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छात्र संगठनों की मांग, लॉकडाउन के बहाने जनता की आवाज़ को दबाना बंद करे सरकार

आइसा, एसएफआई, एआईडीएसओ समेत तमाम छात्र और शिक्षक संगठनों ने लॉकडाउन के दौरान हो रही राजनीतिक गिरफ़्तारियों पर रोक लगाने और राजनीतिक क़ैदियों की रिहाई की मांग की है।  
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लॉकडाउन की मार झेल रहे ग़रीब मज़दूरों और छात्रों के लिए 23 अप्रैल को अपने घर पर भूख हड़ताल पर बैठे पछास के नेता महेश।

दिल्ली: परिवर्तनकामी छात्र संगठन के लालकुआं इकाई सचिव महेश पर पुलिस ने लॉकडाउन में जनता को भड़काने को लेकर मुकदमा दर्ज किया है। प्राप्त जानकारी के मुताबिक यह मुकदमा पुलिस ने सोशल मीडिया पर उकसाने के आरोप में दर्ज किया है। पुलिस ने यह मुकदमा धारा 188, 269, 270 और आपदा प्रबंधन एक्ट 51 के तहत दर्ज किया है।

इसके खिलाफ सोमवार को कई छात्र और शिक्षक संगठनों ने साझा बयान जारी कर महेश पर हुए पुलिस दमन की कड़ी निंदा की। ऑल इण्डिया स्टूडेंट एसोसिएशन (AISA), ऑल इण्डिया डेमोक्रटिक स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन( AIDSO), आल इंडिया रेव्यूल्योशनरी स्टूडेंट ऑर्गेनाइजेशन (AIRSO), ऑल इण्डिया फोरम फॉर राइट तो एजुकेशन (AIFRTE), भगत सिंह छात्र एकता मंच (BSCEM), Collective, डेमोक्रेटिक स्टूडेंट यूनियन (DSU), क्रांतिकारी युवा संगठन ( KYS), परिवर्तनगामी छात्र संगठन (पछास), प्रोग्रेसिव डेमोक्रटिक स्टूडेंट फ़ेडरेशन (PDSF), पिंजरा तोड़, स्टूडेंट फेडरशन ऑफ़ इण्डिया (SFI) सहित सभी संगठनों ने महेश और उन जैसे अन्य राजनीतिक बंदियों को रिहा करने की मांग की।

गौरतलब है कि 23 अप्रैल 2020 को देश में विभिन्न जगहों पर फंसे हुए मजदूरों और छात्रों की संक्रमण की जांच कर उन्हें घर तक पहुंचाने की व्यवस्था करने और देश के सभी गरीब मजदूरों-मेहनतकशों और छात्रों के लिए राशन और आर्थिक मदद की तत्काल व्यवस्था करने की मांगों को लेकर पछास द्वारा एक दिन की भूख हड़ताल की गई थी। यह भूख हड़ताल घर पर रहकर ही की गई थी। विभिन्न जगहों से इन मांगों के समर्थन में कई लोगों ने सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक की भूख हड़ताल किया था।

छात्र संगठन ने पछास का कहना है कि"यह भूख हड़ताल लोगों ने अपने-अपने घरों में रहकर ही की। अब अपने-अपने घरों में अलग-अलग जगहों/शहरों में लोगों द्वारा की गयी इस भूख हड़ताल से कौन सा गैरकानूनी कृत्य या लॉकडाउन का उल्लंघन हो गया जिस पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया। यह आश्चर्य की बात है कि पुलिस को यह काम उकसाने का काम लगता है।"
 
साझा बयान में सवाल किया गया कि क्या छात्रों और मजदूरों की संक्रमण की जांच कर उनके घरों तक पहुंचाने की मांग करना भड़काना है, जिस पर पुलिस मुकदमा दर्ज कर रही है? क्या यह देश के गरीबों, मजदूरों और विभिन्न स्थानों पर फंसे छात्रों के लिए राशन की व्यवस्था करने की मांग करना गैरकानूनी है, जिस पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर दिया? क्या लॉकडाउन में फंसे मजदूरों व छात्रों के प्रति संवेदना प्रकट करना, उनके कष्टों की बात करना, उनकी बेहतरी की चिंता करना अपराध है?

इसमें आगे कहा गया है कि पुलिस का यह कृत्य, पुलिस द्वारा यह मुकदमा दर्ज करना लॉकडाउन में फंसे मजदूरों-छात्रों की मदद करने की आवाजों को दबाना है। यह कृत्य लॉकडाउन में फंसे मजदूरों-छात्रों के दर्द और पीड़ा की आवाजों को दबाना है।

पछास के नेता दीपक ने बताया कि उधम सिंह नगर की पुलिस भी लॉकडाउन के उल्लंघन के आरोप में इंकलाबी मजदूर केन्द्र के अध्यक्ष का उत्पीड़न कर चुकी है। जब एक पोस्ट का बहाना बनाकर उन पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी गयी। पंतनगर के ठेका मजदूर कल्याण समिति के सचिव अभिलाख सिंह पर पुलिस ने राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया है। लॉकडाउन के दौरान पुलिस द्वारा मजदूरों को मुर्गा बनाये जाने का विरोध करने पर इन दोनों साथियों का पुलिस उत्पीड़न किया गया और दोनों का मोबाइल फोन जब्त कर लिया गया।

साझा बयान में यह भी कहा गया है कि "आज देखने में आ रहा है कि अलग अलग राज्यों की सरकारें लॉकडाउन का इस्तेमाल मज़दूरों-किसानों-मेहनतकशों-दलितों-आदिवासियों की आवाज को उठाने वाले लोगों का दमन करने में कर रही हैं। भीमा कोरेगांव हिंसा के मामले में आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा को गिरफ्तार किया गया। जामिया हिंसा के मामले में केंद्र सरकार ने जेएनयू के छात्र नेता उमर खालिद सहित 4 छात्रों पर यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज किया है।

कश्मीर में भी एक फोटोग्राफर और एक पत्रकार पर भी पिछले दिनों यूएपीए के तहत कार्रवाई की गई है। इसके अलावा कश्मीर में धारा 370 की समाप्ति के बाद कई पत्रकारों, विपक्षी दलों के नेताओं और आम नागरिकों की गिरफ्तारी की गई है। दिल्ली दंगो में दोषी कपिल मिश्रा और अन्य बीजेपी नेताओ को गिरफ्तार करने के बजाए पुलिस हमलों को सहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को ही गिरफ्तार कर रही है। अखबारी रिपोर्ट के अनुसार इस मामले में सरकार कई छात्र संगठनों पर भी हमला करने वाली है। स्पष्ट है कि सरकार लॉक डाउन का इस्तेमाल करके जनता की आवाज को दबा रही है।"

परिवर्तनकामी छात्र संगठन ने दावा किया है कि वो लोग लगातार लॉकडाउन के बाद से गरीब मजदूरों के बीच राशन वितरण का काम कर रहे हैं। इस दौरान तमाम गरीब मजदूरों और छात्रों की लॉकडाउन की वजह से जो दुर्दशा हो रही है उस पर सरकार का ध्यान पड़े, इस कारण यह भूख हड़ताल रखी गयी थी। न केवल परिवर्तनकामी छात्र संगठन बल्कि हम सब आम मजदूर मेहतनकश जनता के इस दुख के समय में उनके साथ खड़े हैं और हम लगातार उनके बीच राहत का कार्य करते रहने के साथ-साथ उनकी मांगों को भी उठाते रहेंगे।

अंत सभी संगठनों ने कहा  "लॉकडॉउन का बहाना बनाकर जनता की आवाज को दबाना तथा पुलिस उत्पीड़न की कार्यवाहियों को तत्काल बंद किया जाय तथा सभी राजनीतिक कैदियों को तत्काल रिहा किया जाए।"

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