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नूंह-मेवात: पहले जैसे भाईचारे का इंतज़ार

मेवात का मिरासी समाज आज भी अपने लोक गीतों में मेवात से जुड़े किस्सों को समेटे है। लेकिन नूंह हिंसा के बाद इनके गीतों पर क्या असर पड़ा है हमने जानने की कोशिश की। पढ़िए ये रिपोर्ट।
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31 जुलाई को नूंह में भड़की हिंसा को डेढ़ महीना होने को आया, हम एक बार फिर से नूंह पहुंचे। हालात कितने बदल गए हैं, हम इस पर एक स्टोरी करने पहुंचे थे। लेकिन नूंह में दाखिल होते ही एक बार फिर कुछ इलाकों में पुलिस और सुरक्षा बल की तैनाती दिखाई दी। सड़कों पर एक बार फिर पुलिस की गाड़ियां, दंगा नियंत्रण वाहन 'वज्र' दौड़ते दिखे।

हम मेवात के लोक गायक मिरासी समाज पर स्टोरी के लिए गए थे, लेकिन इससे एक दिन पहले (गुरुवार को) रात को पता चला कि नूंह हिंसा की साजिश रचने के आरोप में फिरोज़पुर झिरका से कांग्रेस विधायक मामन खान को गिरफ़्तार कर लिया गया था और उन्हें शुक्रवार को कोर्ट में पेश किया जाना था और ये बंदोबस्त उसी सिलसिले में किए गए थे।

जिस वक़्त हम नूंह में दाखिल हो रहे थे उस वक्त इंटरनेट चल रहा था लेकिन कुछ ही देर बाद हम सबके मोबाइल में नेट बंद हो गया, पता चला नूंह में एक बार फिर दो दिन (शुक्रवार-शनिवार) के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। साथ ही शुक्रवार के दिन होने वाली नमाज़ पर भी असर दिखा।

imageशुक्रवार को मेवात में सुरक्षा के इंतज़ाम

हर जगह इस गिरफ़्तारी की ही चर्चा थी, बड़कली चौक पर एक बार फिर कुछ लोगों ने अपनी दुकानों को बंद रखना ही मुनासिब समझा हालांकि बहुत सी दुकानें खुली भी थीं।

हम सोच रहे थे इससे पहले भी हम जब-जब नूंह आए ऐसा ही माहौल मिला। सरकार की तरफ से एहतियातन किए गए ये इंतज़ाम क्या अब नूंह की रोजमर्रा की जिन्दगी का हिस्सा बनने वाले हैं?

हम जिन मिरासी समाज से जुड़े लोक कलाकारों पर स्टोरी करने पहुंचे थे उन्होंने भी सुबह हमारे साथ रिकॉर्डिंग करने से पहले हिचक दिखाई। और इस माहौल के बीच हम पता करने चले थे कि नूंह हिंसा के बाद मेवात के लोक गायक मिरासी समाज के गीतों में क्या लिखा-गाया जा रहा है।

imageलियाकत, मिरासी गायक

हमारी मुलाकात हुई मिरासी लोक गायक लियाकत, ज़ाकिर हुसैन, शौकीन अहमद, इरशाद से, इन लोगों का एक छोटा सा ग्रुप है जो मिरासी लोक गीत-संगीत को आज भी ज़िन्दा रखने की जद्दोजहद में लगे हैं। ये लोग जहां एक तरफ लोक गीतों को आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ परिवार चलाने की जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए कार्यक्रमों और शादियों में भी अपना हुनर पेश करते हैं।

इनके गीतों में हसन खान मेवाती की वफादारी और बहादुरी के किस्से हैं। सन 1947 में महात्मा गांधी के मेवात आने की कहानी है। 1857 के विद्रोह में मेवाती योद्धाओं का योगदान है और देश की एकता में डूबे तराने हैं। ये मेवात के भाईचारे का राग सुनाते हैं और समाज में होने वाली घटनाओं का जिक्र करते हैं। एक गीत जो उन्हें बेहद पसंद है उसे पेश करते हुए वे कहते हैं ''अपने देश में जो एकता है वो सदा कायम रहनी चाहिए'' और वे गाते हैं:

'' अरे मिल के रहा और मिल के रहेगा तिरंगो ऊंचों लहरावे यही अपनी निशानी रे, सब भेदभाव को दूर करो हम सब हैं हिन्दुस्तानी रे..''

वे बड़े चाव से उस गीत के बारे में गाते और बताते हैं। जब महात्मा गांधी मेवात के घासेड़ा आए थे और विभाजन के बाद पाकिस्तान जा रहे मेव मुसलमानों को रोकते हुए उन्हें ''भारत की रीढ़'' बताया था। और तभी से महात्मा गांधी के लिए मोहब्बत इनके दिनों में हमेशा के लिए बस गई।

''बापू गांधी पे है मेव मतवाणो रे'' (महात्मा गांधी पर मेव मुसलमान मतवाले हैं)

गौरतलब है कि राहुल गांधी ने भी अपनी 'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान घासेड़ा में एक जनसभा की थी जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी को याद किया था और कहा था कि '' किसी से डरना नहीं है''। नूंह हिंसा के बाद मेवात में क्या सूरत-ए-हाल था ये पूरी दुनिया ने देखा और यूएन तक में इसकी चर्चा हुई। लेकिन आज भी ये मिरासी समाज उसी पुराने भाईचारे के लौट आने की राह देख रहा है और आज भी उनके गीतों में उन दिनों की चर्चा है।

''ईद-दिवाली त्योहारों को मिलकर साथ मनाते हैं, भाईचारा रहेगा कायम मिलकर साथ निभाते हैं, भाईचारा कायम देखो, ये ताकत मेवात की...हरियाणा की एकता, मिसाल हिन्दुस्तान की''

ग्रुप के मेन सिंगर लियाकत कुछ साल पहले तक अपने गानों में 2016 में हुई नोटबंदी, 2017 में मॉब लिंचिंग के शिकार हुए पहलू खान, जेएनयू कैंपस से ग़ायब हुए नजीब और देश में बदले माहौल पर भी गीत लिखा और गाया करते थे। लेकिन अब उनके कुछ गीत ख़ामोश हो गए हैं। अब वो उन गीतों को सुनाने से बचते हैं। हमने उनसे पूछा कि क्या उन्होंने नूंह हिंसा बाद मेवात के हालात पर कुछ लिखा है? तो कुछ देर ठहर कर बहुत ही सोच-समझकर और नपे-तुले अल्‍फाज के साथ जवाब देते हैं, अभी तो नहीं लेकिन जब हमारे यहां पहले जैसा भाईचारा लौट आएगा तो ज़रूर लिखेंगे।

नूंह हिंसा के बाद किस हाल में थे मिरासी?

जब हमने जानना चाहा कि नूंह हिंसा के बाद जब धरपकड़ का दौर चल रहा था और सभी लोग अपने घरों में रहने से डर रहे थे तो उनके गांव का क्या हाल था? वे बताते हैं कि उन्हें भी अपने घरों से भागना पड़ा था। जब हमने उनसे पूछा कि लेकिन वो तो लोक कलाकार हैं उनका हिंसा से क्या लेना-देना? तो उनका जवाब था,'' मेरे माथे पर तो ये नहीं लिखा कि हम कलाकार हैं। पुलिस हमें पकड़ लेती फिर पता नहीं कब छोड़ती, इसलिए हमें डर से भागना पड़।''

imageज़ाकिर हुसैन, मिरासी सिंगर

वहीं इसी पार्टी के एक दूसरे साथी बताते हैं कि ग्रुप से जुड़े लोग थोड़ा बहुत कमाते हैं, उसी से घर चलता है। लेकिन हिंसा के दौरान सब कुछ बंद रहा। घर चलाने के लिए कर्ज लेने तक की नौबत आ गई थी। उन दिनों को याद करते हुए ग्रुप के एक सिंगर ज़ाकिर हुसैन कहते हैं कि '' वैसे दिन कभी लौट कर नहीं आने चाहिए, वो दिन कोई ना देखे।''

फिलहाल ये लोग इस उम्मीद में हैं कि एक दिन फिर से मेवात में पुराने दिन और भाईचारा लौट आएगा और एक बार फिर से वो खुलकर अपने आस-पास जो हो रहा है, जिसे वो महसूस कर रहे हैं, उसे आज़ादी से लिख और गा पाएंगे।

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