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एक बार फिर 'फ़र्स्ट' आने की होड़ : स्वास्थ्य मंत्री ने अप्रमाणित कोविड दवा को बढ़ावा दिया

हर्षवर्धन के अप्रमाणित दवा की तरफ़दारी करने के नतीजे गंभीर होंगे क्योंकि बहुत अधिक लोग उनकी बात मानते हैं और शायद उनसे प्रभावित भी हैं।
स्वास्थ्य मंत्री ने अप्रमाणित कोविड दवा को बढ़ावा दिया

केंद्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार ने के बार फिर से खुद को और पूरे देश को हास्यास्पद स्थिति में डाल दिया है; और दुनिया के सामने एक अप्रमाणित दवा के बारे में घोषणा करके उसने सत्तावादी, सांप्रदायिक झुकाव के रुख को दोहराया है। 

आइए इसमें हास्यास्पद क्या है और गंभीर रूप से अनुचित क्या है थोड़ा उस पर शुरू से चर्चा करते हैं। 22 फरवरी को, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने आरोप लगाया कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन न योगा गुरु बाबा रामदेव के पतंजलि आयुर्वेद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में भाग लेकर चिकित्सा से जुड़ी नैतिकता का उल्लंघन किया है, जो कार्यक्रम कोविड के इलाज़ के लिए बनी एक हर्बल दवा के प्रचार लिए आयोजित किया गया था। 

19 फरवरी को आयोजित किए गए कार्यक्रम में एक बैनर लगा था जिसमें वर्णन था कि- कोरोनिल नामक टैबलेट यानि हर्बल दवा को विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा निर्दिष्ट  दवा नियामक अधिकारियों से प्रमाणीकरण मिल गया है। बैनर पर ये सटीक शब्द लिखे थे कि "कोविड-19 की पहली साक्ष्य आधारित चिकित्सा की घोषणा (जो COPP-WHO GMP द्वारा प्रमाणित है)" की जा रही है।

जब बैनर के इस मेटर को डीकोड किया गया तो इससे लगा कि डब्लूएचओ द्वारा निर्धारित प्रारूप के अनुसार जारी किए गए "अच्छे विनिर्माण प्रथाओं" से संबंधित भारतीय दवा नियामक से कोरोनिल के पास "दवा का उत्पादन करने का प्रमाण पत्र" है। 

इसके बाद बड़ा विवाद खड़ा हो गया, आचार्य बालकृष्ण, पतंजलि के प्रबंध निदेशक ने एक ट्वीट जारी किया, जिसमें कहा गया था कि कंपनी किसी भी भ्रम से बचना चाहती है और बताना चाहती है कि कोरोनिल के उत्पादन का प्रमाणपत्र ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया, भारत सरकार ने जारी किया है। यह स्पष्ट रहे कि डब्ल्यूएचओ किसी भी ड्रग्स को स्वीकार या अस्वीकृत नहीं करता है

19 फरवरी को, हालांकि, कार्यक्रम के तुरंत बाद डब्ल्यूएचओ के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्रीय कार्यालय से स्पष्टीकरण जारी करते हुए ट्वीट आया: "डब्ल्यूएचओ ने कोविड-19 के उपचार के लिए किसी भी पारंपरिक दवा की प्रभावशीलता की समीक्षा या उसे प्रमाणित नहीं किया है।" न ही तो समाचार रिपोर्ट और न ही भारतीय अधिकारियों की तरफ से इस पर कोई बयान आया है जो यह स्पष्ट करता हो कि बालकृष्ण के ट्वीट का वास्तव में क्या मतलब है, जबकि उनका दावा है कि दवा के निर्माण के लिए ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया से प्रमाणपत्र मिल गया है।

जो बी हो, आईएमए ने वर्धन की कार्यक्रम में भागीदारी पर सवाल उठाया है जिसे केवल एक धोखेबाज़ी का अभियान कहा जा सकता है। एक बयान में कहा गया कि "स्वास्थ्य मंत्री द्वारा अवैज्ञानिक दवा का झूठा और मनगढ़ंत प्रक्षेपण", जिसके बाद डब्ल्यूएचओ द्वारा इसको नामंज़ूर करना भारत के लोगों के मुह पर "थप्पड़ और अपमान" है। आईएमए के अधिकारियों, राष्ट्रीय अध्यक्ष जॉनजोस ऑस्टिन जयलाल और महासचिव जयेश लेले ने इस कार्यक्रम में वर्धन की उपस्थिति पर सवाल उठाया, खासकर महामारी के बीच में।

आईएमए ने इस बात को भी रेखांकित किया कि डॉक्टर आचार संहिता से बंधे हैं, ये आचार सहीनताएँ किसी भी प्रकार की दवाओं के "विज्ञापन के किसी भी रूप या तरीके से" के अनुमोदन, समर्थन या प्रमाणित करने से रोकते हैं। लेले ने आगे बताया कि जीएमपी का किसी उत्पाद की प्रभावकारिता से कोई लेना-देना नहीं है, जिसे "यादृच्छिक डबल-ब्लाइंड प्लेसबो-नियंत्रित परीक्षणों" के माध्यम से स्थापित किया जाना होता है। "वे इस तरह का परीक्षण क्यों नहीं करते हैं?" उन्होने सवाल उठाया।

पहले ही बता दें कि निश्चित रूप से, मुद्दा यह है कि वर्धन सिर्फ एक योग्य चिकित्सक ही नहीं है, जिस बूते से आईएमए ने उनकी खिंचाई की है। वे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री भी हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरह असुरक्षित दवा को समर्थन देना, एक सामान्य चिकित्सक की तुलना में बहुत खतरनाक नतीजे हो सकते है, क्योंकि उनकी काफी अधिक लोगों तक पहुंच है और शायद वे उनसे प्रभावित भी हैं।

यह वह संदर्भ है जो वर्धन और केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी (मुख्य अतिथि के रूप में) द्वारा आयोजित कार्यक्रम को उचित संदर्भ प्रदान करता है। और यह भी कि, वर्धन की एक ट्वीट में कहा गया है कि उन्हे पतंजलि द्वारा विकसित कोविड-19 की साक्ष्य-आधारित दवा पर "एक वैज्ञानिक शोध पत्र जारी करने" के कार्यक्रम में शामिल होने की इज्ज़त मिली है। 

जो वे कह रहे हैं उसी में सारा झूठ छिपा है। 19 फरवरी को आयोजित किया गया कार्यक्रम सीधे कोरोनिल को बढ़ावा देने के लिए ही नहीं था। यह एक "वैज्ञानिक पत्र" जारी करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम था जो कथित रूप से उन सबूतों को प्रदान करता है जिन पर कोरोनिल की प्रभावकारिता को समर्पित किया गया है। इससे पहले कि हम मामले की खूबियों से रूबरू हों, बिना ड्रग ट्रायल के उसे प्रमाणित करने के मामले में, हमें वर्धन की बातों पर ध्यान देने की जरूरत है।

कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति एक स्पष्टीकरण के रूप में दिखाई देती है, वर्धन के मुताबिक  सरकार और रामदेव के आयुर्वेद के बारे में सपने साझा हैं। वर्धन ने ट्वीट किया, "आयुर्वेद के बारे में, जो भी सपना बाबा रामदेव का है, वह सरकार का भी सपना है।" यदि भारत के कई समान नागरिकों (और एक कंपनी) को नितान्त और अनुचित समर्थन नहीं मिलता है, तो कोई भी इस बात पर आश्चर्यचकित हो सकता है कि कैसे आगे चलकर कुलीनवाद जा सकता है।

लेकिन इसके अलावा, विजयगीत की अस्पष्टता इसे पूरी तरह से अकथनीय बना देती है। यह मानते हुए कि आयुर्वेद के संबंध में सरकार के उद्देश्य और अवधारणाएं, या "सपने", पूरी तरह से रामदेव से जुड़े हैं, इसका संबंध कैसे अनुरूप है। क्या इसका मतलब यह है कि स्वास्थ्य मंत्री चिकित्सा और मंत्री पद की नैतिकता का उल्लंघन करते हुए किसी कार्यक्रम में भाग लेंगे और किसी भी असुरक्षित दवा का प्रचार करेंगे?

ऐसा लगता है कि बावजूद इस तथ्य के कि कोरोनिल के नैदानिक परीक्षण में 100 रोगियों को शामिल किया गया था, जिसके परिणाम Phytomedicine/फाइटोमेडिसिन  नामक जोरनल में प्रकाशित हुए थे जिसकी समीक्षा करते हुए, पूरी प्रक्रिया को वैज्ञानिकों ने दोनों रजिस्टरों और मेथोडॉलोजी पर सवाल उठाए थे और पूरी प्रक्रिया को धता बता दिया था। नैदानिक प्रक्रिया की आलोचना अध्ययन की कई विशेषताओं पर केंद्रित है। पहली असंगतता है: एक बिंदु पर यह दावा करता है कि रोगी स्पर्शोन्मुख थे, दूसरे में कहते हैं कि वे "हल्के लक्षण" के रोगी थे।

दूसरा असाधारण परिणाम को बदलने का आरोप था: मुख्य रूप से दावा किया गया था कि सातवें दिन तक समूह में शामिल सभी लोग जो इलाज ले रहे थे, वे ठीक हो गए थे, जबकि समूह के केवल 60 प्रतिशत ने एक प्लेसबो दिया था। एक डॉक्टर ने डिजाइन की खामियों, अप्रमाणिक नमूनों और विश्लेषण और व्याख्या के त्रुटिपूर्ण तरीकों पर ध्यान आकर्षित किया।  एक अन्य ने इस आरोप को "लीड टाइम" यानि समय के रूप में समझाया। दूसरे शब्दों में, अध्ययन इस बात को स्पष्ट नहीं कर पाया कि वायरस से छुटकारे पाने में बड़े पैमाने पर स्पर्शोन्मुख रोगियों को कितना समय लग सकता है। यह सब समझने के लिए, हमें संक्रमण और ठीक होने के बीच लगने वाले समय को जानना होगा। ठीक होने में लगने वाले समय का अंतर उस संक्रमण होने के समय का परिणाम हो सकता है, जो पेपर में दर्ज़ नहीं था।

पूरे प्रकरण पर अंतिम शब्द जॉन ट्रैविस को जाने चाहिए, जो अमेरिका के एक पूरक दवा विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने कहा: "मंत्रियों द्वारा भारी समर्थन हासिल करने की जल्दबाज़ी में ड्रग कंपनी की हिमायत उनके द्वारा कंपनी के विज्ञापन और विज्ञान-मुक्त प्रचारक की तरह लगती है।"

पतंजलि के संदिग्ध दावे और अमल एक बात हैं: उचित कानून के अनुसार उल्लंघन के मामले में उनकी जांच और उन्हे दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन वर्धन की भागीदारी और उस पर विजय गीत गाना एक गहरी प्रणालीगत समस्या की ओर इशारा करते हैं: ये सब सत्ताधारी पार्टी की "विज्ञान विरोधी" मानसिकता और हुकूमत की अक्षमता को दर्शाता है। 

मैं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा कॉलेजों और विश्वविद्यालयों को व्यक्तिगत या संयुक्त रूप से गाय के गोबर, मूत्र, दूध, और घी के गुणों का बेतुका अध्ययन करने जा सकता था, जैसा कि हाल ही में एक आदेश में पारित हुआ था। एक राष्ट्रीय गाय विज्ञान परीक्षा। दुर्भाग्य से, स्पेस हमें विज्ञान विरोधी चेतना की इस प्रफुल्लित करने वाली धारा में जाने की अनुमति नहीं देता है।

इसलिए हम एक सवाल के साथ इस चर्चा को समाप्त कर सकते हैं: हम उस सरकार से क्या बेहतर उम्मीद कर सकते हैं जिसका संस्कृति मंत्रालय ट्वीट करके राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे नेता-एमएस गोलवलकर की बड़ी प्रशंसा करता है? न केवल उन्होंने हिटलर के सुजनन विज्ञान के विचारों को हासिल किया था, उन्होंने दृढ़ता से एक सांप्रदायिक और दमनकारी हुकूमत का आधार तैयार किया था जोकि भारत जल्द ही बनने वाला है। विज्ञान और मानववाद को अस्वीकार करना उस एजेंडे के केंद्र में है।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

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