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‘हम अपनी ज़मीन फासीवाद मुक्त चाहते हैं’: लक्षद्वीपवासियों ने बुलंद की नए सुधारों के ख़िलाफ़ आवाज़

भूमि के उपयोग के तरीकों और पंचायत अधिनियम बदलने, शराब की खुली आपूर्ति करने और गोमांस पर रोक लगाने समेत ताबड़तोड़ निरंकुश सुधारों के बाद प्रायद्वीप-प्रशासक प्रफुल्ल खोडा पटेल को लोगों का प्रचंड विरोध झेलना पड़ रहा है।
Lakshadweep
चित्र साभार: विकिपीडिया

अरब सागर में बसा यह प्रायद्वीप मौजूदा समय में #SaveLakshadweep के नाम से चल रहे एक मजबूत प्रतिरोध आंदोलन का गवाह बन रहा है। इसके जरिए केंद्र की भाजपा सरकार की तरफ से एक के बाद एक लागू किए गए तथाकथित प्रभुत्ववादी सुधारों का कड़ा विरोध किया जा रहा है। इन सुधारों को यहां के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल लागू कर रहे हैं, जो गुजरात के पूर्व भाजपा विधायक हैं। जबकि इसे प्रायद्वीप की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और परंपराओं पर हमला माना जा रहा है।  पटेल ने पिछले वर्ष यहां के प्रशासक दिनेश्वर शर्मा के असामयिक निधन के बाद प्रशासक का कार्यभार संभाला था।

यह सुधार वैश्विक महामारी के दौरान ही लागू किए जा रहे हैं, जबकि कोविड-19 से खराब तरीके से निपटने के चलते प्रायद्वीप के लोगों की चिंताएं बढ़ी हैं। ताजा लागू किये जा रहे इन सुधारों में अहम हैं: लक्षद्वीप पशु संरक्षण नियमन, लक्षद्वीप असामाजिक गतिविधियां रोकथाम नियमन, लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण नियमन और लक्षद्वीप पंचायत स्टाफ नियम में संशोधन।

इन सबमें सबसे विशिष्ट सुधार है, प्रायद्वीप में भूमि के स्वामित्व और उसके नियमन में व्यापक परिवर्तन। इसके जरिए प्रशासक को भूमि के विकास के लिए अनुमति देने एवं भूमि के उपयोग के तमाम अन्य अधिकार प्रशासक को सौंप दिया गया है। इसके अलावा, “ये नियम प्रशासक को भूमि का अधिग्रहण करने एवं योजना के लिए भूमि को विकसित करने संबंधी अतिरिक्त अधिकार भी प्रदान करते हैं।” 

इस नियमन ने निर्माण को सुचारु करने के लिए विकास के जोन बनाने का सुझाव दिया है। इसके अलावा, प्रशासन को बेदखली के भी बहुत अधिकार दिए गए हैं। इस बारे में मीडिया में छपी रिपोर्टों के अलावा, प्रफुल्ल पटेल ने सड़कों के चौड़ीकरण करने और इसके दायरे में आने वाले घर-मकानों को गिराने का आदेश पहले ही दिया हुआ है जबकि छोटी-सी आबादी वाला यह प्रायद्वीप उनके इन कदमों का लगातार कड़ा विरोध कर रहा है। 

पंचायत नियमन संशोधन का मसौदा बताता है कि वे लोग  जिनके पास दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें पंचायत चुनावों में शामिल होने पर रोक लगा दी जाएगी।  इसके अलावा, पंचायत नियंत्रण के अन्य कतिपय अधिकारों का भी अवमूल्यन किया गया है। मत्स्य पालन, स्वास्थ्य, पशुपालन और इसी तरह अन्य क्षेत्रों में दखल देने के उसके अधिकारों में कतर-ब्योंत किए गए हैं।

न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में इस इलाके की अधिवक्ता, फसीला इब्राहिम ने बताया कि  “पशुपालन, मत्स्य पालन और स्वास्थ्य इत्यादि क्षेत्रों में पंचायतों को 2012 में बेशुमार अधिकार दिए गए थे। इन अधिकारों को मई में वापस ले लिया गया और इन्हें प्रशासक के अधीन कर दिया गया है।”

इब्राहिम कहती हैं, “यह भी नोट किया जाना चाहिए कि पहली बार नागरिक सेवाओं के दायरे से बाहर के व्यक्ति को केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक नियुक्त किया गया है  और इस प्रशासक ने पहला काम यह किया जिससे कि कोविड-19 के प्रबंधन के बारे में अपनाई जाने वाली मानक प्रक्रिया का विरोध शुरू हो गया। इसके पहले, प्रायद्वीप आने वाले लोगों को एकांतवास (क्वॉरेंटाइन) में  रहना पड़ता था, इसके बाद ही उन्हें प्रवेश दिया जाता था।  हालांकि, इसके बावजूद कोरोना का  संक्रमण तेजी से फैला।” 

एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों में प्रायद्वीप में अपराध की दरें काफी निम्न बताई हैं। इस ओर ध्यान दिलाते हुए इब्राहिम ने कहा, “इनके बावजूद, पांच महीने की अवधि में समाज विरोधी गतिविधियों की रोकथाम या गुंडा एक्ट जैसे श्रृंखलाबद्ध नियमनों का मसौदा तैयार किया गया है,  जिसे खतरनाक व्यक्तियों,  असामाजिक तत्वों,  संपत्ति हड़पने वालों के विरुद्ध लागू किया जाना है। हालांकि,  इन प्रस्तावित नियमों के खिलाफ  व्यापक स्तर पर यहां के लोगों में गुस्सा है। 

इसी बीच, पशु संरक्षण नियमन में भी बदलाव किया गया है, जिसने  90 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले केंद्र शासित क्षेत्र में असंतोष को लहका दिया है। मसौदे के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गोमांस या इसके उत्पाद को किसी भी रूप में लक्षद्वीप में बेच या खरीद नहीं सकता है। उसका संग्रह नहीं कर सकता है, उसे कहीं भेजा या कहीं से लाया नहीं जा सकता है, किसी को दे नहीं सकता है। गोमांस या इसके उत्पाद को खरीदने या बेचने के मकसद से उसका प्रदर्शन भी नहीं कर सकता है। ऐसा किए जाने वाले व्यक्ति को दोषी करार दिया जा सकता है। उसे कम से कम 7 साल और अधिकतम 10 वर्षों तक कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा, न्यूनतम एक लाख और अधिकतम 5 लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

 इस क्षेत्र के छात्र कार्यकर्ता ऐजास अहमद ने कहा, “ये  केंद्र सरकार के फासीवादी फैसले हैं जबकि यहां अपराध की दर अति निम्न है। फिर भी इन नियमनों को लाया जा रहा है। पटेल के कार्यभार ग्रहण के पहले इस प्रायद्वीप में सीएए-एनआरसी (नागरिकता संशोधन अधिनियम-राष्ट्रीय नागरिकता पंजी)  के मसले पर ही प्रदर्शन होता था,  लेकिन हालिया किए गए बदलावों के बाद लोगों को इस प्रायद्वीप में भी यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम) जैसे क्रूर कानूनों में गिरफ्तार किए जाने का भय सताने लगा है।”

नए कानूनों ने,  रिज़ॉर्ट  में परोसे जाने वाली शराब के नियमों में भी फेरबदल किया है।  कहा गया है कि यहां पर्यटकों को बढ़ावा देने की गरज से सघन आबादी के बीच बने  रिज़ॉर्ट  में शराब की आपूर्ति की जाएगी। इसके पहले केवल निर्जन बंगराम प्रायद्वीप में बने रिज़ॉर्ट  में ही शराब दी जाती थी। 

इस प्रायद्वीप के एक अन्य निवासी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “लक्षद्वीप के लोग किसी आपराधिक मामलों में शायद ही लिप्त होते हैं, वे शांतिपूर्वक और सांस्कृतिक जीवन जीते हैं। हमारे इस प्रायद्वीप में पूरे देश की तुलना में मात्र 1 फ़ीसदी ही अपराध होता है जबकि अचानक ही हम पर गुंडा एक्ट थोप दिया गया। महज चंद बड़े कॉरपोरेट घराने के लिए अनेक अस्वीकार्य कानूनों के अंतर्गत हमें निशाना बनाया जा रहा है। हमारी जमीन और लोगों को सूली पर चढ़ाया जा रहा है। हमें हमारी जमीन को फासीवाद से आजाद किए जाने की जरूरत है। हमें इसकी ज्यादा फिक्र हो रही है कि इसके बाद, हम निर्दोष लोगों को ‘आतंकवादी’ करार दिया जाएगा और हमारी जमीन को कश्मीर की तरह जंजीरों में बांध दी जाएगी।”

प्रशासक पटेल ने एक और काम किया है।  तटवर्ती क्षेत्रों में बने मछुआरों के बने शेड को गिरा दिया है।  यह कहते हुए कि ये शेड्स  तटवर्ती निगरानी अधिनियम का उल्लंघन करते हैं।  इसके साथ ही प्रफुल्ल पटेल ने क्षेत्र में चल रहे डेयरी फार्म को ही बंद करवा दिया है,  जब भी गुजरात के अमूल दूध उत्पाद को प्रायद्वीप में बेचने की अनुमति दे दी है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने सैकड़ों कैजुअल एवं ठेके पर काम करने वाल श्रमिकों, दोपहर के भोजन में लगे कामगारों, फिजिकल टीचर्स आदि की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। 

यह गौर करने वाली बात है कि इन सुधारों को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है। यह पहली बार नहीं है, जब केंद्र सरकार ने अपने प्रशासकों के जरिए इस केंद्र शासित क्षेत्र में बदलाव कराया है। अंडमान निकोबार प्रायद्वीप में ये नियमन बदलावों के एक तरीके का अनुगमन करते हैं, जो क़ॉरपोरेट के जरिए मुनाफा कमाने के लिए केंद्र सरकार का एक अन्य लक्षित क्षेत्र है।

न्यूज़क्लिक ने  इसके पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि नीति आयोग-केंद्र सरकार की  सार्वजनिक नीति निर्माण करने वाला थिंक टैंक-ने देश के सुदूर दक्षिण पूर्व के प्रायद्वीपों और बड़े प्रायद्वीपों जैसे ग्रेट निकोबार क्षेत्र के विकास के लिए एक प्रस्ताव लाया था। हालांकि पर्यावरणविदों ने इसे ‘सदमाकारी’ बताया था। यहां एक बड़ा ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल,  एक हवाई अड्डा,  एक शहर एवं बड़े पैमाने पर गैस व सौर आधारित ऊर्जा के विकास की योजना है। 

सरकार दावा करती है कि यह परियोजना इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देगी,  उसका आर्थिक विकास करेगी लेकिन इस साल मार्च में इसकी प्रारंभिक घोषणा के बाद से परियोजना के विस्तार और उसकी गति पर चिंताएं सामने आई हैं

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

अरब सागर में बसा यह प्रायद्वीप मौजूदा समय में #SaveLakshadweep के नाम से चल रहे एक मजबूत प्रतिरोध आंदोलन का गवाह बन रहा है। इसके जरिए केंद्र की भाजपा सरकार की तरफ से एक के बाद एक लागू किए गए तथाकथित प्रभुत्ववादी सुधारों का कड़ा विरोध किया जा रहा है। इन सुधारों को यहां के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल लागू कर रहे हैं, जो गुजरात के पूर्व भाजपा विधायक हैं। जबकि इसे प्रायद्वीप की अर्थव्यवस्था, संस्कृति और परंपराओं पर हमला माना जा रहा है।  पटेल ने पिछले वर्ष यहां के प्रशासक दिनेश्वर शर्मा के असामयिक निधन के बाद प्रशासक का कार्यभार संभाला था।

यह सुधार वैश्विक महामारी के दौरान ही लागू किए जा रहे हैं, जबकि कोविड-19 से खराब तरीके से निपटने के चलते प्रायद्वीप के लोगों की चिंताएं बढ़ी हैं। ताजा लागू किये जा रहे इन सुधारों में अहम हैं: लक्षद्वीप पशु संरक्षण नियमन, लक्षद्वीप असामाजिक गतिविधियां रोकथाम नियमन, लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण नियमन और लक्षद्वीप पंचायत स्टाफ नियम में संशोधन।

इन सबमें सबसे विशिष्ट सुधार है, प्रायद्वीप में भूमि के स्वामित्व और उसके नियमन में व्यापक परिवर्तन। इसके जरिए प्रशासक को भूमि के विकास के लिए अनुमति देने एवं भूमि के उपयोग के तमाम अन्य अधिकार प्रशासक को सौंप दिया गया है। इसके अलावा, “ये नियम प्रशासक को भूमि का अधिग्रहण करने एवं योजना के लिए भूमि को विकसित करने संबंधी अतिरिक्त अधिकार भी प्रदान करते हैं।” 

इस नियमन ने निर्माण को सुचारु करने के लिए विकास के जोन बनाने का सुझाव दिया है। इसके अलावा, प्रशासन को बेदखली के भी बहुत अधिकार दिए गए हैं। इस बारे में मीडिया में छपी रिपोर्टों के अलावा, प्रफुल्ल पटेल ने सड़कों के चौड़ीकरण करने और इसके दायरे में आने वाले घर-मकानों को गिराने का आदेश पहले ही दिया हुआ है जबकि छोटी-सी आबादी वाला यह प्रायद्वीप उनके इन कदमों का लगातार कड़ा विरोध कर रहा है। 

पंचायत नियमन संशोधन का मसौदा बताता है कि वे लोग  जिनके पास दो से अधिक बच्चे हैं, उन्हें पंचायत चुनावों में शामिल होने पर रोक लगा दी जाएगी।  इसके अलावा, पंचायत नियंत्रण के अन्य कतिपय अधिकारों का भी अवमूल्यन किया गया है। मत्स्य पालन, स्वास्थ्य, पशुपालन और इसी तरह अन्य क्षेत्रों में दखल देने के उसके अधिकारों में कतर-ब्योंत किए गए हैं।

न्यूज़क्लिक के साथ बातचीत में इस इलाके की अधिवक्ता, फसीला इब्राहिम ने बताया कि  “पशुपालन, मत्स्य पालन और स्वास्थ्य इत्यादि क्षेत्रों में पंचायतों को 2012 में बेशुमार अधिकार दिए गए थे। इन अधिकारों को मई में वापस ले लिया गया और इन्हें प्रशासक के अधीन कर दिया गया है।”

इब्राहिम कहती हैं, “यह भी नोट किया जाना चाहिए कि पहली बार नागरिक सेवाओं के दायरे से बाहर के व्यक्ति को केंद्र शासित प्रदेश का प्रशासक नियुक्त किया गया है  और इस प्रशासक ने पहला काम यह किया जिससे कि कोविड-19 के प्रबंधन के बारे में अपनाई जाने वाली मानक प्रक्रिया का विरोध शुरू हो गया। इसके पहले, प्रायद्वीप आने वाले लोगों को एकांतवास (क्वॉरेंटाइन) में  रहना पड़ता था, इसके बाद ही उन्हें प्रवेश दिया जाता था।  हालांकि, इसके बावजूद कोरोना का  संक्रमण तेजी से फैला।” 

एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों में प्रायद्वीप में अपराध की दरें काफी निम्न बताई हैं। इस ओर ध्यान दिलाते हुए इब्राहिम ने कहा, “इनके बावजूद, पांच महीने की अवधि में समाज विरोधी गतिविधियों की रोकथाम या गुंडा एक्ट जैसे श्रृंखलाबद्ध नियमनों का मसौदा तैयार किया गया है,  जिसे खतरनाक व्यक्तियों,  असामाजिक तत्वों,  संपत्ति हड़पने वालों के विरुद्ध लागू किया जाना है। हालांकि,  इन प्रस्तावित नियमों के खिलाफ  व्यापक स्तर पर यहां के लोगों में गुस्सा है। 

इसी बीच, पशु संरक्षण नियमन में भी बदलाव किया गया है, जिसने  90 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी वाले केंद्र शासित क्षेत्र में असंतोष को लहका दिया है। मसौदे के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गोमांस या इसके उत्पाद को किसी भी रूप में लक्षद्वीप में बेच या खरीद नहीं सकता है। उसका संग्रह नहीं कर सकता है, उसे कहीं भेजा या कहीं से लाया नहीं जा सकता है, किसी को दे नहीं सकता है। गोमांस या इसके उत्पाद को खरीदने या बेचने के मकसद से उसका प्रदर्शन भी नहीं कर सकता है। ऐसा किए जाने वाले व्यक्ति को दोषी करार दिया जा सकता है। उसे कम से कम 7 साल और अधिकतम 10 वर्षों तक कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा, न्यूनतम एक लाख और अधिकतम 5 लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

 इस क्षेत्र के छात्र कार्यकर्ता ऐजास अहमद ने कहा, “ये  केंद्र सरकार के फासीवादी फैसले हैं जबकि यहां अपराध की दर अति निम्न है। फिर भी इन नियमनों को लाया जा रहा है। पटेल के कार्यभार ग्रहण के पहले इस प्रायद्वीप में सीएए-एनआरसी (नागरिकता संशोधन अधिनियम-राष्ट्रीय नागरिकता पंजी)  के मसले पर ही प्रदर्शन होता था,  लेकिन हालिया किए गए बदलावों के बाद लोगों को इस प्रायद्वीप में भी यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम) जैसे क्रूर कानूनों में गिरफ्तार किए जाने का भय सताने लगा है।”

नए कानूनों ने,  रिज़ॉर्ट  में परोसे जाने वाली शराब के नियमों में भी फेरबदल किया है।  कहा गया है कि यहां पर्यटकों को बढ़ावा देने की गरज से सघन आबादी के बीच बने  रिज़ॉर्ट  में शराब की आपूर्ति की जाएगी। इसके पहले केवल निर्जन बंगराम प्रायद्वीप में बने रिज़ॉर्ट  में ही शराब दी जाती थी। 

इस प्रायद्वीप के एक अन्य निवासी ने न्यूज़क्लिक को बताया, “लक्षद्वीप के लोग किसी आपराधिक मामलों में शायद ही लिप्त होते हैं, वे शांतिपूर्वक और सांस्कृतिक जीवन जीते हैं। हमारे इस प्रायद्वीप में पूरे देश की तुलना में मात्र 1 फ़ीसदी ही अपराध होता है जबकि अचानक ही हम पर गुंडा एक्ट थोप दिया गया। महज चंद बड़े कॉरपोरेट घराने के लिए अनेक अस्वीकार्य कानूनों के अंतर्गत हमें निशाना बनाया जा रहा है। हमारी जमीन और लोगों को सूली पर चढ़ाया जा रहा है। हमें हमारी जमीन को फासीवाद से आजाद किए जाने की जरूरत है। हमें इसकी ज्यादा फिक्र हो रही है कि इसके बाद, हम निर्दोष लोगों को ‘आतंकवादी’ करार दिया जाएगा और हमारी जमीन को कश्मीर की तरह जंजीरों में बांध दी जाएगी।”

प्रशासक पटेल ने एक और काम किया है।  तटवर्ती क्षेत्रों में बने मछुआरों के बने शेड को गिरा दिया है।  यह कहते हुए कि ये शेड्स  तटवर्ती निगरानी अधिनियम का उल्लंघन करते हैं।  इसके साथ ही प्रफुल्ल पटेल ने क्षेत्र में चल रहे डेयरी फार्म को ही बंद करवा दिया है,  जब भी गुजरात के अमूल दूध उत्पाद को प्रायद्वीप में बेचने की अनुमति दे दी है। यह भी कहा जाता है कि उन्होंने सैकड़ों कैजुअल एवं ठेके पर काम करने वाल श्रमिकों, दोपहर के भोजन में लगे कामगारों, फिजिकल टीचर्स आदि की सेवाएं समाप्त कर दी हैं। 

यह गौर करने वाली बात है कि इन सुधारों को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता है। यह पहली बार नहीं है, जब केंद्र सरकार ने अपने प्रशासकों के जरिए इस केंद्र शासित क्षेत्र में बदलाव कराया है। अंडमान निकोबार प्रायद्वीप में ये नियमन बदलावों के एक तरीके का अनुगमन करते हैं, जो क़ॉरपोरेट के जरिए मुनाफा कमाने के लिए केंद्र सरकार का एक अन्य लक्षित क्षेत्र है।

न्यूज़क्लिक ने  इसके पहले एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें कहा गया था कि नीति आयोग-केंद्र सरकार की  सार्वजनिक नीति निर्माण करने वाला थिंक टैंक-ने देश के सुदूर दक्षिण पूर्व के प्रायद्वीपों और बड़े प्रायद्वीपों जैसे ग्रेट निकोबार क्षेत्र के विकास के लिए एक प्रस्ताव लाया था। हालांकि पर्यावरणविदों ने इसे ‘सदमाकारी’ बताया था। यहां एक बड़ा ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल,  एक हवाई अड्डा,  एक शहर एवं बड़े पैमाने पर गैस व सौर आधारित ऊर्जा के विकास की योजना है। 

सरकार दावा करती है कि यह परियोजना इस क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देगी,  उसका आर्थिक विकास करेगी लेकिन इस साल मार्च में इसकी प्रारंभिक घोषणा के बाद से परियोजना के विस्तार और उसकी गति पर चिंताएं सामने आई हैं

 

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें।

Lakshadweep Residents Raise Voice Against Latest Reforms 

 

 

 

 

 

 

 

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