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तिरछी नज़र: और बादशाह, वह तो झूठ ही बोलेगा

 कुछ देर विचार मग्न रह बादशाह ने धीरे से पूछा, "यह सच कैसे बोला जाता है"?
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 प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार 

 बादशाह जब भी चिंतित होता था और रात को नींद नहीं आती थी तो अपने नंबर एक रत्न अलिफ़ को बुलवा भेजता था। पर इस बार चिंता अधिक थी तो बादशाह ने अलिफ़ को फरमान भिजवाया कि कल सुबह दीवाने खास सजाया जाये जिसमें सारे रत्न और दरबारी शिरकत करें। अलिफ़ ने उसी रात सारे रत्नों को खबर भिजवाई और रत्नों ने दरबारियों को। 

 बादशाह के हुक्म की तालीम हुई। अगले दिन सुबह सारे के सारे रत्न और दरबारी दीवाने खास में उपस्थित हुए। सभी रत्न घोड़ों और बग्घियों पर सवार हो कर आए। जो अधिक दूर थेवे पुष्पक विमान पर सवार हो कर आये। विमान बादशाह के दोस्त के हवाई अड्डे पर उतरे। देश के अधिकतर हवाई अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर बादशाह ने अपने दोस्त का ही कब्ज़ा करवाया हुआ था।  

हाँ तो बादशाह के महल में दीवाने खास सजा। बादशाह का तख़्त (सिंहासन) सबसे अधिक ऊंचाई पर रखा था। उससे कुछ कम ऊंचाई पर सबसे बड़े रत्न अलिफ़ का तख़्त रखा था। बाकी के रत्नों और दरबारियों के तख़्त भी उनकी नीचाई के हिसाब से रखे गए थे। जब सभी रत्न आदि अपने अपने तख्तों पर विराज गए तो बादशाह पधारे। बादशाह के पधारने पर उससे भी अधिक ढोलमंजीरें और शहनाईयां बजी जितनी फिल्मों में ऐसे मौकों पर बजती हैं। एक ढोल तो बादशाह ने खुद भी बजा डाला।

 ये ढोल मंजीरें और शहनाईयां तब तक बजती रहीं जब तक बादशाह तख़्त पर नहीं विराजमान हो गए। तख़्त पर बैठते ही बादशाह ने जैसे ही हाथ ऊपर उठाएढोल और शहनाई बजने बंद हो गए। इतनी शांति छा गई कि पिन के गिरने की आवाज भी सुनाई दे जाये। सारे रत्न सांस रोके बैठे रहे क्योंकि सांस लेने से भी शांति भंग होने का अंदेशा था। बादशाह भी कुछ देर आंख बंद किये बैठे रहे जैसे कुछ विचार कर रहे हों। 

 कुछ देर विचार मग्न रह बादशाह ने धीरे से पूछा, "यह सच कैसे बोला जाता है"

 अलिफ़जो सबसे बड़ा रत्न तो था हीसबसे अधिक बुद्धिमान भी थाबोला, "जहांपनाहआपको यह चिंता क्यों सता रही है। आप तो हमेशा ही सच बोलते हैं। अल्लाह आप से कभी भी झूठ न बुलवाये। और जिसने आपको झूठा बोला हैजिसने आपको इस चिंता में डाला हैउसकी खाल न खिंचवा दी तो मेरा नाम अलिफ़ नहीं"। सारे रत्नों और दरबारियों ने अलिफ़ की हाँ में हाँ मिलाई। उन्हें रखा ही इसीलिए गया था।

 "फिर भी कभी कभी मुँह से झूठ निकल ही जाता है"बादशाह ने कहा। बादशाह जानता था कि वह हमेशा ही झूठ बोलता है। सच तो शायद ही कभी बादशाह के मुँह से निकलता था। उसे यही चिंता थी कि कहीं इतिहास उसे सबसे झूठे बादशाह के रूप में न दिखाए। बादशाह को वर्तमान से अधिक इतिहास की चिंता रहती थी।

 "गुस्ताखी माफ हो तो में एक बात कहूं हज़ूर"रत्न ते ने कहा।

 "हाँकहो तेपर ध्यान रखना कि जहांपनाह की शान में कोई गुस्ताखी न हो"अलिफ़ ने कहा।

 "हज़ूरदूर देश मेंजर्मनी मेंवहां के बादशाह ने एक ऐसी मशीन इज़ाद की थी जो झूठ को सच बना देती थी। जर्मनी के उस समय के बादशाह ने उसका खूब इस्तेमाल किया था और खूब सारे झूठ को सच में बदला था। हज़ूरआप भी उसी मशीन का इस्तेमाल करके अपने सारे झूठ को सच बदल सकते हैं"ते ने बताया।

 "तो उस मशीन को जल्दी ही मंगवाया जाये। इसके लिए पैसे की कोई चिंता न की जाये"बादशाह ने हुक्म दिया। "हम उस मशीन का इस्तेमाल जल्दी से जल्दी करना चाहते हैं" 

 "जहांपनाहवह मशीन तो यहीं दरबार में मौजूद है"ते ने बताया।

 बादशाह ने ते की ओर प्रश्न वाचक दृष्टि से देखा। यह देख अलिफ़ ने ते को हड़काया, "ये क्या बेकार की बात कर रहे हो। तुम जानते हो ना अगर तुमने झूठ बोला तो तुम्हारा सर कलम किया जा सकता है। इस मुल्क में झूठ बोल कर जिन्दा रहने का अधिकार सिर्फ जहाँपनाह को ही है"

 "गुस्ताखी माफ हो जहांपनाहपर में सच कह रहा हूँ"ते ने कहा। "जहांपनाह! झूठ को सच में बदलने की वह मशीन हैं हम सबयहाँ दरबार में मौजूद सब रत्न और दरबारी। हज़ूरहम सब ही वह झूठ को सच में बदलने की मशीन हैं जो जहांपनाह के सारे झूठ को सच में बदल सकते हैं। बादशाह जितना मर्जी झूठ बोलेंहम सब रत्न और हम सारे के सारे दरबारी उसे बार बार बोल कर सच बना देंगे। जर्मनी के बादशाह ने यही खोज की थी। उसने खोजा था कि झूठ को बार बार बोला जाये तो वह सच बन जाता है" 

 और उस दिन दीवाने खास की मीटिंग के बाद बादशाह ने हुक्म निकाल दिया कि बादशाह जो भी कुछ बोलेगा उसे सच बनाने के लिए सारे रत्न और सारे दरबारी मुल्क के कोने कोने में जा कर उसे बार बार बोलेंगे और उसे सच में तब्दील करेंगे। और बादशाहवह तो झूठ ही बोलेगा।

 (इस व्यंग्य स्तंभ के लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

 

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