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पक्ष-विपक्ष: झगड़ा आयुर्वेद और एलोपैथी का है ही नहीं

अच्छा होता कि हमारे स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, लाला रामदेव को अपना बयान वापस लेने के लिए ‘विनम्र’ पत्र लिखने की बजाय अपने पद से इस्तीफ़ा देकर उसे रामदेव को सौंप देते।
Ramdev
फोटो साभार

आयुर्वेद बनाम एलोपैथी या रामदेव बनाम आईएमए के इस ताज़ा विवाद को समझने के लिए दो बातें अहम हैं-

एक- यह लाला रामदेव के कारोबार का मामला है। यानी उन्हें अपनी दवा कोरोनिल बेचनी है।

दूसरा- यह सारा विवाद सरकार की विफलता को छुपाने के लिए खड़ा किया गया है। क्योंकि वह न दवा उपलब्ध करा पाई, न अस्पताल, न ऑक्सीजन।

अब जब आपके अपने चले गए, छिन गए, छीन लिए गए, तो जाहिर है कि आप गुस्से में हैं, आप सरकार पर, उसकी स्वास्थ्य व्यवस्था पर सवाल उठा रहे हैं तो उन्हें तो विवाद को कहीं और मोड़ना ही होगा। क्यों... क्योंकि छवि नहीं सुधारनी क्या...!, चुनाव नहीं जीतना क्या!

सो लाला रामदेव (बाबा की जगह लाला इसलिए क्योंकि अब वे कारोबारी की भूमिका में हैं) ने इस तरह का बयान दिया और कोविड से हो रही मौतों के लिए एलोपैथी को ज़िम्मेदार ठहरा दिया, जबकि इसके लिए अगर कोई ज़िम्मेदार है तो वो है हमारी सरकार और उसकी स्वास्थ्य नीति, स्वास्थ्य व्यवस्था। वरना सवाल तो रामदेव को भी डॉक्टर, अस्पताल, बेड, ऑक्सीजन की कमी लेकर ही उठाना चाहिए था, बजाय आधुनिक चिकित्सा विज्ञान को ही दोष देने के। क्योंकि जब महज़ तीन-चार दिन के अनशन में ही उनका हाल बेहाल हो गया था तो वे इन्हीं एलोपैथी डॉक्टरों यानी आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की शरण में गए थे। इसी तरह जब उनके शिष्य-कम-पार्टनर बालकृष्ण बीमार हुए तो वे भी एम्स में ही भर्ती हुए।

आयुर्वेद हो या यूनानी, होम्योपैथी या एलोपैथी। इन सब चिकित्सा पद्धतियों को लेकर हमेशा बहस चलती रहती है। लेकिन हमारे आयुर्वेद और होम्योपैथी के भी अच्छे डॉक्टर स्थिति की गंभीरता को देखते हुए एलोपैथी डॉक्टर के पास जाने की सलाह देते हैं। और खुद भी ज़रूरत अनुसार एलोपैथी डॉक्टर के पास जाते हैं। और एलोपैथी डॉक्टर भी ना भाप लेने को मना करते हैं, ना काढ़ा पीने से। कोविड में उन्होंने भी गरम पानी पीने, भाप लेने की सलाह दी। तुलसी, हल्दी, अदरक, नीम, शहद, एलोवेरा इस सबके बारे में हमारे खुद के ही अनुभव हैं कि ये सब किस तरह काम करती हैं। रामदेव के बहुत पहले से आयुर्वेद और योग भारतीय जीवन का हिस्सा है। उन्होंने जिन महर्षि पतंजलि के नाम पर अपना पूरा कारोबार फैलाया है, वही 150 से लेकर 200 ईसा पूर्व के माने जाते हैं। नए समय की ही बात की जाए तो बैधनाथ, डाबर, हिमालया ये सब लाला रामदेव से बहुत पहले से आयुर्वेद के क्षेत्र में कारोबार कर रहे हैं।

यही नहीं हमारी रसोई में, हमारी क्यारियों में, बगिया में आयुर्वेद का ख़जाना है। लोग अपनी समझ, ज़रूरत और क्षमता अनुसार इनका सेवन करते रहते हैं। इसी तरह यूनानी चिकित्सा पद्धति भी हमारे जीवन का ऐसा ही हिस्सा है।

लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यही पद्धति रामबाण हैं। जब ज़रूरत पड़ती है हमें ऐलोपैथ की शरण में जाना ही पड़ता है। हमारे एलोपैथ के डॉक्टर कहते हैं कि एलोपैथ में जो दवा है उसके साइड इफेक्ट सबको पता हैं। आज आप गूगल पर किसी भी दवा का नाम लिखिए उसके फायदे की बजाय उसके नुकसान यानी साइड इफेक्ट पहले बताए जाते हैं। यह इस पैथी की बुराई नहीं अच्छाई है। यह दवाएं सालों की रिसर्च के बाद बनती हैं। इसलिए इनमें क्या है, क्यों है, कितनी मात्रा में, कैसे काम करता है और क्या साइड इफेक्ट हो सकते हैं, सबकुछ साफ है। जो भी अच्छा-बुरा है, छिपाया नहीं जाता। आप खुद पढ़कर जान सकते हैं। क्या किसी और पद्धिति में दवा के बारे में इतना विस्तार से और खुले तौर पर बताया जाता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति रोज़ खुद को अपडेट करती है। लेकिन आयुर्वेद और यूनानी में तो शर्तिया इलाज के दावे किए जाते हैं। जबकि शर्तिया कुछ भी नहीं।

रामदेव एलोपैथी को ‘मूर्खतापूर्ण विज्ञान’ कहते हैं और बाद में माफ़ी मांगते हुए भी 25 सवाल पूछते हैं, लेकिन क्या किसी को कोई शक है कि प्राचीन ज्ञान और पद्धतियों के नाम पर लोगों को किस तरह ठगा जाता है। लोगों को कैसे मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है। कैसे-कैसे शर्तिया इलाज के दावे के साथ नीम हकीम, ओझा-बाबा हमारे सामने हैं। लाला रामदेव ही कैंसर तक के इलाज के दावे करते हैं।

इसी तरह ऐलोपैथी इलाज के नाम पर भी कम लूट नहीं है। लेकिन यह भी डॉक्टर और अस्पताल का मामला है। सरकार ने जिस तरह पूरा हेल्थ सेक्टर प्राइवेट हाथों में सौंप दिया है और उससे आज जिस तरह बीमे का कारोबार भी जुड़ गया है, उसके बुरे नतीजे हम भुगत रहे हैं कि कोरोना की बिना दवा और इलाज के भी अस्पताल में पहुंचते ही लाखों रुपये पहले ही जमा कराए जा रहे हैं। एक-एक दिन में लाखों का बिल बनाया जा रहा है। लेकिन ये दिक्कत आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की नहीं है। जैसे मैंने पहले कहा ये हमारी सरकार की स्वास्थ्य नीति का दोष है कि मरीज़ लूटे जा रहे हैं। कोरोना संकट ने हमें सरकारी स्वास्थ्य सुविधा की ज़रूरत से नये सिरे से अवगत कराया है।

कुल मिलाकर ये विवाद न आयुर्वेद का है, न एलोपैथी का। न ये मरीज़ के हक़ में है, न डॉक्टर के। ये सिर्फ़ लाला रामदेव के बिजनेस और सरकार के हक़ में है।  क्या आपको कोई शक़ है कि लाला रामदेव कितने सालों से सरकार के लिए काम कर रहे हैं और सरकार लाला रामदेव के लिए। इसलिए ये सारी कवायद आपका ध्यान बांटने और आपका गुस्सा सरकार की तरफ़ से हटाकर एलोपैथी और डॉक्टरों की तरफ़ मोड़ने का प्रयास है।

वरना अगर लाला रामदेव की बात सही है तो सरकार को न केवल तत्काल टीकाकरण बंद कर देना चाहिए, बल्कि सभी अस्पतालों पर ताले लगवा देने चाहिए। और कोविड के सारे मरीज़ रामदेव के आश्रम में भेज देने चाहिए।

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