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इतवार की कविता: फ़िलिस्तीन की छाती में अनगिनत घाव… कर्बला युद्ध दृश्य…

“अस्पताल जो भरा था, अब नहीं है/ मिसाइल, भारी बमों से ध्वस्त हुआ/ वहां बने गड्ढों में जमा मानव रक्त/ रक्त ताल/ उसी में छिटके बच्चों के अंग/ नीलकमल सी आंखें...”
Palestine
फ़ोटो साभार : AP

फ़िलिस्तीन पर इज़रायल का हमला जारी है। दो महीने हो चुके हैं लेकिन उसे रोकने वाला कोई नहीं।

‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं फ़िलिस्तीन के हालात और इज़रायल की बर्बरता को रेखांकित करती कवि-कहानीकार शोभा सिंह की नई कविता— ताकि सनद रहे

 

ताकि सनद रहे 

 

धरती के नक़्शे पर 

छोटा सा देश फ़िलिस्तीन 

पड़ोसी देश इज़रायल 

जिसकी सत्ता ख़ूनी हथियारों की सौदागर

जो ऑक्टोपस की तरह 

फ़िलिस्तीन की ज़मीन 

क्रमश हड़पता रहा 

देश में साज़िशों की बारूदी सुरंगे बिछाता 

अपने शिकंजे में कसता रहा गाज़ा 

बीस लाख लोगों के लिए 

एक संकरी जेल जैसे हालात 

तनाव का झनझनाता अंधेरा घिरता गया 

विक्षोभ का विस्फोट था हमला 

हमास और इज़रायल आमने-सामने                 

फिर हमलावर हुआ इज़रायल 

नीयत बदले की, नरसंहार की 

देश को नेस्तनाबूद करने का मंसूबा 

बमों की भारी बारिश 

इमारतें खंडहर में तब्दील 

मलबे में अनगिनत दबी लाशें 

जिन्होंने जीवन का बसंत भी नहीं देखा था 

 

बदल गई देश की फ़िज़ा 

हवा विषाक्त 

बची कुछ सांसें अवरुद्ध 

आग दहकती रही 

मानवता को नकार 

अस्पतालों पर बम बरसाए गए 

स्कूल खेत खलिहान आबाद आशियाने 

सब राख के ढेर 

यूं ज़मीनी, आसमानी आग बरसा कर 

विभाजन की न बुझने वाली ज्वाला को 

नफ़रत को ज़िंदा रखा  

 

उन्होंने छीन लिया अवाम के पीने का पानी 

अपना हथियार बनाया उनकी भूख को 

कर्बला युद्ध दृश्य को साकार किया 

यूं इज़रायल अपने तेज़ हमलों से 

देश को बहुत बड़े क़ब्रिस्तान में बदलने लगा 

फ़िलिस्तीन की छाती में अनगिनत घाव

युद्ध के ख़तरनाक मंज़र 

बीते हर पल में समाते चले जा रहे थे 

 

गर्द गुबार के बीच

बेटी का मृत शरीर लिए 

घायल पिता फूट पड़ा 

कब तक आख़िर कब थमेगी तुम्हारी लिप्सा

हम  इंसानों को क्या देश का भूगोल मान लिया है 

बच्चों की हत्या कर उनकी लाशों से 

अपनी सीमाओं की चार-दीवारी बनाओगे 

सुरक्षित 

क्या अपनी अमरता के लिए ही

हमारे ख़ून से रंगे हैं हाथ 

लानत है युद्ध अपराधी लानत 


अस्पताल जो भरा था, अब नहीं है 

मिसाइल, भारी बमों से ध्वस्त हुआ 

वहां बने गड्ढों में जमा मानव रक्त 

रक्त ताल 

उसी में छिटके बच्चों के अंग 

नीलकमल सी आंखें 

चीख़ती है मां— हां यही है मेरा लाल, मेरा लाडला 

मेरा भविष्य 

बम से यूं चिथड़ा 

जिसे अभी बड़ा होना था 

आह हम उसे दफ़ना भी न सके 

बिना तुम्हारे कैसे जी पाऊंगी 

आर्तनाद का ज्वालामुखी फूटा

बहा आंसुओं का सैलाब 

बम की यह किरचें धंसी हैं छाती में मेरी, आत्मा में 

बेड़ा ग़र्क़ हो तुम्हारा 

सदियों जले तेरा हृदय, हां जलता रहे धू—धू 

इस रक्त सनी मिट्टी की सौगंध 

हमें तुमसे नफ़रत है आतताई बेइंतिहा 

लेकिन हम तुम्हारी तरह क्रूर बर्बर 

कभी भी नहीं होना चाहते 

हम मांओं की स्मृति में 

बच्चों के मुस्कुराते चेहरे 

उनका बढ़ना आबाद रहेगा

हिटलर की तरह नरसंहारक तुम हमारे सपनों में बारूद भर 

हमें दुख से विक्षिप्त बना

भटका नहीं सकते 

हम सब याद रखेंगे

तुम्हारी घिनौनी  करतूतें 


झुलसे जंगल में कई आवाज़ें थीं आक्रोशित

हमारे बसंत को जला दिया 

आंसुओं से क्या आग बुझेगी 

हमारे जिस्म के लहू में आग बन बहेगी 

इसे हम अपनी शक्ति में बदल देंगे

प्रतिरोध शब्द हमारे  लिए अब 

आकाश का ध्रुव तारा है 

अपने ज़ख़्मों को सिल कर इस राख से 

फ़ीनिक्स पक्षी की तरह उठ खड़े होंगे 

मौत की थरथराहट के बीच हमारा अमन का राग 

तुम्हारा सुकून छीनेगा क्या 

सुना है 

दुनिया के अमनपसंद इस युद्ध की ख़िलाफ़ हैं 

पत्रकार बेटे बेटियों के हत्यारे तुम अमानवीय 

वे बेमिसाल थे जिसकी  गवाही इतिहास में दर्ज होगी 

युद्ध विभीषिका की  खोज ख़बर दुनिया को देने वाले 

जांबाज़ रिपोर्टर 

उनके नाम अमिट हैं हमारे दिलों में 


हमारे बहुत से साथियों को 

जबरन खदेड़ा गया, विस्थापित  

जिन्होंने देश छोड़ने के पहले 

अपनी सरज़मीं को चूमा और कहा

हम लौटेंगे ज़रूर प्यारी मातृभूमि 

घायल बचे हुओं ने कहा 

आमीन आमीन |

 

____________शोभा सिंह 

         (कवि-कहानीकार) 

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