दिल्ली हिंसा अचानक नहीं हुई बाकायदा इसकी साजिश रची गई थी
3 दिन तक लगातार हिंसा का शिकार बनी उत्तरपूर्व दिल्ली में जनजीवन अब सामान्य हो रहा है। हिंसा में 45 लोगों की जान चली गई। जैसे-जैसे जीवन पटरी पर आ रहा है, वैसे-वैसे दंगों की भयावह और दुख भरी कहांनियां सामने आ रही हैं।
लेकिन एक दूसरी तस्वीर भी है। हिंसा में शामिल कुछ लोग, सोशल मीडिया पर तस्वीरें लगाकर, अपने कथित ''साहस'' का खुल्लेआम बखान कर रहे हैं। इन्हें अपने किए का कोई पछतावा नहीं है। हिंसा में शामिल कुछ लोग सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि ''जो हुआ, वो बहुत अच्छा है। मुस्लिमों को रोकने के लिए यह जरूरी था।'' लेकिन यह लोग इस बात को नहीं समझ रहे हैं कि इनकी बात से खुद बहुसंख्यक समुदाय का बड़ा हिस्सा इत्तेफाक नहीं रखता, जो मानते हैं कि इस हिंसा से अपूरणीय क्षति हुई है।
हिंसा की शुरूआत कैसे हुई, कैसे दंगों को अंजाम दिया गया, क्या इनकी साजिश रची गई थी, इन सवालों के जवाब जानने के लिए न्जूज़क्लिक ने कुछ लोगों से बात की। इन लोगों में कुछ आगजनी और तोड़फोड़ में शामिल थे।
इनके साथ गहराई से हुई बातचीत से हमें पता चला कि सांप्रदायिक दंगे क्षणिक नहीं थे। लंबे वक्त से तनाव जारी था। जाफराबाद-सीलमुपर मेन रोड का जाम होना हिंसा की तात्कालिक वजह बनी। यह रोड कर्दमपुरी, नूर-ए-इलाही और मौजपुर जैसे इलाकों में रहने वाली एक बड़ी आबादी की जीवनरेखा है।
इन ''अपराधियों'' की बात पर विश्वास किया जाए तो पता चलता है कि जैसे ही हिंसा शुरू हुई, अगली कड़ियों के लिए रणनीति बनाई जाने लगी। जल्द ही लोगों का समर्थन हासिल होने लगा, लोग इकट्ठा होने लगे, हथियार बटोरे जाने लगे, पहले इस तरह की किसी भी हिंसा में शामिल नहीं हुए लोगों को बरगलाया जाने लगा। स्थानीय तत्व, एक खास समुदाय के प्रभुत्व और उन्हें मिलने वाले राजनीतिक संरक्षण ने भी हिंसा में अहम किरदार निभाया।
मौजपुर के एक स्वाघोषित दंगाई ने बताया, ''यह बहुत जरूरी था। अगर ऐसा नहीं होता तो मुसलमान हर सड़क पर बैठ जाते।''जब हमने उसका नाम पूछा, तो उसने मुस्कुराते हुए कहा- ''अभी तो सिर्फ एक ही नाम चल रहा है- जय श्री राम।''जब हमने पूछा कि हिंसा को इतने बड़े पैमाने पर ले जाने में उन्हें कैसे कामयाबी मिली, तो उसने कहा, ''कोई बाहरी आदमी नहीं था, हम लोगों ने मौजपुर से शुरूआत की, घोंडा चौक पर मोर्चा संभाला, नूर ए इलाही में मारा और चांद बाग में तो हमारे भाईयों ने मोर्चा संभाल ही रखा था।''
बातचीत के दौरान आसपास मौजूद लोगों ने सहमति में अपना सिर भी हिलाया। उनमें से एक ने कुछ नई जानकारी जोड़ी। उसने कहा, ''शुरूआत में हमने लोगों को खुद इकट्ठा किया। छोटी-छोटी बैठकों द्वारा लोगों से सड़कों पर आने की गुहार लगाई। हमने बताया कि कैसे मु्स्लिमों के डर का शासन अब खत्म हो गया है। जब झड़पें शुरू हुईं, तो हमने कुछ हिंदूवादी संगठनों से मदद ली, जो हमारी कॉलोनियों में आए और उन्होंने कुछ बैठकें की और रणनीति बनाई।''
हमें उनके सदस्यों से भी मदद मिली। उन्होंने हमें कुछ रणनीतिक जगहों पर तैनात किया, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा नुकसान किया जा सके। उन्ही समूहों ने हथियारों की व्यवस्था की। हमारे काम को स्थानीय ''क्रिमिनल गैंग'' ने और आसान बना दिया। उन्होंने भी अपने मुस्लिम प्रतिद्वंदियों से बदला लिया। शहर के भीतर और आसपास रहने वाले कुछ गुज्जर लोगों ने भी अहम किरदार निभाया। बल्कि उन्हें ही हथियार चलाने के लिए तैनात किया गया था।
एक तीसरे आदमी ने तब हमें एक पूरी नई तस्वीर दिखाई। उसने हिंसा को सही ठहराते हुए कहा, ''सीलमपुर और जाफराबाद में मुस्लिम युवा बड़ी संख्या में बेरोजगार हैं। वही लोग छीना-झपटी और छेड़खानी में शामिल रहते हैं। उन्होंने हमारे जीवन को नर्क बना दिया है। हमारी महिलाएं असुरक्षित हैं। उन्हें मतीन अहमद का समर्थन हासिल है (सीलमपुर के पूर्व कांग्रेसी विधायक)। विधानसभा चुनावों में उसके हारने से हमें बहुत लाभ मिला। अगर वो मैदान पर मौजूद रहता, तो स्थिति बहुत अलग होती।''
उसने आगे बताया, ''लंबे वक्त से विद्वेष फैल रहा था। सीएए विरोधी प्रदर्शन और पहले शाहीन बाग, फिर जाफराबाद में रोड जाम तो बस ट्रिगर था। स्थानीय लोगों को लगा कि अब मुस्लिमों को सबक सिखाने का वक्त आ गया है।''
बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के दंगों में हाथ होने की बात पर उस शख़्स ने कहा, ''यहां उसे कौन जानता है? उसका एकमात्र योगदान केवल दिल्ली पुलिस को अल्टीमेटम देना है। इससे काम हो गया। सबमें एक सुरक्षा की भावना आई कि सत्ताधारी दल से कोई तो उनके साथ है, जो उनकी समस्या समझता है। अगर प्रदर्शनकारियों ने रोड खाली कर दी होती, तो हिंसा रोकी जा सकती थी।''
उसने आगे कहा,''हालांकि हम खुश हैं कि जो हुआ, उससे मुस्लिमों का विश्वास हिल गया। अब वे किसी भी तरह का अपराध करने और अपना सिर उठाने से पहले सौ बार सोचेंगे। लेकिन हमें दुख है कि जो असली अपराधी हैं, वे अबतक सुरक्षित हैं। जो लोग मरे, वो गरीब और रोज कमाने-खाने वाले मजदूर थे। यह लोग प्रवासी थे। ऑटो, साइकिल रिक्शा ड्राइवर और मज़दूर घरों से बाहर थे, वही लोग पत्थरबाजी और क्रॉस फायरिंग में मारे गए।''
हमारी बातचीत चल ही रही थी कि फ्लैग मार्च कर रहे अर्धसैनिक बल का एक जवान आया और उसने सबसे बिखरने के लिए कहा।चांदबाग में एक दूसरी बातचीत में एक ने कहा कि कपिल मिश्रा ने उसे और दूसरे लोगों को महसूस करवाया कि हम हिंदू हैं। उस शख़्स ने कहा, ''उसने हमें महसूस करवाया कि हम हिंदू हैं और यह देश सिर्फ हमारा है। विभाजन के बाद हमने मुस्लिमों को एक अलग देश दे दिया था। जो लोग यहां रह रहे हैं, उन्हें एक कानून से दिक्कत है। जबकि यह कानून पाकिस्तान में प्रताड़ित हिंदुओं को नागरिकता देने के लिए है। यह हिंदुओं का देश है। अगर हिंदुस्तान नहीं, तो हमारा समुदाय कहां रहेगा? मुस्लिमों को सरकार के फ़ैसले पर सवाल करने का अधिकार किसने दिया?'' उस शख़्स ने खुद कई दुकानों और एक मस्ज़िद को जलाने जैसे भयावह खुलासे किए।
इस हिंसा से कुछ नए तरीके भी उबर कर सामने आए हैं। जैसे, कई दंगाई अपने बर्बर कारनामों का फेसबुक लाइव कर रहे थे। जैसा होता आया है, फेसबुक और व्हाट्सएप का इस्तेमाल अफवाह फैलाने और हिंसा भड़काने के लिए किया गया। एक और गौर फरमाने वाली चीज यह थी कि इस बार हिंसा में समाज के अलग-अलग वर्ग के लोगों ने हिस्सा लिया। यह आम धारणा रही है कि आर्थिक तौर पर सशक्त लोग हिंसा में हिस्सा नहीं लेते। लेकिन इस बार अलग-अलग सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोग सड़कों पर थे और आगज़नी-तोड़फोड़ में हिस्सा लेते नज़र आए।
जब हमने शख़्स से पूछा कि पत्रकारों पर क्यों हमले किए गए और कई हिंदुओं को भी नहीं छोड़ा गया, तो उसने कहा, ''लोगों में मीडिया की एकतरफा कवरेज से गुस्सा था। वो लोग हिंदू हैं, लेकिन मुस्लिम और वामपंथियों की तरह व्यवहार करते हैं।''इस बातचीत के बाद कोई शख़्स कुछ नतीजों पर पहुंचता है। पहली बात कि 3 दिन तक पुलिस द्वारा कार्रवाई न करने से हिंसा प्रबल हुई और दंगाईयों को सुरक्षा का भाव महसूस हुआ। उन्हें लगा कि कोई उन्हें छुएगा भी नहीं।
दूसरी बात कि आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार चुपचाप देखती रही। जबकि पार्टी के पास पर्याप्त मात्रा में अपने कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करने और मैदान पर दंगों के प्रभाव को कम करने का विकल्प मौजूद था। तीसरी बात, गृहमंत्रालय हिंसा रोकने के लिए बनाए गए रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती में नाकामयाब रहा।
अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
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