Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव: लोकतंत्र को करारा झटका

जब नामांकन और प्रचार प्रक्रिया के दौरान विपक्षी दलों के ख़िलाफ़ पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में हिंसा की कई घटनाएं हुईं तो सीपीआई (एम) के पश्चिम बंगाल राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने पंचायत चुनावों की वैधता पर सवाल उठाया।
panchayat elections
फ़ोटो : PTI

कोलकाता: हाल ही में पश्चिम बंगाल में हुआ पंचायत चुनाव, नामांकन दाखिल करने से लेकर नामांकन वापस लेने तक, चुनाव के दिन और मतगणना चरण तक देश के सबसे हास्यास्पद चुनावों में से एक रहा। जैसा कि राज्य में विपक्ष ने दावा किया है, पूरी चुनाव प्रक्रिया कथित तौर पर तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के गुंडों द्वारा "प्रबंधित" की गई थी। नामांकन दाखिल करने के चरण के दौरान, राज्य के 50 से अधिक ब्लॉकों में बीडीओ कार्यालय विपक्ष की सीमा से बाहर रहे, क्योंकि टीएमसी के गुंडों ने कथित तौर पर ब्लॉक विकास कार्यालयों की "घेराबंदी" कर ली थी।

मुख्यधारा के मीडिया में एक सवाल पूछा गया: विपक्ष आतंक प्रभावित ब्लॉकों में नामांकन जमा करने का रास्ता क्यों नहीं ढूंढ रहा था? हालांकि, कोशिश करने वालों के लिए जमीनी हकीकत बहुत अनिश्चित थी।

दक्षिण 24 परगना के भंगोर- I ब्लॉक में नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया के तीसरे दिन, सीपीआई (एम) और इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ) के कार्यकर्ताओं ने बीडीओ कार्यालय के सामने बनाए गए घेरे को तोड़ने की कोशिश की। पुलिस ने, सबसे पहले, कथित तौर पर वामपंथी-आईएसएफ गठबंधन को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी। फिर पुलिस और टीएमसी के गुंडों ने कथित तौर पर निहत्थे वामपंथी-आईएसएफ कार्यकर्ताओं पर गोलियां चला दीं, जिसके परिणामस्वरूप तीन आईएसएफ कार्यकर्ताओं की मौत हो गई।

मतदान के दिन भंगोर में कंथालिया हाई स्कूल के पास फिर से हिंसा भड़क उठी, जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी। इसके बाद, मतगणना चरण के दौरान, आईएसएफ उम्मीदवार जहांआरा बीबी, जिन्होंने भंगोर में 82 नंबर सीट जीती थी, को शुरू में 4,000 वोटों के अंतर से विजेता घोषित किया गया था। हालांकि, यह आरोप लगाया गया है कि कुछ ही देर बाद टीएमसी के हिस्ट्रीशीटर अराबुल इस्लाम के आग्रह पर बीडीओ ने उन्हें हारा हुआ घोषित कर दिया और ब्लॉक प्रशासन ने उन्हें विजयी प्रमाण पत्र जारी करने से इनकार कर दिया। पुलिस और ब्लॉक अधिकारियों पर आरोप लगाया गया है कि उन्‍होंने जहांआरा बीबी पर आत्मसमर्पण करने और हार स्वीकार करने के का दबाव डाला पर जहांआरा ने दृढ़ता से इनकार कर दिया।

तनाव बढ़ने पर ग्रामीण मतगणना केंद्र के पास जमा हो गए और गोलीबारी शुरू हो गई। आईएसएफ समर्थकों ने दावा किया कि उन्होंने शांतिपूर्वक विरोध करना शुरू कर दिया पर " पुलिस गोलीबारी का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप तीन और आईएसएफ समर्थकों की जान चली गई।"

मंगलवार देर रात की मतगणना प्रक्रिया में भंगोर में मतगणना केंद्र के बाहर आईएसएफ और टीएमसी और टीएमसी समर्थकों के बीच हिंसक झड़पें भी हुईं। खबरों के मुताबिक, हिंसा में आईएसएफ समर्थक रेजाउल गाजी (23) और हसन मोल्ला (26) की मौत हो गई और कथित तौर पर राजू मोल्ला नाम के एक अन्य व्यक्ति की भी मौत हो गई।

जैसा कि विपक्ष ने आरोप लगाया है, 334 से अधिक वामपंथी और आईएसएफ समर्थकों को पुलिस ने पकड़ लिया। मतदान के दिन से एक दिन पहले मतपेटियां खोले जाने की कहानियां भी मीडिया में सामने आई हैं, साथ ही सैकड़ों वामपंथी कार्यकर्ताओं पर "टीएमसी गुंडों" द्वारा हमला किए जाने की भयानक कहानियाँ भी सामने आई हैं। इस बार मतगणना चरण के दौरान फैलाया गया आतंक विशेष रूप से भयावह था, क्योंकि टीएमसी विधायकों ने कथित तौर पर गुंडों के साथ मतगणना केंद्रों में प्रवेश किया और राज्य के कई जिलों में विपक्षी मतगणना एजेंटों को जबरन हटा दिया।

मैदान पर मौजूद लोगों के अनुसार, हारने वाले टीएमसी उम्मीदवारों ने विजेता घोषित होने के लिए कई तरह के प्रयास किए। एक उम्मीदवार ने कथित तौर पर विपक्षी छाप वाले मतपत्र भी खा लिए, जबकि दूसरे ने कुछ मतपत्रों को अमान्य करने के लिए उन पर "स्याही और पानी फेंक दिया"। जब वे पीछे चल रहे थे तो दूसरों ने अराजकता पैदा करने और दोबारा गिनती की मांग करने की उम्मीद में मतगणना प्रक्रिया को बाधित करने के लिए गुंडों को नियुक्त किया। विपक्षी एजेंटों को बाहर निकालने के बाद, वे कथित तौर पर खाली हॉल में पुनर्मतगणना प्रक्रिया में हेरफेर करने में कामयाब रहे - जिसके परिणामस्वरूप उन्हें विजेता घोषित किया गया।

इस वर्ष के चुनाव की एक और विशेषता यह थी कि बीडीओ के एक वर्ग पर टीएमसी उम्मीदवारों को विजेता घोषित करने के लिए अनुचित साधनों का सहारा लेने का व्यापक रूप से आरोप लगाया गया है। इस प्रकार की विसंगतियां मुर्शिदाबाद, बर्दवान पूर्व (गलसी, क्लाना और रैना ब्लॉक में), बीरभूम, हुगली, नादिया, मालदा और यहां तक कि बर्दवान पश्चिम जिलों से भी रिपोर्ट की गईं।

हालांकि, पंचायत चुनाव 2023 के परिणामों के साथ तृणमूल कांग्रेस ने ग्रामीण बंगाल में अपनी पकड़ बरकरार रखी, लगभग 52% सीटें जीतीं, टीएमसी का वोट शेयर - अगर पिछले विधानसभा चुनाव परिणामों के साथ तुलना की जाए - तो भारी गिरावट आई है। भाजपा का वोट शेयर भी 2019 में 40% से घटकर 2021 में 38% हो गया। सभी झगड़ों के बावजूद स्पष्ट लाभ वामपंथी, आईएसएफ और कांग्रेस गठबंधन को मिला, जो पिछले साल के विधानसभा चुनावों में 10% वोट पाने से सुधरकर 21 हो गया। इस वर्ष के पंचायत चुनाव में वाम दलों के वोट शेयर में वृद्धि पिछले नागरिक चुनावों और विधानसभा उप-चुनावों के रुझानों के अनुरूप थी।

चुनावी हिंसा और विवादास्पद नतीजे ममता बनर्जी की पार्टी के लिए गले की हड्डी साबित हुए। जबकि तृणमूल कांग्रेस ने इस जीत को "लोगों की जीत" और लोकतंत्र के रूप में चिह्नित किया, चुनाव की विवादास्पद प्रकृति ने उत्सव पर पानी फेर दिया।

12 जुलाई को मीडिया से बात करते हुए, सीपीआई (एम) के पश्चिम बंगाल राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने पंचायत चुनावों की वैधता पर सवाल उठाया, जब नामांकन और प्रचार प्रक्रिया के दौरान विपक्षी दलों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएं हुईं। मोहम्मद सलीम ने कहा, "लोग जन पंचायत को फिर से हासिल करना चाहते थे, लेकिन टीएमसी, राज्य सरकार और चुनाव आयोग ने लोगों को धोखा देने के लिए एक प्रणाली विकसित की।" सीपीआई (एम) ने ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार पर मतगणना प्रक्रिया में हेरफेर करने का भी आरोप लगाया।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलित ब्यूरो ने "लोकतंत्र के लिए संघर्ष कर रहे पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ" एकजुटता व्यक्त करते हुए एक बयान जारी किया।

घोषणा में कहा गया है: "राज्य प्रशासन और राज्य चुनाव आयोग, सत्ताधारी पार्टी के साथ मिलीभगत से काम करते हुए, राज्य चुनाव आयोग के आदेशों का उल्लंघन करते हुए, लोगों द्वारा चुने गए विकल्पों में बड़े पैमाने पर हेराफेरी करने में लगे हुए थे। उच्च न्यायालय के निर्देशों के पालन का खुला उल्लंघन हुआ था।" सीपीआई (एम) पोलित ब्यूरो ने भी देश के लोकतांत्रिक विचारधारा वाले लोगों से इस गंभीर समय में पश्चिम बंगाल के लोगों के साथ खड़े होने का आग्रह किया।

ममता बनर्जी ने भी हिंसा की घटना को स्वीकार किया, हालांकि उन्होंने इसका दोष विपक्ष पर मढ़ दिया। मुख्‍यमंत्री ने कहा, "पंचायत चुनाव में जिन उम्मीदवारों और पार्टी कार्यकर्ताओं की जान चली गई, मुझे उनकी मौत पर गहरा दुख है, भले ही उनकी राजनीतिक संबद्धता कुछ भी रही हो।" उन्होंने प्रभावित परिवारों को 2 लाख रुपये की सहायता की घोषणा की और मतदान के दिन जान गंवाने वालों के परिजनों को होम गार्ड में नौकरी देने का वादा किया।

मूल अंग्रेजी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें :

West Bengal Panchayat Elections: A Resounding Blow to Democracy

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest