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दुनिया भर की: लूटी गई कलाकृतियां लौटाने को मजबूर हो रहे हैं यूरोपीय देश

एशिया के अलावा, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के ज्यादातर देश 19वीं सदी और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में औपनिवेशिक गुलामी का शिकार रहे हैं। यह सारा दौर शासक देशों द्वारा अपने गुलाम देशों में जमकर मचाई गई लूट का भी रहा है।
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लंदन के होर्निमन म्यूजियम में रखी बेनिन ब्रोंज कलाकृतियां जिन्हें लौटने पर सहमति हुई है। फोटो साभार: रायटर्स

यह सुकून की बात है कि अफ्रीकी व लैटिन अमेरिकी देश अपने इतिहास, संपदा व विरासत को लेकर थोड़ा मुखर हो रहे हैं। गरीबी की निरंतर मार और जलवायु परिवर्तन के असर ने उन्हें खुद के प्रति चैतन्य किया है। यूरोप व अन्य जगहों पर लोकतांत्रिक ताकतों की मजबूती से भी एक किस्म का दबाव बना है। इसकी अभिव्यक्ति इन दिनों हमें एक नए तरह के घटनाक्रम में देखने को मिल रही हैं। यह अभिव्यक्ति औपनिवेशिक काल की कुछ पीड़ाओं को कम करने में कामयाब हो सकती है।

एशिया के अलावा, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के ज्यादातर देश 19वीं सदी और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में औपनिवेशिक गुलामी का शिकार रहे हैं। यह सारा दौर शासक देशों द्वारा अपने गुलाम देशों में जमकर मचाई गई लूट का भी रहा है।

औपनिवेशिक काल की कई यातनाओं का न तो कोई हिसाब हो सकता है और न उसकी भरपाई लेकिन लूट के कुछ हिस्से को लौटाने का काम तो किया ही जा सकता है। इन दिनों यही देखने को मिल रहा है। खास तौर पर पुरातात्विक लूट को लौटाने का दबाव यूरोपीय देशों पर पड़ रहा है और वे अब इसके लिए मजबूर हो रहे हैं।

जर्मनी के स्टुटगार्ट शहर में लिंडेन म्यूजियम में बेनिन ब्रोंज प्रतिमाएं जो नाइजीरिया को लौटाई जानी हैं। फोटो साभार: एपी

पिछले दिनों जर्मनी ने अफ्रीकी देश नाइजीरिया के साथ एक समझौता किया जिसमें नाइजारियाई पुरातात्विक वस्तुएं, खास तौर पर सैकड़ों की संख्या में कांसे की प्रतिमाएं—जिन्हें ‘बेनिन ब्रोंज’ कहा जाता है—लौटाने की बात शामिल है। इन सबको तकरीबन सवा सौ साल पहले नाइजीरिया के बेनिन साम्राज्य से अंग्रेज औपनिवेशिक दलों द्वारा लूटा गया था, और बाद में उन्हें यूरोप में बेच डाला गया। बर्लिन के एथनोलॉजिकल म्यूजियम में ऐसी पांच सौ से ज्यादा वस्तुएं बताई जाती हैं, जिनमें चार सौ से ज्यादा तो कांसे की प्रतिमाएं हैं। समूचे जर्मनी में इनकी संख्या हजार से ज्यादा है। अब ये नाइजीरिया को लौटाई जाएंगी।

यह लूटी गई कलावस्तुओं की दुनिया में सबसे बड़ी वापसी है। यह मुमकिन इसीलिए हो पाया है क्योंकि पिछले कुछ समय से नाइजारिया ने इसके लिए दबाव बनाना शुरू किया था। इसका असर कई देशों में दिखाई दिया है। फ्रांस में राष्ट्रपति इमेन्युएल मैक्रॉं ने पिछले साल एबोमी ट्रेजर्स के नाम से पहचानी जाने वाली तत्कालीन दाहोमी साम्राज्य की 19वीं सदी की 26 अमूल्य वस्तुओं को लौटाने का ऐलान किया था।

अमेरिका के स्मिथसोनियन म्यूजियम ने भी 10 बेनिन ब्रोंज प्रतिमाओं को अपने यहां से हटा लिया है और ऐसी सामग्रियों की वापसी की एक नीति तैयार की है। कुछ अन्य संग्रहालय भी इस दिशा में चर्चा शुरू कर चुके हैं।

सबसे ज्यादा मुश्किल ब्रिटेन के लोगों को तैयार करने में आ रही है, जिन्होंने तमाम देशों को सबसे ज्यादा लूटा है। हालांकि लंदन के होर्निमन म्यूजियम ने पिछले दिनों कहा है कि वह अपने पास मौजूद 72 कलाकृतियां नाइजारिया को लौटा देगा जो 1897 में अंग्रेज सैनियों ने बेनिन से लूटी थीं। इस संदर्भ में होर्निमन म्यूजिय्म एंड गार्डन्स के बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की प्रमुख ईव सालोमन का बयान बहुत महत्वपूर्ण हैं कि “साक्ष्य बहुत साफ हैं कि इन सारी वस्तुओं को ताकत के बल पर हासिल किया गया था, इसलिए यह नैतिक भी है और उपयुक्त भी कि इनका स्वामित्व फिर से नाइजारिया को सौंप दिया जाए।”

कैंब्रिज म्यूजियम ने भी बेशक कुछ वस्तुएं नाइजारिया को लौटाई हैं, लेकिन ब्रिटेन ने सरकारी स्तर पर इस बारे में कुछ नहीं कहा है। वहां के सबसे प्रभावशाली और लूट का सबसे ज्यादा माल समेटे हुए ब्रिटिश म्यूजियम और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी म्यूजियम ने इस बारे में चुप्पी साध रखी है। 1962 में अंग्रेजों से आजादी पाने वाले उगांडा के अधिकारी नवंबर में ब्रिटेन जाने की तैयारी कर रहे हैं ताकि कैंब्रिज म्यूजियम व अन्य जगहों से इस तरह की कलाकृतियों की वापसी की बात कर सकें।

पेरिस में म्यूजियम में रखीं एबोमी ट्रेजर्स के नाम से पहचानी जाने वाली तत्कालीन दाहोमी साम्राज्य की कलाकृतियों में से कुछ। फोटो साभार : एपी

मुश्किल यही है कि फ्रांस, जर्मनी व अमेरिका जैसे देशों में जहां यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, ब्रिटेन की तरफ से इस तरह की कोशिशों की शुरुआत भी नहीं हुई है। जाहिर है कि विश्व राजनीति में ज्यादा दखल न रखने वाले अफ्रीकी देशों के लिए यह एक बड़ी दुरूह प्रक्रिया है। 19वीं व 20वीं सदी में हुई इस लूट में काफी कलावस्तुएं तो ऐसी भी हैं जिनका कहीं कोई अता-पता ही नहीं है।

नाइजारिया के बेनिन शहर के कलाकारों के गिल्ड ने तो पिछले साल ब्रिटेन से अपील की थी कि ब्रिटिश म्यूजियम को लूटी गई बेनिन कांस्य प्रतिमाओं के बदले में वे उसे नई कलाकृतियां भेंट करने को तैयार हैं।

जिंब्बावे भी ब्रिटेन से इसी तरह की 3,000 कलावस्तुओं की वापसी का दबाव डाल रहा है। इनमें आजादी की लड़ाई लड़ने वाले लड़ाकों के नरमुंड भी है, जिनके सिर काट डाले गए थे और खोपड़ियां ट्रॉफी के रूप में ब्रिटेन ले जाई गई थीं। दक्षिण अफ्रीका, रवांडा, उगांडा आदि देश भी अपने-अपने यहां की कलावस्तुओं की वापसी के लिए कोशिशें कर रहे हैं।

ब्रिटिश म्यूजियम के पास तमाम देशों का लूट का माल है। इनमें चिली के ईस्टर द्वीप के मोआई मूल निवासियों की वस्तुएं भी हैं जिन्हें लौटाने की बात चिली के लोग कर रहे हैं।

उधर अमेरिका ने इसी महीने कंबोडिया को करीब 30 लूटी हुई कलावस्तुएं लौटाई हैं जिनमें हजार साल से ज्यादा पुरानी बौद्ध व हिंदू देवी-देवताओं की प्रतिमाएं शामिल हैं। पिछले साल न्यूयार्क में मैनहट्टन जिला अटार्नी के दफ्तर ने भी 27 कलाकृतियां कंबोडिया को लौटाई थीं।

आने वाले दिनों में यह सिलसिला तेज होगा जब बाकी देश भी इस दिशों में कोशिशें शुरू करेंगे। यही सही भी है। औपनिवेशिक ताकत रहे देशों के लिए भी यही सही है कि वे अपने अहम को छोड़कर यह विरासत इनके मूल मालिकों को लौटाएं और इस तरह अपने चेहरों पर लगी कालिख को थोड़ा पोंछ लें।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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