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बिहार: जनता की आकांक्षाओं के प्रति नयी सरकार को जवाबदेह बनायेंगे वाम दल

जनता की आकांक्षाओं के प्रति नयी सरकार को जवाबदेह बनाना भी एक अहम ज़िम्मेदारी है जिसे वामपंथ ही अंजाम दे सकता है।
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अरसे बाद बिहार में एक दल विशेष का प्रचार भोंपू बनी मीडिया को प्रदेश की नयी सरकार के प्रति “आदर्श पत्रकारिता” चमकाने सुनहरा अवसर मिल गया है। हर दिन परोसे जा रहे “गहन-सूक्ष्म” राजनितिक विश्लेषणों में तत्कालीन विपक्षी दल व उसके नेताओं से भी अधिक मीडिया धुरंधर जो पूर्व की सरकार के समय विपक्ष की आवाज़ को हाशिये पर रखते थे, अब अचानक से विपक्ष से सत्ता में आई नयी सरकार के नेताओं को ढ़ूंढ़ ढ़ूंढ़ कर उनके वादे याद दिला रही है। इतना ही नहीं प्रदेश के सभी वाम दलों की खबरों को अंदर के किसी पन्नों में जगह देनेवाली मीडिया अब अचानक से नयी सरकार को लेकर उनके बयानों को खासा महत्व देने लगी है।

बिहार की वर्तमान नयी महागठबंधन सरकार को समर्थन देने वालों में प्रदेश के सभी वामपंथी दल शामिल हैं। जिसके तहत महागठबंधन की ओर से राज्यपाल को दिए गए विधायकों के हस्ताक्षर वाले समर्थन पत्र में भाकपा माले के 12 तथा सीपीएम व सीपीआई के 2-2 विधायकों के हस्ताक्षर हैं।

अब तक की जानकारी के अनुसार तीनों वाम दलों की ओर से आ रही जानकारी के अनुसार अभी तक सिर्फ सीपीआई ने औपचारिक रूप से सरकार में शामिल होने की घोषणा की है। सीपीएम की ओर से इस संदर्भ में अंतिम फैसले की घोषणा नहीं की गई है।

ख़बरों के अनुसार सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी ने राजद नेता तेजस्वी यादव से मिलकर उन्हें बिहार में धर्मनिरपेक्ष महागठबंधन की सरकार के गठन के लिए बधाई दी है। साथ ही कहा है कि हमें पूरा यकीन है कि यह सरकार अपने सारे फैसले बिहार की जनता खासकर गरीब, शोषित और वंचित वर्गों के हक में लेगी।

सीपीआई के वरिष्ठ नेता अतुल कुमार अनजान ने भी महागठबंधन सरकार के गठन पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा है कि सीपीआई को सम्मानजनक प्रतिनिधित्व दिए जाने पर हम नीतीश कुमार मंत्रिमंडल का हिस्सा बनना चाहेंगे।

भाकपा माले ने विधिवत प्रेस वार्ता कर यह कहा है कि बिहार की राजनीति और सत्ता में आये बड़े बदलाव के मद्देनज़र पार्टी की बिहार राज्य कमेटी ने महागठबंधन की सरकार को बाहर से समर्थन देने और मंत्रिमंडल में नहीं शामिल होने का फैसला लिया है।

बाद में माले के एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलकर सरकार गठन के लिए बधाई दी और पार्टी की ओर से समर्थन देते हुए अपना मांग पत्र दिया। इस प्रतिनिधिमंडल में माले के राष्ट्रीय महासचिव, बिहार प्रदेश सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य व किसान महासभा नेता राजाराम सिंह व धीरेंद्र झा तथा माले विधायक दल के नेता महबूब आलम समेत केंद्रीय कमेटी सदस्य मीना तिवारी व शशि यादव के अलावा विधायक दल के उप नेता सत्यदेव राम, सचेतक विधायक अरुण सिंह व वरिष्ठ नेता केडी यादव शामिल हुए।

इस अवसर पर माले महासचिव ने कहा कि हमारी पार्टी मंत्रिमंडल से बाहर रहते हुए भी सरकार को हर प्रकार से सहयोग करेगी।

प्रतिनिधिमंडल द्वारा मुख्यमंत्री को ‘नयी सरकार के लिए भाकपा माले के सुझाव’ का पत्र देते हुए कहा गया कि, एक ऐसे दौर में जब भाजपा द्वारा पूरे देश में हिंसा-विभाजन-नफ़रत-झूठ-सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति को बढ़ावा देने, देश में एक दलीय शासन व्यवस्था और अघोषित आपातकाल थोप देने के साथ-साथ यूपी/गुजरात की तर्ज़ पर बिहार में भी बुल्डोज़र राज स्थापित करने की एक सुनियोजित मुहिम चलाई जा रही है। बिहार की सत्ता से उसकी बेदखली न केवल बिहार बल्कि पूरे देश के लिए एक ज़रूरी व बेहद सकारात्मक घटना है। इसने संविधान लोकतंत्र पर भाजपा द्वारा लगातार किये जा रहे हमले के खिलाफ संघर्षशील ताक़तों के लिए एक नयी उम्मीद पैदा की है।

इस पत्र में आगे कहा कि, आपके नेतृत्व में गठित नयी सरकार से न केवल हमें बल्कि पूरे बिहार को उम्मीद है कि यह सरकार भाजपा द्वारा बिहार को भी उन्माद-उत्पात की प्रयोगशाला बनाने की साजिशों व कार्रवाइयों पर प्रभावी नियंत्रण हेतु आवश्यक प्रशासनिक व विधायी क़दम उठाएगी। ऐसी संगठनों व व्यक्तियों की शिनाख्त कर उसके प्रति कड़ा रवैया अपनाएगी ताकि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द का माहौल बना रहे। भाजपा द्वारा बिहार विधान सभा में नवनिर्मित राजकीय चिन्ह से ऊर्दू में लिखे ‘बिहार’ हटा देने सहित तमाम अलोकतांत्रिक कार्यों को दुरुस्त कर साझी-संस्कृति साझी-विरासत की परंपरा को मजबूती के साथ बढ़ाई जायेगी।

इस मांग पत्र के माध्यम से स्मार्ट सिटी व जल जीवन हरियाली जैसी जन विरोधी योजनाओं के नाम पर बरसों बरस से बसे गरीबों को उजाड़े जाने पर रोक लगाने तथा समय सीमा के अंतर्गत नया वास-आवास कानून बनाने, तमाम रिक्त पदों पर अविलंब स्थायी बहाली करने के साथ-साथ 19 लाख युवाओं को रोज़गार देने के वादे को पूरा करने, कृषि क्षेत्र की बदहाली ठीक कर एम्एसपी एक्ट की पुनर्बहाली करने, जन पक्षीय विकास हेतु भूमि-सुधार कर गरीब भूमिहीनों को ज़मीन देने व शिक्षा आयोग का गठन करने, विशेषकर राज्य के शैक्षिक अराजकता को दूर कर शिक्षा व्यवस्था में सुधार व बदलाव के लिए मुकम्मल कार्ययोजना बनाने तथा पटना विश्वविद्यालय को केंद्रीय वीवी का दर्ज़ा देने की मुहिम को तेज़ करना शामिल है। शराब बंदी कानून के नाम पर गिरफ्तार सभी गरीब बेगुनाहों को रिहा करने व शराब माफियाओं के खिलाफ कड़े कदम उठाने समेत अल्पसंख्यक-महिला-एससी/एसटी, मानवाधिकार व अन्य सभी आयोगों का पुनर्गठन करने तथा विभिन्न आंदोलनों में शामिल लोगों पर से सभी मुक़दमों की वापसी व गिरफ्तार लोगों को रिहा करने समेत कई महत्वपूर्ण मांगें रखी गयीं। साथ ही यह भी कहा गया कि हम चाहते हैं कि बिहार के जनपक्षीय विकास के लिए एक साझा न्यूनतम कार्यक्राम बनाए जाए। सुचारु संचालन के लिए सभी घटक दलों को लेकर एक समन्वय समिति का गठन किया जाए। भाजपा शासन में नागरिक समाज व न्यायपूर्ण आंदोलनों के दमन की जो दिशा पकड़ी गयी, बिहार की नयी सरकार उसके खिलाफ सकारात्मक रुख के साथ आगे बढ़ेगी। ख़बरों के अनुसार आज हुए मंत्रिमंडल विस्तार में राजद-जदयू-कांग्रेस व हम पार्टियों से 31 मंत्रियों ने राजभवन में अपने अपने पद की शपथ ली है।

सियासी चर्चाओं में कईयों का ये प्रबल मत था कि वामपंथी दलों विशेषकर भाकपा माले को मंत्रिमंडल में अवश्य शामिल होना चाहिए। लेकिन भाकपा माले ने मुख्यमंत्री से मिलकर अपना रुख स्पष्ट कर दिया कि वह नागरिक समाज और नयी सरकार के साथ एक सार्थक संवाद बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी। साथ ही यह भी पूरा भरोसा जताया है कि आने वाले दिनों में हम भाजपाई साजिश व आपदा से देश को मुक्ति दिलाने में सफल रहेंगे।

वहीँ कई जानकरों ने माले के इस क़दम को सही ठहराते हुए कहा है कि, जनता की आकांक्षाओं के प्रति नयी सरकार को जवाबदेह बनाना भी एक अहम जिम्मेदारी है जिसे वामपंथ ही अंजाम दे सकता है।

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