूची में अपने परिवार के सदस्य का नाम जोड़ा और अवार्ड राशि 2.48 करोड़ ले ली और उसमें से शेष लगभग 40.0 लाख बाकी है जिसका भुगतान अधिकारियों द्वारा नहीं किया गया है।"

याचिका में आगे कहा गया है, “उपरोक्त तथ्य और परिस्थितियों में, यह स्पष्ट है कि दोनों अधिकारियों ने घोर अवैधताएं बरती हैं और याचिकाकर्ता के मुआवज़े की अधिकांश राशि हड़प ली है। याचिकाकर्ता ने अभ्यावेदन प्रस्तुत किया है लेकिन किसी ने याचिकाकर्ता की आवाज़ नहीं सुनी और याचिकाकर्ता को बड़ी अपूरणीय क्षति हुई है, इसलिए याचिकाकर्ता इस माननीय न्यायालय से दोनों अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करने और पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश देने की मांग कर रहा है।"

फोन पर बात करते हुए, उनके वकील महेश शुक्ला ने कहा कि, "मामला अदालत में रखे जाने के बाद, अधिकारियों ने मेरे मुवक्किल के खाते में 40 लाख रुपये का भुगतान किया है।" उन्होंने कहा, "जहां तक मामले का सवाल है, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया है।"

गैर-आदिवासियों को आदिवासियों की पैतृक भूमि पर सह-मालिक के रूप में दिखाया गया

सिंगरौली ज़िले के बरगवा पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले गिधेर गांव के निवासी शंकरलाल बैगा [45] की 1.75 एकड़ [0.712 हेक्टेयर] कृषि भूमि पर सात निर्मित घर दिखाकर 72.23 लाख रुपये का अवार्ड लिया गया है।

बाद में 31 दिसंबर 2021 को बैगा को ज़िला प्रशासन से नोटिस मिला कि आपकी ज़मीन के लिए 10.30 लाख रुपये का मुआवज़ा दिया गया है। जब पूछताछ की गई, तो उन्हें अपनी ज़मीन पर सात अज्ञात गैर-आदिवासी लाभार्थियों के नाम मिले और स्वीकृत कुल अवार्ड 72.23 लाख रुपये आंका गया था।

इससे नाराज़ होकर उन्होंने जबलपुर उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की और बाद में अदालत ने राजस्व के साथ-साथ पुलिस विभाग से भी जांच रिपोर्ट मांगी। इससे पहले कि दोनों विभाग अपनी रिपोर्ट कोर्ट में जमा कर पाते, सिंगरौली कलेक्टर ने 10 अक्टूबर 2022 को सभी सातों नाम हटाते हुए आवेदक को पूरी राशि भुगतान करने का आदेश जारी कर दिया।

बैगा के वकील योगेश्वर प्रसाद तिवारी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “यह कृषि भूमि थी और इसका अवार्ड 10 लाख रुपये से कम होना चाहिए था, लेकिन भूमि अधिग्रहण में शामिल अधिकारियों ने शरारतपूर्वक कृषि भूमि को पूरी तरह से निर्मित घरों के रूप में दिखाया और हर एक घर के मालिकों के रूप में सात काल्पनिक लाभार्थियों को संपत्ति से जोड़ा गया।”

उन्होंने कहा, "जैसा कि अदालत ने जांच का आदेश दिया और ज़िला प्रशासन को इसकी सूचना दी, जांच पूरी होने से पहले, ज़िला प्रशासन ने उसके खाते में पूरे 72.23 लाख रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया।" कोर्ट द्वारा जांच का आदेश देने के बाद नकली लाभार्थी गायब हो गए।

9 अक्टूबर, 2022 को उच्च न्यायालय के निर्देश पर की गई सिंगरौली पुलिस जांच में निष्कर्ष निकला कि ज़मीन केवल शंकरलाल बैगा की है और उस पर केवल एक घर बना हुआ है। जांच रिपोर्ट की एक प्रति न्यूज़क्लिक के पास है।

बैगा के वकील के अनुसार, दिलचस्प बात यह है कि जांच रिपोर्ट अदालत में जमा नहीं की गई है।

अमो गांव का दिलचस्प मामला!

सिंगरौली ज़िले के एक अमो गांव में, जहां रेलवे ने 41 से अधिक भूमि मालिकों से 33.69 एकड़ [13.638 हेक्टेयर] भूमि अधिग्रहण करने की योजना बनाई है, और ज़िला प्रशासन ने 12 अक्टूबर, 2017 को इसे अधिसूचित किया, उसमें सीधी से मौजूदा भाजपा सांसद रीति पाठक के परिवार की भूमि का एक टुकड़ा "टाइपिंग त्रुटि" के कारण बाहर कर दिया गया।

तीन साल बाद, 27 अक्टूबर, 2020 और 15 दिसंबर, 2020 को जारी दो आदेशों में, जब ज़िला प्रशासन ने शेष भूमि को अधिसूचित किया, जिसे "अधिग्रहण किया जाना था, लेकिन टाइपिंग त्रुटि के कारण गलती से छोड़ दिया गया, उस 0.44 एकड़ [0.180 हेक्टेयर ] ज़मीन के मालिक, महेंद्र - यानी सांसद के चाचा थे।

लेकिन 23 दिसंबर, 2022 को जारी अगली अधिसूचना में, भूमि अधिग्रहण सीसीटी की धारा 19 के तहत, भूमि के छोटे टुकड़े में आठ अलग-अलग इकाइयां दिखाई गई हैं।

सिंगरौली के व्हिसलब्लोअर शुक्ला ने बताया कि "अमो गांव में सांसद को फेवर करने के लिए, ज़िला प्रशासन ने 'गलती से' सांसद के पैतृक परिवार से जुड़े एक भूखंड [संख्या 341] को छोड़ दिया था। लेकिन जब 23 दिसंबर, 2022 को 'छूटी गई भूमि' को अधिसूचित किया गया, तो आधे से भी कम एक एकड़ में आठ दावेदार मिले जो उसके चाचा, चाची, बहन, भाई, चचेरे भाई और भतीजे हैं।"

आरोप पर पलटवार करते हुए पाठक ने न्यूज़क्लिक से कहा कि, "हां, वह मेरा पैतृक घर था लेकिन कोई भी मुझ पर भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप नहीं लगा सकता। मैं पिछले दो कार्यकाल से सांसद हूं लेकिन कोई भी मुझ पर भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा सकता।"

उन्होंने कहा, "जिन लोगों को मेरे ऊपर संदेह है, उन्हें ज़िला प्रशासन से शिकायत करनी चाहिए और आरोपों की जांच के लिए एक समिति गठित की जानी चाहिए।"

इस मामले में मुआवज़ा अभी तक नहीं दिया गया है।

कांग्रेस की किसान शाखा से जुड़े किसान शुक्ला उस वक्त व्हिसिलब्लोअर बन गए, जब ज़िला प्रशासन ने सिंगरौली ज़िले के खोभा और छेवा गांव में उनकी एक एकड़ ज़मीन के पांच 'फैंटम' सह-मालिकों को 1.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया। उन्होंने कहा, "मैं अकेला नहीं था। जब मैंने देखा कि हज़ारों लोगों को इसी तरह से ठगा गया है, तो मैंने खोजबीन शुरू की और पाया कि रेलवे और भूमिधारकों को नियमों के ख़िलाफ़ धोखा देने के लिए स्टांप पेपर फर्जी बनाए गए थे।"

महानिरीक्षक पंजीयन एवं मुद्रांक को उनकी शिकायत पर विभाग ने पिछले साल तीन सदस्यीय जांच शुरू की थी। जांच टीम को स्टांप पेपर जारी करने में विसंगतियां मिलीं, जिनका भूमि अधिग्रहण के लिए दुरुपयोग किया गया था। जांच टीम की रिपोर्ट के बाद विभाग ने जून 2023 में सिंगरौली के स्टांप वेंडर जर्रार खान का लाइसेंस रद्द कर दिया।

इतना ही नहीं, शुक्ला ने परियोजना में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और नौकरशाहों की संलिप्तता का आरोप लगाते हुए आर्थिक अपराध शाखा, केंद्रीय जांच ब्यूरो, लोकायुक्त, मुख्य सचिव और अन्य को कई शिकायतें दर्ज कीं। लेकिन सब को अनसुना कर दिया गया।

परियोजना के भूमि अधिग्रहण में धोखाधड़ी का शिकार हुए दर्जनों भूमिहारों में से शुक्ला ने भी न्याय की मांग करते हुए जबलपुर उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाया है।

उन्होंने न्यूज़क्लिक को बताया, "विभिन्न प्लेटफार्मों पर लगातार मुद्दों को उठाने के लिए आईपीसी की धाराओं के तहत ज़िले के जियावन पुलिस स्टेशन में मेरे और मेरे 88 वर्षीय पिता के ख़िलाफ़ तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं। मेरे ऊपर डर मंडरा रहा है।"

रीवा में नौकरियों को लेकर मचा घमासान

रीवा और सीधी में, ज़मीन खोने वाले कई लोग हड़ताल पर हैं और नौकरियों की मांग को लेकर परियोजना का काम ज़बरदस्ती रोक रहे हैं।

संसद में दिए गए एक जवाब के अनुसार, रेलवे ने स्वीकार किया कि उसने सीधी में 860 और रीवा में 293 सहित 1581 भूमि खोने वालों को नौकरियां दी हैं। लेकिन रेलवे ने 2019 की गाइडलाइंस का हवाला देते हुए नौकरियां देने से इनकार कर दिया जिससे विवाद शुरू हो गया।

रेलवे की आंतरिक रिपोर्ट के मुताबिक रीवा रेल लाइन के निर्माण का काम इस साल मार्च से ही रुका हुआ है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल ख़बर को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें:

MP: Railways Sniff Rs 300 Crore Corruption in 541-km Lalitpur-Singrauli Line, Allege Inaction by State Govt

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