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बिहार में न विकास है और न ही आपराधिक मामलों पर लगाम!

महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के कई मामले सुर्खियों आए और चले गए। लेकिन जो इन सब के बीच रह गया, वो नीतीश सरकार और प्रशासन से सवाल है। सवाल महिलाओं की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का, जिसे शायद नीतीश बाबू ‘पुलिस को हतोत्साहित करने वाला’ बताकर अपनी जवाबदेही से भाग निकलें।
बिहार में न विकास है और न ही आपराधिक मामलों पर लगाम!

दो दिन पहले बिहार के समस्तीपुर में एक महिला से गैंगरेप की कोशिश हुई और उसे नग्न अवस्था में बिजली के खंभे से लटका कर छोड़ दिया गया। आज जब ये खबर लिखी जा रही है तब बिहार के बाकां से एक नाबालिग से रेप की खबर सामने आ रही है। बीते दो दिनों में राज्य में महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के कई मामले सुर्खियों आए और चले गए। लेकिन जो इन सब के बीच रह गया, वो नीतीश सरकार और प्रशासन से सवाल है। सवाल महिलाओं की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था का, जिसे शायद नीतीश बाबू ‘पुलिस को हतोत्साहित करने वाला’ बताकर अपनी जवाबदेही से भाग निकलें।

आपको शायद इंडिगो के स्टेशन मैनेजर रूपेश कुमार सिंह की हत्या का मामला याद हो। इस बाबत जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पत्रकारों ने सवाल किया तो सीएम साहब ने तल्ख लहजे में जवाब दिया था, “कृपया विकास और अपराध के मामलों को मत मिलाइए।” हालांकि कोरोनाकाल में न तो मुख्यमंत्री का विकास दिख रहा है और न ही अपराधों पर लगाम लगाता सुशासन। एक ओर लोग बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते मरने को मज़बूर हैं तो वहीं दूसरी ओर अपराध भी अपने चरम पर है।

नीतीश कुमार के दावों के इतर आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं!

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बार-बार ये दावा करते हैं कि लालू-राबड़ी के शासनकाल के मुक़ाबले उनकी सरकार में अपराध कम हुए हैं। हालांकि, नीतीश कुमार के दावों के इतर बिहार पुलिस के आंकड़े कुछ और ही गवाही देते हैं। बिहार पुलिस की आधिकारिक वेबसाइट पर 2004 (लालू काल) से लेकर 2019 (नीतीश काल) तक के आपराधिक आंकड़े मौजूद हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार में लालू यादव की सरकार के आखिरी साल 2004 में अपराध के कुल 1,15,216 मामले दर्ज हुए थे, जबकि नीतीश कुमार की सरकार में 15 बाद 2019 में अपराध के आंकड़े घटने की बजाय (जैसा कि उनके द्वारा दावा किया जाता है) बढ़कर 2,69,096 हो गए, यानी इस दौरान दोगुने से भी ज्यादा मामलों में बढ़ोत्तरी हुई है।

कुछ महीने पहले ही मीडिया के सवालों पर भड़के नीतीश कुमार ने दावा किया कि अपराध के मामलों में बिहार देश में 23वें नंबर पर आता है। लेकिन  एनसीआरबी का डेटा कहता है कि 2019 में देश भर में हुए अपराधों में से 5.2 फीसदी अपराध बिहार में दर्ज हुए। इस लिस्ट में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, केरल, गुजरात, मध्यप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान के बाद बिहार का ही नंबर आता है। इस लिहाज़ से नीतीश कुमार का ये दावा भी हकीकत से कोसों दूर ही दिखाई पड़ता है।

शौच के लिए खेत में गई महिलाओं से हिंसा की खबरें

बहरहाल वापस लौटते हैं समस्तीपुर मामले पर। खबरों के मुताबिक महिला 25 मई की सुबह शौच के लिए निकली तो घात लगाए बैठे आरोपी उसे पकड़कर सुनसान जगह पर ले गए। वहां उसका रेप करने का प्रयास किया। जब महिला ने विरोध किया तो उसे मारा-पीटा। कहा कि चुप रहे, नहीं तो उसकी हत्या कर दी जाएगी।  पर महिला ने आरोपियों को समझाने का प्रयास किया कि हाल ही में उसका ऑपरेशन हुआ है जिसके बाद आरोपियों ने उसे छोड़ दिया, लेकिन जेवर लेकर फरार हो गए।

बिहार के गांवों से अक्सर शौच के लिए खेत में गई महिलाओं से हिंसा की खबरें सामने आती रहती हैं। जो 21वीं सदी में निश्चित तौर पर हमारे लिए शर्मनाक है। वैसे तो स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण के आंकड़ों में पूरे भारत समेत बिहार को भी खुले में शौच से मुक्त कर दिया गया है। हालांकि यदि हम सत्यापित किए गए शौचालयों के आंकड़ों पर नजर डालते हैं, तो सरकार के इन दावों पर सवालिया निशान खड़े होते है।

द वॉयर की रिपोर्ट के मुताबिक कई ऐसी रिपोर्ट सामने आई हैं, जिनमें खुले में शौच से मुक्त किए जाने के दावे को चुनौती देते हुए शौचालयों की जर्जर स्थिति, सभी को शौचालय न मिल पाने, शौचालयों का आधा-अधूरा निर्माण, शौचालय का इस्तेमाल अन्य कार्यों के लिए किए जाने जैसे ढेरों प्रमाण पेश किए गए हैं। यह स्थिति नीतीश कुमार के गृह जिला नालंदा की भी है। हैरानी की बात ये है कि बिहार के किसी भी गांव में शौचालय निर्माण के कार्य का दूसरी बार सत्यापन नहीं हुआ है। जबकि केंद्रीय पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के दिशानिर्देश के मुताबिक किसी भी गांव या ग्राम सभा को खुले में शौच से मुक्त (ओडीएफ) का दावा करने के लिए कम से कम दो बार इसका सत्यापन कराया जाना चाहिए।

महिला सुरक्षा में नीतीश सरकार फेल!

अब नज़र डालते हैं महिला सुरक्षा पर। साल 2019 में बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक बलात्कार के कुल 1,450 मामले सामने आए। साल 2020 में मार्च महीने में देशव्यापी लॉकडाउन लगा उसके बाद से लोगों का बाहर निकलना एक तरह से कम हुआ, लेकिन इस दौरान भी रेप के मामले सामने आते रहे। बिहार पुलिस की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल में 82, मई में 120, जून में 152, जुलाई में 149 और अगस्त 139 बलात्कार के मामले दर्ज हुए। यानी औसतन हर दिन 4 से 5 मामले सामने आए। इस दौरान कई गैंगरेप का वीडियो भी वायरल हुआ। लॉकडाउन में बिहार में नौ फीसद महिलाएं घर में ही यौन उत्पीड़न का शिकार हुई। इस दौरान बिहार की 45 फीसद महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार हुईं। साथ ही छह फीसद महिलाओं को अनियोजित गर्भधारण करना पड़ा।

गौरतलब है कि तमाम दावों और योजनाओं के बावजूद एनसीआरबी के आंकड़ों की मानें तो बिहार में महिला हिंसा में पिछले कुछ सालों में इजाफा ही हुआ है। साल 2018 की तुलना अगर साल 2019 के आंकड़ों से करें तो महिलाओं के प्रति हिंसा में 9.8 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। साल 2018 में महिला हिंसा की 16920 घटनाएं हुई थीं जो साल 2019 में बढ़कर 18587 हो गईं। इस दौरान सरकार महिला सुरक्षा के तमाम दावे जरूर करती रही लेकिन उसे जमीन पर नहीं उतार सकी। नीतीश बाबू भले ही सुशासन का ढोल पीट कर राज्य में ‘सब ठीक है’ का दावा कर रहे हों लेकिन बिहार में एक के बाद एक हो रही हत्याओं और बलात्कार की घटनाओं ने इस महामारी में भी कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर तमाम सवाल जरूर खड़े कर दिए हैं।

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