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बजट 2020: मोदी सरकार ने किसानों को नज़रअंदाज़ किया

केवल कृषि और कृषि से जुड़े क्षेत्रों की बात की जाए तो इस साल के बजट में 1.6 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए है। जबकि पिछले साल इस क्षेत्र के लिए बजट में 1.5 लाख करोड़ आवंटित किया गया था।
farmers in budget
Image courtesy: Twitter

जर्जर हो रही अर्थव्यवस्था के बीच हर साल की तरह वित्त वर्ष 2020- 21 का भी बजट पेश कर दिया गया। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अब तक का सबसे लम्बा तकरीबन 2 घंटे 42 मिनट का बजटीय भाषण दिया। इतने लम्बे बजटीय भाषण पर आर्थिक पत्रकार एम.के. वेणु ने एक टीवी शो में बातचीत के दौरान कहा कि बुनियादी संरचना, कृषि, स्वास्थ्य से जुड़ी जो बातें बजट में पिछले कुछ सालों से दोहरायी जा रही हैं, उसे केवल भारत में किसी पुण्य काम की तरह हर बजट में पेश कर दिया जाता है। जबकि दूसरे देशों में यह रोज़ाना के सरकारी काम-काज का हिस्सा होती है। उन्होंने कहा कि सरकारें बातूनी कम और ज्यादा कारगार हों तो बढ़िया रहता है।

बातूनीपन के इसी तर्ज पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने खेती किसानी से जुड़े क्षेत्रों के लिए 16 एक्शन प्वाइंट गिना दिए। कृषि और कृषि से जुड़े क्षेत्र, सिंचाई, ग्रामीण विकास के लिए 2.83 लाख करोड़ रूपये आवंटित किया गया, जो इस साल के कुल बजट यानी 30.42 लाख करोड़ रूपये का तकरीबन 9.30 फीसदी है। पिछले साल के बजट में खेती किसानी से जुड़े क्षेत्र, सिंचाई, ग्रामीण विकास के लिए 2.68 लाख करोड़ रूपये आवंटित किया गया था, जो पिछले साल के कुल यानी 27.86 लाख करोड़ रूपये का तकरीबन 9.61 फीसदी था। इस लिहाज से इस साल के खेती किसानी से जुड़े क्षेत्र, सिंचाई, ग्रामीण विकास से जुड़े सरकारी खर्चों के इरादे में पिछले साल की अपेक्षा तकरीबन 0.31 फीसदी की कमी की गयी है।

केवल कृषि और कृषि से जुड़े क्षेत्रों की बात की जाए तो इस साल के बजट में 1.6 लाख करोड़ रूपये आवंटित किए गए है। जबकि पिछले साल इस क्षेत्र के लिए बजट में 1.5 लाख करोड़ आवंटित किया गया था। नॉमिनल टर्म में देखा जाए तो यह बढ़ा हुआ दिखता है लेकिन रियल टर्म यानी बढ़ती हुई महंगाई की दर को इसमें जोड़ लिया जाएगा तो निश्चित तौर यह कमी ही होगी। जबकि हकीकत यह है कि कृषि और कृषि से जुड़े क्षेत्रों की साल 2018-19 में बढ़ोतरी दर 2.8 फीसदी थी, जो पहले के चार सालों में सबसे कम थी। ऐसे में साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाएगी। यह बात पूरी तरह से झूठ बोलने जैसा लगता है।

साल 2014-15 में कुल राष्ट्रीय आय में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 18.2 फीसदी थी, जो साल 2018- 19 में कम होकर 16.5 फीसदी हो गयी थी। यह आंकड़े बता रहे थे कि जर्जर होते भारतीय अर्थव्यवस्था में कृषि क्षेत्र की बुनियाद दरकी हुई है। इस तस्वीर के सामने बजट में कृषि के लिए कुछ भी नहीं दिखता है।

इस सच्चाई के सामने बजट में कृषि से जुड़ी उन पहलुओं पर बात करते हैं, जो कृषि बजट कम राजनितिक भरमजाल अधिक थी। जिसके लिए बजट में एस्पिरेशनल इंडिया नाम गढ़ा गया है और जिसके अंतर्गत 16 एक्शन प्वाइंट बताए गए हैं।

पहला- उन राज्य सरकारों को प्रोत्साहन देना जो आधुनिक क़ानूनों को बढ़ावा देते हैं जैसे- कृषि उपज की मार्केटिंग, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कानून को अमल में लाना।

दूसरा- जल संकट बड़ी चुनौती है। हम पानी की किल्लत से जूझ रहे 100 ज़िलों पर फोकस करेंगे।

तीसरा- अन्नदाता ऊर्जादाता भी बने।

चौथा- हमारी सरकार फर्टिलाइजर के संतुलित इस्तेमाल को बढ़ावा देगी। इससे केमिकल फर्टिलाइजर के ज़रूरत से ज्यादा इस्तेमाल को रोका जा सकेगा।

20 लाख किसानों को सोलर पंप लगाने में सरकार मदद करेगी। हम 15 लाख अन्य किसानों को ग्रिड कनेक्टेड पंप देंगे। सोलर पावर जेनरेशन भी बढ़ाएंगे।
अगर किसानों के पास खाली या बंजर ज़मीन है तो वे सोलर पावर जेनरेशन यूनिट्स लगा सकेंगे ताकि वे वहां से पैदा होने वाली सोलर पावर को बेच सकें।

पांचवां- भारत के पास 162 मीट्रिक टन कोल्ड स्टोरेज की क्षमता है। हम ब्लॉक और तालुका स्तर पर वेयरहाउस बनाने को बढ़ावा देंगे। फूड कॉर्पोरेशन और सेंट्रल वेयरहाउस कॉर्पोरेशन अपनी ज़मीन पर भी कोल्ड स्टोरेज बनाएंगे।

छठा- स्वयं सहायता समूहों खासकर महिला स्वयं सहायता समूह योजना के जरिए विलेज स्टोरेज को बढ़ावा दे सकेंगी। वे बीजों का संग्रह करेंगी और गांवों में किसानों को ज़रूरत पड़ने पर उन्हें बीज दे सकेंगी।

सातवां- भारतीय रेल किसान रेल बनाएगी। वे ट्रेनों में स्टोरेज की व्यवस्था करेंगी।

आठवां- कृषि उड़ान की भी शुरुआत होगी। यह एविएशन मिनिस्ट्री के जरिए होगा। इससे नॉर्थईस्ट और आदिवासी इलाकों से कृषि उपज को बढ़ावा मिलेगा।

नौवां- हॉर्टिकल्चर में अभी खाद्यान्न टारगेट से ज्यादा है। हम इसे क्लस्टर में बांटकर एक ज़िले में एक उत्पाद को बढ़ावा देंगे।

दसवां- इंटिग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम को बढ़ावा देंगे। ज़ीरो बजट फार्मिंग और जैविक खेती को बढ़ावा देंगे।

11वां- फाइनेंसिंग ऑन नेगोशिएबल वेयरहाउसिंग रिसीप्ट्स पर ध्यान देंगे।

12वां- नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनियां अभी एक्टिव हैं। नाबार्ड स्कीम को विस्तार दिया जाएगा। 2021 में 15 लाख करोड़ रुपए एग्रीकल्चर क्रेडिट के लिए रखे गए हैं।

13वां- पशुधन की बीमारियां खत्म करेंगे। मनरेगा का इसमें इस्तेमाल करेंगे। मिल्क प्रोसेसिंग कैपेसिटी को दोगुना करेंगे। 53 मीट्रिक टन से 108 मीट्रिक टन करेंगे।

14वां- फिशरीज पर काम करेंगे।

15वां- 2023 तक मछली उत्पादन 200 लाख टन तक बढ़ाएंगे।

16वां- दीनदयाल अंत्योदय योजना के तहत स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देंगे।

इन 16 एक्शन प्वाइंट पर बहुत पहले से चर्चा होते आ रहा है और आगे भी चर्चा होते रहेगा। फिर भी कुछ बिंदुओं पर चर्चा कर लेते हैं। कृषि उपज की मार्केटिंग, कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग जैसे शब्द बताते हैं कि यह भाजपा सरकार का वैचारिक रवैया है कि सबकुछ बाजार जो सौंप दिया जाए। इस लिहाज से कृषि बाज़ार का उदारीकरण किया जा रहा है और मंडी कानून को उदार बनाने की बात की जा रही है।

जिस तरह से सरकार किसानों को सोलर पंप लगाकर कमाने की बात रही है, उससे यह लगता है कि सरकार ने पूरी तरह से हार मान लिया है कि अनाद पैदा कर जीवन जीना नामुमकिन बन चुका है। इसलिए किसानों को दूसरे कामों में लगाया जाए और कृषि को बाज़ार को सौंप दिया जाए। इन 16 प्वाइंट पर कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना कि मुझे पता नहीं चल रहा है कि इन 16 बिंदुओं से भारत के 70 फीसदी लोगों के आय में कैसे सुधार होगा। इस समय किसानों की आय बढ़ाने की बहुत ज़रूरत है।

पिछले साल के बजट में पूरे हो हल्ला के साथ खेती किसानी की बड़ी योजना प्रधाममंत्री कृषि सम्मान योजना की शुरुआत की गयी थी। इसके लिए 75 हज़ार करोड़ रूपये का आवंटन किया गया था। इसमें से अभी तक तकरीबन 44 हजार करोड़ रूपये खर्च हुए हैं। बहुत सारे किसानों को इस योजना की तीसरी क़िस्त भी नहीं मिली है। इसकी मौजूदा स्थिति क्या है इस पर सरकार ने कुछ भी नहीं बोला। और इस बार भी इसके लिए 75 हज़ार करोड़ रूपये ही आवंटित किए गए हैं।

किसान को फसल की उचित क़ीमत दिलाने के लिए दो योजनाएं है। प्रधानमंत्री कृषि आशा योजना और मार्केट इंटरवेंशन योजना। इन दोनों का पैसा घटा दिया गया है। प्रधानमंत्री आशा का पैसा 1500 करोड़ से कम कर 500 करोड़ कर दिया है और मार्केट इंटरवेंशन का पैसा 3000 करोड़ से कम 2000 करोड़ कर दिया गया है। ग्रामीण क्षेत्र में रोज़गार के लिए सबसे बड़़ी योजना है महात्मा गांधी रोज़गार गारंटी योजना। पिछले साल इस योजना में 71 हजार करोड़ रूपये खर्चा हुआ यह देखते हुए भी सरकार ने केवल 61 हजार करोड़ रूपये इस योजना के लिए दिया है। जबकि हर तरफ यह बात की जा रही है की गांव के लोगों की आय बढे ताकि मांग बढे और अर्थव्यवस्था को मज़बूती मिले।

किसानों के मुद्दों पर सक्रिय योगेंद्र यादव का कहना है कि बजट का मतलब सुंदर शब्द नहीं होता है और न ही यह होता है कि अर्थव्यवस्था की किताब लिख दी जाए। इसका मतलब होता है आय और खर्चे का ब्यौरा दिया जाए। ईमानदारी से दिया जाए। सरकार हवा - हवाई बातें करने की बजाए अगर ईमानदारी से यह कह देती कि उसके पास पैसा नहीं है तो बहुत अच्छा होता। हम भी इसे स्वीकार करते। यह संतोषजनक बात होती।

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