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पश्चिम यूपी से अलग है पूर्वांचल का मिज़ाज, जानिए क्या है सियासी दलों की चुनावी गणित?

पूर्वांचल में बीजेपी के लिए इस बार भी चुनौतियां आसान नहीं हैं। आंकड़ों पर ग़ौर करें तो पूर्वांचल में एनडीए गठबंधन का स्ट्राइक रेट ज़्यादा मज़बूत नहीं है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के ग़ाज़ीपुर समेत कई ज़िलों में बीजेपी का खाता नहीं खुल पाया था।
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फोटो साभार : इंडिया टूडे

यूपी में पूर्वांचल का मिजाज पश्चिमी उत्तर प्रदेश से बिल्कुल अलग है। बीजेपी के लिए यह इलाका इसलिए भी अहम है, क्योंकि यह उनके कई शीर्ष नेता इसी इलाके से जुड़े हैं। बनारस से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक विरासत गोरखपुर में सिमटी हुई है। कांग्रेस की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के बीच सपा के साथ चुनावी तालमेल ने पूर्वांचल की सियासी हवा का रुख बहुत कुछ बदल दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के मुकाबले पूर्वांचल में बीजेपी के लिए इस बार भी चुनौतियां कड़ी हैं।

अपने ठेठ अंदाज और अक्खड़पन के लिए मशहूर पूर्वांचल ने देश को पांच प्रधानमंत्री दिए हैं, जिनमें पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, वीपी सिंह, चंद्रशेखर और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आते हैं। पूर्व पीएम चंद्रशेखर के 23 साल बाद साल 2014 में इसी इलाके से देश को पीएम दिया। वीर बहादुर सिंह के बाद साल 2017 में यूपी के योगी आदित्यानाथ पूर्वांचल से मुख्यमंत्री बने। पूर्वांचल में 21 जिले और 26 लोकसभा सीटें हैं। यूपी की 6.37 (32 फीसदी) करोड़ (2011 की जनगणना) आबादी इसी इलाके में रहती है। मोदी सरकार के तीन मंत्री और योगी सरकार में 13 अन्य मंत्री भी पूर्वांचल से ही आते हैं।

पूर्वांचल में बनारस, जौनपुर, भदोही, मिर्जापुर, गोरखपुर, कुशीनगर, सोनभद्र, देवरिया, महाराजगंज, संत कबीर नगर, बस्ती, आजमगढ़, मऊ, गाजीपुर, बलिया, सिद्धार्थनगर, चंदौली, अयोध्या, गोंडा, बलरामपुर, श्रावस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, अंबेडकरनगर आदि जिले शामिल हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 19 सीटें जीती थी, जबकि सात सीटें सपा-बसपा गठबंधन को मिली थीं। चुनावी आंकड़ों के मुताबिक़ साल 2014 में बीजेपी सरकार इस इलाके में 26 में से 25 सीटों पर कब्जा किया था। सपा को सिर्फ एक सीट पर संतोष करना पड़ा था।

साल 2019 में बीजेपी के खिलाफ सपा-बसपा ने मिलकर चुनाव लड़ा तो सियासत का रुख बदल गया। पिछली मर्तबा के चुनाव में बीजेपी को गाजीपुर, घोसी, जौनपुर और लालगंज सीटें गंवानी पड़ी थी, जहां साल 2014 के चुनाव में उसे बंपर जीत मिली थी। यह वो सीटें हैं जहां साल 2014 में वोटरों ने बीजेपी के पक्ष में झूमकर वोट दिए थे। पूर्वांचल में बीजेपी के लिए इस बार भी चुनौतियां आसान नहीं हैं। आंकड़ों पर गौर करें तो पूर्वांचल में एनडीए गठबंधन का स्ट्राइक रेट ज्यादा मजबूत नहीं है। साल 2022 के विधानसभा चुनाव में पूर्वांचल के गाजीपुर समेत कई जिलों में बीजेपी का खाता नहीं खुल पाया था।

गायब हैं जनता के मुद्दे

पूर्वांचल यूपी के पिछड़े इलाकों में आता है। यह पूरी भोजपुरी बेल्ट है, यहां ज्यादातर लोग खेती-किसानी करते हैं। इस बार बेरोजगारी और महंगाई के अलावा सिर्फ किसानों के मुद्दे हैं। एमएसपी की गारंटी सबसे बड़ा मुद्दा है। पूर्वांचल के किसानों की डिमांड है कि सरकार धान-गेहूं पर एमएसपी की गारंटी दे। चंदौली के उतरौत गांव के प्रधान महेंद्र मौर्य कहते हैं, ''पंजाब और हरियाणा के 90 फीसदी से ज्यादा किसान अपनी सारी उपज सरकार को एमएसपी पर बेच लेते हैं, जबकि पूर्वांचल में सिर्फ रसूख वाले किसानों का धान-गेहूं ही सरकारी दाम पर बिक पाता है। मोदी सरकार से किसानों की लड़ाई जायज है और वो यह लड़ाई जीतते हैं तो पूर्वांचल के किसान ही सबसे ज्यादा फायदे में रहेंगे।''

''पूर्वांचल में छुट्टा जानवरों का आतंक और महंगी होती खेती ही सबसे बड़ा मुद्दा है। बीजेपी सरकार ने बड़ी चालाकी के साथ यूरिया के पैकेट का वजन घटा दिया और अन्नदाता उफ भी नहीं कर सके। गौर करने की बात यह है कि सरकार जितना अनाज फोकट में बांटती है, किसानों को उससे ज्यादा नुकसान छुट्टा पशुओं से हो रहा है। पूर्वांचल में सर्वाधिक धान-गेहूं की खेती बनारस मंडल के चंदौली, गाजीपुर और जौनपुर में होती है। हालत यह है कि छुट्टा पशुओं के चलते किसान अपनी फसल नहीं बचा पा रहे हैं। इन पशुओं के हमले से पूर्वांचल के दर्जनों किसानों को अपनी जान से हाथ धोड़ा पड़ा है।''

अगर चुनावी हवा की बात की जाए, तो वह भी किसी भी दल, गठबंधन के पक्ष में बहती नहीं दिख रही है। इंडिया गठबंधन को पटखनी देने के लिए लोकसभा चुनाव के ऐलान से पहले ही बीजेपी ने राम मंदिर और ज्ञानवापी के मुद्दे की एंट्री करा दी है। हाल ही में बनारस के जिला जज एके विश्वेश ने अपने रियाटरमेंट से पहले आखिरी फैसला ज्ञानवापी परिसर स्थित व्यास तहखाने में पूजा शुरू कराने का दिया। मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता हाईकोर्ट से लगायत सुप्रीम कोर्ट तक दौड़ते रहे, पर राहत कहीं से नहीं मिली। अफसरों ने सात घंटे के अंदर उस बाड़ को कटवा दिया, जिस पर पहले से ही सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी हुई थी। बीजेपी नेताओं की सभाओं में जय श्रीराम के नारे का जोर है। मोदी-शाह ही नहीं, हर सत्ता पक्ष का हर नेता जय श्रीराम के नारे लगवाता नजर आ रहा है। इन्हें पता है कि जनता की सबसे कमजोर नस यही है जिसे दबाने पर थोक में वोट बटोरा जा सकता है।

पूर्वांचल में निर्णायक अति-पिछड़े

अति पिछड़ी जातियों वाले पूर्वांचल इलाके में राजभर, निषाद और चौहान जातियां निर्णायक स्थिति में हैं। यहां बीजेपी को राजभर, चौहान, कुर्मी, कुशवाहा, मौर्या प्रजापति, मल्लाह, बिंद जैसी जातियों के वोटों की ज़रूरत है। यदि कोई बड़ी पार्टी चार-पांच छोटे दलों के साथ गठबंधन करती है, तो कभी-कभी उसमें एक बड़ा इलाक़ा आ जाता है। पूर्वांचल में सियासी माहौल भी इसी आधार पर बनता और बिगड़ता है। प्रायः सभी जिलों में अति पिछड़ा वर्ग बड़े पैमाने पर चुनावी माहौल को प्रभावित करता है। सपा मुखिया अखिलेश यादव के पाले से अबकी उनके दो मोहरे ओमप्रकाश राजभर और स्वामी प्रसाद मौर्य छिटक गए हैं। माना जा रहा है कि इस चुनाव में इसका असर देखने को मिल सकता है।

चुनाव कोई भी हो, पूर्वांचल के गोरखपुर, गाजीपुर, प्रतापगढ़, जौनपुर, आजमगढ़, मऊ से लेकर वाराणसी, प्रयागराज तक के साथ किसी न किसी अपराधी का नाम जरूर जुड़ जाता है। पूर्वांचल की राजनीति में कभी मुख्तार अंसारी और बृजेश सिंह तो कभी राजा भैया, अभय सिंह, खब्बू तिवारी, अमनमणि त्रिपाठी जैसे लोगों की सियासत में सक्रियता बढ़ जाती है। चुनावी विश्लेषकों के मुताबिक, पूर्वांचल की राजनीति में अबकी बाहुबली बृजेश सिंह बीजेपी से तालमेल करने वाले किसी दल के टिकट से चुनाव मैदान में उतरना चाहते हैं। सुभासपा मुखिया ओमप्रकाश राजभर ने पिछले विधानसभा चुनाव में बाहुबली मुख्तार अंसारी के लिए अपनी पार्टी के दरवाजे खोले थे और अबकी बीजेपी से तालमेल बैठाकर वह बृजेश सिंह के लिए सीट चाहते हैं।

पूर्वांचल इलाका बीजेपी, सपा और कांग्रेस के नेताओं की प्रतिष्ठा से जुड़ा है। बीजेपी चाहती है कि वह इस इलाक़े में अपना वर्चस्व बरकरार रखे। सपा मुखिया अखिलेश यादव, कांग्रेस के अलावा अपना दल (कृष्णा पटेल) और जनअधिकार पार्टी जैसे छोटे दलों के साथ गठबंधन कर पूर्वांचल में अपने गठबंधन को मज़बूती देने का प्रयास कर रहे हैं। सपा ने जितनी पार्टियों से गठबंधन किया है वो सभी पूर्वांचल के हैं। पूर्वांचल में रोज बदल रहे चुनावी समीकरण के बीच बीजेपी इस इलाके में अपनी पैठ मजबूत बनाने की कोशिशों में जुटी है। पीएम नरेंद्र मोदी ने पूर्वांचल में कई नई विकास योजनाएं शुरू की है। बीजेपी को यह अच्छी तरह से एहसास है कि लोकसभा चुनाव का लक्ष्य पूरा करने के लिए पूर्वांचल में उसे खुद को मजबूत करना बहुत जरूरी है। यही वजह कि बीजेपी पूर्वांचल पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही है।

हालांकि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के मुखिया ओमप्रकाश राजभर को अभी तक मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किए जाने से वह अंदरखाने काफी नाराज बताए जा रहे हैं। राजभर चाहते हैं कि उनके किसी बेटे को अगले महीने होने वाले विधानसभा चुनाव में एक सीट बीजेपी उनकी झोली में डाल दे। राजभर की नाराजगी दूर करने के लिए बीजेपी उनके प्रस्ताव पर विचार कर रही है।

क्या है बीजेपी की रणनीति?

पूर्वांचल की सियासत पर जातियों का खासा प्रभाव देखने को मिलता है। पूर्वांचल के समीकरण को देखते हुए बीजेपी नए सिरे से सियासी दांव चल रही है। ओबीसी के अति पिछड़े समाज के वोटों को बीजेपी हरहाल में जोड़े रखना चाहती है, क्योंकि पूर्वांचल की सियासत में उनकी भूमिका काफी अहम है। बसपा की सियासत से निकले फागू चौहान को पहले बीजेपी ने अपने साथ लेकर यूपी की सियासत को साधा। बिहार के बाद उन्हें मेघालय का राज्यपाल बना दिया। फागू चौहान ओबीसी के नोनिया समाज से आते हैं,  जिनकी मऊ, गाजीपुर और आजमगढ़ में खासी आबादी है।

यूपी में आदिवासी समुदाय का कोई खास बड़ा वोट बैंक नहीं है, लेकिन बीजेपी उसे साधने की जुगत में है। इसी मकसद से बीजेपी ने लक्ष्मण प्रसाद आचार्य को राज्यपाल बनाया है जो पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र से आते हैं। इनका जन्म आदिवासी खरवार जाति के परिवार में हुआ है। यूपी के चंदौली, मिर्जापुर और सोनभद्र में खरवार, मुसहर, कोल, गोंड, चेरो आदि जनजातियों का वर्चस्व है। इनकी तादाद 20 लाख से अधिक हैं। सोनभद्र, चंदौली, गोरखपुर, बलिया में मुसहर समेत दर्जन भर आदिवासी जातियां है, जिन्हें बीजेपी साधने की कोशिश कर रही है।

पूर्वांचल में भूमिहार भी बीजेपी का कोर वोटर माना जाता रहा है। गाजीपुर जिले के मूल निवासी मनोज सिन्हा जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल हैं और वह भूमिहार समुदाय से हैं। बीजेपी को लगता है कि पूर्वांचल में भूमिहारों के बगैर सियासत नहीं साधी जा सकती है। इसके चलते ही बीजेपी ने योगी मंत्रिमंडल में एके शर्मा समेत दो मंत्रियों को अहम जिम्मेदारी सौंपी है। आजमगढ़, बनारस, मऊ, बलिया, गाजीपुर, देवरिया, कुशीनगर और जौनपुर में भूमिहार जातियों की तादाद इतनी है जो सियासी हवा का रुख मोड़ सकते हैं।

यूपी में सवर्ण वोटरों में सर्वाधिक वोटर ब्राह्मण हैं। पूर्वांचल की सियासत में इनकी भूमिका सबसे अहम है। बीजेपी इस समुदाय के लोगों को साधने में जुटी है। योगी कैबिनेट में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ही नहीं, यूपी के सात राज्यपालों में से तीन शिव प्रताप शुक्ला, कलराज मिश्रा और बीडी मिश्रा पूर्वांचल के ब्राह्मण हैं। मोदी के कैबिनेट में डा.महेंद्रनाथ पांडेय अभी बने हुए हैं, जबकि उनकी उम्र 70 बरस से ऊपर हो चुकी है और वो अक्सर बीमार भी रहते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में वह थोड़े वोटों से ही चुनाव जीत पाए थे। माना जा रहा है कि बीजेपी उनका टिकट काटकर चंदौली सीट से किसी अन्य ब्राह्मण प्रत्याशी को मैदान में उतार सकती है।

सपा-कांग्रेस ने बदला समीकरण

लोकसभा चुनाव से पहले सपा और कांग्रेस के गठबंधन से चुनावी समीकरण बदल गए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा ने मुस्लिम वोटरों के छिटक जाने की खौफ के चलते कम्प्रोमाइज कर 17 सीटों पर गठबंधन किया है। सपा और कांग्रेस के साथ आने से पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक साथ आएंगे। कांग्रेस का मूल वोटर बढ़ेगा और सपा का वोट बैंक भी जुड़ेगा। चुनाव में मतों का बिखराव भी नहीं होगा। कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच चुनावी तालमेल ने बीजेपी के लिए पूर्वांचल की कई सीटों पर चुनौतियां खड़ी कर दी है। यह भी माना जा रहा है कि पूर्वांचल में कांग्रेस अपने खोए हुए वजूद को वापस लाने के लिए राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को सामने कर सकती है।

सपा-कांग्रेस के गठबंधन से बसपा की मुश्किलें बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। जो बसपा काफी मजबूत मानी जाती थी, वह अबकी हासिये पर नजर आ रही है। यहां उसे अपनी सीट ही नहीं, अपना प्रत्याशी बचा पाना मुश्किल हो गया है। सपा मुखिया अखिलेश यादव बीएसपी के दो सांसदों को तोड़कर अपने खेमे में ला चुके हैं, जिनमें एक हैं गाजीपुर के मौजूदा सांसद अफजाल अंसारी और दूसरे जौनपुर श्याम सिंह यादव। अखिलेश ने अफजाल को गाजीपुर से सपा का प्रत्याशी घोषित किया है।

अटकलें लगाई जा रही हैं कि श्याम सिंह यादव को भी सपा जौनपुर से अपना प्रत्याशी बना सकती है। अमरोहा से बसपा सांसद रहे दानिश अली अब कांग्रेस से चुनाव लड़ने की तैयारी भी कर चुके हैं। अंबेडकर नगर सीट से बसपा सांसद रितेश पांडेय बीजेपी के टिकट के लिए प्रयासरत हैं। साल 2019 में सपा के साथ गठबंधन होने पर बसपा के दस सांसद और समाजवादी पार्टी के सिंबल पर पांच सांसद चुने गए थे। माना जा रहा है कि इस चुनाव में फिलहाल बीएसपी के अनुकूल समीकरण नहीं है।

माना जा रहा है कि सपा और कांग्रेस अब जन अधिकार पार्टी, महान दल, टीएमसी, अपना दल (कमेरावादी), टीएमसी और आजाद समाज पार्टी समेत कई छोटे दलों को मैदान में उतारकर बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ा करना चाहते हैं। अभी यह तय नहीं हो सका है कि आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगे अथवा अपनी पार्टी के सिंबल पर। इसी तरह अभी यह भी तय नहीं हो सका है कि अपना दल (कमेरावादी) की नेत्री पल्लवी पटेल अथवा उनकी मां कृष्णा पटेल सपा के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगी अथवा अपने पार्टी के सिंबल पर?

यूपी में टीएमसी की जिम्मेदारी संभाल रहे ललितेश पति त्रिपाठी ने फिलहाल सपा के सिंबल पर भदोही सीट से चुनाव लड़ने का इरादा बनाया है। वह पहले चंदौली सीट से चुनावी जंग लड़ने की तैयारी कर रहे थे, क्योंकि यह इलाका इनके परदादा कमलापति त्रिपाठी की कर्मस्थली रही है। सपा इस सीट पर पूर्व मंत्री वीरेंद्र सिंह का नाम घोषित कर चुकी है। ऐसे में उनके सामने मिर्जापुर अथवा भदोही ऐसी सीटें थी जहां से वह चुनाव लड़ सकते थे। भदोही में सपा के तीन विधायक हैं और इस संसदीय क्षेत्र में ब्राह्मणों व मुसलमानों की बहुलता है। माना जा रहा है कि यादव वोटरों को साथ लेकर वह बीजेपी को तगड़ी चुनौती दे सकते हैं।

बनारस व चंदौली सीटें सबसे हॉट

बनारस और उससे जुड़ी चंदौली सीट सियासी नजरिये से काफी हॉट मानी जाती रही है। बनारस सीट पर पिछले दो चुनावों से नरेंद्र मोदी सांसद हैं। इस सीट पर सर्वाधिक वोट पटेल समुदाय के हैं, जिनकी तादाद चार लाख से ज्यादा है। सेवापुरी और रोहनिया के अलावा कैंट में इस समुदाय की बहुलता है। वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, "अपना दल (कमेरावादी) की पल्लवी पटेल एक मात्र ऐसी नेत्री हैं जो बनारस में पीएम नरेंद्र मोदी को तगड़ी चुनौती दे सकती हैं। वह कुर्मी समुदाय के अलावा यादव और मुसलमानों का थोक वोट लेकर मोदी को असहज कर सकती हैं। बनारस में ये तीनों ऐसे समुदाय हैं जिनके वोटरों की तादाद सात लाख से ज्यादा है। मौर्य, निषाद, मल्लाह, प्रजापति आदि छोटी जातियों का रुख बदल गया तो पीएम नरेंद्र मोदी की जीत आसान नहीं रह पाएगी।"

"कांग्रेस से तालमेल से पहले सपा ने इस सीट पर पूर्व मंत्री सुरेंद्र पटेल को प्रत्याशी बनाया था। माना जा रहा था कि वह भी मोदी को तगड़ी चुनौती दे सकते थे, लेकिन बंटवारे में सपा ने यह सीट कांग्रेस को थमा दी। कांग्रेस अब यह तय नहीं कर पा रही है कि वह किस समीकरण के तहत किसे मैदान में उतारे जो पीएम नरेंद्र मोदी को घेर सके। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय लगातार दो बार से मोदी का मुकाबला कर चुके हैं। इनके मैदान में उतरने पर कोई खास समीकरण बदलने वाला नहीं है। बनारस के समीकरण तभी बदलेंगे जब इंडिया एलायंस का कोई दमदार प्रत्याशी मैदान में उतारेगा। विपक्ष को यहां ऐसे प्रत्याशी उतारने चाहिए जो कुर्मी समुदाय के वोटरों को अपने पाले में खींच सके।"

पूर्वांचल की दूसरी हॉट सीट है चंदौली। राजपूत वोटरों को साधने के लिए बीजेपी ने हाल ही में चंदौली की साधना सिंह को राज्यसभा में भेजा है। इससे पहले इसी जिले की दर्शना सिंह भी राज्यसभा मेंबर बनाई जा चुकी हैं। दोनों महिला नेत्री राजपूत समुदाय की हैं। चंदौली में बीजेपी के जिलाध्यक्ष काशीनाथ सिंह भी राजपूत हैं। ऐसे में राजपूत समुदाय के किसी दावेदार को इस सीट पर टिकट मिलने की संभावना नजर नहीं आ रही है। ऐसा करने पर ब्राह्मण समुदाय के वोटर बीजेपी से छिटक सकते हैं। साथ ही अति पिछड़े मतदाता भी बीजेपी से नाराज हो सकते हैं।

बीजेपी ने हाल ही में एक सर्वेक्षण कराया था जिनमें चंदौली सीट के लिए तीन नामों पर रायशुमारी की गई थी, जिनमें पहला नाम डा.महेंद्रनाथ पांडेय का और दूसरा सैयदराजा के मौजूदा विधायक सुशील सिंह का था। तीसरा नाम बीजेपी के वरिष्ठ नेता राकेश त्रिवेदी का था। आरएसएस और विहिप का मानना है कि चंदौली सीट पर अगर पार्टी प्रत्याशी बदलती है तो ब्राह्मण के बदले किसी ब्राह्मण को ही प्रत्याशी बनाया जाए, जिसका जुड़ाव हमेशा बीजेपी से रहा हो। आरएसएस के कड़े रुख के चलते बीजेपी ने अब चंदौली सीट पर राज्यमंत्री दयाशंकर मिश्र दयालू पर विचार करना छोड़ दिया है। यही वजह है कि सर्वे में दयालू का नाम शामिल नहीं किया गया था।

चंदौली सीट से प्रत्याशी बदले जाने की आशंका से उनके समर्थक बेचैन हैं। इनकी बेचैनी पूर्व विधायक साधना सिंह ने अपनी होर्डिंग से बढ़ा दी है। साधना सिंह को हाल में राज्यसभा का टिकट मिला है। मोदी-शाह का आभार व्यक्त करने के लिए उन्होंने चंदौली जिले में बड़े पैमाने पर होर्डिंग लगवाई है, जिसमें डा.महेंद्रनाथ पांडेय की तस्वीर और उनका नाम गायब है। सूत्रों का कहना है कि चंदौली सीट पर एक तरफ आरएसएस और विहिप ब्राह्मण समुदाय के कद्दावर नेता डा.राकेश त्रिवेदी का नाम आगे बढ़ा रही हैं तो दूसरी ओर डा.महेंद्रनाथ पांडेय का खेमा डा.त्रिवेदी का पत्ता साफ कराने में जुटा है। बदले सियासी समीकरण में पार्टी अगर डा.महेंद्रनाथ पांडेय को फिर मैदान में उतारती हैं तो उनकी राह आसान नहीं होगी, क्योंकि राजपूत वोटरों का एक बड़ा तबका सपा प्रत्याशी वीरेंद्र सिंह के साथ जा सकता है। पिछले चुनाव में राजपूत वोटर उनके साथ थे तब वो बड़ी मुश्किल से लोकसभा चुनाव जीत पाए थे।

अबकी बार डरी हुई है बीजेपी

लोकसभा चुनाव सिर पर है, लेकिन जनता के मुद्दे गायब हैं। पूर्वांचल के सियासी गलियारों में अगर कुछ चल रहा है तो सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अनिल श्रीवास्तव कहते हैं, ''मंदिर-मस्जिद और फोकट के राशन से वोटरों का ध्यान ज्यादा दिनों तक नहीं खींचा जा सकता है। इसी लिए वह छोटे-छोटे दलों को लालीपॉप दे रही है। बीजेपी वह सारी कोशिश कर रही ताकि एक बार फिर वह सत्ता में आ सके और और विपक्ष उसे तगड़ी चुनौती न दे सके। मोदी-शाह की भागदौड़ के बीच विपक्षी दलों से जुड़े नेताओं के यहां ईडी और सीबीआई के छापे इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि मौजूदा समय में बीजेपी बहुत डरी हुई है।"

"जनता के सरोकारों से ध्यान भटकाने के अलावा इन्होंने नौजवानों, महिलाओं और वंचित तबके के उत्थान के लिए कुछ किया। इनकी चिंता सिर्फ कारपोरेट घरानों तक सीमित रही। आचार संहिता लगने वाली है, मोदी योजनाओं के शिलान्यास और लोकार्पण के जरिये वोटरों को भरमाने की कोशिश कर रहे हैं। पीएम पद का दुरुपयोग किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले पूर्वांचल की तनिक भी सुधि नहीं ली और अब चुनाव सिर पर है तो वोटरों को भरमाने की कोशिश कर रहे हैं।"

दूसरी ओर, इंडिया एलायंस के आरोपों पर पूर्वांचल के बीजेपी के वरिष्ठ नेता राजकुमार जायसवाल कहते हैं, "पीएम मोदी एक ऐसे राजनेता हैं जिनकी सोच बहुत बड़ी है। विपक्ष तो उन्हें गालियां देने से भी बाज नहीं आ रहा है। जिनका काम सिर्फ आलोचना करना है वो आगे भी करते रहेंगे। इंडिया एलायंस से एनडीए को कोई ख़तरा नहीं है। कांग्रेस ने जितना पचास सालों में काम नहीं किया, बीजेपी ने उससे ज्यादा एक दशक में कर दिखाया। चुनावी समीकरण हमारे पक्ष में है और हम बूथ स्तर पर काम कर रहे हैं। उनके पास सब कुछ हवा-हवाई है। जातिवाद का कार्ड खेलने वालों से बीजेपी को कोई खतरा नहीं है।"

वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "आगामी लोकसभा चुनाव में सपा-कांग्रेस चाहेगी कि वह मुस्लिम और यादवों के बगैर बीजेपी का मुकाबला करें। यह ऐसा चुनाव होने जा रहा है जहां कोई भी सियासी दल खुलकर मुसलमानों का वोट मांगता नजर नहीं आ रहा है। इनकी सोच यह है कि अगर वह ब्राह्मण, राजभर, कुर्मी, पटेल, इत्यादि के साथ मिलकर राजनीति करे तो फिर जनाधार बनाना आसान होगा। दोनों दल मुस्लिम समर्थक की अपनी छवि से भी बाहर निकलने की कोशिश कर रहे हैं। सब के सब जय श्रीराम के नारे लगा रहे हैं।''

''पश्चिमी यूपी में बीजेपी का हर हथकंडा फेल हो रहा है। किसानों में डबल इंजन की सरकार को लेकर खासी नाराजगी फैल रही है। बीजेपी को लगता है कि किसान आंदोलन से हो रहे नुक़सान की भरपाई वह पूर्वांचल से कर सकती है। यही वजह है कि ज्ञानवापी के मामले को भी अब गरम किया जा रहा है। बीजेपी का जवाब देने के लिए कांग्रेस व सपा के सभी वरिष्ठ नेता जातीय जनगणना और नौकरियों में आरक्षण का मुद्दा उठा रहे हैं। आंकड़ों के साथ यह सवाल भी खड़ा कर रहे हैं, बीजेपी सिर्फ जुमले उछालना जानती है। यूपी के नौजवानों को नौकरी देने की बात आती है तो पर्चा लीक करा देती है। भीषण महंगाई के चलते किसी आम आदमी के लिए जीना बहुत कठिन हो गया है।''

पूर्वांचल के सियासी हालात पर चर्चा करते हुए अचूक रणनीति अखबार के संपादक विनय मौर्य विपक्ष के प्रत्याशियों के रवैये पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। कहते हैं, ''पूर्वांचल में समाजवादी पार्टी ने वीरेंद्र सिंह समेत जिन प्रत्याशियों को टिकट दिया है वह मुद्दों को खड़ा करने के बजाय मंदिरों में मत्था टेकने पर ज्यादा जोर दे रहे हैं। इन्हें लगता है कि जय श्रीराम के नारे का मुकाबला सिर्फ ‘डिहवारी’ पूजने से ही किया जा सकता है। इनके इस रवैये से मुस्लिम समुदाय में नाराजगी भर रही है। विपक्ष का यह प्रयोग उनके प्रत्याशियों को खासा नुकसान पहुंचा सकता है। खासतौर पर ऐसे समय में जब चुनाव सिर पर है और राहुल गांधी को छोड़कर विपक्ष का कोई नेता जनता के मुद्दों को वोटरों के बीच खड़ा करता नजर नहीं आ रहा है।''

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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