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वैक्सीन वितरण में बढ़ती असमानता : क्या विकसित दुनिया परवाह भी करती है?

WHO द्वारा लगातार अपीलों के बावजूद दुनिया में वैक्सीन असमानता बढ़ती जा रही है। अमीर देश अब अपनी आबादी के लिए बूस्टर डोज़ का प्रस्ताव रख रहे हैं, जबकि गरीब़ देशों में अब तक ज़्यादातर लोगों को वैक्सीन की एक खुराक तक उपलब्ध नहीं हो पाई है।
वैक्सीन वितरण में बढ़ती असमानता : क्या विकसित दुनिया परवाह भी करती है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक-महासचिव टेड्रोस घेब्रेयेसस ने एक टिप्पणी में कहा, "हमें वैक्सीन तक पहुंच मेँ अब भी हैरान करने वाली असमताएं देखने को मिल रही हैं। अब तक दुनिया में 5 अरब से ज़्यादा वैक्सीन की खुराक लगाई जा चुकी हैं। लेकिन इनमें से 75 फ़ीसदी वैक्सीन सिर्फ़ 10 देशों में लगाए गए हैं।"

कोविड-19 के बूस्टर डोज़ पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए WHO ने 10 अगस्त को अपने वक्तव्य में चेतावनी देते हुए कहा, "बूस्टर डोज़ लगाए जाने से वैश्विक वैक्सीन आपूर्ति पर दबाव बनेगा, मांग और ख़पत ज़्यादा तेज होगी और असमता में बढ़ोत्तरी होगी, जबकि कई देशों में अभी प्राथमिकता वाली आबादी के लिए भी प्राथमिक टीका श्रंखला शुरू नहीं हो पाई है।" 

वक़्त के साथ बढ़ती जा रही है वैक्सीन असमता

वैक्सीन बनने के बाद सभी देशों में ज़्यादा से ज़्यादा वैक्सीन हासिल करने की प्रतिस्पर्धा लग गई। बल्कि यह तब शुरू हो गया था, जब वैक्सीन अपनी बनने की प्रक्रिया में ही थी, कई देशों ने अग्रिम खरीद समझौतों के ज़रिए अपने लिए पहले ही वैक्सीन की निश्चित मात्रा तय कर दी थी। 

यह प्रतिस्पर्धा शुरू में केवल अमीर देशों तक ही सीमित थी। WHO ने कोवैक्स जैसे मंच बनाकर सभी देशों में वैक्सीन वितरण में समता लाने की कोशिश की। लेकिन यह प्रयास असफल हो गए, अभी तक विकासशील देशों में पूरी आबादी का एक बहुत छोटा हिस्सा ही पूरी तरह से टीकाकृत हो पाया है। जबकि ज़्यादा विकसित देशों मे 50 फ़ीसदी से भी ज़्यादा आबादी का टीकाकरण किया जा चुका है। 

पिछले कई महीनों से यह असमता बढ़ती ही जा रही है। चित्र 1 में हम कुछ बड़े विकसित देशों और दूसरे देशों के बीच पूरी तरह टीकाकरण करवा चुके लोगों के बीच के अंतर को देख सकते हैं। हमने चार तारीखों (1 मार्च, 1 मई, 1 जुलाई और 1 सितंबर, 2021) के लिए यह आंकड़े लिए हैं, ताकि वक़्त के साथ बढ़ती असमता को दिखाया जा सके। 

1 मई 2021 तक अफ्रीका में सिर्फ़ 0।4 फ़ीसदी आबादी का ही पूरी तरह टीकाकरण हुआ है, जबकि कनाडा में यह आंकड़ा 2।9 फ़ीसदी है। चीन को छोड़कर बाकी एशिया में भी सिर्फ़ कुल आबादी में से 1.4 फ़ीसदी का ही पूर्ण टीकाकरण हुआ है। वहीं अमेरिका और यूके में पूर्ण टीकाकरण करवा चुके लोगों का आंकड़ा काफ़ी ज़्यादा, क्रमश: 31 और 22 फ़ीसदी है। 

लेकिन अगर हम चार महीने बाद की स्थिति देखें, तो 1 सितंबर को इस वैक्सीन असमता में काफ़ी ज़्यादा बढ़ोत्तरी हो गई। अफ्रीका में पूर्ण टीकाकृत आबादी सिर्फ़ 2।9 फ़ीसदी पर ही पहुंची, वहीं कनाडा में 67 फ़ीसदी लोग पूर्ण टीकाकरण करवा चुके हैं। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, अमेरिका और अन्य विकसित देश 50 फ़ीसदी से ज़्यादा टीकाकरण कर चुके हैं, जबकि एशिया (चीन को छोड़कर) में सिर्फ़ 10 फ़ीसदी लोगों का ही पूर्ण टीकाकरण हो पाया है। जबकि दक्षिण अमेरिका में यह आंकड़ा 31 फ़ीसदी है, जहां तुलनात्मक तौर पर चिली जैसे ज़्यादा उन्नत देश हैं। 

वैश्विक टीकाकरण स्तर (चित्र-1) पर नज़र डालने से पता चलता है कि विकसित देश अपनी आबादी के एक बड़े हिस्से (40 फ़ीसदी से ज़्यादा) का टीकाकरण करवा चुके हैं, जबकि अफ्रीका (5 फ़ीसदी से कम) और एशिया (20 फ़ीसदी से कम) के गरीब़ देश अब भी काफ़ी पीछे हैं।

नोट: यह प्रतिशत कुल आबादी के अनुपात में है। जब कुल योग्य आबादी (18 साल से ऊपर) को ध्यान में लेंगे, तो आंकड़े और भी ज़्यादा हो सकते हैं। 

स्त्रोत्: "अवर वर्ल्ड इन डेटा"

WHO की अपील के उलट, बूस्टर डोज का प्रस्ताव

इससे पहले WHO ने कम से कम सिंतबर के अंत तक बूस्टर डोज़ पर प्रतिबंध लगाने की अपील की थी। संगठन के निदेशक-महासचिव ने 1 सितंबर को फिर यही बात दोहराई और वैक्सीन आपूर्ति में असमता पर नाराज़गी जताई। उन्होंने कहा, "कुछ देश पूरा टीकाकरण करवा चुके लोगों के लिए बूस्टर डोज़ लेकर आ रहे हैं, जबकि दुनियाभर में करोड़ों लोगों को अब तक पहला डोज़ तक नहीं मिला है।"

बूस्टर डोज़ की कार्यकुशलता या जरूरत की पुष्टि करने वाले व्यापक स्तर के आंकड़ों के ना होने की स्थिति में WHO ने सलाह में कहा, "बूस्टर डोज़ को पूरी तरह सबूतों के आधार पर ही लाना चाहिए और जिन लोगों को उसकी सबसे ज़्यादा जरूरत है, उन्हें ही उपलब्ध कराया जाना चाहिए।" कंबोडिया और थाईलैंड जैसे देशों में पहले मोर्चे पर काम कर रहे कर्मचारियों को बूस्टर डोज़ दिया जा रहा है। जुलाई-अगस्त से लगाए जाने वाले इस बूस्टर डोज़ में स्वास्थ्यकर्मियों, सरकारी कर्मचारियों को प्राथमिकता दी जा रही है, जबकि इज़रायल 12 साल से ऊपर के सभी लोगों को बूस्टर डोज़ देने का ऐलान कर चुका है। कुछ रिपोर्टों में तो यह भी कहा गया है कि अगर जरूरत पड़ी तो इज़रायल में चौथा डोज़ भी लगाया जाएगा। 

जर्मनी, फ्रांस, चेक गणराज्य और ब्रिटेन भी बुजुर्ग और कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाली आबादी के लिए बूस्टर डोज़ लाने की योजना बना रहे हैं।

हाल में अमेरिकी सरकार ने 20 सितंबर से बूस्टर डोज़ को लगाए जाने की घोषणा की है। लेकिन अमेरिका में संघीय स्वास्थ्य एजेंसियों (FDA और सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) ने सभी को एकदम से वैक्सीन का बूस्टर डोज़ लगाए जाने के खिलाफ़ मत दिया है। इन संस्थानों ने सरकार को सलाह देते हुए कहा कि बूस्टर डोज़ को तब तक सीमित मात्रा में, धीरे-धीरे लाना चाहिए, जब तक इसकी कार्यकुशलता से जुड़े ज़्यादा आंकड़ों भी सामने आ जाएंगे। 

कोवैक्स में किए गए वायदे अधूरे

WHO अब भी कोवैक्स को चलाने की कोशिश कर रहा है। कोवैक्स का शुरुआती लक्ष्य 2021 तक कम आय वाले देशों को 2 अरब वैक्सीन खुराक उपलब्ध करवाना था। कोवैक्स ने अब अपनी वैक्सीन आपूर्ति के अनुमानों में संशोधन कर इन्हें 1.4 अरब कर दिया है, कोवैक्स को अंदाजा है कि सितंबर से दिसंबर में आखिर के बीच में 1.1 अरब खुराकों की आपूर्ति हो जाएगी। अगस्त के आखिर तक कोवैक्स ने 139 देशों में 33 करोड़ खुराकों की आपूर्ति की है। जैसा WHO के महासचिव ने बताया था, उच्च आय वाले देशों ने जिन 1 अरब खुराकों को उपलब्ध करवाने का वायदा किया था, उनमें से केवल 15 फ़ीसदी ही उपलब्ध करवाई हैं।

भारत ने शुरुआत में दूसरे देशों और कोवैक्स को वैक्सीन आपूर्ति करना शुरू किया था, वह भी अब आपूर्ति श्रंखला से पूरी तरह बाहर हो चुका है। दूसरी लहर में बड़ी संख्या में कोरोना के मामलों के सामने आने और अब तीसरी लहर की संभावना के चलते, भारत अपने वायदे से मुकर गया है। 2021 में मई के अंत तक भारत ने 6.6 करोड़ वैक्सीन डोज़ की आपूर्ति दूसरे देशों में की थी, जिनमें से 2 करोड़ कोवैक्स को दी गई थीं। इसके चलते कई देशों में टीकाकरण कार्यक्रम रुक गया है। 

ऐसी स्थितियों में चीन विकासशील देशों के लिए सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है। इन देशों में दक्षिण एशियाई देश भी शामिल हैं, जो अब चीन की वैक्सीन पर निर्भर करते हैं। जिन्हें हासिल करने के लिए इन देशों ने कीमतों का खुलासा ना करने वाले समझौते किए हैं। 

क्यूबा और रूस अन्य देश हैं, जो दूसरे विकासशील देशों को वैक्सीन की आपूर्ति करवा रहे हैं, जबकि WHO ने इन देशों की वैक्सीन समेत भारत की देशी कोवैक्सिन को आपात उपयोग की अनुमति भी नहीं दी है। बल्कि क्यूबा और रूस ने खुद के द्वारा निर्मित वैक्सीन तकनीक को दूसरे देशों के निर्माताओं के साथ साझा करने का प्रस्ताव दिया है। 

आज वैक्सीन निर्माण तकनीक, बौद्धिक संपदा अधिकारों के हस्तांतरण की आपात जरूरत है। लेकिन यहां सबसे बड़ी बाधा यह है कि कुछ वैश्विक निर्माताओं का इस क्षेत्र में एकाधिकार है। ट्रिप्स छूट प्रस्ताव पर अबतक कोई प्रगति नहीं हो पाई है। इसके ऊपर अब भी बातचीत चल रही है और यह विकसित देशों की देरी करने वाली चालाकियों का शिकार बन गया है। 

5-6 सितंबर, 2021 को हुई G-20 देशों के स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में हुई घोषणा में कोरोना पर मजबूत बहुपक्षीय सहयोग को प्रोत्साहन देने का ऐलान किया गया। कई दूसरी चीजों के साथ, WHO के टीकाकरण लक्ष्यों को समर्थन दोहराया गया, वहीं ACT उत्प्रेरक और कोवैक्स सुविधा का भी समर्थन किया गया। 

वैक्सीन आपूर्ति में बढ़ती असमता से नाराज होकर विश्व स्वास्थ्य संघठन के महासचिव ने बूस्टर डोज़ पर कम से कम इस साल के आखिर तक प्रतिबंध लगाने की अपील की, ताकि सभी देशों में कम से कम 40 फ़ीसदी आबादी का टीकाकरण किया जा सके। 

डेटा इनपुट्स और नक्शे में मदद एलोरा चक्रबर्ती और पीयूष शर्मा द्वारा

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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