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कोविड-19: वैज्ञानिक पता लगा रहे हैं कि संक्रमण लोगों पर अलग-अलग प्रभाव क्यों डालता है?

वैज्ञानिकों ने हज़ारों संक्रमित लोगों से डीएनए सैंपल लेने का लक्ष्य रखा है। उनकी मंशा गंभीर तौर पर पहले से हार्ट या डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का शिकार लोगों और स्वस्थ लोगों के डीएनए की तुलना करने की है। यह वह लोग हैं, जिनमें कोरोना का संक्रमण फैला है।
कोविड-19:

भले ही कोविड-19 बेहद तेज़ी से फैलता हो, लेकिन अगर इसके लक्षणों की गंभीरता की बात करें, तो यह काफ़ी चयनात्मक है। संक्रमित लोगों में से ज़्यादातर में गंभीर लक्षण नहीं दिखे, जो लोग गंभीर तौर पर बीमार हुए, वे पहले से ही हृदय या डायबिटीज़ जैसी बीमारियों के शिकार थे। हांलाकि कुछ लोग पहले से स्वस्थ और युवा भी थे। आख़िर कोरोना वायरस के संक्रमण में इस तरह के अंतर की वजह क्या है? यह उन वैज्ञानिकों के लिए अहम सवाल है जो संक्रमित लोगों के ''जेनेटिक आर्किटेक्चर'' का अध्ययन कर रहे हैं।

वैज्ञानिकों ने हज़ारों संक्रमित लोगों से डीएनए सैंपल लेने का लक्ष्य रखा है। उनकी मंशा गंभीर तौर पर पहले से हार्ट या डायबिटीज़ जैसी बीमारियों का शिकार लोगों और स्वस्थ लोगों के डीएनए की तुलना करने की है। यह वह लोग हैं, जिनमें कोरोना का संक्रमण फैला है।

हेलसिंकी इंस्टीट्यूट फॉर मॉलीक्यूलर मेडिसिन (FIMM) की जेनेटिसिस्ट एंड्रिया गाना और FIMM के डायरेक्टर मार्क डैली इस क्षेत्र में नेतृत्व कर रहे हैं, उन्होंने इसके लिए एक वेबसाइट भी बना दी है। गाना कहती हैं, ''हमने अलग-अलग देशो में क्लीनिकल आउटकम में बहुत अंतर देखा है। यह जेनेटिक संवेदनशीलता पर कितना निर्भर करता है, यह काफ़ी खुला सवाल है।''

शुरुआती दौर में यह बताना मुश्किल है कि जीन की इस खोज का परिणाम क्या होगा। लेकिन यहां एक संदिग्ध दिखाई देता है। वह है ''एंजियोटेंसिन कंवर्टिंग एंजाइम (ACE2)'' को बनाने वाला जीन। एंजियोटेंसिन को बदलने वाला एंजाइम एक कोशिका की भित्ति पर रहने वाला प्रोटीन है, जो इंसानी शरीर में पाया जाता है। यही कोरोना वायरस को ग्रहण करता है। कोशिका की भित्ति पर मौजूद इस एंजाइम के ज़रिए कोरोना वायरस ''हवा लेने-देने वाली कोशिकाओं (एयरवे सेल्स)'' तक पहुंच बनाता है।

ACE2 एंजाइम में जीन कोडिंग द्वारा बदलाव कोरोना वायरस के मानव शरीर में पहुंच को कठिन या सरल बना सकती हैं। उदाहरण के लिए CCR5 एक कोशिका भित्ति प्रोटीन है, जिसके ज़रिए HIV वायरस शरीर में पहुँचता है। CCR5 को बनाने वाले जीन में सामान्य म्यूटेशन होता है, जिसके चलते कई लोग HIV के ख़िलाफ़ ताक़तवर प्रतिरोधक क्षमता का विकास कर लेते हैं। यह अमेरिका के ''नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिसीज़'' के द्वारा खोजा गया एक अहम तथ्य था। इसका नेतृत्व फिल मर्फी कर रहे थे।

गाना और उनकी टीम ने अपनी रणनीति के तहत बॉयोबैंक से गठजोड़ किया, जो हजारों स्वयंसेवियों का डीएनए इकट्ठा करते हैं और उनके स्वास्थ्य और डीएनए के बीच के संबंध को जानने की कोशिश करते हैं। फ़िलहाल क़रीब एक दर्जन बायोबैंक ने कोविड-19 से जुड़ा डेटा देने पर सहमति जता दी है। इनमें से ज़्यादातर अमेरिका और यूरोप से हैं। फिनैगन: द बायोबैंक रिपॉसिटरी ऑफ़ द फिनिश पॉपुलेशन, बायोबैंक ऑफ़ इकान स्कूल ऑफ मेडिसिन-माउंट सिनाई, (अमेरिका), यूके बायोबैंक (दुनिया के सबसे बड़े बायोबैंकों में से एक) और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के पर्सनल जीनोम प्रोजेक्ट जैसे अहम बायोबैंक ने अपना सहयोग करने पर हामी भरी है।

गाना की टीम से जुड़े दूसरे रिसर्चर अस्पतालों से ही सीधे कोरोना संक्रमित लोगों की जेनेटिक जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं। ''यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिएना'' से एक इटालियन जेनेटेसिस्ट एलेसैंड्रा रेनेरी को आशा है कि इटली के 11 अस्पताल इच्छित मरीज़ों से जेनेटिक सैंपल इकट्ठा करने देंगे।

कुछ रिसर्च में यह भी पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि इंसान के ब्लड ग्रुप का कोरोना वायरस से कोई लेना-देना है या नहीं। हाल ही में एक चीनी दल ने कहा था कि O ब्लड ग्रुप वाले लोग वायरस से बच सकते हैं। इसका अध्ययन करने के लिए रिसर्चर ''ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन'' जीन के बदलावों का विश्लेषण करने वाले हैं। ताकि इसका कोरोना के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ने वाले असर के बारे में पता लगाया जा सके। ''ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजन'' प्रतिरोधक ढांचे के बैक्टीरिया और वायरस के ख़िलाफ़ प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

COVID-19: Why Does it Affect Different People Differently? Scientists Aim to Find Out

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