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मुद्दा : AI चुनावों को कैसे प्रभावित कर सकता है?

देश में इस वक़्त 18वीं लोकसभा के लिए 7 चरणों में चुनाव चल रहे हैं। क्या मौजूदा दौर में टेक्नोलॉजी चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है अगर हां तो कैसे?
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देश में इस वक़्त 18वीं लोकसभा के लिए 7 चरणों में चुनाव चल रहे हैं। क्या मौजूदा दौर में टेक्नोलॉजी चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है अगर हां तो कैसे? इसे समझने के लिए IWPC (Indian Women Press Corps) में 23 अप्रैल को एक पैनल चर्चा आयोजित की गई।

इस चर्चा में पैनलिस्ट के तौर पर बूम के वरिष्ठ संवाददाता आर्चिस चौधरी, फेमिनिज़्म इन इंडिया की संस्थापक-सीईओ जपलीन पसरीचा, AI थॉट लीडर कार्तिक शर्मा और एसोसिएट पॉलिसी काउंसिल इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की तेजसी पंजियार शामिल थीं।

चर्चा के दौरान एक बात ये निकल कर आई कि AI (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) का उपयोग कुछ समय से किया जा रहा है लेकिन जेनेरेटिव AI के आगमन के साथ ही चुनाव प्रक्रिया पर ज़्यादा प्रभाव पड़ा है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं। जेनरेटिव AI का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इसने सूचना के प्रसंस्करण में क्रांतिकारी बदलाव ला दिया है।

चर्चा में पैनलिस्ट के तौर पर शामिल बूम के वरिष्ठ संवाददाता आर्चिस चौधरी के अनुसार जेनेरेटिव AI का प्रभाव मौजूदा चुनावों में पहले से ही देखा जा सकता है और यह मतदान की तारीखों के करीब भी हो सकता है। उन्होंने कहा, "इन टूल्स का इस्तेमाल राजनीतिक दलों द्वारा दुष्प्रचार अभियान के रूप में किया जा सकता है। डीप फेक के बढ़ते चलन का बिना किसी जवाबदेही के भ्रामक जानकारी के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है।"

फेमिनिज़्म इन इंडिया की संस्थापक-सीईओ जपलीन पसरीचा के अनुसार, AI और ऑनलाइन एब्यूज़ भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और पत्रकारों को इससे अधिक ख़तरा है। AI डीप फेक महिलाओं को सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है। पसरीचा कहती हैं, “नफ़रत फैलाने वाले भाषण और एब्यूज़ को रोकने के लिए उचित तंत्र होना चाहिए। सोशल मीडिया कंपनियों को इन तकनीकों के शुरू होने से पहले ही ऐसी चीज़ों के लिए सुधारात्मक उपाय करने चाहिए। जब भी कोई नई तकनीक पेश की जाती है तो लैंगिक भेदभाव एक सामान्य घटना है क्योंकि इंटरनेट समाज के बड़े हिस्से को प्रतिबिंबित करता है।”

AI थॉट लीडर कार्तिक शर्मा ने हालांकि इसके एक सकारात्मक पहलू पर बात करते हुए कहा कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और राजनेताओं द्वारा अपनी छवि को बेहतर बनाने के लिए AI का बहुत प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है, लेकिन समस्या प्रतिरूपण के मामले में दिखाई देती है। चुनाव के दौरान उम्मीदवार का स्केलेबल वर्ज़न बनाने के लिए यह एक शानदार उपकरण है। उन्होंने यह भी कहा, “डीप फेक कंटेंट के मामले में अस्पष्ट आईटी कानूनों के कारण कंटेंट क्रिएटर्स के स्रोत को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है। जेनरेटिव AI की परिभाषा स्पष्ट नहीं है जिसके कारण जवाबदेही तय करने में समस्या आती है।"

एसोसिएट पॉलिसी काउंसिल इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की तेजसी पंजियार ने कहा कि AI का मीडिया की वैधता पर भी प्रभाव पड़ सकता है। डीप फेक के ख़तरे पर आईटी मंत्रालय की नीति में गहरी खामियां हैं। राजनीतिक दलों की भी जवाबदेही तय होनी चाहिए।"

आर्चिस चौधरी के अनुसार "ऐसे समय में जब आदर्श आचार संहिता लागू है, चुनाव आयोग डीप फेक के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा सकता है क्योंकि तकनीक नई है जो चुनाव प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकती है।"

IWPC की अध्यक्ष पारुल शर्मा ने AI के उपयोग के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि हम अक्सर भावनाओं को समझने और प्रतिक्रिया देने के लिए मशीनों की क्षमता पर विचार करते हैं, जो आकर्षण और भय दोनों पैदा कर सकते हैं, लेकिन AI की समझ और ज्ञान चुनाव के दौरान बहुत मददगार हो सकता है।

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