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बीएचयू: अंबेडकर जयंती मनाने वाले छात्रों पर लगातार हमले, लेकिन पुलिस और कुलपति ख़ामोश!

"जाति-पात तोड़ने का नारा दे रहे जनवादी प्रगतिशील छात्रों पर मनुवादियों का हमला इस बात की पुष्टि कर रहा है कि समाज को विशेष ध्यान देने और मज़बूती के साथ लामबंद होने की ज़रूरत है।"
बीएचयू: अंबेडकर जयंती मनाने वाले छात्रों पर लगातार हमले, लेकिन पुलिस और कुलपति ख़ामोश!

केस-एक

22 अप्रैल 2022: काशी हिन्दू विश्वविद्यालय परिसर में सवर्ण छात्रों द्वारा स्नातक द्वितीय वर्ष के जनवादी विचारधारा वाले छात्र योगेश  के साथ मारपीट, गाली-गलौज, धमकी और अपशब्दों का प्रयोग। लाइब्रेरी से पढ़कर निकलते समय दोपहर 12.30 बजे की घटना। स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र श्वेतम उपाध्याय और कमल नयन पर जुल्म-ज्यादती का आरोप। बनारस की लंका पुलिस से लिखित शिकायत, मगर कार्रवाई कुछ भी नहीं।

 केस-दो

23 अप्रैल 2022: स्नातक द्वितीय वर्ष के छात्र अमन के साथ सवर्ण छात्रों द्वारा बीएचयू के मधुबन चौराहे के पास मारपीट और गाली-गलौज के बाद जबरिया गाड़ी से अपहरण का आरोप। रात 9.30 बजे लंका से छित्तूपुर स्थित अपने कमरे में जाते समय हुई घटना। अपहरण के बाद बिरला छात्रावास  के कमरा संख्या 121 में दोबारा बुरी तरह मारपीट, कट्टा तानते हुए जान से मारने और पढ़ाई छुड़वाने की धमकी। घटना को अंजाम देने वाले ज्यादातर आरोपी छात्र सवर्ण। इस मामले में भी पुलिस, बीएचयू के कुलपति और प्राक्टर से लिखित शिकायत, मगर कोई एक्शन नहीं।

काशी हिन्दू विश्वद्यालय में हुई दोनों घटनाओं ने एक ओर जहां बनारस पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाया है, वहीं दूसरी ओर, बीएचयू प्रशासन ने भी अभी तक हमलावर छात्रों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। जुल्म-ज्यादती की शिकायत करने वाले छात्रों की अर्जी पुलिस के पास है। जांच के नाम पर दोनों वारदातों पर लीपापोती की जा रही है। नतीजा बीएचयू परिसर में पढ़ने वाले प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स सहमे हुए हैं और जहां-तहां छिपकर अपनी जान बचाते फिर रहे हैं।

जनवादी सोच वाले इन छात्रों का गुनाह यह है कि अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर 13 अप्रैल को भगत सिंह छात्र मोर्चा के बैनरतले बीएचयू परिसर में साइकिल मार्च निकाला और मनुवाद व ब्राह्मणवाद के खिलाफ नारे लगाए।

छात्र उत्पीड़न के विरोध में भगत सिंह छात्र मोर्चा के सचिव अनुपम कुमार ने 25 अप्रैल 2022 को चीफ प्रॉक्टर दफ्तर पर न सिर्फ विरोध प्रदर्शन किया, बल्कि उन्हें ज्ञापन सौंपा था। कैंपस में भगत सिंह छात्र मोर्चा से जुड़े स्टूडेंट्स के साथ मारपीट का सिलसिला अभी तक बंद नहीं हुआ है। अपराधी, उदंड और लंपट छात्रों का गैंग लगातार प्रगतिशील स्टूडेंट्स के साथ गुंडई करने से बाज नहीं आ रहा है। इस मामले में बीएचयू प्रशासन का पक्ष जानने के लिए पीआरओ राजेश सिंह से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उन्होंने फोन पिक नहीं किया।

क्यों ख़फ़ा है सवर्ण स्टूडेंट?

भगत सिंह छात्र मोर्चा के सचिव अनुपम कुमार न्यूज़क्लिक से कहते हैं, "अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर मनुवाद और वर्ण व्यवस्था के खिलाफ नारेबाजी के बाद से बीएचयू के जातिवादी सवर्ण छात्र गुस्से में हैं। अंबेडकर जयंती के बाद लॉ फैकेल्टी के छात्र संतोष त्रिपाठी और श्वेतम उपाध्याय ने छात्र योगेश कुमार को पहले मैसेज भेजा और बाद में फोन करके मारने-पीटने और उठा लेने की धमकी दी। धमकी की काल रिकार्डिंग और मैसेज का स्क्रीन शॉट हम सभी के पास मौजूद है। दोनों घटनाओं की लिखित सूचना चीफ प्रॉक्टर दफ्तर के अलावा कुलपति को दी जा चुकी है। रिपोर्ट दर्ज करने के लिए पुलिस को भी तहरीर दी गई, लेकिन खाकी वर्दी मामले को दबाए हुए है। बीएचयू परिसर में अराजकता का माहौल है। मनबढ़ छात्र किसी भी स्टूडेंट को पीट दे रहे हैं। बीएचयू प्रशासन का यह रुख अपराधी और लंपट छात्रों को शह देने वाला है।"

भगत सिंह छात्र मोर्चा ने कुलपति को दिए शिकायती पत्र में आरोप लगाया है कि हिंसक वारदातों को अंजाम देने वालों में मुख्य रूप से कमल नयन, श्वेतम उपाध्याय और उनके कई दबंग साथी हैं। ये सभी छात्र बीएचयू कैंपस में न सिर्फ मारपीट और गाली-गलौच करते हैं, बल्कि छात्राओं के साथ अश्लील हरकत व छेड़छाड़ की घटनाओं को अंजाम देते हैं। अपराधी और लंपट छात्रों की गुंडागर्दी से बीएचयू कैंपस का माहौल खराब हो रहा है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि अपराधी छात्रों के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई करते हुए उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाए ताकि बीएचयू कैंपस का माहौल स्वस्थ, शांतिमय, पठन-पाठन के लायक और भयमुक्त बनाया जा सके। मोर्चा ने कुलपति को दिए ज्ञापन में उदंड छात्रों के खिलाफ चीफ प्राक्टर और पुलिस को जो अर्जी दी है उसकी प्रतिलिपि भी नत्थी की है। हैरान करने वाली बात यह है कि बीएचयू परिसर का माहौल बिगाड़ने और ऐलानिया तौर पर गुंडागर्दी करने वाले छात्रों के खिलाफ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। बीएचयू प्रशासन की चुप्पी से कैंपस का माहौल गरम हो रहा है और प्रगतिशील छात्र गुस्से में हैं।

भगतसिंह छात्र मोर्चा से जुड़ी बीएचयू की स्टूडेंट आकांक्षा आजाद कहती हैं, "बीएचयू कैंपस में छात्रों के साथ मारपीट और धमकी देने की घटनाएं तब से बढ़ी हैं जब अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर हमने साइकिल मार्च निकाला। मार्च में शामिल कुछ छात्रों के हाथ में मनुवाद के खिलाफ पोस्टर थे, जो ब्राह्मणवाद के खिलाफ नारेबाजी करते हुए वर्ण व्यवस्था खत्म करने की मांग कर रहे थे। हमारे साथ ब्राह्मणवादी और मनुवाद का विरोध करने वाले कई सवर्ण छात्र भी शामिल थे। मनुवादी सोच वाले दबंग और मनबढ़ छात्र इसलिए गुस्से में हैं कि वो जाति और वर्ण व्यवस्था का विरोध क्यों कर रहे हैं? भगत सिंह छात्र मोर्चा का मानना है कि भारतीय समाज ब्राह्मणवादी समाज है, जहां लोगों को जन्म आधारित ऊंच-नीच वाली जातियों में बांटा गया है। इस वर्ण व्यवस्था को खत्म किए बगैर बराबरी का समाज नहीं बनाया जा सकता है।"

आकांक्षा यह भी कहती हैं, "भगत सिंह छात्र मोर्चा वर्ण व्यवस्था के खिलाफ लगातार मुहिम चला रहा है। बीएचयू कैंपस में छात्रों का एक गुट भगत सिंह छात्र मोर्चा के खिलाफ सोशल मीडिया पर सिर्फ इसलिए आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रहा है वो मनुवाद का विरोध और अंबेडकरवाद का प्रचार क्यों कर रहे हैं? एक मुहिम के तहत मोर्चा से जुड़े छात्रों का उत्पीड़न किया जा रहा है। मारपीट, अपहरण और धमकी की तहरीर देने के बावजूद पुलिस खामोश है। बीएचयू प्रशासन भी चुप्पी साधे हुए है। इनका ढीला रवैया लंपट और अपराधी प्रवृत्ति के छात्रों को संरक्षण दे रहा है। इसमें कई ऐसे छात्र हैं जो बिरला छात्रावास में अवैध तरीके से रह रहे हैं।"

 

सोची-समझी साज़िश

वाराणसी के वरिष्ठ पत्रकार एवं चिंतक प्रदीप कुमार कहते हैं, "बीएचयू के संस्थापक महामना मदन मोहन मालवीय उदारमना हिन्दू थे। उनका हिन्दुत्व मनुवाद के संकीर्ण दायरे में कैद नहीं था। उन्होंने कैंपस में जगह-जगह से बिना जाति और धर्म देखे प्रतिभाशाली लोगों और विद्वानों को इकट्ठा किया। मकसद था कि बनारस से नए और आधुनिक भारत की ज्ञान गंगा बहाना। एक ओर जहां काशी नरेश ने विश्वविद्यालय की स्थापना में सहयोग दिया तो हैदराबाद के निजाम भी सहयोग में पीछे नहीं रहे। दलित और पिछड़े तबके के छात्रों के उत्थान को लेकर महामना की सोच महात्मा गांधी की तरह थी। दुर्भाग्य से बीएचयू अब ऐसे लोगों के शिकंजे में आ गया है जिनकी उत्पत्ति गोलवरकर के दर्शन को पढ़कर हुई है। जिसके चलते विश्वविद्यालय अपने मूल चरित्र और उद्देश्यों से भटक गया है। यही वजह है कि इस तरह की घटनाएं स्वतःस्फूर्त नहीं हैं। सोची-समझी साजिश के तरह की जा रही हैं।"

"भारत में क़ानून तो बहुत हैं लेकिन समस्या सामाजिक मूल्यों की है। ऊंची जाति के लोग दलितों और पिछड़ों को मनुष्यों की तरह  बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार नहीं हैं। इसमें परिवर्तन हो रहा है, लेकिन वो बहुत धीमा है। मीडियापुलिस महकमान्याय व्यवस्था सब जगह सोचने का तरीका अभी पूरी तरह बदला नहीं है। पुलिस स्टेशन पहली जगह है जहां कोई पीड़ित जाता है लेकिन कई बार वहां पर उसे बेरुखी मिलती है। न्याय पाना गरीबों के लिए हमेशा मुश्किल होता है। खासतौर पर वह तबका जो आर्थिक रूप से कमज़ोर है। बीएचयू में अगर जातिवादी ताकतें सिर उठा रही हैं तो यह गंभीर चिंता की बात है।"

प्रदीप यह भी कहते हैं, "दुख और चिंता का विषय यह भी है कि सरकार और प्रशासन के स्तर पर इसे रोकने की बजाय आंख मूद लिया गया है या फिर जान बूझकर बढ़ावा दिया जा रहा है। जाति-पात तोड़ने का नारा दे रहे प्रगतिशील छात्रों पर मनुवादियों का हमला इस बात की पुष्टि कर रहा है कि समाज को विशेष ध्यान देने और मजबूती के साथ लामबंद होने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं किया गया तो देश का जाना-माना काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ज्ञान की गंगा बहाने की बजाय अज्ञानता का अंधकार फैलाने का केंद्र बन जाएगा।"  

 पैर चटवाने की घटना के बाद बढ़ी हिंसा

दरअसल, बीएचयू परिसर में प्रगतिशील छात्रों के साथ मारपीट की घटनाएं तब से बढ़नी शुरू हुई हैं जब से रायबरेली में मानवता को शर्मसार करने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो में दबंगों द्वारा 10वीं के एक दलित छात्र की बेरहमी से पिटाई की जा रही है। आरोपी दबंग पीड़ित दलित छात्र से अपने पैर चटवा रहा और गाली-गलौज करते हुए जातिसूचक शब्द भी कह रहा है। रायबरेली की सनसनीखेज घटना का वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने पीड़ित छात्र की तहरीर पर छह लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तीन को गिरफ्तार कर लिया है। फरार आरोपियों की तलाश की जा रही है। दलित छात्र से पैर चटवाने की घटना तह हुई जब छात्र ने दबंगों के खेतों में काम करने वाली अपनी मां की मजदूरी के पैसे मांगे।

रायबरेली जिले के जगतपुर थाना क्षेत्र का वायरल वीडियो 11 अप्रैल का है। आरोप है कि दबंग सवर्णों ने दलित छात्र को केबल और डंडे से पीटा और बाद में अपने पैर भी चटवाए। रायबरेली की घटना के बाद से बीएचयू परिसर में मनुवाद का विरोध करने वाले स्टूडेंट पर जुल्म-ज्यादती की घटनाएं बढ़ने लगी हैं।  बीएचयू कैंपस में पढ़ने वाले खासतौर पर दलित और पिछड़ी जातियों के स्टूडेंट्स सकते में हैं। पुलिस और बीएचयू प्रशासन की चुप्पी से अराजकता का माहौल है और स्थिति तनावपूर्ण बताई जा रही है।

बीएचयू कैंपस  में दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के साथ अत्याचार की घटनाएं नई नहीं हैं। साल 2015-16 में केंद्रीय विश्वविद्यालयों में दलितों के साथ जाति आधारित भेदभाव का सर्वे कराया गया था। उस समय सबसे ज्यादा शिकायतें काशी हिंदू विश्वविद्यालय में दर्ज की गई थीं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र मौजूद है कि बीएचयू के बाद दलित स्टूडेंट्स के साथ ज्यादती की सर्वाधिक शिकायतें गुजरात विश्वविद्यालय में दर्ज की गई थीं। उस समय बीएचयू के तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर गिरिश चंद त्रिपाठी को सफाई देनी पड़ी थी कि बीएचयू में किसी के साथ जाति आधारित भेदभाव नहीं होता है। उनकी जानकारी में ऐसा कोई मामला नहीं आया है। हालांकि यूजीसी की रिपोर्ट इस बात को तस्दीक करती है कि यूपी और गुजरात दोनों ही राज्यों में जाति आधारित भेदभाव की सबसे ज्यादा शिकायतें आई हैं। यूजीसी की रिपोर्ट कहती है कि साल 2015-16 में दलितों के साथ भेदभाव की 102 और आदिवासियों के साथ भेदभाव की 40 शिकायतें आईं थीं।

आंकड़े बताते हैं कि बीएचयू कैंपस में जातिवादी ताकतें तब से ज्यादा सिर उठा रही हैं जब से डबल इंजन की सरकार सत्ता में आई है। दिसंबर 2019 में बीएचयू के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में प्रोफेसर शांतिलाल साल्वी के ऊपर उस समय हमला किया गया था जब उन्होंने मुस्लिम शिक्षक डॉ. फिरोज की नियुक्ति के मामले में उनका समर्थन किया। संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय में नियुक्त साहित्य विभाग में सहायक प्रोफेसर डॉक्टर फिरोज का समर्थक बताकर आंदोलनरत छात्रों ने प्रदर्शन के दौरान प्रोफेसर शांतिलाल साल्वी को गाली देते हुए मारने के लिए दौड़ा लिया था। उस समय वह किसी तरह से जान बचाकर वहां से भागे थे। बाद में वाराणसी पुलिस ने लंका थाने में इस मामले में प्रोफेसर कौशलेंद्र पाण्डेयमुनीश कुमार मिश्रशुभम के अवावा चार-पांच अज्ञात लोगों के खिलाफ पर धारा 147,504,323,352 और एससी/एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया। यही नहीं, प्रो.साल्वी के हमलावरों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर बीएचयू मेन गेट से आक्रोश मार्च निकाला गया और बाद में उस मामले में लंका थाना पुलिस ने लीपापोती कर दी।

बीएचयू कैंपस में छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाएं भी आम हैं। साल 2018 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एक दलित छात्रा के साथ पहले छेड़खानी फिर मारपीट की गई। छात्रा राजनीति विज्ञान विभाग में एमए प्रथम वर्ष की स्टूडेंट थी। आरोप था कि सहपाठी शिवानन्द सिंह परमार ने उसके साथ छेड़खानी की और जब छात्रा ने विरोध किया तो उसकी पिटाई कर दी। उस समय भी प्रगतिशील छात्राओं ने चीफ प्रॉक्टर से उत्पाती छात्र के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई तो आरोपित छात्र को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया। आरोपित छात्र ने दोबारा उसी छात्रा के साथ अश्लील हरकत और मारपीट की। काफी जद्दोजहद के बाद पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।

छुआछूत से मुक्त नहीं यूपी

उत्तर प्रदेश में जातिवाद, छुआछूत, भेदभाव की घटनाएं हाल के दिनों में बढ़ी हैं। जिस समय सरकार राज्य में स्कूल चलो अभियान’  मुहिम चला रही थी, तभी चित्रकूट के मानिकपुर तहसील के अमरपुर गांव के दलित समाज के बच्चों ने छुआछूत से तंग आकर स्कूल जाना बंद कर दिया। बसोर दलित जाति के केशन ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई कि उनके बच्चे काजलसंगीतागोविंद और मुकेश अमरपुर ग्राम पंचायत के ऊंचाडीह पूर्व माध्यमिक में पढ़ने के लिए जाते हैंतो उनके बच्चों के साथ भेदभाव किया जाता है। उन्हें अलग से बैठने के लिए कहा जाता है। अगर गलती से वह किसी अन्य जाति के बच्चों को छू लेते हैं तो उनके साथ मारपीट भी की जाती है।

केशन का यह भी कहना था कि विद्यालय के पास लगे सरकारी हैंडपंप से उनके बच्‍चों को पीने का पानी तक नहीं दिया जाता, जिससे वह स्कूल में प्यासे बैठे रहते हैं। इसकी शिकायत उन्होंने कई बार स्कूल के प्रधानाध्यापक से की, लेकिन उल्टा उन्हें ही फटकार यह कह दिया जाता है कि जब तुम लोगों को कोई नहीं छूता है तो क्यों तुम लोग उन्हें छूते हो। इस मामले ने तूल पकड़ा तो मौके पर पहुंचे एसडीएम ने चौपाल लगाकर दबंगों को कड़ी चेतावनी दी।

आंकड़े बताते हैं कि योगी के नेतृत्व वाली भाजपा ने साल 2017 में यूपी की कमान संभाली थी उस समय दलित उत्पीड़न की 11,444 घटनाए हुई थीं। अगले साल 2020 में यह संख्या बढ़कर 12,714 हो गई। 2020 महामारी का पहला साल था और देश भर में दर्ज अपराध आंशिक रूप से कम हो गए थे, क्योंकि विस्तारित लॉकडाउन के दौरान सामान्य जीवन रुक गया था। आंशिक रूप से घटनाएं इसलिए भी कम दर्ज़ हुई क्योंकि मामलों की रिपोर्टिंग भी कम हुई हो सकती हैं। एनसीआरबी डेटा भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत दर्ज किए गए अपराधों और अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ हुए अपराधों के खिलाफ बने विशेष कानूनों के तहत दर्ज़ किए गए मुकदमों का विवरण उपलब्ध कराता है। दलितों के खिलाफ किए गए कई हिंसक अपराधों में यूपी में भाजपा के शासन के पहले चार वर्षों में लगातार वृद्धि देखी गई है।

थानों में दर्ज नहीं होते मामले

राजस्थान के डंगावास में दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा (2015)रोहित वेमुला (2016)तमिलनाडु में 17 साल की लड़की का गैंगरेप और हत्या (2016)तेज़ म्यूज़िक के चलते सहारनपुर हिंसा (2017)भीमा कोरेगांव (2018) और डॉक्टर पायल तड़वी की आत्महत्या (2019) के  मामलों की पूरे देश में चर्चा हुई, लेकिन सिलसिला फिर भी रुका नहीं।

भारत के संविधान में दलितों और पिछड़े तबके के लोगों की सुरक्षा के लिए अनुसूचित जाति/ जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम1989 मौजूद है। ऐसे मामलों के तेज़ी से निपटारे के लिए विशेष अदालतों का गठन भी किया जाता है। इसी तरह अस्पृश्यता पर रोक लगाने के लिए अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम1955 बनाया गया था जिसे बाद में बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम कर दिया गया। इसके तहत छुआछूत के प्रयोग एवं उसे बढ़ावा देने वाले मामलों में दंड का प्रावधान है ।

वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य कहते हैं, "पहले दलितों और पिछड़ों पर हिंसक हमले नहीं होते थे। प्रगतिशील सोच के लोगों ने जब से वर्ण व्यवस्था का विरोध करना शुरू किया है तब से  हिंसक वारदातें बढ़ी हैं। कुछ मामले तो मीडिया और राजनीतिक पार्टियों के हस्तक्षेप के कारण सबकी नज़र में आ जाते हैं, लेकिन कई तो पुलिस थानों में दर्ज़ भी नहीं हो पाते। जैसे-जैसे पिछड़ों  और दलितों की तरक्की हो रही है वैसे-वैसे उन पर हमले बढ़ रहे हैं। यह क़ानूनी नहीं सामाजिक समस्या है। भाजपा सरकार निजीकरण लाकर आरक्षण की व्यवस्था ख़त्म करके इस असमानता, जातिवाद व छुआछूत को और बढ़ा रही है। मौजूदा सरकार में नौकरशाहों के बीच डर ख़त्म हुआ है। जब अपने देश के नेताओं को गरीबों की चिंता नहीं होगी तो वह नौकरशाही पर दबाव कैसे बनाएंगे?"

 भगत सिंह छात्र मोर्चा के फेसबुक वाल बहुत कुछ कहता है---

https://www.facebook.com/bhagatsinghchhatramorcha/posts/1327720334388759/

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