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रिपोर्ट- 2020 में भारत के गरीबों ने झेली थी भूख की मार

प्रख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ और अनमोल सोमांची द्वारा पेश की गई रिपोर्ट में 2020 के लॉकडाउन के बाद से भारतीय गरीबों के विशाल बहुमत के बीच उत्पन्न जबर्दस्त आर्थिक विपदा एवं खाद्य संकट पर प्रकाश डाला गया है। 
रिपोर्ट- 2020 में भारत के गरीबों ने झेली थी भूख की मार

31 मई, 2021 को प्रख्यात अर्थशास्त्री, ज्यां द्रेज़ और अनमोल सोमांची ने कोरोनावायरस के संकट से भारत में लोगों की खाद्य सुरक्षा, रोजगार, आय, घरेलू खर्च और पोषण स्तर पड़े प्रभावों का विश्लेषण करते हुए एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट ने अपने निष्कर्षों को अज़ीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सस्टेनेबल एम्प्लॉयमेंट (सीएसई-एपीयू) द्वारा संकलित 76 घरेलू सर्वेक्षणों और सेंटर फॉर मोनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) के आंकड़ों से तैयार किया है।

रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्ष 2020 के अप्रैल से मई के बीच की अवधि के दौरान देश में एक अभूतपूर्व खाद्यान्न संकट की स्थिति बनी हुई थी, जिसमें आबादी का एक बड़ा हिस्सा अपने परिवारों के लिए दो जून की रोटी का जुगाड़ करने के लिए जूझ रहा था। बहुसंख्यक आबादी के लिए भोजन की उपलब्धता गुणात्मक एवं मात्रात्मक दोनों ही लिहाज से नीचे चली गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संकट के परिणामस्वरूप मांसाहारी भोज्य पदार्थों सहित पौष्टिक भोजन की खपत में भारी गिरावट दर्ज की गई है। हालाँकि जून 2020 के बाद से थोडा-बहुत सुधार देखने को मिला है, लेकिन रोजगार, आय और पोषण का स्तर वर्ष के अंत तक भी लॉकडाउन-पूर्व के स्तर से नीचे का बना हुआ था।

कई सर्वेक्षणों के आंकड़ों का हवाला देते हुए रिपोर्ट ने अप्रैल और मई 2020 के बीच में राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान रोजगार एवं आय में तेज गिरावट को रेखांकित किया है। डेलबर्ग सर्वेक्षण के मुताबिक (जिसमें 15 राज्यों में 47,000 घरों को कवर किया गया था), मई और जून के दौरान 80% से अधिक परिवार आय में कमी से प्रभावित थे, जबकि उनमें से एक चौथाई परिवारों की कमाई पूरी तरह से शून्य थी। आईडीइनसाइट रिपोर्ट से प्राप्त आंकड़ों में मई और सितंबर के बीच हुए तीन दौर के सर्वेक्षण में क्रमशः 72%, 68% और 74% की औसत आय में कमी पर प्रकाश डाला गया है। सर्वेक्षण में पाया गया कि गैर-खेतिहर उत्तरदाताओं की औसत साप्ताहिक आय मार्च 2020 में 6,858 रूपये से घटकर मई 2020 में 1,929 रूपये तक लुढ़क गई थी और सितंबर 2020 तक इसी स्तर पर बनी रही। 

रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि “यह संदिग्ध है कि 2021 की शुरुआत में देश में कोरोनावायरस महामारी की दूसरी लहर की चपेट में आने से पहले आय और रोजगार का स्तर शायद ही अपने लॉकडाउन-पूर्व के स्तर को फिर से हासिल किया हो। राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान रोजगार एवं आय में आई भारी गिरावट ने गंभीर खाद्यान्न असुरक्षा में अपना योगदान दिया है।

सीएसई-एपीयू सर्वेक्षण के मुताबिक, अप्रैल और मई 2020 के बीच 77% लोग से पहले की तुलना में कम खाना खा रहे थे। दूसरे दौर के सर्वेक्षण ने अक्टूबर और दिसंबर 2020 के बीच की अवधि के लिए इस अनुमान को 60% आँका है। एक्शनऐड द्वारा संकलित आंकड़ों से पता चला है कि मई में लगभग 10,000 दिहाड़ी मजदूरों (मुख्यतया प्रवासी) में से तकरीबन 35% हिस्से ने एक दिन दो बार से कम भोजन ग्रहण किया था। यहाँ तक कि जून माह में भी यह संख्या 20% के करीब थी। इसी से मिलते-जुलते निष्कर्ष विभिन्न राज्यों में किये गए सर्वेक्षणों में भी देखने में आये हैं, जिनमें बताया गया था कि आय और रोजगार में गिरावट के चलते राष्ट्रीय लॉकडाउन की अवधि के दौरान गरीबों के बीच में एक गंभीर खाद्य संकट उत्पन्न हो गया था, और ये साल की बाकी अवधि के दौरान भी ये मुश्किलें बनी रहीं।

रिपोर्ट में सीएमआईई द्वारा संचालित आवधिक देश-व्यापी घरेलू सर्वेक्षण के आंकड़ों का हवाला दिया गया है। तीन समूहों की प्रति व्यक्ति आय (पीसीआई) (स्थिर मूल्यों पर) के रुझानों का अध्ययन करते हुए रिपोर्ट ने खुलासा किया है कि शीर्ष चतुर्थक (श्रेष्ठ 25%), मध्य चतुर्थक (मध्य 50%) और निचले चतुर्थक (निचले 25%), में शीर्ष चतुर्थक तबके को जहाँ लॉकडाउन के दौरान प्रति व्यक्ति आय में 25% का नुकसान झेलना पड़ा, वहीँ नीचे के पायदान पर बैठे 25% को इस अवधि के दौरान धेले भर की कमाई नहीं हुई। आय में गिरावट के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय लॉकडाउन के दौरान प्रत्येक समूह में प्रति पूंजीगत व्यय (पीसीई) में लगभग 50% की गिरावट आई थी, जिसमें 2020 के बाद की अवधि में आंशिक सुधार देखने को मिला था। अनाज और दालों में जहाँ खर्च में अपेक्षाकृत कम गिरावट देखने को मिली, लेकिन फल, अण्डों, मछली और मीट जैसे पौष्टिक भोज्य पदार्थों में यह गिरावट नाटकीय रही है।

पोषण स्तरों के सन्दर्भ में इस गिरावट के क्या मायने हैं, इस पर टिप्पणी करते हुए रिपोर्ट में आगे कहा गया है; “हाशिये पर पड़े लोगों के उपभोग का स्तर पहले से ही बेहद निम्न स्तर पर रहा है, इस बात को ध्यान में रखें तो यह दो-महीने की अवधि भी पोषण संबंधी तबाही है।”

लॉकडाउन के दौरान सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) की भूमिका का आकलन करते हुए रिपोर्ट ने पाया कि आबादी के बहुसंख्य हिस्से के लिए पीडीएस एक राहत के स्रोत के रूप में था, और इसने सबसे भयावह स्थिति को टालने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सर्वेक्षणों के अनुसार, जिन उत्तरदाताओं के पास राशन कार्ड थे, उनमें से 80% से अधिक लोगों ने इस अवधि के दौरान पीडीएस के तहत कुछ खाद्यान्न हासिल किया था। पांच बड़े-पैमाने पर बहु-राज्य सर्वेक्षणों से पता चला है कि राशन कार्ड रखने वाले परिवारों का अनुपात 75% से लेकर 91% के बीच था।

हालाँकि रिपोर्ट में कहा गया है कि राशनकार्ड धारकों के एक महत्वपूर्ण अल्पसंख्यक को इस संदर्भित अवधि के दौरान कोई खाद्यान्न नहीं मिला था। इसके अलावा, इसमें उल्लेख किया गया है कि आंकड़े इस संभावना से इंकार नहीं करता है कि मुफ्त राशन योजना में कई लोगों को, अपने देय बकाये से कम अनाज प्राप्त हुआ है। 

एनएफएसए प्राथमिकता वाले परिवारों को प्रति व्यक्ति प्रति माह पांच किलो अनाज और अन्त्योदय परिवारों को प्रति माह 35 किलो अनाज हासिल करने की पात्रता देता है। इसके अतिरिक्त, एनएफएसए कार्डधारक अप्रैल से लेकर नवंबर तक प्रधान मंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन के हकदार थे। रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में अतिरिक्त पीडीएस राशन के तौर पर कुल 3 करोड़ टन गेंहूँ और चावल का वितरण किया गया था। 

जन धन योजना के तहत 500 रूपये के नकद हस्तांतरण जैसे अन्य राहत उपायों का आकलन करते हुए रिपोर्ट ने जोर दिया है कि इन सीमित एवं गैर-भरोसेमंद उपायों से राष्ट्रीय लॉकडाउन और उसके बाद के आर्थिक संकट से प्रेरित आय के छोटे से अंश से अधिक की भरपाई कर पाने का प्रयास विफल रहा है। सीएमआईई के आंकड़े सुझाते हैं कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से नकद हस्तांतरण की पहल अप्रैल-मई 2020 में हुए नुकसान की 10% से भी कम की भरपाई कर पाने में सफल रही।

आर्थिक बदहाली और संस्थागत समर्थन तंत्र के अभाव के कारण 2020 में ऋणग्रस्तता एवं घरेलू संपत्तियों की सस्ते दरों पर बिकवाली में वृद्धि हुई है। डेलबर्ग, प्रदान एवं एक्शनऐड द्वारा किये गए सर्वेक्षण के मुताबिक अप्रैल और मई की अवधि के दौरान जिन परिवारों को कर्ज लेने या भुगतान को टालना पड़ा था, वे 40%, 38% और 53% थे। प्रदान के सर्वेक्षण से खुलासा हुआ है कि सर्वे में शामिल करीब 15% परिवारों को अप्रैल से जून में अपनी घरेलू संपत्तियों को गिरवी रखना या बेचना पड़ा था।

अंत में, रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार ने लगता है कि कोरोनावायरस संकट से जो सबक मिला था उसे भुला दिया है, क्योंकि सामाजिक सुरक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करने के बजाय इसने 2021-22 के केन्द्रीय बजट में एकीकृत बाल विकास सेवाओं (आईसडीएस), मातृत्व लाभों और महिला एवं बाल विकास के लिए वित्तीय आवंटन भारी कटौती की है। कोरोनावायरस की पूर्व से कहीं ज्यादा तीव्र दूसरी लहर के मद्देनजर, रिपोर्ट का तर्क है कि पिछले वर्ष के दुखद मानवीय संकट की पुनरावृत्ति से बचने के लिए राहत उपायों की पहले से कहीं अधिक मजबूत लहर अत्यंत जरुरी है।

इस लेख को अंग्रेजी में इस लिंक के जरिए पढ़ा जा सकता है

COVID-19: Report Reveals Severity of Food Crisis Faced by India's Poor in 2020

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