Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

भुखमरी के कगार पर कुम्हार, छोड़ रहे पुश्तैनी रोज़गार

दीपावली में लोग ज्यादा से ज्यादा मिट्टी के दीये ख़रीदते थे लेकिन अब हालात ये हो रहे हैं कि दिनभर सामान बेचने के बाद भी परिवार के लिए एक समय के खाने का जुगाड़ करना मुश्किल हो जाता है।
Potter
Photo: PTI

दीपावली का पर्व नजदीक है। पर्व को देखते हुए कुम्हारों के चाक पर मिट्टी के दीये अपना आकार लेने लगे हैं। तालाब से मिट्टी लाने से लेकर और तैयार माल बाजार पहुंचाने तक का काम जोरों पर है। हालांकि बदलते वक्त के साथ लोगों की पसंद भी बदल रही है। मिट्टी के दीयों से ज्यादा अब बिजली से जलने वाले दीये, मोमबत्ती, लाईट्स घरों में जगमगाने लगे हैं। बावजूद इसके, अभी भी मिट्टी के सामान की जो थोड़ी बहुत जरूरत लोगों के बीच बची है, बस वही जरूरत कुम्हारों के चाक को जिंदा रखे हुए है।

लखनऊ से करीब 100 किलोमीटर दूर सीतापुर जिले के हरगांव ब्लॉक स्थित कई गांव ऐसे हैं जहां कुम्हार (कुंभकार) जाति के शिल्पकार अपना पुश्तैनी काम करते हैं। सीतापुर, मिट्टी से निर्मित सामानों के लिए भी जाना जाता है। हालांकि अब उतना सामान तैयार नहीं हो पाता क्योंकि अधिक कमाई न होने के कारण कुम्हार अपना काम छोड़ते जा रहे हैं।

"अपने पुश्तैनी काम से दिनभर में ये कितना कमा लेते हैं, इनके हित बनने वाली सरकारी योजनाओं का लाभ इन तक पहुंच भी रहा है या नहीं साथ ही अगली पीढ़ी माटी कला से कितना जुड़ी है" ऐसे ही अन्‍य सवालों को लेकर इस रिपोर्टर ने सीतापुर के कुछ गांवों का दौरा कर कुम्हारों से बात की।

सबसे पहले यह रिपोर्टर पहुंची हरगांव के परसेहरा नाथ गांव में जहां हमारी मुलाकात मदनलाल कुम्हार से हुई जो एक दिन पहले बनाये अपने मिट्टी के दीये और अन्य बर्तन धूप में सुखा रहे थे। उनके घर के हालात उनकी मुफलिसी की कहानी बता रहे थे। मदनलाल ने बताया कि अभी जब ये तैयार सामान सूख जायेगा तो इनको रंग करके हरगांव बाजार बेचने के लिए ले जायेंगे इसी बीच वे और माल भी तैयार करेंगे।

मदनलाल कुम्‍हार

मदनलाल कहते हैं प्रत्येक दिन जितना माल बेचने के लिए ले जाते हैं उसका आधा भी नहीं बिक पाता है। वे कहते हैं क्योंकि अभी दीपावली आने वाली है तो आधा सामान बिक जा रहा है यानी अगर वे पांच सौ दीये बाजार तक ले जा रहे हैं तो दिनभर में लगभग आधा बिक जाता है लेकिन आधा तो फिर भी बच ही जाता है। दिनभर की अपनी कमाई के बारे में वे बताते हैं त्यौहारी सीजन में 200, 300 की कमाई भले हो जाए लेकिन अन्य दिनों में कभी कभी तो इतनी भर कमाई तक नहीं हो पाती कि परिवार के लिए एक वक्त की सब्जी का इंतज़ाम हो पाए। मदनलाल भूमिहीन कुम्हार हैं। वे बताते हैं किसी समय उनके पास थोड़ी बहुत खेती थी लेकिन वो भी ले ली गई क्योंकि वह सरकारी भूमि थी।

मदनलाल का 17 लोगों का परिवार है जिसमें वे, उनकी पत्नी, तीन बेटे, तीन बहुएं और पोते पोतियां शामिल हैं। उनके तीनों बेटे माटी कला का अपना पुश्तैनी काम छोड़ चुके हैं और अन्य रोजगार में लग गए हैं। वे उदासभाव से कहते हैं एक समय था जब उनकी माटी कला की कद्र थी। लोगों का मिट्टी के सामान के प्रति रूझान था। घर का सजावटी सामान भी लोग मिट्टी से बना खरीदना पसंद करते थे। करवाचौथ में महिलाएं मिट्टी का करवा खरीदती थी। दीपवाली में लोग ज्यादा से ज्यादा मिट्टी के दीये खरीदते थे लेकिन अब हालात ये हो रहे हैं कि दिनभर सामान बेचने के बाद भी परिवार के लिए एक समय के खाने का जुगाड़ करना मुश्किल हो जाता है तो भला नई पीढ़ी इस काम से क्यों जुड़े।

वे कहते हैं कभी कभी तो ऐसी परिस्थिति तक पैदा हो जाती है कि बस नमक रोटी ही खाकर गुजारा करना पड़ता है।

"सरकार जो दो बार का राशन दे रही है तो क्या वह नहीं मिल रहा" इस सवाल के जवाब में मदनलाल मायूस हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि पता नहीं क्यों उनके परिवार के अन्य सदस्यों का नाम राशन कार्ड से कट किया बस उनका ही बचा है और उनके हिस्से का केवल महीनेभर में पांच किलो अनाज आता है जो परिवार के खाने की पूर्ति तो बिलकुल नहीं करता।

अब हमने उनसे जो सवाल पूछा उसकी उन्हें बिलकुल जानकारी नहीं थी और वह यह कि जब योगी सरकार पहली बार सत्ता में आई थी तो उसके कुछ समय बाद ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विलुप्त होती माटी कला को बचाने और कुम्हारों का जीवनस्तर सुधारने की ओर कदम बढ़ाने की बात कहते हुए माटी कला बोर्ड के जरिए कुम्हारों को रोज़गार देने, उन्हें प्रशिक्षित कर उन्हें सस्ते दर पर ऋण मुहैया कराने, कुम्हारों को मिट्टी खनन के पट्टे देने के साथ ही आने वाले समय में उन्हें टूलकिट भी प्रदान करने की बात कही थी। इसके अलावा कुम्हारों के उत्पादों की मार्केटिंग में योगी सरकार ने पूरा सहयोग करने, बिजली से चलने वाला कुम्हारी चाक, पगमिल और उनके समूह को आधुनिक भट्ठियां देने की बात कही थी। साथ ही मिट्टी के बर्तनों की तरफ लोगों का रुझान बढ़ाने के लिए कुम्हारों को नई डिजाइन सिखाने के लिए प्रशिक्षित करने का वादा किया था।

ये तमाम बातें जानकार मदनलाल हैरान थे। वे हैरानीभरे भाव से कहते हैं सरकार ने उनके हित में इतनी सारी बातें कह दीं और उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं। वे कहते हैं उन्हें ही क्या उनके गांव और इलाके के किसी कुम्हार को इसकी जानकारी नहीं और जानकारी हो भी कैसे जब कोई शासन, प्रशासन का आदमी कुम्हारों के बीच इन बातों को लेकर पहुंचे तब तो जानकारी हो। वे कहते हैं अगर सरकार ने इतना कुछ वादा किया है तो आख़िर वह हो किसके लिए रहा है क्योंकि कुम्हार की जिंदगी तो कुछ नहीं बदल रही। वह गरीबी में था और अब भी है बल्कि हालात तो और खराब होते जा रहे हैं। इसलिए अब गांवों में माटी कला से जुड़े लोग कम होते जा रहे हैं और नई पीढ़ी तो एकदम इस काम से कट चुकी है।

उन्होंने बताया कि उनके गांव में कई लोग कुम्हारगिरी छोड़ चुके हैं और सभी गांवों का यही हाल है। अन्य गांवों में कुम्हारों का हाल जानने के लिए अब हम काज़ीपुर गांव पहुंचे।
गांव में हमारी मुलाक़ात कुम्हार कौशल किशोर से हुई। वे चाक पर दीये बना रहे थे। एक तरफ़ उनका 14 साल का बेटा नितिन दीयों और अन्य मिट्टी के सामान के लिए मिट्टी तोड़ने का काम कर रहा था। नितिन नौवीं कक्षा में पढ़ता है। अपने पिता की मदद के लिए उस दिन वह छुट्टी पर था।

 कौशल किशोर कुम्‍हार

नितिन कहता है वो पढ़ लिखकर दूसरा कोई रोज़गार करेगा लेकिन माटी कला से नहीं जुड़ेगा। उसे अपने पुश्तैनी काम से कोई लगाव नहीं। उसके पिता कौशल किशोर कहते हैं आज के बच्चे इस काम को इसलिए नहीं करना चाहते क्योंकि उन्होंने इस काम की वजह से गरीबी, भुखमरी देखी है। वे कहते हैं अब तो वह खुद नहीं चाहते कि उनके बेटे इस काम को करें। उनका बड़ा बेटा भी इस काम को छोड़ दूसरा काम करने लगा है।

वे बताते हैं कि किसी दिन अगर बहुत अच्छे से बिक्री होती है तब जाकर 250 रुपए हाथ आते हैं। उनके मुताबिक अगर महीने में पांच हजार कमा भी लिए तो बर्तन की सिकाई के लिए एक हजार के तो कंडे ही खरीदने पड़ते हैं। उन्होंने बताया की उनके गांव के करीब 200 लोग कुम्हारगिरी छोड़ चुके हैं। उनको मिलाकर गांव के कुल चार परिवार ही हैं जो अब माटी कला से जुड़े हैं। कौशल किशोर जी से भी जब हमने सरकार की योजनाओं के बारे में पूछा तो उनको भी कोई जानकारी नहीं थी।

खैर अब बारी थी किसी अन्य गांव की ओर बढ़ने की तो हम निकल पड़े पिछौड़ा गांव के लिए। रास्ते में ही हमारी मुलाकात कल्लू कुम्हार से हो गई जो मिट्टी लेकर लौट रहे थे। हम उनसे वहीं बात करना चाहते थे लेकिन उन्होंने घर चलने का आग्रह किया। उनके घर के बाहर बहुत सारे दिये और अन्य बर्तन बनाकर रखे थे जो सूख चुके थे। कल्लू ने बताया कि अब इनपर रंग करके एक दिन बाद बेचने ले जाया जायेगा।

कल्‍लू कुम्‍हार

वे कहते हैं "आप अगर मिट्टी का एक सामान भी खरीदोगे तो वो हमारी अनेक उम्मीदों को जिंदा बनाये रखेगा लेकिन न तो अब मिट्टी की कीमत ही बची है और न हमारी उम्मीदें, समाज और सरकार की उपेक्षा ने हमें पुश्तैनी काम छोड़ने पर मजबूर कर दिया है।" कल्लू ने जब हमसे यह बात कही तो उनका दर्द उनकी आवाज़ में साफ़ झलक रहा था। वे कहते हैं त्यौहारी सीजन है, अभी अभी करवाचौथ भी बीता है इस उम्मीद से मिट्टी के दीये और अन्य सामान बनाते हैं कि शायद कुछ अच्छी कमाई हो जाए लेकिन वक्त के साथ सबकी पसंद बदल रही है। अब लोग न मिट्टी का करवा ही लेते हैं और न ज्यादा मिट्टी के दीये ही। मिट्टी से बने सामानों का बाजार भी फीका हो चला है।

वे कहते हैं अब इस उम्र में पुश्तैनी काम छोड़ते भी नहीं बनता आख़िर करें क्या। काफी कम उम्र से ही उन्होंने अपना पुश्तैनी काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने भी बताया कि उनके गांव में कई लोग अब कुम्हारी का काम छोड़ चुके हैं फिर चाहे वे दूसरों के खेत पर ही मजदूरी के काम पर लग गए हों लेकिन पुश्तैनी काम हरगिज नहीं करना चाहते।

सब गांवों का हाल एक जैसा था। हर गांव में गिने चुने ही कुम्हार बचे थे लेकिन उनके बच्चे इस काम को छोड़ चुके थे। अब सवाल यह उठता है कि जब सब लोग माटी कला को छोड़ देंगे तो क्या एक दिन इस कला का अंत नहीं हो जायेगा?

मौजूदा सरकार ने अपने पहले और फिर दूसरे कार्यकाल में हस्तशिल्पकारों की दशा सुधारने की ओर कारगर कदम उठाने की बात करते हुए इनके जीवन स्तर को बेहतर बनाने की बात कही थी। विलुप्त होती माटी कला पर भी सरकार ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कुम्हारों के पक्ष में कई वादे किये थे। हालांकि सरकारी दस्तावेजों में उनके प्रयास जिंदा है लेकिन जमीनी हक़ीकत कुछ और ही है। इतना तय है कि समय रहते यदि इनके हित के बारे में नहीं सोचा गया तो रही सही माटी कला भी एकदम खत्म हो जायेगी।


(लेखिका लखनऊ निवासी स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest