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2 सालों में 19 लाख ईवीएम गायब! कब जवाब देगा चुनाव आयोग?

ईवीएम में धांधली की चर्चा अब जैसे आम हो गई है, लेकिन 2 सालों में 19 लाख ईवीएम गायब होने के मुद्दे ने फिर से माहौल गर्म कर दिया है। अब कांग्रेस नेता शशि थरूर ने भी चुनाव आयोग से जवाब मांगा है।
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संविधान को किसी भी हाल में बचाकर रखने का दावा करने वाले नेता, चुनाव आयोग और तमाम उन संस्थानों की ऐसे वक्त में चुप्पी, जब 19 लाख ईवीएम मशीनों के गायब होने का दावा किया जा रहा हो... जनता के साथ खुले आडंबर का एक साक्ष्य है। जहां सरकारी संस्थानों और कानून के हाथ इतने अकड़ गए हों कि नौकरशाही का फर्ज़ भी ठीक से नहीं निभा सकें तो एकमात्र उच्चतम न्यायलय का ही रास्ता बचता है।

ताज़ा उदाहरण के तौर पर हमें उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव देखने चाहिए, जहां विपक्षी पार्टियों की ओर से ईवीएम में धांधली की अनगिनत शिकाएतें की गईं। समाजवादी पार्टी का तो ट्वीट हैंडल इसी से भरा पड़ा था। जनता ने कई जगहों पर धांधली के खुले वीडियो भी देखे लेकिन चुनाव आयोग की चुप्पी जस की तस बनी हुई है।

अब जब 2 सालों में ईवीएम के साथ हुई इतनी बड़ी धांधली का खुलासा हुआ है तो कांग्रेस नेता शशि थरूर ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। दरअसल, हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट में ईवीएम गायब होने का मुद्दा उठा था, कांग्रेस विधायक ने आरटीआई के हवाले से सदन में कहा था कि 2016 से 2018 तक देश में 19 लाख ईवीएम गायब हुए हैं।

शशि थरूर ने टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट को ट्वीट कर बताया था कि, खबर के मुताबिक, कर्नाटक में कांग्रेस विधायक एचके पाटिल ने आरटीआई का हवाला देते हुए विधानसभा में बताया कि भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा सप्लाई की गईं 9.6 लाख ईवीएम और इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा सप्लाई की गईं 9.3 लाख ईवीएम 2016 से 2018 के बीच में गायब हो गईं। लेकिन इस मामले में चुनाव आयोग द्वारा अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया।

वहीं इस मामले का संज्ञान लेते हुए कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी ने कहा कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के बारे में विधायकों द्वारा उठाए गए संदेह का जवाब देने के लिए भारत के चुनाव आयोग के अधिकारियों को तलब करेंगे। हेगड़े कागेरी ने आरोप लगाने वाले सदस्यों से भी स्पष्टीकरण मांगा है कि उन्होंने किस आधार यह आरोप लगाया। यह स्पष्ट होने के बाद ही चुनाव आयोग को एक पत्र लिखा जाएगा।

शशि थरूर ने इस मामले में कहा कि ‘’मैं आमतौर पर साज़िशों से सावधान रहता हूं, लेकिन ईवीएम के संचालन में अनियमितताओं के बारे में बढ़ती चिंताओं पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया की ज़रूरत है। लापता ईवीएम की आधिकारिक पुष्टि सवाल उठाती है कि ये किसके पास हैं और इनका क्या हो रहा है?"

ईटीवी भारत की एक रिपोर्ट के मुताबिक कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने भी इस मामले में सवाल खड़े किए हैं। कुमारस्वामी बोले कि- चुनावी व्यवस्था खराब हो गई है। इसके लिए लोग और पार्टियां ही जिम्मेदार है। कुमारस्वामी ने इस मामले पर बैठक में बोरियत जाहिर की। उन्होंने कहा कि ईवीएम से मतदान शुरू होने के बाद से ही कुछ शंकाएं सभी को सता रही हैं। चुनाव आयोग और सरकार को इन शंकाओं को दूर करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि अभी तक कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में ईवीएम सप्लाई करने वाली दो कंपनियों और चुनाव आयोग के आंकड़ों में बड़ी असमानता सामने आई है। जानकारी के मुताबिक कंपनियों ने जितनी मशीनों की आपूर्ति की है और चुनाव आयोग को जितनी मशीनें मिली हैं, उनमें करीब 19 लाख का अंतर है।

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की एक रिपोर्ट के अनुसार चुनाव आयोग हैदराबाद स्थित इलेक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड यानी ईसीआईएल और बेंगलुरु स्थित बीईएल से इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें खरीदता है। एक कार्यकर्ता मनोरंजन एस रॉय द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम खरीदी को लेकर दोनों कंपनियों और ईसी के आंकड़ों में बड़ा अंतर सामने आया है। रॉय के अनुसार 1989-1990 से 2014-2015 तक के आंकड़ों पर गौर करें तो चुनाव आयोग का कहना है कि उन्हें बीईएल से 10 लाख 5 हजार 662 ईवीएम प्राप्त हुई हैं। वहीं बीईएल का कहना है कि उसने 19 लाख 69 हजार 932 मशीनों की आपूर्ति की है। दोनों के आंकड़ों में 9 लाख 64 हजार 270 का अंतर है। ठीक यही स्थिति ईसीआईएल के साथ भी है जिसने 1989 से 1990 और 2016 से 2017 के बीच 19 लाख 44 हजार 593 ईवीएम की आपूर्ति की।

लेकिन चुनाव आयोग ने कहा है कि उन्हें केवल 10 लाख 14 हजार 644 मशीनें ही प्राप्त हुईं और यहां भी 9 लाख 29 हजार 949 का अंतर पैदा हो रहा है। इसके साथ ही, इवीएम पर खर्च के आंकड़ों में भी बड़ा अंतर है। पहले की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि चुनाव आयोग के अनुसार, बीईएल से ईवीएम की खरीद पर 536.02 करोड़ रुपए का कुल खर्च हुआ है, जबकि बीईएल ने कहा कि उन्हें 652.56 करोड़ रुपए मिले हैं। यहां ईवीएम के खर्च में भी बड़ा अंतर है। ईसीआईएल से ईवीएम मंगाने पर चुनाव आयोग के खर्च की जानकारी उपलब्ध नहीं है।

अब इसे क्या कहा जायेगा कि ईसीआईएल का कहना है कि उसने 2013-2017 से 2013-2014 के बीच किसी भी राज्य में एक भी ईवीएम की आपूर्ति नहीं की थी। फिर भी ईसीआईएल को चुनाव आयोग के माध्यम से मार्च से अक्टूबर 2012 के बीच महाराष्ट्र सरकार से 50.64 करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई। गंभीर और चिंताजनक सवाल यह है कि आखिरकार ईवीएम की दो कंपनियों से मिले आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर क्यों है? बीईएल और ईसीआईएल द्वारा आपूर्ति की जाने वाली अतिरिक्त मशीनें वास्तव में कहां गईं? यह गड़बड़ी ईवीएम पर हुए खर्च में मिली है।

इसके अलावा पुरानी ईवीएम नष्ट करने का मामला भी स्पष्ट नहीं है। 21 जुलाई, 2017 को चुनाव आयोग ने कहा कि उसने कोई भी ईवीएम रद्दी में नहीं बेची है। वहीं ऐसा माना जाता है कि 1989-1990 की ईवीएम को निर्माताओं द्वारा स्वयं नष्ट कर दिया गया था। चुनाव आयोग ने कहा है कि 2000-2005 के बीच उन्हें मिली पुरानी, खराब, अपूर्ण ईवीएम को नष्ट करने की प्रक्रिया अभी भी विचाराधीन है। इससे यह भी स्पष्ट  होता है कि सभी मशीनें अब भी चुनाव आयोग के कब्जे में हैं।

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