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दिल्ली : 'अतिक्रमण' के नाम पर एक बार फिर रेहड़ी-पटरी वालों पर हमला!

हाल ही में नगर निगम और पुलिस प्रशासन ने करोल बाग़ के अजमल ख़ाँ मार्ग मार्किट से रेहड़ी-पटरी वालों को ज़बरदस्ती हटा दिया और उनकी पिटाई भी की गई।
street vendors

4 अक्टूबर 2019 को करोल बाग़ के अजमल ख़ाँ मार्ग पर स्थानीय पथ विक्रेता यानी रेहड़ी-पटरी वाले जो अपना व्यवसाय कर रहे थे, अचानक ही उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों ने उनका सामान ज़ब्त करना शुरू कर दिया। बताया जा रहा है कि यह कार्रवाई करोल बाग़ ज़ोन की उपायुक्त के निर्देश पर की गई थी।

जबकि इस कार्रवाई का विरोध कर रहे लोगों का कहना था कि यह पथ विक्रेता अधिनियम 2014 की धारा 3.3 का उल्लंघन है जिसके अनुसार जब तक सभी स्थानीय पथ विक्रेताओं का सर्वेक्षण कर उन्हें वेण्डिंग प्रमाण पत्र नहीं मिल जाता तब तक उन्हें उनके स्थान से हटाया नहीं जा सकता है।

इसी क़ानून के अंतर्गत बनी दिल्ली पथ विक्रेता स्कीम 2019 की धारा 1.1, 6.4 भी इसी बात पर ज़ोर देती है कि बिना सर्वेक्षण के पथ विक्रेताओं को हटाया नहीं जा सकता। इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा उन्हें हटाया जाने लगा तथा सामान ज़ब्ती के बदले उन्हें सीज़र मेमो भी नहीं दिया जा रहा था। स्कीम की धारा 6.7 में यह उल्लेखित है कि सामान ज़ब्ती के समय annexure A में दिए गये प्रारूप में मेमो देना आवश्यक है।

मौक़े पर मौजूद लोगों ने बताया कि पुलिस ने निगम के अधिकारियों के साथ मिलकर वहाँ मौजूद 350 के क़रीब रेहड़ी-पटरी वालो को हटाना शुरू कर दिया। और जिसने इसका विरोध किया उन्हें पुलिस ने उनके साथ मारपीट की।

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इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ लोगों ने सड़क पर बैठकर प्रदर्शन किया। आज भी इसके विरोध में शाम को रेहड़ी-पटरी वालों ने एक प्रतिरोध सभा बुलाई है जिसमें वो लोग मुंह पर काली पट्टी बांधकर अपना विरोध जताएंगे।

मौक़े पर मौजूद कार्यकर्ता अंकित, जो रेहड़ी-पटरी वालों के लिए काम करने वाले संगठन नेशनल हॉकर्स यूनियन से जुड़े हुए हैं, उन्होंने बताया कि जब इसका विरोध किया गया तो पुलिस द्वारा पथ विक्रेताओं तथा उनके समर्थन में आए मानव अधिकार कार्यकर्ताओं से मारपीट की गयी तथा शाम को पहली कार्रवाई में चार लोगों को हिरासत में ले लिए गया। हिरासत में उनके साथ मार पीट की गयी तथा उनके कपड़े भी फाड़े गये। उन्हें क़रीब 2 घंटे बाद छोड़ा गया।

अंकित ने आगे बताया कि इसके बावजूद लोग वहाँ डटे रहे। लोग बार बार सीज़र मेमो की माँग करते रहे। जब लोग नहीं माने तब क़रोल बाग़ पुलिस थाने के स्टेशन हाउस ऑफ़िसर विरेंदर जैन और उसके साथ के क़रीब 50 पुलिस वालों ने लोगों पर बिना किसी चेतावनी के हमला कर दिया। इस दौरान उन्होंने लोगों को खदेड़ना शुरू किया और लोगों पर हाथ भी उठाया।

इस कार्रवाई में पुलिस ने काफ़ी बर्बरता से लोगों को पीटा, मोबाइल फ़ोन छीन लिया और दो लोगों को हिरासत में भी ले लिया। हिरासत में उन्हें थाने के मेस में रखा गया और उन्हें पानी व खाना खाने से भी मना किया गया। पुलिस के साथ लम्बी बातचीत और क़रीब 300 लोगों द्वारा थाना घेराव के बाद रात 11 बजे दोनों को छोड़ा गया।

रेहड़ी-पटरी यूनियन उनके लिए काम करने वाले संगठनों ने पुलिस द्वारा की गई इस कार्रवाई को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया है। साथ ही कहा है कि क़रीब 4 महीने से अजमल ख़ाँ मार्ग पर से जिस तरह सभी पथ विक्रेताओं को हटाया जा रहा है, वह भी अवैध है।

दिल्ली में रेहड़ी-पटरी वालों की काफ़ी लंबे समय से मांग रही है कि उनको निश्चित जगह दी जाए, इस पर दिल्ली की  सरकार ने रेहड़ी-पटरी वालों के लिए टाउन वेंडिंग कमेटी (टीवीसी) का गठन किया, जिससे उम्मीद थी कि अब उनकी ज़िंदगी कुछ आसान होगी लेकिन बीजेपी शासित नगर निगम और केंद्र के अधीन काम करने वाली पुलिस दिल्ली के रेहड़ी-पटरी वालों को हटा रही है। 

हटाए गए रेहड़ी-पटरी वालों का कहना है कि उनके पास यही रोज़गार है और यहां से हटाए जाने के बाद से वो बेरोज़गार हैं। उन्होंने कहा, "हमें कोई जगह दे दी जाए तो हम यहाँ से चले जाएंगे। 2014 में क़ानून बन जाने के 5 साल बाद भी हमें आजतक कोई जगह क्यों नहीं दी गई? इस पर कोई भी अधिकारी बात नहीं कर रहा है।"

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 24 सितंबर को टीवीसी का गठन करते हुए कहा था, "दिल्ली शहर में आज रेहड़ी-पटरी लाइफ़ लाइन हैं। साथ ही यह शहर के विकास और रोज़गार देने का बड़ा साधन बनकर उभरे हैं। यहां के लोगों की दैनिक आवश्यकता पूरी करने के साथ रेहड़ी-पटरियों से लाखों लोगों को रोज़गार मिल रहा है। एक दिन के लिए भी रेहड़ी-पटरी को हटा दिया जाए तो सब्ज़ी से लेकर कई ज़रूरी सामान घर में आने बंद हो जाएंगे। एक तरह से सामान्य जन-जीवन ठप हो जाएगा और बहुत से ज़रूरी सामान के लिए लोगों को भटकना पड़ेगा।"

इस घटना पर हमने प्रशासन का पक्ष जानने के लिए करोल बाग़ थाने में संपर्क की कोशिश की। इसके अलावा आकृति सागर जो करोल बाग़ ज़ोन की डीसी हैं, उनके निवास और कार्यालय में कॉल किया लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।

सवाल है कि जब रेहड़ी-पटरी वाले इतने ज़रूरी थे तो इन्हें हटाया क्यों जा रहा है? क्या अतिक्रमण सिर्फ़ रेहड़ी-पटरी से है? कार्रवाई के नाम पर सिर्फ़ इनपर ही कार्रवाई क्यों? यह सवाल लोग पूछ रहे हैं लेकिन इसका जवाब कोई नहीं दे रहा है।

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