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अरविंद केजरीवाल: लोकलुभावन 'जुमलों' वाला ऐसा मुख्यमंत्री जिसकी कोरोना संक्रमण ने कलई खोल दी

दिल्ली में कोरोना के बढ़ते संक्रमण ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बेहतर प्रशासक की छवि को धूमिल किया है। उनकी सरकार वायु प्रदूषण और कोरोना संक्रमण दोनों के रोकथाम में विफल रही है जिसके चलते राज्य की स्थिति बहुत ही भयावह और दयनीय हो गई है।
अरविंद केजरीवाल

दिल्ली उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को आप सरकार से सवाल किया कि त्योहारी सीज़न के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में कोरोना वायरस मामलों में वृद्धि होने का सितंबर में ही अनुमान लगाने के बावजूद सार्वजनिक आवाजाही पर रोक में ढील जैसे कदम उठाए गए और पर्याप्त व्यवस्था नहीं की गयी। अदालत ने यह भी कहा कि उस महीने की सीरो सर्वेक्षण रिपोर्ट में भी मामलों में वृद्धि की आशंका जतायी गयी थी।

अदालत ने कहा, "आपको (दिल्ली सरकार को) अपने यहां व्यवस्था ठीक रखनी चाहिए थी। आपको पता था कि वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली की स्थिति इस अवधि में खराब हो जाती है। आपको पता था कि वायु प्रदूषण बढ़ने के साथ-साथ शीत लहर सांस की समस्या वाले लोगों के लिए परेशानी पैदा करेगी।’’

न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद की पीठ ने कहा कि आप जानते थे कि यह दिल्ली में रहने वाले लोगों के लिए कितना घातक है। अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में दिल्ली सरकार ने बाजारों को खोल दिया और पूरी क्षमता के साथ सार्वजनिक परिवहन चलाने की अनुमति दी।

लोकलुभावन वादों के जरिए लगातार दूसरी बार सत्ता पर काबिज हुई दिल्ली की आप सरकार पर अदालत की यह कोई पहली टिप्पणी नहीं है। पिछले छह महीने में आधा दर्जन बार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संक्रमण की रोकथाम में विफल रहने पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई है।

अभी पिछले हफ्ते 12 नंवबर को न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति सुब्रमणियम प्रसाद की पीठ ने ही दिल्ली में कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ते मामलों के बावजूद प्रतिबंध में ढील देने पर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। हाईकोर्ट ने कहा जहां दूसरे राज्य सख्ती कर रहे हैं तो वहीं दिल्ली सरकार ढील दे रही है।

पीठ ने कहा कि दिल्ली में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों ने दो सप्ताह में महाराष्ट्र और केरल को पीछे छोड़ दिया है। दिल्ली सरकार ने सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या को बढ़ाकर 200 और बसों को उनकी पूरी यात्री क्षमता के साथ चलाने की छूट दे दी है। ऐसे हालात में जब केस लगातार बढ़ रहे हैं तो सरकार का निर्णय समझ से परे है। 

पीठ ने कहा कि 10 नवंबर को दिल्ली में 8,593 नए मामले आए और संक्रमितों की संख्या बढ़ ही रही है, शहर में निषिद्ध क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 4,016 हो गई है।

इससे पहले 05 नवंबर, गुरुवार के दिन दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में बढ़ते कोरोना के मामले पर दिल्ली सरकार को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि महमारी दिल्ली सरकार पर पूरी तरह से हावी हो चुकी है। जल्द ही दिल्ली कोरोना कैपिटल बनने जा रही है। कोर्ट ने दिल्ली सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर कहा कि आपके प्रयास पूरी तरह विफल हो रहे हैं।

इससे पहले 02 सितंबर को भी हाईकोर्ट ने दिल्ली में सत्तासीन आम आदमी सरकार से कहा कि जांच करने की रणनीति दोबारा से तैयार करें, ताकि बढ़ते संक्रमण पर अंकुश लगाया जा सके। पीठ ने इसके साथ ही कश्मीरी गेट, सराय काले खां व आनंद विहार अंतरराज्यीय बस टर्मिनल पर टेस्ट कैंप लगाने का निर्देश दिया, ताकि बड़े पैमाने पर दिल्ली वापस लौटने वालों की जांच की जा सके।

इससे भी पहले जून महीने में सुप्रीम कोर्ट ने भी अस्पतालों में कोविड-19 से संक्रमित मरीजों के इलाज और उनके साथ ही शवों को रखे जाने की घटनाओं का स्वत: संज्ञान लेते हुये दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा था, ‘दिल्ली की स्थिति तो बहुत ही भयावह और दयनीय है।’

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने इस स्थिति पर चिंता व्यक्त की और कहा कि अस्पताल न तो शवों को ठीक से रखने की ओर ध्यान दे रहे हैं और न ही मृतकों के बारे में उनके परिवारों को ही सूचित कर रहे हैं जिसका नतीजा यह हो रहा है कि वे अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हो पा रहे हैं।

अदालत ने दिल्ली सरकार के वकील से कहा था कि अस्पतालों में हर जगह बॉडी फैली हुई हैं और लोगों का वहां इलाज चल रहा है। अदालत ने कहा कि बेड खाली हैं लेकिन मरीजों को देखने वाला कोई नहीं है। अदालत ने उन वीडियो का जिक्र किया जिसमें मरीज रो रहे हैं और कोई उन्हें देखने वाला नहीं है।

गौरतलब है कि अदालतों की यह टिप्पणियां उस दिल्ली के लिए हैं जहां पर स्वास्थ्य सुविधाएं अमूमन दूसरे राज्यों की तुलना में बेहतर मानी जाती रही हैं। लेकिन यहां अभी के हालात बहुत ही ज्यादा बुरे हैं।

अगर आंकड़ों पर जाएं तो दिल्ली में गुरुवार को कोविड-19 के 7546 नए मामले आने से संक्रमितों की संख्या 5.1 लाख से अधिक हो गयी जबकि 98 और मरीजों की मौत हो जाने से मृतकों की संख्या 8041 हो गयी। दिल्ली के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी बुलेटिन के मुताबिक शहर में त्योहार के मौसम और बढ़ते प्रदूषण के बीच संक्रमण दर 12.09 प्रतिशत है। वर्तमान में 43,221 मरीजों का उपचार चल रहा है।

इसके अलावा आलम ये है कि आज दुनिया के किसी भी शहर से ज्यादा कोरोना के मामले दिल्ली में हैं। आज तक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नवंबर में दिल्ली ने दैनिक नए कोविड-19 केसों में जो बढ़ोतरी देखी है, वो सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के किसी भी शहर की तुलना में दैनिक नए केसों को लेकर अब तक की संभवत: सबसे खराब स्थिति है। यहां एक दिन में कोरोना के मामले औसतन 8000 तक पहुंच जा रहे हैं। इसके कारण ब्राजील का साओ पाउलो और अमेरिका का न्यूयॉर्क शहर भी दिल्ली से काफी पीछे छूट गए हैं जहां कभी कोरोना से त्राहिमाम हो रहा था।

रिपोर्ट के मुताबिक, बावजूद इसके कि दिल्ली आज कोरोना के सबसे खतरनाक दौर से गुजर रहा है, दिल्ली सरकार को लगता है कि तबाही के बुरे दिन निकल चुके हैं। सरकार के दावे के विपरीत अभी तो आलम ये है कि कोरोना के वायरस दिल्ली में जितना फैल रहे हैं, उतना दुनिया के किसी शहर में कभी भी नहीं रहे। दिल्ली में 11 नवंबर को कोरोना मरीजों की संख्या 8593 हो गई। ये संख्या अब तक का वर्ल्ड रिकॉर्ड है। इससे पहले 13 अगस्त को साओ पाउलो में कोरोना के 7063 मरीज सामने आए थे। तीसरे नंबर पर अमेरिका का न्यूयॉर्क रहा है।

हालांकि इन आंकड़ों से इतर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का प्रशासनिक अमला महामारी के इस दौर में अक्षरधाम मंदिर में दिवाली कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त नजर आया है। इस दौरान उनके मंत्री और सहयोगी काम करने से ज्यादा विपक्षी दलों का जवाब देते नजर आए हैं। तबाही के इस दौर में भी सार्वजनिक स्थानों पर छठ पूजा के आयोजन पर प्रतिबंध, बाजारों को खोलने, बसों और अन्य सार्वजनिक परिवहन में छूट जैसे मुद्दों पर सरकार और विपक्षी दलों में आपस में ठनी हुई है।

इस सबके बीच में गैरजिम्मेदारी का आलम यह नजर आता है कि गुरुवार को मुख्यमंत्री ने दिल्ली में कोविड-19 महामारी की स्थिति को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। इस बैठक में क्या निर्णय लिया गया ये तो अभी स्पष्ट नहीं हुआ लेकिन मास्क न लगाने पर जुर्माना बढ़ाकर 500 रुपये से 2000 रुपये कर दिया गया है। यानी रोडमैप न होने की स्थिति में सरकार जुर्माने की राशि बढ़ाकर कोरोना से लड़ाई जीतना चाह रही है।

फिलहाल आईआइटी से इंजीनियरिंग और फिर प्रशासनिक सेवा को अलविदा कहकर समाजसेवा के जरिये राजनीति में उतरे अरविंद केजरीवाल ने अपनी इमेज एक बेहतर प्रशासक की बनाई थी, लेकिन कोरोना संक्रमण के रोकथाम और इसके इलाज में उनकी सरकार जैसे हांफती नजर आ रही है, वह उनकी इस इमेज को तोड़ रही है। अभी वह एक गैरजिम्मेदार और कमजोर मुख्यमंत्री नजर आ रहे हैं जो अपनी हर विफलता का ठीकरा विपक्ष पर फोड़ रहा है।

हालांकि दूसरों राज्यों की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं है। और कुछ राज्यों के बारे में तो कहा जा रहा है कि वहां स्थिति इसलिए ही संभली दिख रही है क्योंकि वहां टेस्ट ही बहुत कम हो रहे हैं या फिर रैपिड एंटिजन टेस्ट पर ही ज़ोर है। लेकिन एक राज्य की कमियों को लेकर दूसरे राज्य या मुख्यमंत्री को छूट नहीं दी जा सकती ख़ासकर देश की राजधानी दिल्ली को तो बिल्कुल नहीं।

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