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कोविड-19: यूपी अध्यापक संघ ने तत्काल स्वास्थ्य बीमा मुहैया ना करवाने पर विरोध प्रदर्शन की धमकी दी

मुख्यमंत्री के नाम लिखे गए उनके पत्र के मुताबिक ‘प्रतिकूल परिस्थितयों के बावजूद एवं इस बात से भलीभांति परिचित होते हुए भी कि कोरोनावायरस के मामले निरंतर अपने उठान पर हैं, सरकार के फैसले को ध्यान में रखते हुए शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और स्कूल प्रशिक्षकों ने जमीनी स्तर पर पहुंचकर पंचायत चुनावों को संपन्न करवाया।”
कोविड-19: यूपी अध्यापक संघ ने तत्काल स्वास्थ्य बीमा मुहैया ना करवाने पर विरोध प्रदर्शन की धमकी दी
प्रतीकात्मक तस्वीर। चित्र साभार: द ट्रिब्यून

लखनऊ: उत्तर प्रदेश के प्राथमिक शिक्षा अध्यापक, जिन्हें पंचायत चुनावों की ड्यूटी पर तैनात किया गया था, शिक्षकों के लिए स्वास्थ्य बीमा के मुद्दे को हल कर पाने में राज्य सरकार की असफलता को लेकर बेहद गुस्से में हैं। 

मई के अंतिम सप्ताह तक उनकी मांगे पूरी नहीं होने पर उन्होंने सड़कों पर आकर विरोध प्रदर्शन करने की धमकी दी है।  सरकार को “चेतावनी” जारी करते हुए प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय शिक्षक यूनियनों के संघ, उत्तर प्रदेश शिक्षक महासंघ (यूपीएसएम) ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लिखे एक पत्र में उनसे आग्रह किया है कि शिक्षकों, शिक्षा मित्रों और स्कूल प्रशिक्षकों को तत्काल स्वास्थ्य बीमा सुरक्षा मुहैय्या कराई जाये।

उनके पत्र में कहा गया है “प्रतिकूल परिस्थितियों एवं इस तथ्य से भलीभांति परिचित होने के बावजूद कि कोरोनावायरस के मामले लगातार अपने उठान पर हैं, सरकारी आदेश को ध्यान में रखते हुए, शिक्षकों, शिक्षा मित्रों एवं स्कूल प्रशिक्षकों ने जमीनी स्तर पर पहुंचकर पंचायत चुनाव संपन्न कराये। इस बीच में उन्हें कई घटनाओं, दुर्घटनाओं और बीमारियों का सामना करना पड़ा। मौजूदा महामारी के दौर में अपनी चुनावी ड्यूटी को पूरा करते हुए शिक्षकों ने सबसे अधिक संख्या में अपनी कुर्बानियां दी हैं, जो अभी भी अपनी जिंदगी को जोखिम में डाल रहे हैं; और राज्य के हर कोने से उनकी मौतों की खबरें आ रही हैं। लेकिन इतना सब कुछ करने के बावजूद शिक्षकों को बुनियादी सुविधाओं तक से वंचित रखा जा रहा है।” 

योगी आदित्यनाथ के नेतृत्त्व वाले उत्तर प्रदेश सरकार पर “सौतेला व्यवहार” करने का आरोप लगाते हुए यूपीएसएम के राज्य महामंत्री भगवती सिंह ने कहा कि प्राथमिक शिक्षा परिषद का मुख्य उद्देश्य स्कूलों के संचालन के जरिये आम जनता के बच्चों को शिक्षित करने का है।

उनका कहना था कि “शिक्षकों और स्कूल के स्टाफ मुख्य रूप से प्राथमिक शिक्षा परिषद के उद्देश्यों के क्रियान्वयन के लिए जिम्मेदार हैं। विद्यालयों को सुचारू रूप से चलाने के लिए अधिकारियों एवं स्कूल के कर्मचारियों की नियुक्ति की जाती है। लेकिन समस्या यहीं पर खड़ी हो जाती है। हमारे शिक्षकों को राजकीय कर्मचारी के तौर पर नहीं माना जाता है और उनसे सभी प्रकार के सरकारी कार्य संपादित कराने के बावजूद सिर्फ आवश्यक बुनियादी सुविधायें ही मुहैय्या कराई जाती हैं। जबकि ठीक उसी समय विभागीय कार्यालयों में नियुक्त अधिकारियों, बाबुओं और चपरासियों को राजकीय कर्मचारी का दर्जा मिला हुआ है और राज्य सरकार द्वारा उन्हें कैशलेस मेडिकल सुविधायें, विभिन्न भत्ते, वाहन, आवास सहित अधिकतम सुविधायें प्रदान की जाती हैं।” सिंह प्रश्न करते हैं “अगर इन अधिकारियों, बाबुओं और चपरासियों को कर्मचारियों के तौर पर माना जा सकता है तो फिर हमें क्यों नहीं? 

इस बीच राज्य में पंचायत चुनावी ड्यूटी के अपने दायित्व का निर्वहन करने के बाद कोविड-19 की वजह से पिछले 20 दिनों के दौरान 800 के करीब शिक्षकों, ‘शिक्षा मित्रों’ एवं प्रशिक्षकों की कथित तौर पर मौत हो चुकी है। 

संघ ने यूपी के मुख्यमंत्री को तत्काल प्रभाव से पंचायत चुनावों को स्थगित करने और संक्रमित कर्मचारियों का मुफ्त इलाज मुहैय्या कराने के लिए कहा था। इसकी ओर से यह मांग भी की गई थी कि सरकार इन कर्मचारियों को फ्रंट-लाइन कार्यकर्त्ता घोषित करे और उन्हें स्वास्थ्य बीमा मुहैय्या कराये, लेकिन सरकार ने इस बारे में कोई ध्यान नहीं दिया।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा कोरोनावायरस के कारण राज्य में शिक्षकों की मौतों पर संज्ञान लिए जाने के कुछ दिन बाद जाकर यूपी सरकार ने उनके शोक-संतप्त परिवारों के लिए 30,00,000 रूपये के मुआवजे की घोषणा की है।

संघ, शिक्षकों एवं शिक्षा मित्रों के लिए स्वास्थ्य बीमा सुविधाओं की अपनी मांग पर अडिग है और उसकी मांग है कि उन्हें राज्य कर्मचारियों के तौर पर मान्यता दी जाये। शिक्षक संघों की ओर से कहा गया है कि यदि सरकार अगले हफ्ते तक उनके पक्ष में फैसला नहीं लेती है तो वे कड़े कदम उठाने जा रहे हैं। यूपीएसएम के राज्य प्रवक्ता वीरेंद्र मिश्रा का कहना है कि प्रशासन ने शिक्षकों के प्रति “असंवेदनशील रवैय्या” अपना रखा है और उनकी मांगों को ठुकरा दिया है। मिश्रा ने न्यूज़क्लिक को बताया “यदि उनकी इस मांग को जल्द नहीं मान लिया जाता है तो संघ को मजबूरन इस महामारी के दौरान भी विशाल पैमाने पर विरोध प्रदर्शन करने और सड़कों पर आने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।”

मिश्रा के अनुसार “हमारे (शिक्षा) विभाग में दो प्रकार के कर्मचारी कार्यरत हैं: शिक्षक, शिक्षा मित्र, सहायक शिक्षक और प्राथमिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए), ब्लॉक एजुकेशन ऑफिसर (बीईओ) और ब्लॉक एवं जिला स्तर पर नियुक्त बाबू लोग। हमें न तो राज्य कर्मचारियों के तौर पर मान्यता दी गई है और न ही हमें स्वास्थ्य बीमा सहित अन्य बुनियादी सुविधायें ही हासिल हैं, जबकि सरकारी नीतियों की बदौलत उन्हें सभी विशेषाधिकार एवं छूट हासिल हैं।” मिश्रा पूछते हैं “एक ही विभाग में यह द्वि-आयामी दृष्टिकोण क्यों है?”

इस बीच यूपएसएम ने मुख्यमंत्री को तीन बार पत्र लिखा है, पहली दफा 19 जनवरी को, फिर 19 मार्च को और फिर इसका अंतिम पत्र पंचायत चुनावों की ड्यूटी से पहले 22 मार्च को प्रेषित किया गया था। संघ के प्रवक्ता कहते हैं “यह आखिरी पत्र था जिसे हमने मुख्यमंत्री को भेजा था, और हम इस महीने तक और इंतजार करेंगे। इसके बाद चाहे भले ही कुछ भी हो जाए हम बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू करने जा रहे हैं, और यदि हमें किसी भी प्रकार के दुष्परिणामों का सामना करना पड़ा तो इसकी सारी जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी।”

संघ के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद  शिक्षकों को शिक्षण कार्य के अलावा किसी भी अन्य सरकारी कार्यों में संलग्न नहीं किया जाना चाहिए, वे सरकारी नीतियों के बारे में गाँवों में सर्वेक्षण करने, विकलांग लोगों की निगरानी करने और यह देखने कि क्या उन्हें इन नीतियों से लाभ हासिल हो रहा है या नहीं, जैसे सभी प्रकार के काम करने के लिए मजबूर हैं। संघ का कहना है कि चुनाव और चुनावों के बाद की ड्यूटी के अलावा विद्यालय के शिक्षकों को अब घर-घर जाकर कोविड जागरूकता-सह-सर्वेक्षण कार्यक्रम में शामिल कराकर उन्हें कोविड-19 से संक्रमित होने के लिए धकेला जा रहा है, लेकिन इस सबके बावजूद उन्हें मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा जा रहा है। 

यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी में लिखी गई है। इसे आप इस लिंक के जरिए से पढ़ सकते हैं। 

COVID-19: UP Teachers' Union Issue 'Ultimatum' to Govt. for Health Insurance, Threaten Protests

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