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क्या सीरिया में 'खेल के नियमों' में बदलाव कर रहा है रूस?

सीरिया में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं जिनके आधार पर कहा जा रहा है कि रूस और इज़राइल के बीच कुछ पक रहा है। जिसके चलते दोनों देशों के बीच पुरानी कार्य व्यवस्था खतरे में पड़ सकती है।
क्या सीरिया में 'खेल के नियमों' में बदलाव कर रहा है रूस?

पश्चिम एशिया में अफवाह फैलाने के लिए ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती है, यहां अफवाहें राजनीति का जीवन हैं और राजनीति अफवाहों का जरिया। रूस-इजरायल संबंधों में संकट के बारे में भी एक ऐसी ही बड़ी अफवाह उड़ रही है।

दो हफ्ते पहले सऊदी सरकार की ओर झुकाव वाले दैनिक अख़बार अशरक अल-अवसात में छपी एक रिपोर्ट के साथ ही ये अफवाह उड़ना शुरू हो गई है, जिसमें मॉस्को डेटलाइन के बारे में कहा गया है, जो रूसी रक्षा मंत्रालय के कुछ बयानों के आधार पर थी, इसमें सीरिया के अलेप्पो स्थित शोध केंद्र और अल-क्यूसर जहां ईरानी सुरक्षा बलों का अड्डा है, पर इजरायली हवाई हमले के बारे में कहा गया था।

सऊदी दैनिक के अनुसार, रूसी रक्षा मंत्रालय ने सीरिया पर हुए इस्राइली हमलों पर पहले कभी कोई टिप्पणी नहीं की थी, लेकिन इस बार उसने दो बयान जारी किए हैं। उन्होंने इज़राइल द्वारा "सीरियाई संप्रभुता पर निरंतर हमलों" का उल्लेख किया और सीरियाई वायु रक्षा द्वारा इजरायली हमलों और मिसाइलों का मुकाबला करने में पाई सफलता की सराहना भी की है। ये नई अपडेट रूसी और इजराइली संबंधों के बीच में बदलते रिश्तों की तरफ संकेत करती है।

अशरक अल-अवसात ने मास्को में अपने "भरोसेमंद रूसी स्रोत" का हवाला देते हुए कहा है कि इजरायल के हमले "अब प्रभावी नहीं हैं क्योंकि सीरियाई विमान-रोधी प्रणालियों को बढ़ा दिया गया है, और मास्को ने दमिश्क को वायु रक्षा उपकरण प्रदान किए हैं। सूत्र ने दावा किया है कि यह देखने की बात है कि रूस, इस्राइली हमलों का कैसे जवाब देता है और यह उनके रुख में एक बदलाव का संकेत भी देता है। अख़बार का दावा है कि यह 16 जून को जिनेवा में यूएस-रूस शिखर सम्मेलन के बाद हुआ है जहां रूसी पक्ष ने यह समझ लिया था कि "वाशिंगटन, इजराइल द्वारा सीरिया पर किये जा रहे लगातार हमलों से खुश नहीं है"।  

इससे ये तो तय है कि रूस, सीरिया में "खेल के नियमों" को बदलना चाहता है। इससे पहले भी रूस और इज़राइल का एक दूसरे को संदेश भेजने का एक जटिल इतिहास रहा है। साल 2015 में रूस ने सीरिया में हस्तक्षेप किया था तब दोनों देशों ने उन्हें उलझन से बचाने के लिए एक तथाकथित विघटन तंत्र की स्थापना की थी। दोनों के बीच हुए समन्वय की पूरी सीमा सार्वजनिक डोमेन में नहीं है, लेकिन इसके मूल में जो बात है वह यह है कि इज़राइल, सीरिया में ईरानी संपत्ति और प्रॉक्सी मिलिशिया के खिलाफ किये जाने वाले ऑपरेशन से पहले रूस की अनुमति नहीं लेता है।

इजरायल को कार्रवाई करने की आज़ादी पर रूस की स्वीकृति एक रहस्य बनी हुई है, क्योंकि मास्को समय-समय पर सीरिया में इजरायल के हमलों के बारे में नाखुशी का संकेत देता है, हो सकता है कि इसके पीछे और भी कारण हों जैसे कि पूर्व इजरायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू के राष्ट्रपति पुतिन के काफी अच्छे संबंध बने हैं।

निश्चित रूप से, मास्को इस प्रभाव से चकित था जो नेतन्याहू ने ट्रम्प प्रशासन पर डाला था। नेतन्याहू ने भी इसे पुतिन के साथ रिश्ता कायम करने लिए एक मुख्य बिंदु बनाया।

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (बाएं से दूसरे) और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू 9 मई, 2018 को रेड स्क्वायर, मॉस्को में विजय दिवस सैन्य परेड देखते हुए।

मेरे विचार से, यह असंभव है कि जिनेवा शिखर सम्मेलन में राष्ट्रपति बाइडेन ने इज़राइल को बस के नीचे कुचलने के लिए फेंक दिया हो। अमेरिका-रूस के उच्च-स्तरीय आदान-प्रदान में इतनी भी स्पष्टता और विश्वास नहीं है। इसके विपरीत, अमेरिका, सीरिया की धरती पर ईरान समर्थित किसी भी "प्रतिरोधी मोर्चे" को बिखेरने के लिए इजरायल की कार्यवाइयों का समर्थन करता है। समान रूप से, अमेरिका, सीरिया में रूसी सैन्य ठिकानों और पूर्वी भूमध्य सागर में उनके शक्ति प्रदर्शन का विरोध करता है।

इस मामले की जड़ यह है कि क्षेत्रीय परिदृश्य में विभिन्न किस्म के बहुत अधिक बदलाव सामने आए हैं जो रूस और इज़राइल के बीच पुरानी कार्य व्यवस्था पर असर डाल सकते हैं। बाइडेन की सीरिया नीति अभी तक स्पष्ट नहीं हुई है, ईरान के आसपास की स्थिति तेजी से बदल रही है और इसके साथ ही अमेरिका-ईरान संबंध एक नया रूप ले सकते हैं। इजराइल और ईरान दोनों में सरकारें बदली हैं, यूएस-इजराइल संबंधों को दोबारा से बनाया जा रहा है। दमिश्क के साथ रूस के समीकरणों में भी कई तरह की दिक्क्तें दिखाई दे रही हैं। इजराइल-तुर्की अलगाव नरम हो रहा है, इत्यादि-इत्यादि।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सीरिया के हालत वापस हिंसा की तरफ बढ़ रहे हैं जो अपने आप में  परेशान करने वाले संकेत हैं, विशेष रूप से दारा के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में, जो इजरायल की सीमा से दूर नहीं है, जहां ईरानी और रूसी प्राथमिकताएं विपरीत उद्देश्यों के लिए काम करती दिखाई देती हैं और सीरियाई निज़ाम अपनी ताकत दिखाने के मामले में थका सा नजर आता है।

इसमें कोई शक नहीं है कि दारा में जो कुछ हो रहा है, उसमें इज़राइल भी एक पार्टी है। जेरूसलम पोस्ट में कहा गया है कि, "ईरानियों और उनके प्रॉक्सी ने कभी भी इजरायल की सीमा के पास दक्षिणी सीरिया में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करने की अपनी योजना को नहीं छोड़ा है। यदि रूस ने दारा को छोड़ दिया, तो सीरिया में उसकी प्रतिष्ठा दाव पर लग सकती है और उसके रणनीतिक हितों को झटका लग सकता है।

इसका "एक संभावित परिणाम दक्षिणी सीरिया में विकास के प्रति इजरायल की सैन्य रणनीति में बदलाव हो सकता है जो स्थिति को और जटिल बना देगा और संभवतः रूसी-सीरियाई संबंधों में तनाव बढ़ाएगा।"

रूसी विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के तहत ईरान की विदेश नीति, चीन और रूस की धुरी बनेगी, जो वास्तव में, ईरान में कट्टर "प्रतिरोध" की राजनीति के उदय से चिंतित थे। दूसरी ओर, ईरान और इज़राइल के बीच हाल ही में तनाव बढ़ गया है। सीरिया एक ऐसा रंगमंच है जहां ये तनाव चलता रहता है।

इस अत्यधिक अस्थिर पृष्ठभूमि के विपरीत, मास्को, इजराइली प्रधानमंत्री नेफ्ताली बेनेट के रुख बारे में अनुमान लगा रहा है। क्योंकि बेनेट प्रधानमंत्री के रूप में नेतन्याहू की तुलना में "अधिक अमेरिका" समर्थक लगते हैं। वे कहते हैं कि उनका इतिहास अमेरिका का इतिहास है और उनके मूल्य अमेरिकी मूल्य हैं- उनका यानि अमरीका का लोकतांत्रिक आचरण, विविधता का सिद्धान्त और इसी तरह की बातों का दावा करते हुए वे बाइडेन प्रशासन की तरफ झुकते नजर आते हैं।

बेनेट पहले इजरायली प्रधानमंत्री हैं जिनके अमेरिकी माता-पिता हैं और अमेरिकी मूल का परिवार है। जाहिर है, बेनेट का अमेरिकी जनता के सामने इजरायल का नया चेहरा बनना तय है।

लब्बोलुआब यह है कि यह रूस का ट्रेडमार्क राजनयिक कदम है जो सीरिया में "खेल के नियमों" की समीक्षा करने का अस्पष्ट संकेत देता है और जो इजरायल के लिए एक झटका है, लेकिन फिर भी रचनात्मक भावना के तहत रूस बेनेट सरकार से जुड़ाव के व्यापक इरादे रखता है और उसके साथ काम करना चाहता है। इज़राइल रूसी राजनयिक टूलबॉक्स से परिचित है, इसलिए उसने रूसी इशारे को जांचा और तेजी से प्रतिक्रिया दी है।

तास समाचार एजेंसी ने मंगलवार को बताया कि रूसी सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलाई पेत्रुशेव और उनके नए इजरायली समकक्ष इयाल हुलता के बीच मास्को में "रूसी और इजरायली सुरक्षा सेवाओं के बीच घनिष्ठ सहयोग पर खास चर्चा हुई है"।

रूसी सुरक्षा परिषद की एक रीडआउट/विज्ञप्ति में कहा गया है कि, "दोनों पक्षों ने रूसी-इजरायल सहयोग और उसके विस्तार की योजनाओं को दोहराया है, और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद का मुकाबला करने पर ध्यान देने के साथ सुरक्षा परिषदों और विशेष सेवाओं के बीच सहयोग के मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की है।

रूस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बेन-शबात ने कथित तौर पर अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय एजेंडे पर सबसे अधिक दबाव बनाने वाली समस्याओं पर सहयोग के लिए रूसी पक्ष को धन्यवाद दिया है।

सीरिया को लेकर मॉस्को और तेल अवीव के बीच समन्वय का कोई ख़तरा दिखाई नहीं देता है। मॉस्को का कोई इरादा नहीं है कि वह इज़राइल के साथ समन्वय पर पर्दा गिराए औए उसकी संभावना भी नहीं है, लेकिन इसके लिए नेतन्याहू के साथ बनी समझ को आगे ले जाना होगा।

मॉस्को ने यह भी सुनिश्चित किया कि बेनेट के अमेरिका की बहुचर्चित यात्रा पर जाने से पहले ही इज़राइल की नई सरकार के साथ बातचीत शुरू हो जाए, जहां सीरिया और ईरान का चर्चा के एजेंडे में शामिल होना निश्चित है।

खुद पुतिन ने इस्राइल के साथ संबंधों में भारी मेहनत की है। उदाहरण के लिए, वित्तमंत्री एविग्डोर लिबरमैन के मुताबिक बेनेट सरकार में उनके प्रभावशाली लोग हैं - जिन्होंने दोनों देशों के बीच घनिष्ठ संबंधों को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है। मेतरीत्योश्का गुड़िया की तरह, इसमें भी छिपे हुए रहस्य हैं, जिन्हें हम कभी नहीं जान पाएंगे।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:

Russia-Israel Ties are Like Matryoshka Dolls

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